रविवार, 27 अक्तूबर 2024

महापुरुषों को स्मरण करने का वर्ष

भारत को महान बनाने में महापुरुषों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हमारे समाज को जब जिस प्रकार के विचारों की आवश्यकता रही, तब उसका प्रबोधन करने के लिए वैसे महापुरुषों का आगमन होता रहा है। हमारे महापुरुषों ने अपना संपूर्ण जीवन समाज जीवन को दिशा देने के लिए समर्पित किया है। उनके विचार और उनका व्यवहार आज भी हमें सद् मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इसलिए अपने महापुरुषों का सतत् स्मरण आवश्यक है। इस संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत कथन उल्लेखनीय है। उन्होंने विजयादशमी के उत्सव (12 अक्टूबर, 2024) पर महापुरुषों के जीवन को स्मरण करते हुए कहा था कि "प्रामाणिकता और नि:स्वार्थ भावना से देश, धर्म, संस्कृति व समाज के हित में जीवन लगा देने वाली विभूतियों को हम इसलिए स्मरण करते हैं क्योंकि उन्होंने हम सबके हित में कार्य किया है तथा अपने स्वयं के जीवन से अनुकरणीय जीवन व्यवहार का उत्तम उदाहरण उपस्थित किया है। अलग-अलग कालखंडों, कार्यक्षेत्रों में कार्य करने वाले इन सबके जीवन व्यवहार की कुछ समान बातें थीं। निस्पृहता, निर्वैरता व निर्भयता उनका स्वभाव था। संघर्ष का कर्तव्य जब-जब उपस्थित हुआ, तब-तब पूर्ण शक्ति के साथ, आवश्यक कठोरता बरतते हुए उसे निभाया। वे कभी भी द्वेष या शत्रुता पालने वाले नहीं बने। उनकी उपस्थिति दुर्जनों के लिए धाक व सज्जनों को आश्वस्त करने वाली थी। परिस्थिति अनुकूल हो या प्रतिकूल, व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय चारित्र्य की ऐसी दृढ़ता ही मांगल्य व सज्जनता की विजय के लिए शक्ति का आधार बनती है"।

यह कितना सुखद संयोग है कि वर्ष 2024 में एक साथ कई महापुरुषों के स्मरण का प्रसंग बन रहा है। आइए जानते हैं कि 2024 में किन विभूतियों की विशेष जन्म जयंतियां पड़ रही हैं....

शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

शताब्दी वर्ष में संघ का प्रवेश

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा और जीवंत सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन है। वर्ष 1925 में जब विजयादशमी के पावन प्रसंग पर संघ की स्थापना की जा रही थी, तब देश अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा था। एक ओर अंग्रेजी राजसत्ता भारत के वैभव एवं गौरव का सर्वनाश कर रही थी, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम तुष्टीकरण एवं आक्रामकता भी अपनी जड़ें गहरी करने लगी थी। हिन्दू समाज आत्मदैन्य की स्थिति की ओर जा रहा था। इस प्रकार की प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भारत की स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी राजनेता डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी।

शनिवार, 5 अक्तूबर 2024

पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का दस्तावेज है – ‘...लोगों का काम है कहना’

लेखक लोकेन्द्र सिंह द्वारा संपादित मीडिया प्राध्यापक डॉ. संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक 'लोगों का काम है कहना'

– सुदर्शन व्यास (समीक्षक साहित्यकार एवं पत्रकार हैं।)

‘लोगों का काम है कहना...’ पुस्तक का आखिरी पन्ना पलटते समय संयोग से महात्मा गांधी का एक ध्येय वाक्य मन–मस्तिष्क में गूंज उठा – ‘कर्म ही पूजा है’। जब मैं इस किताब को पढ़ रहा था तो बार–बार महात्मा गांधी का ये वाक्य सहसा अंतर्गन में सफर कर रहा था। ये कहूँ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बापू के इस विचार को चरितार्थ उस शख्सियत ने किया है जिनके जीवनवृत्त पर ये पुस्तक लिखी गई है। प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी भारतीय मीडिया जगत में सुपरिचित और सुविख्यात नाम हैं। वरिष्ठ पत्रकार और मीडियाकर्मियों के लिए ये नाम इसलिए जाना–पहचाना है क्योंकि संजय जी अनथक मीडिया के विभिन्न आयामों के जरिये सक्रिय रहते हैं। पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए यह नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उल्लेखनीय है कि पत्रकारिता के विद्यार्थी संजय जी को मीडिया गुरु कहना ज्यादा पसंद करते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मैंने देखा है कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलसचिव तथा प्रभारी कुलपति की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए भी विद्यार्थियों को बतौर शिक्षक पढ़ाना उनकी दैनंदिनी रही थी। इसीलिए प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी देशभर में पत्रकारिता के कुनबे की हर पीढ़ी में एक पत्रकार, एक शिक्षक, एक लेखक, एक विश्लेषक, एक विचारक और मीडिया गुरू के रूप में सम्मान के साथ याद किये जाते हैं।