रविवार, 29 दिसंबर 2024

मेरा 'अमरकंटक' इतना पसंद आया कि लेखक ने अपने नाम से पुस्तक में छाप डाला

उस पुस्तक का पृष्ठ, जहाँ मेरे आलेख (संत कबीर साहेब की तपस्थली 'कबीर चबूतरा') की सामग्री को ज्यों का त्यों लिया गया है।

सतपुड़ा के सौंदर्य के आकर्षण में एक यात्रा वृत्तांत पढ़ रहा था। सतपुड़ा की घाटियों से बैतूल और अन्य स्थानों के वर्णन का रसास्वादन करके अमरकंटक के अध्याय पर पहुंचा। अमरकंटक के प्रति मेरे मन में एक अबूझ-सा प्रेम-आकर्षण है। अमरकंटक पर मैंने भी अपना कुछ लिखा-पढ़ा है, जो कई जगह प्रकाशित भी है। 

जैसे ही एक-डेढ़ पैराग्राफ के बाद पढ़ना शुरू किया, मुझे लगा कि यह तो मैंने ही लिखा है। अमरकंटक की यह मेरे हृदय की अनुभूति है। एक स्थान को लेकर क्या दो लेखकों के हृदय की अनुभूति इतनी समान हो सकती है कि एक-एक शब्द, एक-एक पंक्ति, एक-एक भाव एक समान रूप से अभिव्यक्त हो! लेखक ने 2022 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में 2019 में लिखे/प्रकाशित मेरे आलेख को जैसे का तैसा उतार (कॉपी-पेस्ट) दिया है। यहां तक कि इस व्यक्तिगत उल्लेख को भी नहीं बदला- पहले ही अनुभव में प्राकृतिक-नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर इस स्थान ने अमिट छाप मन पर छोड़ दी। अच्छी बात यह है कि यहाँ अभी तक बाजार की पहुँच नहीं हुई है। इसलिए यह तीर्थ-स्थल अपने मूल को बचाए हुए है। यहाँ के वातावरण में अब तक गूँज रहे कबीर के संदेश को अनुभूत करने के लिए लगभग तीन-चार घंटे तक यहाँ रहा। यकीन मानिये, माँ नर्मदा के तट पर बैठना और यहाँ कबीरीय वातावरण में बैठना, अमरकंटक प्रवास के सबसे सुखकर अनुभव रहे। उस समय आश्रम में रह रहे कंबीरपंथी संन्यासी रुद्रदास के पास बैठकर कबीर वाणी सुनी-

कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आई।

अंतरि भीगी आतमा, हरी भई बनराई ॥

अर्थात् संत कबीर कहते हैं- 'प्रेम का बादल मेरे ऊपर आकर बरस पड़ा, जिससे अंतरात्मा तक भीग गई, आस-पास पूरा परिवेश हरा-भरा हो गया, खुश हाल हो गया, यह प्रेम का अपूर्व प्रभाव है। हम इसी प्रेम में क्यों नहीं जीते।' यकीनन, कबीर की वाणी हमारी अंतरात्मा को भिगो देती है। कबीर चबूतरा से जब लौटे तो लगा कि कबीर प्रेम गहरे पैठ गया है। अंतर्मन एक अल्हदा अहसास में डूबा हुआ है।

मुझे कभी बुरा नहीं लगता कि किसी ने मेरा लिखा बिना बिना अनुमति या बिना उल्लेख/संदर्भ के अपना बता कर छाप दिया। मेरा तो मन प्रसन्न हो होता है कि अपना लिखा लोगों को इतना पसंद आ रहा है कि वे उसका अपने ढंग से उपयोग कर रहे हैं। इससे पहले भी एक अन्य पुस्तक में मैंने ऐसा देखा। कई लोग तो ऐसे भी देखे जिन्होंने पूरा का पूरा लेख ही उठाकर अपने नाम से प्रकाशित करा लिया। एक बार तो आधा आलेख निर्वाचन आयोग ने मतदाता जागरूकता अभियान में प्रकाशित विज्ञापन में उपयोग किया। 

अमरकंटक के प्रसिद्ध स्थान 'कबीर चबूतरा' पर केंद्रित यह आलेख 17 जून 2019 को लखनऊ से प्रकाशित समाचार पर 'डेली न्यूज एक्टिविस्ट DNA' में प्रकाशित हुआ था। इसके अलावा यह लेख स्वदेश भोपाल एवं ग्वालियर के सभी संस्करणों सहित अन्य पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुआ है।

सतपुड़ा का यात्रा वृत्तांत बताकर प्रकाशित उस पुस्तक के बारे में मुझे यही लगता है कि अन्य सामग्री भी इधर-उधर से संकलित की गई। पुस्तक और लेखक की पहचान मैं जानबूझकर उजागर नहीं कर रहा हूँ। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि उनकी पुस्तक को पूर्वाग्रह के साथ पढ़ा जाए या फिर उसे पढ़ा ही नहीं जाए।

अमरकंटक में स्थिति कबीर चबूतरा पर यह वीडियो फिल्म भी अवश्य देखिए-

मंगलवार, 26 नवंबर 2024

तिरंगे पर आरएसएस की सोच को सामने लाती है ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’

- सौरभ तामेश्वरी 

ध्वज किसी भी राष्ट्र के चिंतन और ध्येय का प्रतीक तथा स्फूर्ति का केंद्र होता है। आक्रमण के समय में पराक्रम का, संघर्ष के समय में धैर्य का और अनुकूल समय में उद्यम की प्रेरणा देने का काम ध्वज करता है, इसलिए स्वतंत्रता के पहले से ही भारत के राष्ट्रीय ध्वज की परिकल्पना प्रकट होती रही है। राष्ट्रध्वज को तिरंगे के रूप में स्वीकार किए जाने से पहले अनेक देशभक्तों ने अपनी कल्पनाशक्ति के आधार पर भारत के राष्ट्रध्वज तैयार किए थे। राष्ट्रध्वज को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की भी एक सोच और भावना थी। महात्मा गांधी से लेकर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने राष्ट्रध्वज को लेकर अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेकिन कुछ लोग केवल तिरंगा और आरएसएस को लेकर ही चर्चा करते हैं। उस पर भी आधे-अधूरे तथ्यों के आधार पर एक फेक नैरेटिव बनाने का कार्य किया जाता है। कहा जाता है कि आरएसएस तिरंगे को मान्यता नहीं देता है? जबकि संघ के संविधान में राष्ट्रध्वज के रूप में तिरंगे के प्रति सम्मान और निष्ठा रखने की बात स्पष्ट रूप से दर्ज है। वास्तव में तिरंगे को लेकर संघ की क्या सोच है? राष्ट्रध्वज की विकास यात्रा से लेकर तिरंगे और संघ के अंतर्संबंधों पर विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के उत्तर लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ में मिलते हैं। यह पुस्तक वर्तमान संदर्भों में महत्वपूर्ण है।

शुक्रवार, 15 नवंबर 2024

छत्रपति शिवाजी महाराज के किलों और उनसे जुड़े ऐतिहासिक प्रसंगों का रोचक वर्णन ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’

- प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी

लेखक लोकेन्द्र सिंह बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। कवि, कहानीकार, स्तम्भलेखक होने के साथ ही यात्रा लेखन में भी उनका दखल है। घुमक्कड़ी उनका स्वभाव है। वे जहाँ भी जाते हैं, उस स्थान के अपने अनुभवों के साथ ही उसके ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व से सबको परिचित कराने का प्रयत्न भी वे अपने यात्रा संस्मरणों से करते हैं। अभी हाल ही उनकी एक पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ मंजुल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है, जो छत्रपति शिवाजी महाराज के किलों के भ्रमण पर आधारित है। हालांकि, यह एक यात्रा वृत्तांत है लेकिन मेरी दृष्टि में इसे केवल यात्रा वृत्तांत तक सीमित करना उचित नहीं होगा। यह पुस्तक शिवाजी महाराज के किलों की यात्रा से तो परिचित कराती ही है, उससे कहीं अधिक यह उनके द्वारा स्थापित ‘हिन्दवी स्वराज्य’ या ‘हिन्दू साम्राज्य’ के दर्शन से भी परिचित कराती है। स्वयं लेखक ने पुस्तक की भूमिका में लिखा है- “इस यात्रा के कारण शिवाजी महाराज के दुर्गों का ही दर्शन नहीं किया अपितु अपने गौरवशाली इतिहास से जुड़े, जो हमारी पाठ्यपुस्तकों और राष्ट्रीय विमर्श में शामिल ही नहीं रहा। इस यात्रा ने ‘स्वराज्य’ की कल्पना को उस समय में मन में गहरे उतार दिया, जब हम भारत की स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। ‘स्वराज्य’ कैसा होना चाहिए, शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व के अध्ययन से इसको भली प्रकार समझा जा सकता है। हम कह सकत हैं कि श्री शिवछत्रपति दुर्ग दर्शन यात्रा ने हमें ‘स्व’ की अनुभूति करायी और ‘स्व’ की समझ भी बढ़ायी। यह यात्रा अविस्मरणीय है”। उल्लेखनीय है कि शिवाजी महाराज के जीवन में किलों का बहुत महत्व है। हिन्दवी स्वराज्य में लगभग 300 दुर्ग थे। इन दुर्गों को ‘स्वराज्य के प्रतीक’ भी कहा जाता है। स्वराज्य के मजबूत प्रहरी के तौर पर किलों के महत्व को समझकर छत्रपति शिवाजी महाराज नये दुर्गों का निर्माण करने में और पुराने दुर्गों को दुरुस्त करने में महाराज मुक्त हस्त से खर्च करते थे। यही कारण है कि महाराष्ट्र में मुहिम निकालने की परंपरा है, जिसमें यात्रियों के बड़े-बड़े जत्थे शिवाजी महाराज के किलों का दर्शन करने के लिए जाते हैं। शुक्राचार्य ने शुक्रनीति में दुर्गों का महत्व बताते हुए लिखा है- 

“एक: शतं योधयति दुर्गस्थ: अस्त्रधरो यदि।

शतं दशसहस्त्राणि तस्माद् दुर्गं समाश्रयेत्।।”

अर्थात् दुर्ग की सहायता से एक सशस्त्र मनुष्य भी सौ शत्रुओं से लोहा ले सकता है और सौ वीर दस हजार शत्रुओं से लड़ सकते हैं। इसलिए राजा ने दुर्ग का आश्रय लेना चाहिए।

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जनजातीय गौरव को बढ़ावा देने में अग्रणी मध्यप्रदेश

 

(जनजातीय गौरव दिवस के प्रसंग पर आलेख)

मध्यप्रदेश वह राज्य है, जिसकी पहल पर देश को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मिला है। यह बात तो हर कोई मानता है कि मध्यप्रदेश की सरकार ने जनजातीय नायकों का गौरव बढ़ाने के लिए उनसे जुड़े स्मारकों का आगे बढ़कर विकास किया है। राजा शंकरशाह और रघुनाथ शाह, रानी कमलापति, रानी दुर्गावती, टंट्या मामा और भीमा नायक से लेकर कई नायकों के योगदान से लोगों को परिचित कराने के उल्लेखनीय कार्य किए हैं। मंडला के मेडिकल कॉलेज का नाम बलिदानी हृदयशाह के नाम पर किया गया। वहीं, छिंडवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम ‘राजा शंकरशाह विश्वविद्यालय’ किया। हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर ‘रानी कमलापति रेलवे स्टेशन’ किया गया। जबलपुर में 100 करोड़ की लागत से ‘रानी दुर्गावती स्मारक’ को विकसित किया जा रहा है। जनजातीय गौरव को बढ़ाने के साथ ही जनजातीय समुदाय के उत्थान के लिए भी मध्यप्रदेश सरकार ने उल्लेखनीय कदम उठाए हैं। विगत 20 वर्षों में जनजातीय योजनाओं का बजट 1000 प्रतिशत बढ़ा है। मध्यप्रदेश पहला राज्य है, जहाँ जनजातीय समुदाय के आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण के लिए पेसा कानून को लागू किया गया है। जनजातीय समुदाय से आनेवाली पहली महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की गरिमामयी उपस्थिति में 15 नवंबर, 2022 को मध्यप्रदेश के 20 जिलों के 89 विकासखंडों को पेसा कानून की सौगात मिली।

शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

न्यायपालिका और दबाव समूहों की राजनीति

भारत के वर्तमान मुख्य न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने मीडिया को दिए साक्षात्कार में इको-सिस्टम की राजनीति को सबके सामने उजागर करने का काम किया है। उनका यह साक्षात्कार ध्यानपूर्वक सुना जाना चाहिए और उस पर विचार-मंथन भी होना चाहिए। देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो अकसर संवैधानिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का प्रयास करता है। जब भी कोई संवैधानिक संस्था उनकी इच्छा के अनुरूप निर्णय नहीं करती है, वे उस संस्था की स्वतंत्रता को लेकर सवाल उठाने लगते हैं। उनके निशाने पर न्यायपालिका भी रहती है। इसी ओर मुख्य न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने संकेत किया है। उन्होंने कहा है कि “कुछ दबाव समूह हैं जो मीडिया के माध्यम से न्यायपालिका पर दबाव डालकर अनुकूल फैसला हासिल करने की कोशिश करते हैं”। वे यह भी कहते हैं कि “इन दबाव समूहों के बहुत से लोग कहते हैं कि अगर आप मेरे पक्ष में फैसला करते हैं तो आप स्वतंत्र हैं, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप स्वतंत्र नहीं हैं”।

गुरुवार, 7 नवंबर 2024

हिन्दुओं के हितों की चिंता में सबसे आगे हैं भाजपा-मोदी

हिन्दू मंदिर पर खालिस्तानी आतंकियों के हमले के विरुद्ध एकजुट होकर प्रदर्शन करता कनाडा का हिन्दू समाज

भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति हिन्दू समाज में गहरा विश्वास है। इसका कारण है कि जब भी हिन्दू हित की बात आती है, हिन्दू समाज को भाजपा और मोदी अपने साथ खड़े दिखायी देते हैं। वहीं, अन्य पार्टियां हिन्दुओं के हितों की रक्षा के मामले में खुलकर बोलने से बचती हैं। उन्हें गाजा और फिलिस्तीन के मुसलमानों का दर्द तो अनुभव हो जाता है लेकिन बांग्लादेश से लेकर कनाडा तक उन्हें हिन्दुओं की दर्दनाक पुकार सुनायी ही नहीं देती है। अपने दुर्व्यवहार के लिए कुख्यात रोहिंग्याओं के समर्थन में भी उनके झंडे-पोस्टर दिखायी दे जाते हैं लेकिन निर्दोष हिन्दू समाज पर हो रहे हमले उन्हें दिखायी नहीं देते हैं। वहीं, भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी हिन्दुओं पर होनेवाले हमलों का आगे आकर विरोध करते हैं और हिन्दुओं की हिम्मत बनने का प्रयास करते हैं। 

हालिया मामला कनाडा का है, जहाँ कट्टरपंथी खालिस्तानियों ने हिन्दू मंदिर, महिलाओं एवं बच्चों पर हमला किया है। इस मामले में जहाँ विपक्षी दल स्पष्ट विरोध करने की जगह इधर-उधर की बातें कर रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। प्रधानमंत्री मोदी ने मंदिर पर हमले की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि हिंसा के ऐसे कृत्य भारत के संकल्प को कभी कमजोर नहीं करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ‘जानबूझकर किया गया हमला’ और ‘हमारे राजनयिकों को डराने का कायरतापूर्ण प्रयास’ करार दिया। उन्होंने यह उम्मीद भी जताई कि कनाडा सरकार न्याय सुनिश्चित करेगी और कानून का शासन बनाए रखेगी।

शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

तीर्थाटन का केंद्र बन रहा है मध्यप्रदेश

धर्म और अध्यात्म भारत की आत्मा है। यह धर्म ही है, जो भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एकात्मता के सूत्र में बांधता है। भारत की सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करते हैं तो हमें साफ दिखायी देता है कि धार्मिक पर्यटन हमारी परंपरा में रचा-बसा है। तीर्थाटन के लिए हमारे पुरखों ने पैदल-पैदल ही इस देश को नापा है। भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व समुदाय को भी आकर्षित करती है। हम अनेक धार्मिक स्थलों पर भारतीयता के रंग में रंगे विदेशी सैलानियों को देखते ही हैं। दरअसल, भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों का देश कहा जाता है। भारत का ह्रदय ‘मध्यप्रदेश’ अपनी नैसर्गिक सुन्दरता, आध्यात्मिक ऊर्जा और समृद्ध विरासत के चलते सदियों से यात्रियों को आकर्षित करता रहा है। आत्मा को सुख देनेवाली प्रकृति, गौरव की अनुभूति करानेवाली धरोहर, रोमांच बढ़ानेवाला वन्य जीवन और विश्वास जगानेवाला अध्यात्म, इन सबका मेल मध्यप्रदेश को भारत के अन्य राज्यों से अलग पहचान देता है। मध्यप्रदेश में धर्म-अध्यात्म से जुड़े ऐसे अनेक स्थान हैं, जहाँ देशभर से लोग खिंचे चले आते हैं।

देखें: मध्यप्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थल


रविवार, 27 अक्टूबर 2024

महापुरुषों को स्मरण करने का वर्ष

भारत को महान बनाने में महापुरुषों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हमारे समाज को जब जिस प्रकार के विचारों की आवश्यकता रही, तब उसका प्रबोधन करने के लिए वैसे महापुरुषों का आगमन होता रहा है। हमारे महापुरुषों ने अपना संपूर्ण जीवन समाज जीवन को दिशा देने के लिए समर्पित किया है। उनके विचार और उनका व्यवहार आज भी हमें सद् मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इसलिए अपने महापुरुषों का सतत् स्मरण आवश्यक है। इस संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत कथन उल्लेखनीय है। उन्होंने विजयादशमी के उत्सव (12 अक्टूबर, 2024) पर महापुरुषों के जीवन को स्मरण करते हुए कहा था कि "प्रामाणिकता और नि:स्वार्थ भावना से देश, धर्म, संस्कृति व समाज के हित में जीवन लगा देने वाली विभूतियों को हम इसलिए स्मरण करते हैं क्योंकि उन्होंने हम सबके हित में कार्य किया है तथा अपने स्वयं के जीवन से अनुकरणीय जीवन व्यवहार का उत्तम उदाहरण उपस्थित किया है। अलग-अलग कालखंडों, कार्यक्षेत्रों में कार्य करने वाले इन सबके जीवन व्यवहार की कुछ समान बातें थीं। निस्पृहता, निर्वैरता व निर्भयता उनका स्वभाव था। संघर्ष का कर्तव्य जब-जब उपस्थित हुआ, तब-तब पूर्ण शक्ति के साथ, आवश्यक कठोरता बरतते हुए उसे निभाया। वे कभी भी द्वेष या शत्रुता पालने वाले नहीं बने। उनकी उपस्थिति दुर्जनों के लिए धाक व सज्जनों को आश्वस्त करने वाली थी। परिस्थिति अनुकूल हो या प्रतिकूल, व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय चारित्र्य की ऐसी दृढ़ता ही मांगल्य व सज्जनता की विजय के लिए शक्ति का आधार बनती है"।

यह कितना सुखद संयोग है कि वर्ष 2024 में एक साथ कई महापुरुषों के स्मरण का प्रसंग बन रहा है। आइए जानते हैं कि 2024 में किन विभूतियों की विशेष जन्म जयंतियां पड़ रही हैं....

शनिवार, 12 अक्टूबर 2024

शताब्दी वर्ष में संघ का प्रवेश

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा और जीवंत सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन है। वर्ष 1925 में जब विजयादशमी के पावन प्रसंग पर संघ की स्थापना की जा रही थी, तब देश अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा था। एक ओर अंग्रेजी राजसत्ता भारत के वैभव एवं गौरव का सर्वनाश कर रही थी, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम तुष्टीकरण एवं आक्रामकता भी अपनी जड़ें गहरी करने लगी थी। हिन्दू समाज आत्मदैन्य की स्थिति की ओर जा रहा था। इस प्रकार की प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भारत की स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी राजनेता डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी।

शनिवार, 5 अक्टूबर 2024

पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का दस्तावेज है – ‘...लोगों का काम है कहना’

लेखक लोकेन्द्र सिंह द्वारा संपादित मीडिया प्राध्यापक डॉ. संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक 'लोगों का काम है कहना'

– सुदर्शन व्यास (समीक्षक साहित्यकार एवं पत्रकार हैं।)

‘लोगों का काम है कहना...’ पुस्तक का आखिरी पन्ना पलटते समय संयोग से महात्मा गांधी का एक ध्येय वाक्य मन–मस्तिष्क में गूंज उठा – ‘कर्म ही पूजा है’। जब मैं इस किताब को पढ़ रहा था तो बार–बार महात्मा गांधी का ये वाक्य सहसा अंतर्गन में सफर कर रहा था। ये कहूँ तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बापू के इस विचार को चरितार्थ उस शख्सियत ने किया है जिनके जीवनवृत्त पर ये पुस्तक लिखी गई है। प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी भारतीय मीडिया जगत में सुपरिचित और सुविख्यात नाम हैं। वरिष्ठ पत्रकार और मीडियाकर्मियों के लिए ये नाम इसलिए जाना–पहचाना है क्योंकि संजय जी अनथक मीडिया के विभिन्न आयामों के जरिये सक्रिय रहते हैं। पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए यह नाम बड़े आदर से लिया जाता है। उल्लेखनीय है कि पत्रकारिता के विद्यार्थी संजय जी को मीडिया गुरु कहना ज्यादा पसंद करते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण मैंने देखा है कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलसचिव तथा प्रभारी कुलपति की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए भी विद्यार्थियों को बतौर शिक्षक पढ़ाना उनकी दैनंदिनी रही थी। इसीलिए प्रो. (डॉ) संजय द्विवेदी देशभर में पत्रकारिता के कुनबे की हर पीढ़ी में एक पत्रकार, एक शिक्षक, एक लेखक, एक विश्लेषक, एक विचारक और मीडिया गुरू के रूप में सम्मान के साथ याद किये जाते हैं।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

मध्यप्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर बिखरे हैं प्रकृति, वन्य जीवन, धरोहर और अध्यात्म के चटख रंग

भारत का ह्रदय ‘मध्यप्रदेश’ अपनी नैसर्गिक सुन्दरता, आध्यात्मिक ऊर्जा और समृद्ध विरासत के चलते सदियों से यात्रियों को आकर्षित करता रहा है। आत्मा को सुख देनेवाली प्रकृति, गौरव की अनुभूति करानेवाली धरोहर, रोमांच बढ़ानेवाला वन्य जीवन और विश्वास जगानेवाला अध्यात्म, इन सबका मेल मध्यप्रदेश को भारत के अन्य राज्यों से अलग पहचान देता है। इस प्रदेश में प्रत्येक श्रेणी के पर्यटकों के लिए कई चुम्बकीय स्थल हैं, जो उन्हें बरबस ही अपनी ओर खींच लेते हैं। यह प्रदेश उस बड़े ह्रदय के मेजबान की तरह है, जो किसी भी अतिथि को निराश नहीं करता है।

वैभव की इस भूमि पर पराक्रम की गाथाएं सुनाते और आसमान का मुख चूमते दुर्ग हैं। भारत का जिब्राल्टर ‘ग्वालियर का किला’, महेश्वर में लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर का राजमहल, मांडू का जहाज महल, दतिया में सतखंडा महल, रायसेन का दुर्ग, दुर्गावती का मदन महल, जलमग्न रहनेवाला रानी कमलापति का महल और गिन्नौरगढ़ सहित अनेक किले हैं, जो मध्यप्रदेश के स्थापत्य की विविधता का बखान करते हैं। देवों के चरण भी इस धरा पर पड़े हैं। उज्जैन, जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण पढ़े। चित्रकूट, जहाँ प्रभु श्रीराम माता सीता और भ्राता लखन सहित वनवास में रहे। ओंकारेश्वर, जहाँ आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने आचार्य गोविन्द भगवत्पाद से दीक्षा ली। मध्यप्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग- महाकाल और ओंकारेश्वर हैं। इसके साथ ही भगवान शिव ने कैलाश और काशी के बाद अमरकंटक को परिवार सहित रहने के लिए चुना है। एक ओर जहाँ द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण प्रतिवर्ष मुरैना में आकर ढ़ाई दिन रहते हैं तो वहीं ओरछा में राजा राम का शासन है। महारानी कुंवर गणेश के पीछे-पीछे श्रीराम अयोध्या से ओरछा तक चले आये थे। ओरछा राजाराम के मंदिर के लिए ही नहीं, अपितु अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है।

शनिवार, 7 सितंबर 2024

कांग्रेसी मंत्री ने स्वीकारा अवैध घुसपैठ और लव जिहाद का सच

हिमाचल प्रदेश के संजौली में मस्जिद के अवैध निर्माण, घुसपैठ और लव जिहाद की जानकारी विधानसभा के पटल पर रखते हुए कांग्रेस के मंत्री अनिरुद्ध सिंह

भारतीय राजनीति में वोटबैंक की राजनीति के चलते कांग्रेस ने सांप्रदायिक चुनौतियों को हमेशा नजरअंदाज किया है। अपितु जिसने भी अवैध घुसपैठ और लव जिहाद जैसे मुद्दों को उठाया है, कांग्रेस ने उन्हें ही सांप्रदायिक ठहराने पर जोर दिया है। जबकि होना यह चाहिए था कि कांग्रेस जैसा राजनीतिक दल समाज की इन चुनौतियों को स्वीकार करके उनके समाधान पर चर्चा करता। सच को अस्वीकार करके सेकुलरिज्म को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। अवैध घुसपैठ, अतिक्रमण, लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसे मुद्दों की अनदेखी करके या उनका बचाव करके सेकुलरिज्म नहीं अपितु सांप्रदायिकता का ही पोषण होता है। जिसकी अनुभूति अब हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता एवं मंत्रीगण कर रहे हैं।

गुरुवार, 5 सितंबर 2024

फिल्मकारों की चालाकियां का उदाहरण है ‘आईसी814- द कंधार हाईजैक’

ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर हाल ही में जारी हुई वेबसीरीज ‘आईसी814- द कंधार हाईजैक’ को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है। दरअसल, पूरी वेबसीरीज में आतंकियों के वास्तविक नामों की जगह उनके कोडनेम का इस्तेमाल किया गया है। भारतीय वायुसेना की उड़ान संख्या-आईसी814 का हाईजैक करनेवाले आतंकियों ने अपने वास्तविक नाम एवं पहचान छिपाने के लिए बर्गर, चीफ, शंकर और भोला जैसे कोडनेम रखे थे। वेबसीरीज के निर्माता ने इस तथ्य का गलत ढंग से उपयोग करते हुए आतंकियों की पहचान इन्हीं नामों से स्थापित करने का प्रयास किया। हालांकि फिल्म के अंत में आतंकियों के वास्तविक नामों का उल्लेख किया गया है। हम सब जानते हैं कि फिल्म समाप्त होने के बाद आनेवाली जानकारियों को आमतौर पर दर्शक पढ़ते नहीं है। ऐसे में वेबसीरीज के दर्शकों के मन में यह बात बैठ जाती कि आतंकियों में हिन्दू ‘भोला’ और ‘शंकर’ भी शामिल थे। उल्लेखनीय है कि भारत में इस्लामिक आतंकवाद के बचाव में और हिन्दुओं को बदनाम करने की नीयत से ‘हिन्दू आतंकवाद’ की फर्जी अवधारणा को स्थापित करने के लिए अनेक प्रकार की साजिशें हो चुकी हैं। हिन्दुओं की छवि खराब करने की दिशा में ही फिल्म निर्माताओं की इस कलाकारी को देखना चाहिए।

बुधवार, 4 सितंबर 2024

उमेश उपाध्याय : पत्रकारिता के उजले सितारे

वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय (26 अगस्त, 1960- 1 सितंबर, 2024)

श्रद्धेय उमेश उपाध्याय जी भारतीय पत्रकारिता के उजले सितारों में से एक थे। सभी माध्यमों की पत्रकारिता में उनका एक सम्मानित स्थान था। यही कारण है कि उनके असमय निधन पर विभिन्न क्षेत्रों के पत्रकार बंधु दुःखी मन से उनके साथ बिताए अविस्मरणीय एवं प्रेरणादायी प्रसंगों का स्मरण कर रहे हैं।

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के साथ उनका गहरा और आत्मीय जुड़ाव था। विगत 14-15 वर्षों से विश्वविद्यालय को उनके अनुभव का लाभ मिल रहा था। वे विश्वविद्यालय की महापरिषद के सम्मानित सदस्य थे। विद्या परिषद एवं अन्य समितियों में भी उनके विजन का लाभ विश्वविद्यालय को मिला है। अनेक अवसरों पर विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का प्रबोधन उन्होंने किया। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से दिए जानेवाला प्रतिष्ठित ‘गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार’ भी उन्हें प्रदान किया गया था।

सोमवार, 26 अगस्त 2024

‘तिरंगा और आरएसएस’ के अंतर्संबंधों का विश्लेषण

लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक 'राष्ट्रध्वज और आरएसएस' को ऑनलाइन खरीदने के लिए इमेज पर क्लिक करें।

- अंकित शर्मा (लेखक आयुध मीडिया के संस्थापक सदस्य हैं।)

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा, भगवा ध्वज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर अनेक प्रकार के भ्रम फैलाए जाते हैं। यहाँ तक कहा जाता है कि आरएसएस भगवा ध्वज को मानता है इसलिए संघ के स्वयंसेवक तिरंगा का सम्मान नहीं करते हैं। प्रखर राष्ट्रभक्त संगठन के बारे में इस प्रकार की भ्रामक बातों को यूँ तो समाज स्वीकार नहीं करता है परंतु फिर भी एक वर्ग तो भ्रम में पड़ ही जाता है। समाज को भ्रमित करनेवाले झूठे नैरेटिव का तथ्यात्मक उत्तर लेखक लोकेन्द्र सिंह ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ के माध्यम से दिया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में राष्ट्रध्वज तिरंगा, सांस्कृतिक ध्वज भगवा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंतर्संबंधों का विश्लेषण किया है। राष्ट्रध्वज और आरएसएस के संदर्भ में कई नए तथ्य यह पुस्तक हमारे सामने लेकर आती है। यह पुस्तक हमें बताती है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने कब और किन परिस्थितियों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के सम्मान में अपने प्राणों तक की आहुति दी है। इसके साथ ही यह पुस्तक राष्ट्रध्वज के निर्माण की कहानी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य भी हमारे सामने लेकर आती है।

हम सब जानते हैं कि ध्वज, किसी भी राष्ट्र के चिंतन एवं ध्येय का प्रतीक होता है। राजनीतिक रूप से विश्व पटल पर राष्ट्रीय  ध्वज ‘तिरंगा’ भारत की पहचान है। 1905 से ही अनेक झंडे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में प्रस्तुत किये गए। जिसके बाद संविधान सभा द्वारा 22 जुलाई, 1947 को तिरंगे को राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार किया। राष्ट्रध्वज के रूप में तिरंगे का सम्मान होने के साथ ही भगवा ध्वज को भारत का सांस्कृतिक प्रतीक माना जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भगवा ध्वज को अपना गुरु मानता है। भारत के ‘स्व’ से कटे हुए कुछ लोग और समूह भगवा ध्वज को नकारते हैं। साथ ही यह भ्रम भी फैलाते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तिरंगे को सम्मान नहीं देता। लेकिन ऐसा कहने वाले शायद ये नहीं जानते कि एक ध्वज का मान रखना दूसरे का निरादर करना कतई नहीं है। उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत की यह बात समझनी चाहिए, जिसमें वे कहते हैं कि स्वतंत्रता के जितने सारे प्रतीक हैं, उन सबके प्रति संघ का  स्वयंसेवक अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ समर्पित रहा है।

पुस्तक का विमोचन मेजर गौरव आर्या ने किया। देखिए यह वीडियो -

लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ हमें स्मरण कराती है कि तिरंगे के सम्मान में संघ ने तब भी आंदोलन चलाए जब सत्ताधीश जम्मू-कश्मीर में राष्ट्र की संप्रभुता को ताक पर रखकर दो प्रधान, दो विधान, दो निशान (ध्वज) स्वीकार कर चुके थे। उन परिस्थितियों में भी संघ ने विरोध करते हुए देश में एक प्रधान, एक विधान, एक निशान होने की मांग की। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक राष्ट्र में एक ही ध्वज चलेगा, जो कि तिरंगा है। वर्ष 1942 में महात्मा गांधी के आव्हान पर हुए असहयोग आंदोलन के दौरान तिरंगा फहराते हुए स्वयंसेवकों को गोली लगने की बात हो, वर्ष 1947 में जम्मू कश्मीर में श्रीनगर की कई इमारतों पर पाकिस्तानी झंडे फहराने के विरोध में संघ के स्वयंसेवको की कार्रवाई हो, या फिर गोवा मुक्ति आन्दोलन में संघ के स्वयंसेवकों को गोली लगने के बाद भी अपने हाथ से तिरंगा न गिरने देने की घटना हो। सभी अवसरों पर संघ के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रध्वज के सम्मान में सर्वोच्च बलिदान देने का साहस दिखाया है। ऐसे कई महत्वपूर्ण तथ्य इस पुस्तक के माध्यम से हमारे सामने आते हैं। 

पुस्तक में यह भी उल्लेख आता है कि अपना नैरेटिव गढ़ने के लिए संघ और राष्ट्रध्वज तिरंगे को लेकर उन लोगों ने संघ के संदर्भ में अनेक भ्रांतियां फैलाईं, जिन्होंने स्वयं ही 2022 से पहले तक अपने मुख्यालयों पर तिरंगा नहीं फहराया था। प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों ने 2022 में पहली बार अपने पार्टी मुख्यालयों पर राष्ट्रध्वज फहराया। लेखक लोकेन्द्र सिंह ने ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर संघ और तिरंगे को लेकर फैलाये जाने वाले नैरेटिव से पर्दा उठाया है। अपनी पुस्तक में उन्होंने बड़ी ही सरलता से राष्ट्रध्वज के विकास की यात्रा में भगवा ध्वज का महत्व एवं तिरंगे के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक के अंतर्संबंधों का विश्लेषण प्रस्तुत किया है। यह बड़ी ही रोचक पुस्तक है। 

जो भी सच जानने में रुचि रखते हैं, उन्हें ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ अवश्य पढ़नी चाहिए। यह छोटी पुस्तक है। लेखक ने गागर में सागर को समेटने का प्रयास किया है, जिसमें वे सफल रहे हैं। लेखनी में सहजता और सरलता है। पुस्तक अपने पहले अध्याय से लेकर आखिरी अध्याय तक पाठकों को बांधे रखने की क्षमता रखती है। ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ का प्रकाशन राष्ट्रीय विचारों को समर्पित अर्चना प्रकाशन, भोपाल ने किया है।

स्वदेश, भोपाल में 18 अगस्त 2024 को प्रकाशित लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक 'राष्ट्रध्वज और आरएसएस' की समीक्षा। समीक्षक हैं आयुध मीडिया के तेजतर्रार पत्रकार अंकित शर्मा।

पुस्तक : राष्ट्रध्वज और आरएसएस

लेखक : लोकेंद्र सिंह

पृष्ठ : 56

मूल्य : 70 रुपये

प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन, भोपाल


तिरंगा और आरएसएस पर यह वीडियो शृंखला अवश्य देखिए-

भाग-1 : तो भगवा झंडा होता राष्ट्रध्वज

भाग-2 : RSS में तिरंगे के प्रति पूर्ण निष्ठा

भाग-3 : तिरंगे के सम्मान में संघ ने दिया बलिदान

क्या हुआ जब आरएसएस कार्यालय में तिरंगा लेकर पहुँचे कांग्रेसी नेता

आरएसएस करता है तिरंगे का सम्मान- डॉ. मोहन भागवत

रविवार, 25 अगस्त 2024

प्रशांत जी, इतनी भी क्या जल्दी थी…

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, महाकौशल प्रांत के सह-प्रचार प्रमुख प्रशांत बाजपेयी का हृदयघात से निधन

जब से सूचना मिली है कि प्रशांत जी नहीं रहे, मन है कि विश्वास ही नहीं कर रहा है। मन थोड़ी देर सहज रहता है, फिर अचानक से ध्यान आता है कि प्रशांत जी नहीं रहे, तो बेचैनी बढ़ जाती है। फिर अगले ही क्षण इस अविश्वसनीय समाचार को ‘असत्य’ मानकर मन सहज हो जाता है। कुलमिलाकर मन मानने को तैयार नहीं है कि आज से ठीक 14 दिन बाद यानी 8 सितंबर को जिसका जन्मदिन था, वह 46 वर्ष की अल्पायु में ही हमको छोड़कर जा चुका है। जिसका हृदय धर्म, देश, समाज और मित्रों के लिए खूब धड़कता था, 24 अगस्त को अचानक से उसकी हृदय गति ही रुक गई। हृदयघात ने हम सबके ‘प्रशांत’ को छीन लिया। सोच रहा हूँ कि नियति को भी क्या सूझी होगी कि एक हँसता-खिलता फूल चट से तोड़ लिया…..

शनिवार, 17 अगस्त 2024

आंतरिक सुरक्षा को लेकर सजग है आरएसएस

“कोई पूछता है कि देश के लोग सुरक्षित क्यों हैं? तो मैं कहना चाहूँगा कि यहाँ संविधान है, लोकतंत्र है, सेना है और किस्मत से आरएसएस है”। - न्यायमूर्ति केटी थॉमस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पूर्व जज केटी थॉमस का बयान

सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति केटी थॉमस के इस कथन के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवकों की देशभक्ति एवं बलिदान की कथाएं हैं। जब हम इतिहास के पृष्ठ पलटते हैं तो संघर्ष के समय में आरएसएस के कार्यकर्ता साहस के साथ मोर्चा लिए खड़े दिखाई देते हैं। स्वतंत्रता के बाद जब पहली बार पाकिस्तान ने आक्रमण किया तब, 1962 में चीन ने पीठ में छुरा घोंपा तब और उसके बाद भी जब देश पर शत्रु ने हमला किया तब, प्रत्येक अवसर पर संघ के स्वयंसेवकों ने यथासंभव देश की सुरक्षा में अपना योगदान दिया। गोवा मुक्ति आंदोलन में तो संघ ने अग्रणी भूमिका का निर्वहन किया। इस आंदोलन में उज्जैन, मध्यप्रदेश के ही एक स्वयंसेवक राजाभाऊ महाकाल ने तिरंगे की शान में सीने पर गोली खाई थी। युद्ध ही क्यों, संघ के स्वयंसेवक शेष समय में भी आंतरिक सुरक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत आरएसएस के समविचारी संगठन अपने निहित कार्यों को संपादित करने के साथ-साथ समाज का इस प्रकार प्रबोधन करते हैं कि वहाँ अराजकतावादी ताकतें पनप नहीं पाती हैं। 

देश की सुरक्षा के लिए संघ के स्वयंसेवक सदैव तत्पर और सजग रहते हैं। बाहरी दुश्मनों से निपटने के लिए देश की सीमा पर अदम्य साहसी भारतीय सेना खड़ी है। किंतु, विदेशी ताकतें भारत को भीतर से भी तोडऩे के लिए षड्यंत्र रचती रहती हैं। ऐसे में सेना जैसा अनुशासन रखने वाले सजग नागरिकों की आवश्यकता रहती है, जो आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में देश के सुरक्षा बलों के अप्रत्यक्ष रूप से सहायक सिद्ध हो सकें। संघ के स्वयंसेवक शाखा में ऐसा ही अनुशासन और सजगता सीखते हैं। स्वयंसेवकों के इसी अनुशासन को आधार बना कर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि संघ के स्वयंसेवक तीन दिन में सेना के लिए तैयार हो सकते हैं। 

Statement of former judge KT Thomas on Rashtriya Swayamsevak Sangh

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार और समाज दोनों को ही समय-समय पर बाहरी और भीतरी हमले के संबंध में चेताता रहा है। देश की आंतरिक सुरक्षा संघ की प्राथमिकता में शामिल है। इसलिए संघ की शीर्ष बैठकों में आंतरिक सुरक्षा के विषय पर निरंतर चर्चा होती रहती है। मुम्बई बम धमाकों (वर्ष 1993) के बाद तो संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने बाकायदा 'देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे' शीर्षक से एक प्रस्ताव पारित किया था। अपने इस प्रस्ताव में संघ ने देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति चिंता जताई, उसे और अधिक मजबूत करने की माँग सहित पाँच प्रमुख आग्रह सरकार के समक्ष प्रस्तुत किए। इसके बाद 1994 में 'आंतरिक सुरक्षा' और 1995 में 'आंतरिक परिस्थिति' शीर्षक से प्रस्ताव पारित किया था। वर्ष 1995 के अपने प्रस्ताव में संघ ने स्वयंसेवकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि राष्ट्रीय एकता और अपने सांस्कृतिक मूल्यों का बोध जगाकर राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत एकात्म समाज को खड़ा करने के कार्य को और भी अधिक गतिमान और बलवान बनाने के लिए पूरी शक्ति से जुट जाएं। संघ ने राष्ट्रीय सुरक्षा-1996, राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती-2001, आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौतियां-2004, आतंकवाद और भारत की आंतरिक सुरक्षा-2006 प्रस्ताव पारित कर भी आंतरिक सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता एवं चिंता को प्रकट किया। इसके साथ ही अन्य प्रस्तावों में भी कहीं न कहीं संघ के नीति निर्माता समूह ने आंतरिक सुरक्षा को मुद्दे को सम्मिलित किया है। 

यदि हम मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखें तो संघ के समविचारी संगठनों के प्रयास के कारण ही यहाँ अराजक एवं विभाजनकारी ताकतें सक्रिय नहीं हो पाईं। प्रदेश के कुछ हिस्सों नक्सलियों के प्रभाव में आए, किंतु नक्सली उन हिस्सों को पूरी तरह से लाल गलियारे में परिवर्तित नहीं कर पाए। क्योंकि, उन क्षेत्रों के नागरिकों के बीच संघ का काम पहले से उपस्थित था और जहाँ नहीं था, वहाँ संघ ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। संघकार्य से उन क्षेत्रों के नागरिकों में अपने राष्ट्रभक्ति की भावना प्रकट हुई और वह नक्सलियों के जाल में नहीं फंस पाए। मध्यप्रदेश में संघ की उपस्थिति को मजबूत माना जाता है। यहाँ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं, अपितु सुदूर वनवासी क्षेत्रों में भी संघ प्रत्यक्ष एवं समविचारी संगठनों के माध्यम से समाज हित में कार्य कर रहा है। शिक्षा एवं स्वावलंबन के लिए वनवासी कल्याण आश्रम और सेवा भारती जैसे संगठन वनवासी समाज के बीच में काम कर रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद भी सामाजिक कार्यों के माध्यम से इन क्षेत्रों में सक्रिय है। यह जान लेना जरूरी होगा कि वनवासी समाज के बीच समाजकंटक ताकतें पूरी ताकत के साथ सक्रिय हैं। यह ताकतें समाज को बांटने के लिए हर प्रकार के षड्यंत्र रच रही हैं। वनवासियों को हिंदू समाज से तोडऩे और उन्हें अपने ही मूल के प्रति विद्रोही बनाने का दुष्चक्र भी देश विरोधी ताकतें रचती हैं। किंतु, वनवासी कल्याण आश्रम और सेवा भारती जैसे संगठन अपने सेवाकार्यों से वनवासी समाज को अपना बना लेते हैं और उनके मन में कोई भ्रम ही उत्पन्न नहीं होने देते। जो वनवासी बंधु समाजकंटकों के संपर्क में आ भी जाते हैं, उनका भी मन बदलने में देर नहीं लगती। संघ अपने निस्वार्थ सेवाकार्यों से उन्हें जागरूक कर रहा है। वनवासी कल्याण आश्रम और सेवाभारती सुदूर क्षेत्रों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। उनके प्रयास से ऐसे क्षेत्रों में विद्यालय प्रारंभ हुए हैं, जहाँ सरकार भी शिक्षा का उजियारा लेकर नहीं पहुंच सकी। पूर्ण एवं एकल विद्यालयों के माध्यम से संघ के स्वयंसेवक बच्चों को शिक्षित ही नहीं कर रहे, अपितु उनको संस्कार भी देने का कार्य करते हैं। उनको राष्ट्रीय स्वाभिमान से भी जोड़ते हैं।

मध्यप्रदेश एक समय में आतंकवादी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का जाल भी फैल गया था। परंतु, सिमी का काम मध्यप्रदेश में चल नहीं सका। मध्यप्रदेश के जाग्रत समाज ने सिमी का भण्डा फोड़ दिया और राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित सरकार ने आतंकी संगठन को प्रतिबंधित करने में कतई देर नहीं लगाई। संघ के स्वयंसेवक लगातार सरकार को चेता रहे थे कि प्रदेश में स्टूडेंट मूवमेंट के नाम पर आतंकी संगठन खड़ा हो रहा है। बाद में, जब आतंकी बम धमाकों में सिमी की संल्पितता उजागर हुई, तो संघ की चेतावनी सबको स्मरण हुई। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिर्फ आंतरिक सुरक्षा पर चिंता ही व्यक्त नहीं करता है, अपितु उसके स्वयंसेवक सदैव देश की सुरक्षा के लिए चौकन्ने रहते हैं। जिन क्षेत्रों में संघ का कार्य प्रभावी ढंग से चलता है, वहाँ समाज जाग्रत रहता है। उन क्षेत्रों में ऐसी स्थिति कतई नहीं रहती कि लोगों को अपने पड़ोस की भी जानकारी न हो। बल्कि, उन क्षेत्रों में लोगों का आपस में आत्मीय संपर्क एवं संवाद रहता है। इस कारण वहाँ समाज के बीच कोई भी संदिग्ध व्यक्ति या गतिविधि छिप नहीं सकती। संघ का मानना है कि देश की अखण्डता के लिए आवश्यक है कि देश भीतर से भी मजबूत हो। देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित हो और यह सब संभव है, समाज के जाग्रत एवं संगठित रहने से। इसलिए संघ का जो समाज संगठन का कार्य है, वह भी आंतरिक सुरक्षा में अप्रत्यक्ष रूप से सहायक सिद्ध होता है।

15 अगस्त 2024 को स्वदेश भोपाल में प्रकाशित- देश की रक्षा के लिए तत्पर संघ

रविवार, 4 अगस्त 2024

जीवित, जाग्रत क्रांति पुरुष हैं हिन्दवी स्वराज्य के दुर्ग

- पुरु शर्मा 

यात्राएं हमेशा रुचिकर होती हैं। उनका अपना लोक, चरित्र और व्यवहार होता है। यात्रा अपरिचय को परिचय में बदलती है, अज्ञात को ज्ञात में। यायावरी का यही गुण लेखक तथा उसके लेखन को समृद्ध करता है, उसे पैना बनाता है। उद्देश्यपूर्ण यात्राएं सदैव सार्थक सर्जन का आह्वान करती हैं। चलने से चेतना और बहने से पानी निर्मल होता है। कल्पना के पंखों पर सवार मन जाने कहां-कहां उड़ता फिरता है। अगर कोलंबस, वास्को डिगामा, मेगास्थनीज आदि ने यात्राएं न की होतीं तो अमेरिका को कौन जानता, भारत का इतिहास क्या होता? अमृतलाल वेगड़ जी ने नर्मदा यात्रा न की होती तो क्या यात्रा-साहित्य नर्मदा माई की अविरलता और प्रवाहशीलता से परिचित हो पाता?

यात्राओं ने हमेशा साहित्य, समाज, संस्कृति और वैचारिकी को मांजा है, पुष्ट तथा समृद्ध किया है। पैरों में पंख बांधकर उड़ते रामवृक्ष बेनीपुरी हों या यायावरी को याद करते अज्ञेय, 'अजंता की ओर' संघबद्ध कला-कलाप को निहारते जानकीवल्लभ शास्त्री और 'स्मरण को पाथेय बनने दो' की पुकार लगाते विष्णुकांत शास्त्री, सभी ने अपनी यात्राओं में जीवन के नए सूत्रों को खोजा। 

देखिए- युवा पत्रकार कृष्ण मुरारी अटल के साथ 'हिन्दवी स्वराज्य दर्शन' पर विशेष चर्चा


बुधवार, 31 जुलाई 2024

बरेली में हिन्दू युवक की पीट-पीटकर हत्या पर सेकुलर बिरादरी में खामोशी

साभार : पाञ्चजन्य / Panchjanya

भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने में अपने आप को सेकुलर एवं प्रगतिशील कहनेवाले वर्ग की प्रमुख भूमिका है। जिस प्रकार से एक-दो घटनाओं को आधार बनाकर हिन्दू समाज के प्रति अभियान चलाए जाते हैं और मुस्लिम समाज को भड़काने एवं हिन्दुओं के विरुद्ध खड़ा करने का प्रयास किए जाते हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि वास्तव में सेकुलर वर्ग ही सांप्रदायिक है। सेकुलर बिरादरी के कारण जिस प्रकार का नकारात्मक वातावरण बना है, उसके कारण से हिन्दुओं पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं। अभी हाल में उत्तरप्रदेश के बरेली जिले के गाँव गौसगंज में मुस्लिम समुदाय ने हिन्दू समुदाय पर पथराव कर दिया, लोगों को घेरकर पीटा गया और तोड़फोड़ की गई। असामाजिक तत्वों की यह भीड़ गाँव के युवक तेजराम को घसीटकर मस्जिद में ले गए और वहाँ उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि समूचा सेकुलर वर्ग तेजराम की मॉब लिंचिंग पर मुंह में दही जमाकर बैठा हुआ है। 

आखिर क्या कारण हैं कि मुस्लिम बंधुओं के साथ होनेवाली ऐसी ही घटना पर हो-हल्ला मचानेवाले हिन्दुओं की मॉब लिंचिंग पर खामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं? जिस समय में मुस्लिम भीड़ मस्जिद में तेजराम की पीट-पीटकर हत्या कर रही थी, उसी वक्त यह सेकुलर वर्ग कांवड़ियों द्वारा तोड़-फोड़ की एक-दो घटनाओं को आधार बनाकर समूचे कांवड़ियों और हिन्दुओं को बदनाम करने में लगे हुए हैं। यह किस तरह का चयनित दृष्टिकोण है? इसे सेकुलर बिरादरी के लेखकों एवं पत्रकारों का दोगला आचरण क्यों नहीं माना जाना चाहिए? इसे सांप्रदायिकता का पोषण करनेवाली प्रवृत्ति क्यों नहीं मानी जानी चाहिए?

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता

देशभर में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर जनता की ओर से माँग उठ ही रही थी कि अब न्यायालय ने भी इस आशय की टिप्पणी की है। तीन तलाक से जुड़े मामले की सुनवाई करते समय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने समान नागरिक संहिता का पक्ष लेते हुए टिप्पणी की है कि “समय आ गया है कि अब देश समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को समझे। समाज में आज भी आस्था और विश्वास के नाम पर कई कट्टरपंथी, अंधविश्वासी और अति-रूढ़िवादी प्रथाएं प्रचलित हैं। इससे अंधविश्वास और बुरी प्रथा पर रोक लगेगी”। समान नागरिक संहिता पर इससे बड़ी टिप्पणी नहीं हो सकती। न्यायालय की ओर से कहा जा रहा है कि देश को यह बात समझनी चाहिए कि समान नागरिक संहिता की माँग किसी संप्रदाय विशेष के विरुद्ध नहीं है अपितु यह तो सच्चे अर्थों में ‘सेकुलर स्टेट’ की पहचान है।

सोमवार, 29 जुलाई 2024

‘सरकार की सनक’ का शिकार न हों देशभक्त संगठन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और शासकीय कर्मचारियों के संबंध में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने की महत्वपूर्ण टिप्पणियां, भविष्य में संघ के विरोध में इस प्रकार का कदम न उठाए कोई सरकार


RSS के कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं सरकारी कर्मचारी, मोदी सरकार ने हटाया प्रतिबंध

पिछले दिनों 9 जुलाई को केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ की गतिविधियों में शामिल होने से रोकने वाले 58 वर्ष पुराने प्रतिबंध को समाप्त कर किया। इसके बाद से देश में एक बहस प्रारंभ हो गई। कांग्रेस से लेकर कई विपक्षी दलों को यह बात चुभ रही है। इसी बीच, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इस मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, जिन्हें सबको जानना चाहिए। उच्च न्यायालय की यह टिप्पणियां इसलिए भी सबके ध्यान में आनी चाहिए ताकि भविष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके जैसे किसी भी देशभक्त संगठन को सरकारें अपनी सनक और नापसंदगी का शिकार न बनाएं। न्यायालय ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि सरकार को अपनी चूक का अहसास करने में पाँच दशक से अधिक का समय लग गया। यह गलती भी सरकार के ध्यान में तब आई, जब इस संबंध में एक याचिका न्यायालय में आई और न्यायालय ने सरकार से इस प्रतिबंध पर प्रश्न पूछे। चूँकि केंद्र में राष्ट्रीयता का पोषण करनेवाली विचारधारा की सरकार है, इसलिए जैसे ही उसके ध्यान में यह मामला आया तो उसने 9 जुलाई को तत्काल प्रभाव से कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध को समाप्त कर दिया।

बुधवार, 24 जुलाई 2024

न्यायालयों में पहले ही अपने घुटने छिलवा चुका था लोकतंत्र विरोधी प्रतिबंध

सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगे प्रतिबंध को मोदी सरकार ने हटाया, सरकार ने की सरकारी कर्मचारियों के मौलिक अधिकार की रक्षा

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में कर्मचारियों के शामिल होने पर लगे प्रतिबंध को हटाकर नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा की है। अब कर्मचारी संघ की गतिविधियों में सामान्य नागरिकों की भाँति शामिल हो सकेंगे। नि:संदेह, सरकार का यह निर्णय लोकतंत्र और संविधान की भावना को मजबूत करनेवाला है। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार देता है कि वह विविध सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों में शामिल हो सके। एक सामान्य नागरिक की भाँति यह अधिकार कर्मचारियों को भी प्राप्त है कि अपने कार्यालयीन समय के बाद सामाजिक गतिविधियों का हिस्सा हो सकते हैं। परंतु, लोकतंत्र और संविधान की मूल भावना को कमजोर करते हुए तत्कालीन सरकार ने 58 वर्ष पहले 1966 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इतना ही नहीं, सरकारी कर्मचारी के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर उसके विरुद्ध कठोर कार्रवाई का विधान भी रखा गया था। यह एक प्रकार से राष्ट्रीय विचार के प्रति झुकाव रखनेवाले लोगों को हतोत्साहित करने का प्रयास ही था।

देखिए यह वीडियो- RSS के कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं सरकारी कर्मचारी, मोदी सरकार ने हटाया प्रतिबंध

इस तानाशाही एवं द्वेषपूर्ण निर्णय का उत्तर संघ ने तो कभी नहीं दिया लेकिन समाज ने अवश्य ही आईना दिखाने का कार्य किया। संघ को दबाने एवं समाप्त करने के लिए अनेक प्रयत्न किए हैं। इस आदेश के अतिरिक्त तीन बार पूर्ण प्रतिबंध भी लगाया। संघ की छवि खराब करने के लिए बड़े-बड़े नेताओं की ओर से मिथ्या प्रचार भी किया गया। अपने समर्थक बुद्धिजीवियों से पुस्तकें भी लिखवायी गईं। लेकिन संघ विरोधियों के ये सब प्रयास विफल ही रहे। निस्वार्थ भाव से देश और समाज के लिए कार्य करनेवाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कोई रोक नहीं सका। अपनी 99 वर्ष की यात्रा में संघ ने लगातार प्रगति एवं विस्तार ही किया है। अपने विचार, आचरण एवं सेवाकार्यों से संघ ने समाज का विश्वास जीता, जिसके कारण समाज सदैव संघ के साथ खड़ा रहा।

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

जनांदोलन बना प्रधानमंत्री मोदी का आह्वान- ‘एक पेड़ माँ के नाम’

मध्यप्रदेश के इंदौर ने स्वच्छता के बाद अब पौधरोपण में बनाया विश्व कीर्तिमान, एक दिन में लगाए 12 लाख 65 हजार पौधे

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के आवासीय परिसर 'माखनपुरम' में हमने भी 'एक पेड़ माँ के नाम' अभियान के अंतर्गत पौधरोपण किया

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह ताकत है कि जब भी वे नागरिकों से किसी प्रकार का आह्वान करते हैं तो वह जनांदोलन में परिवर्तित हो जाता है। एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के ‘एक पेड़ माँ के नाम’ का आह्वान करते ही देशभर में लोग उत्साहित होकर पौधरोपण कर रहे हैं। पौधरोपण के मामले में मध्यप्रदेश ने एक बार फिर सर्वाधिक पौधे रोपने का कीर्तिमान रचा है। स्वच्छता के मामले में देश में प्रथम स्थान पर रहकर मध्यप्रदेश का मान बढ़ानेवाले इंदौर ने 12 लाख 65 हजार पौधे रोपकर बड़ा संदेश अन्य शहरों को दिया है। इंदौर में जनसंख्या घनत्व अत्यधिक शहर है। इसे व्यावसायिक दृष्टि से ‘मिनी मुम्बई’ भी कहा जाता है। इसलिए जब यह प्रश्न आया कि इंदौर जैसे शहर में 51 लाख पौधे कहाँ लगाए जा सकेंगे, तब प्रदेश सरकार में मंत्री एवं इंदौर के लोकप्रिय राजनेता कैलाश विजयवर्गीय ने शहरवासियों के नाम एक सार्वजनिक पत्र लिखा और आग्रह किया कि संकल्प में शक्ति हो तो कुछ भी संभव है। इंदौरवासियों ने अपने संकल्प को सिद्ध करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति में 24 घंटे में 12 लाख 65 हजार पौधे रोपकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में कीर्तिमान दर्ज करा दिया। इससे पहले एक दिन में सबसे अधिक पेड़ लगाने की उपलब्धि असम के पास थी। असम में एक दिन में 9 लाख 21 हजार पौधे एक दिन में रोपे थे।

गुरुवार, 11 जुलाई 2024

कन्वर्जन पर उच्च न्यायालय की चिंता

“उत्तरप्रदेश में भोले-भाले गरीबों को गुमराह कर ईसाई बनाया जा रहा। अगर ऐसे ही धर्मांतरण (कन्वर्जन) जारी रहा तो एक दिन भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या अल्पसंख्यक हो जाएगी”। - इलाहाबाद उच्च न्यायालय

भारत में अभारतीय ताकतें हिन्दू समाज को लक्षित करके कन्वर्जन का बड़ा रैकेट चला रही हैं। ईसाई मिशनरीज हों या फिर कट्टरपंथी इस्लामिक संस्थाएं, अपने-अपने मत का प्रसार करने के लिए कन्वर्जन की प्रक्रिया को अपनाती हैं। इनके निशाने पर हिन्दू समाज के भोले-भाले समुदाय रहते हैं। ये संस्थाएं हिन्दुओं को विभिन्न प्रकार के बरगलाकर या धोखे में रखकर कन्वर्जन को अंजाम देते हैं। लंबे समय से राष्ट्रीय विचार के संगठन कन्वर्जन के गंभीर खतरे की ओर समाज और सरकार का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते आए हैं। अभी तक उनकी चिंता का उपहास उड़ाया जाता था। यह भी सुनियोजित ढंग से किया जाता है ताकि कन्वर्जन के मुद्दे पर समाज में गंभीर विमर्श खड़ा न हो जाए। लेकिन अब तो कन्वर्जन के गंभीर खतरे को लेकर न्यायालय ने भी अपनी चिंता जाहिर कर दी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कन्वर्जन पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है- “उत्तरप्रदेश में भोले-भाले गरीबों को गुमराह कर ईसाई बनाया जा रहा। अगर ऐसे ही धर्मांतरण (कन्वर्जन) जारी रहा तो एक दिन भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या अल्पसंख्यक हो जाएगी”।

गुरुवार, 20 जून 2024

नियती से भेंट का दिन ‘हिन्दू साम्राज्य दिवस’

श्री रायगड दुर्ग पर छत्रपति शिवाजी महाराज की मानवंदना करते सूर्या फाउंडेशन के युवा

आज का दिन बहुत पावन है। आज से ठीक 350 वर्ष पूर्व ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, विक्रम संवत 1731 को (तद्नुसार 6 जून, 1674) छत्रपति शिवाजी महाराज ने ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना की थी। स्वराज्य के प्रणेता एवं महान हिन्दू राजा श्रीशिव छत्रपति के राज्याभिषेक और हिन्दू पद पादशाही की स्थापना से भारतीय इतिहास को नयी दिशा मिली। कहते हैं कि यदि छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म न होता और उन्होंने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना न की होती, तब भारत अंधकार की दिशा में बहुत आगे चला जाता। महान विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय समाज का आत्मविश्वास निचले तल पर चला गया। अपने ही देश में फिर कभी हमारा अपना शासन होगा, जो भारतीय मूल्यों से संचालित हो, लोगों ने यह कल्पना करना ही छोड़ दिया। तब शिवाजी महाराज ने कुछ पराक्रमी मित्रों के साथ ‘स्वराज्य’ की स्थापना का संकल्प लिया और अपने कृतित्व एवं विचारों से जनमानस के भीतर भी आत्मविश्वास जगाया। गोविन्द सखाराम सरदेसाई ‘द हिस्ट्री ऑफ द मराठाज-शिवाजी एंड हिज टाइम’ में लिखते हैं कि “मुस्लिम शासन में घोर अन्धकार व्याप्त था। कोई पूछताछ नहीं, कोई न्याय नहीं। अधिकारी जो मर्जी करते थे। महिलाओं के सम्मान का उल्लंघन, हिंदुओं की हत्याएं और धर्मांतरण, उनके मंदिरों को तोड़ना, गोहत्या और इसी तरह के घृणित अत्याचार उस सरकार के अधीन हो रहे थे। निज़ाम शाह ने जिजाऊ माँ साहेब के पिता, उनके भाइयों और पुत्रों की खुलेआम हत्या कर दी। बजाजी निंबालकर को जबरन इस्लाम कबूल कराया गया। अनगिनत उदाहरण उद्धृत किए जा सकते हैं। हिन्दू सम्मानित जीवन नहीं जी सकते थे”। ऐसे दौर में मुगलों के अत्याचारी शासन के विरुद्ध शिवाजी महाराज ने ऐसे साम्राज्य की स्थापना की जो भारत के ‘स्व’ पर आधारित था। उनके शासन में प्रजा सुखी और समृद्ध हुई। धर्म-संस्कृति फिर से पुलकित हो उठी।

रविवार, 14 अप्रैल 2024

भाषा के प्रति अंबेडकर का राष्ट्रीय दृष्टिकोण

बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनकी पत्रकारिता

बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के लिए भाषा का प्रश्न भी राष्ट्रीय महत्व का था। उनकी मातृभाषा मराठी थी। अपनी मातृभाषा पर उनका जितना अधिकार था, वैसा ही अधिकार अंग्रेजी पर भी था। इसके अलावा बाबा साहेब संस्कृत, हिंदी, पर्शियन, पाली, गुजराती, जर्मन, फारसी और फ्रेंच भाषाओं के भी विद्वान थे। मराठी भाषी होने के बाद भी बाबा साहेब जब राष्ट्रीय भाषा के संबंध में विचार करते थे, तब वे सहज ही हिन्दी और संस्कृत के समर्थन में खड़े हो जाते थे। महाराष्ट्र के अस्पृश्य बंधुओं से संवाद करना था, तब उन्होंने मराठी भाषा में समाचारपत्रों का प्रकाशन किया। जबकि उस समय के ज्यादातर बड़े नेता अपने समाचारपत्र अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित कर रहे थे। बाबा साहेब भी अंग्रेजी में समाचारपत्र प्रकाशित कर सकते थे, अंग्रेजी में उनकी अद्भुत दक्षता थी। परंतु, भारतीय भाषाओं के प्रति सम्मान और अपने लोगों से अपनी भाषा में संवाद करने के विचार ने उन्हें मराठी में समाचारपत्र प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया होगा। यदि बाबा साहेब ने अंग्रेजी में समाचारपत्रों का प्रकाशन किया होता, तब संभव है कि वे वर्षों से ‘मूक’ समाज के ‘नायक’ न बन पाते और न ही उनके हृदय में स्वाभिमान का भाव जगा पाते। वहीं, जब उनके सामने राष्ट्रभाषा का प्रश्न आया, तब उन्होंने अपनी मातृभाषा की ओर नहीं देखा, वे भाषा के प्रश्न पर भावुक नहीं हुए, बल्कि तार्किकता के साथ उन्होंने हिन्दी और संस्कृत को राष्ट्रभाषा के रूप में देखा।

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

लेखक लोकेंद्र सिंह की बहुचर्चित पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ की चर्चा

राष्ट्रीय उद्देश्य और आध्यात्मिक अधिष्ठान पर केंद्रित है छत्रपति शिवाजी महाराज का 'हिन्दवी स्वराज्य' : हेमंत मुक्तिबोध

लेखक लोकेंद्र सिंह की बहुचर्चित पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ की चर्चा कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता श्री हेमंत मुक्तिबोध ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज और समर्थ रामदास ने उस समय के हिंदू समाज के भीतर आत्मविश्वास जगाया। याद रखें कि यह सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष नहीं था। यह भारत के ‘स्व’ को स्थापित करने के लिए किया गया राष्ट्रीय संघर्ष था। उनके संघर्ष का राष्ट्रीय उद्देश्य था और अध्यात्म उसका अधिष्ठान था। इसलिए उस समय के समाज में विश्वास जगा कि यह राजा साधारण नहीं है। ‘हे हिंदवी स्वराज्य व्हावे, ही तर श्रींची इच्छा यात’ शिवाजी महाराज का यह वाक्य विश्व के महान भाषणों से भी बढ़कर है। पुस्तक चर्चा का यह कार्यक्रम विश्व संवाद केंद्र के मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी सभागार में हुआ। इस अवसर पर साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य भारत प्रांत के संघचालक श्री अशोक पांडेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है-

हिन्दवी स्वराज्य दर्शन पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है। चित्र पर क्लिक करके पुस्तक खरीदें

श्री मुक्तिबोध ने कहा कि लोकेंद्र सिंह ने इस जीवंतता के साथ पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ को लिखा है कि हम भी पढ़ते–पढ़ते छत्रपति शिवाजी महाराज के दुर्गों का भ्रमण करते हैं। एक–एक प्रसंग और घटना का जीवंत वर्णन उन्होंने किया है। यात्रा वृत्तांत में दर्शन की दृष्टि, मन की आंखों और विवेक–बुद्धि के साथ देखते हैं तो कुछ प्रेरणा देनेवाला और सकारात्मक साहित्य का सृजन होता है। लोकेंद्र सिंह ने शिवाजी महाराज के किलों को केवल सामान्य पर्यटक के तौर पर नहीं देखा है, उन्होंने विवेक बुद्धि के साथ दुर्गों का दर्शन किया हैं। उन्होंने कहा कि किलों का महत्व इतना नहीं है, जितना उनमें रहने वालों का महत्व है। शिवाजी महाराज ने स्वराज्य की स्थापना में किलों को जीता, संधि में किले हारे और फिर किलों को प्राप्त करने के लिए संधि तोड़ी। पुस्तक में सिंहगढ़ की कथा भी आती है। जिस किले को प्राप्त करने में तानाजी मालूसरे का बलिदान हुआ। अपने साथी के बलिदान पर छत्रपति ने कहा था– “गढ़ आला लेकिन सिंह गेला”।

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ को साकार करने में सफल रहे रणदीप हुड्डा

स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर रणदीप हुड्डा ने बेहतरीन फिल्म बनाई है। सच कहूं तो यह फिल्म से कहीं अधिक है। सिनेमा का पर्दा जब रोशन होता है तो आपको इतिहास के उस हिस्से में ले जाता है, जिसको साजिश के तहत अंधकार में रखा गया। भारत की स्वतंत्रता के लिए हमारे नायकों ने क्या कीमत चुकाई है, यह आपको फिल्म के पहले फ्रेम से लेकर आखिरी फ्रेम तक में दिखेगा। अच्छी बात यह है कि रणदीप हुड्डा ने उन सब प्रश्नों पर भी बेबाकी से बात की है, जिनको लेकर कम्युनिस्ट तानाशाह लेनिन–स्टालिन की औलादें भारत माता के सच्चे सपूत की छवि पर आघात करती हैं। कथित माफीनामे से लेकर 60 रुपए पेंशन तक, प्रत्येक प्रश्न का उत्तर फिल्म में दिया गया है। वीर सावरकर जन्मजात देशभक्त थे। चाफेकर बंधुओं के बलिदान पर किशोरवय में ही वीर सावरकर ने अपनी कुलदेवी अष्टभुजा भवानी के सामने भारत की स्वतंत्रता का संकल्प लिया। अपने संकल्प को साकार करने के लिए किशोरवय में ही ‘मित्र मेला’ जैसा संगठन प्रारंभ किया। क्रांतिकारी संगठन ‘अभिनव भारत’ की नींव रखी। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में उत्तर देने के लिए लंदन जाकर वकालत की पढ़ाई की। हालांकि क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डिग्री नहीं दी। ब्रिटिश शासन के घर ‘लंदन’ में किस प्रकार वीर सावरकर ने अंग्रेजों को चुनौती दी, इसकी झलक भी फिल्म में दिखाई देती है। नि:संदेह, वीर सावरकर के महान व्यक्तित्व के संबंध में फिल्म न्याय करने में सफल हुई है।

गुरुवार, 28 मार्च 2024

छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्थापित किया 'स्वदेशी' का महत्व

 छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती पर विशेष

छत्रपति शिवाजी महाराज समाधि स्थल, रायगड दुर्ग / फोटो- लोकेन्द्र सिंह

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी दुर्ग में फाल्गुन मास (अमावस्यांत) कृष्ण पक्ष तृतीया को संवत्सर 1551 में हुआ। ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह दिनांक 19 फरवरी, 1630 होती है। चूँकि छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन ‘स्व’ की स्थापना को समर्पित रहा, इसलिए सही अर्थों में उनकी जयंती भारतीय पंचाग के अनुसार मनायी जानी चाहिए। स्मरण रहे कि चारों ओर जब पराधीनता का गहन अंधकार छाया था, तब छत्रपति शिवाजी महाराज प्रखर सूर्य की भाँति हिन्दुस्तान के आसमान पर चमके थे। ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना करके उन्होंने वह करके दिखा दिया, जिसकी कल्पना करना भी उस समय कठिन था। शिवाजी महाराज ऐसे नायक हैं, जिन्होंने मुगलों और पुर्तगीज से लेकर अंग्रेजों तक, स्वराज्य के लिए युद्ध किया। भारत के बड़े भू-भाग को आक्रांताओं के चंगुल से मुक्त कराकर, वहाँ ‘स्वराज्य’ का विस्तार किया। जन-जन के मन में ‘स्वराज्य’ का भाव जगाकर शिवाजी महाराज ने समाज को आत्मदैन्य की परिस्थिति से बाहर निकाला। ‘स्वराज्य’ के प्रति समाज को जागृत करने के साथ ही उन्होंने ऐसे राज्य की नींव रखी, जो भारतीय जीवनमूल्यों से ओतप्रोत था। शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की व्यवस्थाएं खड़ी करते समय ‘स्व’ को उनके मूल में रखा। ‘स्व’ पर आधारित व्यवस्थाओं से वास्तविक ‘स्वराज्य’ को स्थापित किया जा सकता है।

सुनिए, छत्रपति शिवाजी महाराज पर बुद्धिजीवियों के विचार

मंगलवार, 19 मार्च 2024

राम मंदिर और संघ : समाज के लिए दृष्टिबोध है प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव- ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ 

भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से जब समूचा देश अभिभूत है, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ शीर्षक से प्रस्ताव पारित करके समाज के सामने बड़ा लक्ष्य प्रस्तुत किया है। ‘रामराज्य’ की संकल्पना को साकार करने के लिए नागरिकों के जीवन एवं उनके सामाजिक दायित्व में जिस प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, उसका आग्रह इस प्रस्ताव में है। श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप समरस, सुगठित राष्ट्रजीवन खड़ा करने का जिस प्रकार का सकारात्मक वातावरण बन गया है, उसको पुष्ट करने की प्रेरणा संघ ने नागरिकों को दी है। संघ का मानना है कि श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की घटना भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारंभ होने का संकेत है। नि:संदेह यही सच है। कहना होगा कि भारत की ‘नियति से भेंट’ अब जाकर हुई है। श्रीरामजन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से भारत के स्वदेशी समाज में आत्मगौरव की भावना का संचार हुआ है, वह आत्मविस्मृति की स्थिति से बाहर निकला है। सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने ‘स्व’ को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है। समाज में दिख रहा यह परिवर्तन ‘स्व’ की ओर भारत की यात्रा का द्योतक है। यह यात्रा भगवान श्रीराम के आदर्शों के अनुकूल हो, यह जिम्मेदारी भारतीयों की है। भारतीय समाज मंदिर निर्माण को ही अपने संघर्ष का उद्देश्य मानकर संतोष न कर ले, इसलिए संघ ने स्मरण कराया है कि राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य तभी सार्थक होगा, जब सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले। श्रीराम के जीवन मे परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी।

गुरुवार, 14 मार्च 2024

सच का सामना करने की है दम तो देखिए- बस्तर : द नक्सल स्टोरी

कम्युनिस्टों की हिंसक एवं क्रूर विचारधारा एवं भारत विरोधी सोच को उजागर करती है सुदीप्तो सेन की फिल्म 

‘द केरल स्टोरी’ के बाद सुदीप्तो सेन ने फिल्म ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ के माध्यम से एक और आतंकवाद को, उसके वास्तविक रूप में, सबके सामने रखने का साहसिक प्रयास किया है। भारत में कम्युनिस्ट, नक्सल और माओवाद (संपूर्ण कम्युनिस्ट परिवार) के खून से सने हाथों एवं चेहरे को छिपाने का प्रयास किया जाता रहा है। लेफ्ट लिबरल का चोला ओढ़कर अकादमिक, साहित्यक, कला-सिनेमा एवं मीडिया क्षेत्र में बैठे अर्बन नक्सलियों ने कहानियां बनाकर हमेशा लाल आतंक का बचाव किया और उसकी क्रांतिकारी छवि प्रस्तुत की। जबकि सच क्या है, यही दिखाने का काम ‘बस्तर : द नक्सल स्टोरी’ ने किया है। फिल्म संवेदनाओं को जगाने के साथ ही आँखों को भिगो देती हैं। फिल्म जिस दृश्य के साथ शुरू होती है, वह दर्शकों को हिला देता है। जब मैं ‘बस्तर’ की विशेष स्क्रीनिंग देख रहा था, तब मैंने देखा कि अनेक महिलाएं एवं युवक भी पहले ही दृश्य को देखकर रोते हुए सिनेमा हॉल से बाहर निकल गए। जरा सोचिए, हम जिस दृश्य को पर्दे पर देख नहीं पा रहे हैं, उसे एक महिला और उसकी बेटी ने भोगा है। फिल्म में कुछ दृश्य विचलित कर सकते हैं। यदि उन दृश्यों को दिखाया नहीं जाता, तो दर्शक कम्युनिस्टों की हिंसक मानसिकता का अंदाजा नहीं लगा सकते थे। 76 जवानों को जलाकर मारने की घटना का चित्रांकन, कुल्हाड़ी से निर्दोष वनवासियों की हत्या करने के दृश्य, मासूम बच्चों को उठाकर आग में फेंक देने की घटना, यह सब देखने के लिए दम चाहिए। यह फिल्म अधिक से अधिक लोगों को देखनी एवं दिखायी जानी चाहिए। सुदीप्तो सेन को सैल्यूट है कि उन्होंने बेबाकी से लाल आतंक के सच को दिखाया है। हालांकि, कम्युनिस्ट हिंसा की और भी क्रूर कहानियां हैं, जिन्हें दिखाया जाना चाहिए था लेकिन फिल्म में समय की एक मर्यादा है। अपेक्षा है कि सुदीप्तो इस पर एक वेबसीरीज लेकर आएं।

सोमवार, 11 मार्च 2024

मूल्यानुगत मीडिया के आग्रही थे प्रो. कमल दीक्षित

प्रो. कमल दीक्षित की पुस्तक- मूल्यानुगत मीडिया : संभावना एवं चुनौतियां


बाल सुलभ मुस्कान उनके चेहरे पर सदैव खेलती रहती थी। मानो उनका ‘कमल मुख’ निश्छल हँसी का स्थायी घर हो। कई दिनों से माथे पर नाचनेवाला तनाव भी उनसे मिलने भर से न जाने कहाँ छिटक जाता था। उनका सान्निध्य जैसे किसी साधु की संगति। उनके लिए कहा जाता है कि वे पत्रकारिता की चलती-फिरती पाठशाला थे। उनकी पाठशाला में व्यावसायिकता से कहीं बढ़कर मूल्यों की पत्रकारिता के पाठ थे। ‘व्यावहारिकता’ के शोर में जब ‘सिद्धांतों’ को अनसुना करने का सहूलियत भरी राह पकड़ी जा रही हो, तब मूल्यों की बात कोई असाधारण व्यक्ति ही कर सकता है। मूल्य, सिद्धांत एवं व्यवहार के ये पाठ प्रो. दीक्षित के लिए केवल सैद्धांतिक नहीं थे अपितु उन्होंने इन पाठों को स्वयं जीकर सिद्ध किया था। इसलिए जब वे मूल्यानुगत मीडिया के लिए आग्रह करते थे, तो उसे अनसुना नहीं किया जाता था। इसलिए जब वे पत्रकारिता में मूल्यों की पुनर्स्थापना के प्रयासों की नींव रखते हैं, तो उस पर अंधकार में राह दिखानेवाले ‘दीप स्तम्भ’ के निर्माण की संभावना स्पष्ट दिखाई देती थी।

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित होगा उज्जैन-इंदौर संभाग, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का सराहनीय निर्णय

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने का सराहनीय निर्णय लिया है। यह निर्णय मध्यप्रदेश के विकास को नयी ऊंचाईयों पर ले जाने के साथ ही उसे बड़ी पहचान देगा। यह सर्वविदित है कि उज्जैन-इंदौर संभाग सांस्कृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है। इस संभाग में दो ज्योतिर्लिंग प्रकाशमान हैं- महाकाल एवं ओंकारेश्वर। जिनके दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु पहुँचते हैं। महाकाल लोक के निर्माण के बाद से तो उज्जैन आनेवाले श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है। इसी संभाग के मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर, नलखेड़ा में बगुलामुखी माई का मंदिर, खंडवा में दादा धूनीवाले, इंदौर में खजराना गणेश मंदिर सहित अनेक और स्थान ऐसे हैं, जो धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के स्थान है।

बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

आत्मविश्वास से भरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोले- अबकी बार 400 पार

अपने तीसरे कार्यकाल को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। प्रधानमंत्री को देश की जनता पर विश्वास है कि इस बार पहले की अपेक्षा जनता की ओर से उन्हें और अधिक बड़ा जनादेश मिलेगा। लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की प्रत्येक पंक्ति इस आत्मविश्वास को व्यक्त करती है। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी के आत्मविश्वास के पीछे वर्तमान समय में बना देश का वातावरण है। अयोध्या में श्रीरामलला का मंदिर निर्माण ने जिस प्रकार की ऊर्जा का संचार समूचे देश में किया है, वह अचंभित करनेवाला है। देश में चल रही रामलहर को देखकर कोई भी बता सकता है कि भारत का समाज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की सरकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए लोकसभा चुनाव का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है।

गुरुवार, 25 जनवरी 2024

धार्मिक पर्यटन का केंद्र है भारत

अयोध्या धाम में श्रीरामलला के दर्शन

धर्म और अध्यात्म भारत की आत्मा है। यह धर्म ही है, जो भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एकात्मता के सूत्र में बांधता है। भारत की सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करते हैं तो हमें साफ दिखायी देता है कि धार्मिक पर्यटन हमारी परंपरा में रचा-बसा है। तीर्थाटन के लिए हमारे पुरखों ने पैदल-पैदल ही इस देश को नापा है। भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व समुदाय को भी आकर्षित करती है। हम अनेक धार्मिक स्थलों पर भारतीयता के रंग में रंगे विदेशी सैलानियों को देखते ही हैं। दरअसल, भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों का देश कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार, देशभर में पाँच हजार से अधिक सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। हालांकि, हमारे लिए तो प्रत्येक धार्मिक स्थल श्रद्धा का केंद्र है। भारत के शहर-शहर में कई ऐसे स्थान हैं, जहाँ देशभर से लोग पहुँचते हैं। मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, काशी, उज्जैन, द्वारिका, त्रिवेंद्रम, कन्याकुमारी, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, पुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ इत्यादि ऐसे स्थान हैं, जहाँ न केवल भारतीय नागरिक बड़ी संख्या में पहुँचते हैं अपितु विदेशी और भारतीय मूल के नागरिक श्रद्धा के साथ आते हैं। पिछले आठ-दस वर्षों में भारत के धार्मिक पर्यटन में उत्साहजनक वृद्धि हुई है। विश्व के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल धार्मिक स्थलों को पुनर्विकसित कराया है, अपितु आगे बढ़कर धार्मिक पर्यटन का प्रचार-प्रसार भी किया है। जिसके परिणाम हमें धार्मिक पर्यटन में हो रही वृद्धि के रूप में दिखायी देते हैं। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश के कुल पर्यटन में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी धार्मिक पर्यटन की है। आज देश के पर्यटन उद्योग में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की जा रही है जबकि वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर रहा है।