मंगलवार, 2 सितंबर 2025

शुद्ध-सात्विक प्रेम ही संघ कार्य का आधार

100 वर्ष की संघ यात्रा : नये क्षितिज

यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष है। संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। समाज के बीच संघ को लेकर सही-सही जानकारी पहुँचे, इसलिए आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने तीन दिन तक प्रबुद्ध लोगों के बीच संघ का विचार रखा। दिल्ली के विज्ञान भवन में 26 से 28 अगस्त तक यह व्याख्यानमाला आयोजित हुई। आखिरी दिन सरसंघचालक जी ने प्रबुद्धजनों के प्रश्नों का उत्तर भी दिया। उनके तीनों व्याख्यान का सार हम आपके लिए यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के यूट्यूब चैनल पर तीनों व्याख्यान सुने जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में भी इसी प्रकार का आयोजन हुआ था। शताब्दी वर्ष के अवसर पर इस वर्ष चार स्थानों पर इस प्रकार व्याख्यानमाला आयोजित होगी, ताकि अधिक से अधिक लोगों तक संघ का सही स्वरूप पहुँच सके।

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि संघ का निर्माण भारत को केंद्र में रखकर हुआ है और इसकी सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है। संघ कार्य की प्रेरणा संघ प्रार्थना के अंत में कहे जाने वाले “भारत माता की जय” से मिलती है। संघ भले हिंदू शब्द का उपयोग करता है, लेकिन उसका मर्म ‘वसुधैव कुटुंबकम’ है। गांव, समाज और राष्ट्र को संघ अपना मानता है। संघ कार्य पूरी तरह स्वयंसेवकों द्वारा संचालित होता है। कार्यकर्ता स्वयं नए कार्यकर्ता तैयार करते हैं। उन्होंने कहा कि संघ का संपूर्ण कार्य शुद्ध-सात्विक प्रेम के आधार पर चलता है। उन्होंने कहा- “संघ का स्वयंसेवक कोई व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा नहीं रखता। यहाँ कोई पुरस्कार नहीं हैं, बल्कि नुकसान ही अधिक हैं। स्वयंसेवक समाज-कार्य में आनंद का अनुभव करते हुए कार्य करते हैं। जीवन की सार्थकता और मुक्ति की अनुभूति सेवा से होती है। सज्जनों से मैत्री करना, दुष्टों की उपेक्षा करना, कोई अच्छा करता है तो आनंद प्रकट करना, दुर्जनों पर भी करुणा करना - यही संघ का जीवन मूल्य है।

संघ की स्थापना का उद्देश्य :

उन्होंने कहा कि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और अन्य महापुरुषों का मानना था कि समाज के दुर्गुणों को दूर किए बिना स्वतंत्रता के सब प्रयास अधूरे रहेंगे। बार-बार गुलामी का शिकार होना इस बात का संकेत है कि समाज में गहरे दोष हैं। हेडगेवार जी ने ठाना कि जब दूसरों के पास समय नहीं है, तो वे स्वयं इस दिशा में काम करेंगे। 1925 में संघ की स्थापना कर उन्होंने संपूर्ण हिंदू समाज के संगठन का उद्देश्य सामने रखा।

कौन हैं हिन्दू :

हिंदू नाम का मर्म समझाते हुए सरसंघचालक जी ने स्पष्ट किया कि ‘हिंदू’ शब्द का अर्थ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी का भाव है। यह नाम दूसरों ने दिया, पर हम अपने को हमेशा मानव शास्त्रीय दृष्टि से देखते आये हैं। हम मानते हैं कि मनुष्य, मानवता और सृष्टि आपस में जुड़े हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। हिंदू का अर्थ है समावेश और समावेश की कोई सीमा नहीं होती। हिंदू यानी क्या - जो इसमें विश्वास करता है, अपने-अपने रास्ते पर चलो, दूसरों को बदलो मत। दूसरे की श्रद्धा का भी सम्मान करो, अपमान मत करो, ये परंपरा जिनकी है, संस्कृति जिनकी है, वो हिंदू हैं। हमें संपूर्ण हिन्दू समाज का संगठन करना है। हिन्दू कहने से यह अर्थ नहीं है कि हिन्दू वर्सेस ऑल, ऐसा बिल्कुल नहीं है। ‘हिन्दू’ का अर्थ है समावेशी। भारत माता और अपने पूर्वजों को मानने वाला ही सच्चा हिंदू है। उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे वे लोग भी स्वयं को हिंदू कहने लगे हैं, जो पहले इससे दूरी रखते थे। 

व्यक्तिगत समर्पण से चलता है संघ :

संघ की विशेषता है कि यह बाहरी स्रोतों पर निर्भर नहीं, बल्कि स्वयंसेवकों के व्यक्तिगत समर्पण पर चलता है। ‘गुरु दक्षिणा’ संघ की कार्यपद्धति का अभिन्न हिस्सा है, जिसके माध्यम से प्रत्येक स्वयंसेवक संगठन के प्रति अपनी आस्था और प्रतिबद्धता प्रकट करता है। यह प्रक्रिया निरंतर जारी है। हमारा प्रयास होता है कि विचार, संस्कार और आचार ठीक रहे। इतनी हमें स्वयंसवेक की चिंता करनी है, संगठन की चिंता वो करते हैं। हम सबको मिलकर भारत में गुट नहीं बनाना है। सबको संगठित करना है।

धर्म का मार्ग अपनाना होगा :

सरसंघचालक जी ने कहा कि आज दुनिया में समन्वय का अभाव है और दुनिया को अपना नजरिया बदलना होगा। दुनिया को धर्म का मार्ग अपनाना होगा। “पूजा-पाठ और कर्मकांड से परे धर्म है। सभी प्रकार के रिलिजन से ऊपर धर्म है। धर्म हमें संतुलन सिखाता है - हमें भी जीना है, समाज को भी जीना है और प्रकृति को भी जीना है।” धर्म ही मध्यम मार्ग है जो अतिवाद से बचाता है। धर्म का अर्थ है मर्यादा और संतुलन के साथ जीना। इसी दृष्टिकोण से ही विश्व शांति स्थापित हो सकती है। धर्म को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा, “धर्म वह है जो हमें संतुलित जीवन की ओर ले जाए, जहाँ विविधता को स्वीकार किया जाता है और सभी के अस्तित्व को सम्मान दिया जाता है।” उन्होंने बल दिया कि यही विश्व धर्म है और हिन्दू समाज को संगठित होकर इसे विश्व के सामने प्रस्तुत करना होगा।

भविष्य की दिशा :

सरसंघचालक जी ने कहा कि संघ का उद्देश्य है कि सभी स्थानों, वर्गों और स्तरों पर संघ कार्य पहुँचे। साथ ही समाज में अच्छा काम करने वाली सज्जन शक्ति आपस में जुड़े। इससे समाज स्वयं संघ की ही तरह चरित्र निर्माण और देशभक्ति के कार्य को करेगा। इसके लिए हमें समाज के कोने-कोने तक पहुंचना होगा। भौगोलिक दृष्टि से सभी स्थानों और समाज के सभी वर्गों एवं स्तरों में संघ की शाखा पहुंचानी होगी। सज्जन शक्ति से हम संपर्क करेंगे और उनका आपस में भी संपर्क कराएंगे। उन्होंने कहा कि संघ मानता है कि हमें समाज में सद्भावना लानी होगी और समाज के ओपिनियन मेकर्स से निरंतर मिलना होगा। इनके माध्यम से एक सोच विकसित करनी होगी। वे अपने समाज के लिए काम करें, उसमें हिन्दू समाज को अंग होने का अनुभव पैदा हो और वे भौगोलिक परिस्थितियों से जुड़ी चुनौतियों का स्वयं समाधान ढूँढे। दुर्बल वर्गों के लिए काम करें। संघ ऐसा करके समाज के स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहता है।

पंच परिवर्तन – अपने घर से शुरुआत :

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया में परिवर्तन लाने से पहले हमें अपने घर से समाज परिवर्तन की शुरुआत करनी होगी। इसके लिए संघ ने पंच परिवर्तन बताये हैं। यह हैं कुटुंब प्रबोधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, स्व की पहचान तथा नागरिक कर्तव्यों का पालन। उन्होंने उदाहरण दिया कि पर्व-त्योहार पर पारंपरिक वेशभूषा पहनें, स्वभाषा में हस्ताक्षर करें और स्थानीय उत्पादों को सम्मानपूर्वक खरीदें। उन्होंने कहा कि हंसते-हंसते हमारे पूर्वज फाँसी पर चढ़ गए, लेकिन आज आवश्यकता है कि हम 24 घंटे देश के लिए जीएँ। “हर हाल में संविधान और नियमों का पालन करना चाहिए। यदि कोई उकसावे की स्थिति हो तो न टायर जलाएँ, न हाथ से पत्थर फेंकें। उपद्रवी तत्व ऐसे कार्यों का लाभ उठाकर हमें तोड़ने का प्रयास करते हैं। हमें कभी उकसावे में आकर अवैध आचरण नहीं करना चाहिए। छोटी-छोटी बातों में भी देश और समाज का ध्यान रखकर अपना काम करना चाहिए।” उन्होंने कहा कि भारत को आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम बढ़ाने होंगे और इसके लिए स्वदेशी को प्राथमिकता देनी होगी। 

डॉक्टर कहते हैं कि तीन बच्चे होने चाहिए :

सरसंघचालक जी ने जन्म दर में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि जनसंख्या पर्याप्त होनी चाहिये और नियंत्रित भी होनी चाहिये, 2.1 का जन्मदर रखने से जनसंख्या स्थिर रहती है, ऐसा विशेषज्ञ मानते हैं। उन्होंने कहा, “जनसंख्या नियंत्रित भी रहे और पर्याप्त भी, इसके लिए नई पीढ़ी को तैयार करना होगा।” उन्होंने कहा कि कई डॉक्टर बताते हैं कि एक दंपती को तीन बच्चे होने चाहिए।

देश विभाजन और अखंड भारत :

सरसंघचालक जी ने कहा कि संघ ने देश विभाजन का विरोध किया था। देश विभाजन के दुष्परिणाम आज हम अलग हुए देशों में देख रहे हैं। भारत अखंड है, यह जीवन का तथ्य है। पूर्वज, संस्कृति और मातृभूमि हमें एक बनाते हैं। अखंड भारत केवल राजनीति नहीं, बल्कि जनमानस की एकता है। जब यह भावना जागेगी तो सब सुखी और शांतिपूर्ण रहेंगे। डॉ. मोहन भागवत जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता को समान पूर्वज और संस्कृति पर आधारित करते हुए कहा कि संघ के बारे में एक गलत धारणा विकसित की गई है कि हम किसी के विरोधी हैं। इस धारणा का पर्दा हटाकर संघ को देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “हम हिन्दू कहेंगे, आप उसे भारतीय मानें – अर्थ एक ही है। हमारे पूर्वज और संस्कृति समान हैं।” पूजा-पद्धति अलग हो सकती है, लेकिन हमारी पहचान एक है। उन्होंने कहा कि दोनों ओर से विश्वास कायम होना चाहिए – हिन्दुओं में शक्ति जागरण करने की आवश्यकता है और मुसलमानों में यह आशंका दूर करनी चाहिए कि साथ आने से उनका इस्लाम चला जाएगा। 

उन्होंने कहा कि देश में स्थानों के नाम आक्रांताओं पर नहीं होने चाहिए, इसका अर्थ यह नहीं कि मुसलमानों के नाम पर नहीं होने चाहिए। बल्कि अब्दुल हमीद, अशफाकुल्ला खान और एपीजे अब्दुल कलाम जैसे व्यक्तित्वों पर होने चाहिए, जो हमारे लिए प्रेरणादायी हैं।

आरक्षण पर संघ का मत :

आरक्षण पर सरसंघचालक जी ने कहा कि “आरक्षण का विषय तर्क नहीं, संवेदना का है। अन्याय हुआ है तो उसका परिमार्जन होना चाहिए।” उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान सम्मत आरक्षण का संघ ने पहले भी समर्थन किया है और आगे भी करता रहेगा। जब तक लाभार्थियों को इसकी आवश्यकता लगेगी, संघ उनके साथ खड़ा रहेगा। अपने लोगों के लिए छोड़ना ही धर्म है।”

सभी भारतीय भाषाएं राष्ट्रीय :

सरसंघचालक जी ने भाषा पर कहा कि “भारत की सभी भाषाएँ राष्ट्रीय हैं, लेकिन आपसी संवाद के लिए एक व्यवहार भाषा चाहिए और वह विदेशी नहीं होनी चाहिए।” आदर्श और आचरण सभी भाषाओं में समान हैं, इसलिए विवाद की आवश्यकता नहीं। “हमें अपनी मातृभाषा जाननी चाहिए, प्रदेश की भाषा में बोल-चाल आना चाहिए और एक साझा व्यवहार की भाषा अपनानी चाहिए।” यही भारतीय भाषाओं की समृद्धि और एकता का मार्ग है। इसके अलावा हम दुनिया की भाषा सिखें, इसमें कोई मनाही नहीं है।

संघ की परिवर्तनशीलता :

सरसंघचालक जी ने कहा कि संघ एक परिवर्तनशील संगठन है। हम केवल तीन बातों पर अडिग हैं। उन्होंने कहा, “व्यक्ति निर्माण से समाज के आचरण में परिवर्तन संभव है और वह हमने करके दिखाया है। समाज को संगठित करो, सब परिवर्तन अपने आप होते हैं। हिन्दुस्तान हिन्दू राष्ट्र है। इन तीन बातों को छोड़कर संघ में सब बदल सकता है। बाकी सभी बातों में लचीलापन है।”

मथुरा और काशी के लिए हिन्दू समाज करे आग्रह :

मथुरा और काशी के प्रति हिन्दू समाज के आग्रह का सम्मान होना चाहिए। साथ ही स्पष्ट किया कि राम मंदिर आंदोलन में संघ ने सक्रिय भागीदारी की थी, लेकिन अब किसी अन्य आंदोलन में संगठन प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होगा। उन्होंने कहा, “राम मंदिर बनाने का आग्रह हमारा था और संघ ने इस आंदोलन का समर्थन किया। अब बाकी आंदोलनों में संघ नहीं जाएगा। लेकिन हिन्दू मानस में काशी-मथुरा और अयोध्या का महत्व है। दो जन्मभूमि हैं और एक निवास स्थान है। यह स्वाभाविक है कि हिन्दू समाज इसका आग्रह करेगा।”

80 वर्ष में भी शाखा चलाना चाहूँगा :

सरसंघचालक जी ने कहा कि संघ में सेवानिवृत्ति की कोई अवधारणा नहीं है। “मैंने कभी नहीं कहा कि मैं किसी आयु में रिटायर हो जाऊंगा या किसी को होना चाहिए। संघ में हम सब स्वयंसेवक हैं। यदि मैं 80 वर्ष का हो जाऊं और मुझे शाखा चलाने का कार्य सौंपा जाए तो मुझे करना ही होगा। हम वही काम करते हैं जो संघ हमें सौंपता है। सेवानिवृत्ति का प्रश्न यहां लागू नहीं होता।” संघ में केवल एक व्यक्ति पर निर्भरता नहीं है। उन्होंने कहा, “यहां 10 लोग और हैं जो यह दायित्व संभाल सकते हैं। हम जीवन में कभी भी सेवानिवृत्त होने को तैयार हैं और तब तक काम करने को भी जब तक संघ चाहेगा।”

राष्ट्रकार्य में महिलाओं की भूमिका :

समाज संगठन के प्रयास में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी है। “1936 में राष्ट्र सेविका समिति का गठन हुआ, जो महिला शाखाएं संचालित करती है। यह परंपरा आज तक चल रही है। संघ प्रेरित अनेक संगठनों का नेतृत्व महिलाएं ही करती हैं। महिलाएं और पुरुष हमारे लिए पूरक हैं।” संघ का कार्यक्षेत्र भारत तक मर्यादित है, विदेशों में स्वयंसेवक संघ की कार्यपद्धति के आधार पर वहां के कानूनों के अनुसार काम करते हैं। 

मतांतरण पर विदेशों से धन :

मतांतरण पर विदेशों से आ रहे धन पर सरसंघचालक ने अंकुश लगाए जाने की बात कही। उन्होंने कहा, “सेवा के लिए विदेशों से धन आए तो ठीक है, पर उसका उपयोग उसी उद्देश्य में होना चाहिए। समस्या तब होती है, जब यह धन मतांतरण में लगाया जाता है। “इस पर अंकुश जरूरी है, उसकी स्क्रूटनी और प्रबंधन सरकार की जिम्मेदारी है।”

व्याख्यानमाला के महत्वपूर्ण संदेश :
  • डॉ. हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे। बचपन से ही यह चिंगारी उनके मन में थी।
  • डॉ. साहब कलकत्ता गए, मेडिकल की पढ़ाई की और अनुशीलन समिति से संबंध भी स्थापित किया। त्रिलोक्यानाथ चक्रवर्ती, रासबिहारी बोस की पुस्तकों में उनका ज़िक्र आता है। उनका कोड नाम ‘कोकेन’ था।
  • जो स्वयं शुद्ध चरित्र का हो, जिसका समाज से निरंतर संपर्क हो, जिस पर समाज विश्वास करता हो, जो समाज के लिए जीवन-मरण करने को तत्पर हो - ऐसा नायक चाहिए। 
  • हिंद स्वराज में गांधी जी ने लिखा है। अंग्रेजों के आने से बहुत पहले हमारा देश एक था। हमारे देश का अस्तित्व बहुत प्राचीन है। परिस्थिति बदलती है एकत्व नहीं बदलता है।
  • अपना स्वाभाविक धर्म क्या है? समन्वय – संघर्ष नहीं।
  • 40,000 वर्ष पूर्व से भारत के लोगों का डीएनए एक है। हमारी संस्कृति एक है, मिलजुल कर रहने की।
  • संघ से स्वयंसेवकों का संबंध अटूट है, जन्म-जन्मांतर का है।
  • करना क्या है? संपूर्ण समाज का संगठन। संपूर्ण हिन्दू समाज का संगठन। 
  • हमें कोई गुट नहीं बनाना है, सम्पूर्ण समाज का संगठन करना ही संघ का उद्देश्य है।
  • गुरुजी से प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पूछा गया - हमारे गाँव में ईसाई, और मुसलमान नहीं हैं, तो हमारे यहाँ शाखा का क्या काम है? गुरुजी ने उत्तर दिया - अपने गाँव को छोड़ दो, अगर पूरी दुनिया में ईसाई और मुसलमान न होते, तब भी यदि हिन्दू इस अवस्था में होता, तो संघ जैसी शाखा की आवश्यकता थी। संगठन किसी के विरोध में नहीं होता।
  • लक्ष्मणराव भिड़े ने कहा कि बाहर के देशों में संघ हिन्दू संगठन का काम करता है - यह उसकी तीसरी पीढ़ी है। पहली पीढ़ी ने वहाँ के संघ के स्वयंसेवक हिन्दुओं को संगठित करने का काम किया। दूसरी पीढ़ी ने सिद्ध किया कि शाखा के प्रशिक्षण के बाद अतिरेक उपभोग, व्यसन आदि से दूर रह सकता है। तीसरी पीढ़ी को यह करना है कि उस देश के वासी कहें, हमारा भी ऐसा आरएसएस होना चाहिए और वे अपने देश का संघ बनाएँ।
  • अगले पड़ाव का लक्ष्य: चरित्र निर्माण, देशभक्ति का जागरण, संघ के कार्य को सम्पूर्ण समाज में प्रवाहित करना। भौगोलिक दृष्टि से हर जगह, समाज के सभी वर्गों में तक संघ शाखा का जाल व्यापक करना। 
  • संघ चाहता है कि इस देश के समाज ने एक ऐसी छलांग लगाई, जिसके चलते भारत का कायापलट तो हुआ ही और सम्पूर्ण विश्व में सुदृढ़, शांतिपूर्ण नई दुनिया खड़ी हो गई।
  • विभिन्न वर्गों के बीच परस्पर संवाद और सद्भावना स्थापित करने का प्रयास।
  • मंदिर, पानी और श्मशान में कोई भेद नहीं होना चाहिए।
  • आत्मनिर्भरता सब बातों की कुंजी है। अपना देश आत्मनिर्भर होना चाहिए।
  • भूतकाल की जानकारी बच्चों को देना ताकि उन्हें गौरव प्राप्त हो सके।
  • सब जगह अपनी परम्परा, मूल्यों और संस्कृति की शिक्षा देनी चाहिए। वह धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक है।
  • हमें अंग्रेज़ नहीं बनना है, लेकिन अंग्रेज़ी सीखने में कोई दिक्कत नहीं। एक भाषा के नाते इसका कोई दुष्परिणाम नहीं है। हालाँकि, रामायण महाभारत से लेकर उपनिषद तक की उच्च परंपरा है। उसे अवश्य पढ़ना जानना चाहिए।
  • गुरुकुल पद्धति, शिक्षा पद्धतियों में सर्वोत्तम है।
  • भारत को जानना है तो संस्कृत पढ़ना अनिवार्य है।
  • हमारा सभी सरकारों के साथ समन्वय रहता है।
  • 1948 में हाथ में जलती मशाल लेकर जयप्रकाश संघ कार्यालय जलाने पहुँचे, लेकिन आपातकाल के बाद वह हमारे प्रशंसक बन गए।
  • नागपुर में NSUI का अधिवेशन हुआ, वहाँ गड़बड़ी हुई। राजीव गाँधी उस समय NSUI के अध्यक्ष थे। मैं नागपुर का प्रचारक था। उस समय के कांग्रेस सांसद ने हमसे सहायता माँगी, तो हमने अपने स्वयंसेवक भेजे।
  • भारत के विभाजन को रोकने में संघ की भूमिका को समझना हो तो, शेषाद्रि जी की पुस्तक ‘ट्रैजिक स्टोरी ऑफ़ पार्टीशन’ पढ़नी चाहिए।
  • आक्रान्ताओं के नाम पर शहरों और रास्तों के नाम नहीं होने चाहिए। इसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। इसलिए वीर अब्दुल हमीद और अब्दुल कलाम के नाम पर होने चाहिए।
  • जातिवाद देश की प्रगति में रुकावट है। जाति और वर्ण व्यवस्था कभी रही होगी। वह व्यवस्था अब नहीं है, अव्यवथा बन गई है। उसका अहंकार बना हुआ है। अब शोषण मुक्त और समानता वाली व्यवस्था बननी चाहिये।
  • संविधान सम्मत आरक्षण को संघ का समर्थन है।
  • दुर्बल वर्ग के आरक्षण का प्रयास हम करेंगे। हम भाजपा के वोट बैंक के लिए यह नहीं कर रहे हैं। समाज में अपने वर्ग की उन्नति के लिए उस वर्ग की नेतृत्व क्षमता खड़ी हो—इस दिशा में हमारे प्रयास चल रहे हैं और चलते रहेंगे।
  • संविधान की प्रस्तावना, नागरिक कर्त्तव्य, नागरिक अधिकार और मार्गदर्शक तत्व – इन चार विषयों की जानकारी विद्यालय के छात्रों को होनी चाहिए।
  • व्यक्ति निर्माण से समाज के आचरण में परिवर्तन संभव है। पहले समाज बदलना पड़ता है, तो व्यवस्था ठीक हो जाती है। हिंदुस्थान हिंदू राष्ट्र है – इन तीन बातों को छोड़कर संघ में सब बदल सकता है।
  • विदेशों में वहाँ के संगठन का कार्य हिन्दू स्वयंसेवक संघ के माध्यम से चल रहा है।
  • विकसित भारत के लिए क्या करना चाहिए – देश के लिए जीना-मरना और उद्यमिता बढ़नी चाहिए।
  • हिन्दू राष्ट्र घोषित नहीं करना है, वह है। यह एक सत्य है।
  • संघ में महिलाओं की प्रभावी भूमिका है। केवल दोनों की शाखा अलग लगती है। महिलायें हमारी परस्पर पूरक है। संघ प्रेरित अनेक संगठनों की प्रमुख महिलायें ही हैं।

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