शनिवार, 27 सितंबर 2025

तकनीक का सहारा लेकर बच्चों को सुनाएं दादी-नानी की कहानियां

भारत कहानियों का देश है। कहानियां, जो न केवल हमारा मनोरंजन करती हैं अपितु हमारे व्यक्तित्व विकास में भी सहायक हैं। कहानियां, हमारे मन में सेवा, संस्कार, साहस पैदा करती हैं। लोक जीवन की सीख देती हैं। इसलिए तो कहानियां सुनना और सुनाना हमारी परंपरा में है। कौन नहीं जानता कि छत्रपति शिवाजी महाराज के विराट व्यक्तित्व का निर्माण जिजाऊ माँ साहेब ने राम-कृष्ण की कहानियां सुनाकर किया। पंडित विष्णु शर्मा ने राजा अमरशक्ति के तीन अयोग्य राजकुमारों को नैतिकता, बुद्धिमत्ता और राजनीतिक ज्ञान ‘पंचतंत्र’ की कहानियां सुनाकर ही तो दिया। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी सुनकर ही तो महात्मा गांधी के मन में सत्य के प्रति गहनी निष्ठा ने जन्म लिया। हमारे साहित्य में भरी पड़ी हैं- बच्चों की कहानियां, वीर बालकों की कहानियां, दयालु बालकों की कहानियां, दादी-नानी की कहानियां, पौराणिक कहानियां, पंचतंत्र की कहानियां। कहानियों की एक पूरी दुनिया है। 

आज से 20-25 साल पहले के समय को याद कीजिए, उस समय हम सब शाम को भोजन करने के बाद अपनी माँ, दादी-दादा, नानी-नाना से कहानी सुनकर ही नींद के आगोश में जाते थे। भारतीय आख्यानों के अलावा समुद्री लुटेरों,  आम आदमी से लेकर राजा-रानियों की कहानियां हमें स्वप्नलोक की सैर करती थीं। मेरे गाँव में हमारे एक बाबा थे- दाऊबाबा, उनके पास कहानियों का भंडार था। हमें बस उन्हें बताना होता था कि आज किस प्रकार की कहानी सुनने की इच्छा है। उनकी जादुई पोटली से एक से एक शानदार कहानियां निकलकर आतीं, जो कभी रोमांच जगाती, कभी लोट-पोट करतीं तो कभी हौले से जीवन की सीख दे जातीं। कहानी सुनाने का उनका कौशल इतना गजब का था कि हम एक-एक दृश्य को घटते हुए देख पाते थे। कहानियों के पात्रों से खुद को जोड़ पाते थे, उनमें छिपे संदेशों को समझते थे और अपने जीवन में उतारते थे।

उस समय रेडियो-टीवी घर-घर में नहीं पहुँचा था और इंटरनेट ने भी इस तरह पैर नहीं पसारे थे, तब मनोरंजन का मुख्य साधन कहानियां ही होती थीं। परंतु, परिवर्तन का पहिया तो लगातार घूमता रहता है। इसलिए समय के साथ परिवेश बदल गया। वर्तमान में तकनीक के तेज विकास से इस बदलाव को पंख लग गए हैं। आज के समय में दादी-नानी से कहानियां सुनने वाले बच्चे सौभाग्यशाली हैं। दरअसल, मनोरंजन की यह जिम्मेदारी दादी-नानी से अब टेलीविजन और मोबाइल ने ले ली है। टेलीविजन और मोबाइल की इस दुनिया में सब प्रकार की सामग्री उपलब्ध है। इसलिए आज सबसे अधिक जरूरत इस बात की है कि अभिभावक यह सुनिश्चित करें कि उनके बच्चे क्या देख-सुन रहे हैं? यह तकनीक बहुत प्रभावशाली है। जैसा कंटेंट वह देखेगा, उसकी छाप उसके व्यक्तित्व में दिखायी देगी। बच्चों के व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़े, वे अपने मूल्यों और परंपरा से जुड़ सकें, इसलिए इस तकनीक का उपयोग करके हमें उन्हें दादी-नानी की कहानियों से जोड़ना चाहिए। डिजिटल कंटेंट का निर्माण करनेवाले रचनाधर्मी लोग दादी-नानी की कहानियों की परंपरा को अपने ढंग से बचाने का प्रयास कर रहे हैं। ऑडियो-विजुअल में तैयार हो रही यह कहानियां बच्चों को खूब पसंद भी आ रही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम बच्चों को अपनी इन कहानियों को देखने-सुनने का चस्का लगाएं। कोविड-19 जनित कोरोना महामारी में जब हम अपने घरों में बंद हो गए थे, तब हॉटस्टार पर उपलब्ध एनिमेशन वेबसीरीज ‘द लीजेंड ऑफ हनुमान’ बच्चों को दिखायी। उन्हें यह एनिमेशन वेबसीरीज बहुत पसंद आई। उन्होंने अगले सीजन की बेसब्री से प्रतीक्षा की। इसी तरह, अपने समय का ‘विक्रम-बेताल’ भी उन्हें दिखाया। विक्रम-बेताल की शिक्षाप्रद कहानियों को भी बच्चों ने खूब पसंद किया। आज इन कहानियों को पुन: नये अंदाज में प्रस्तुत किया जा सकता है।

याद करें, हम भारतीय आख्यानों पर आधारित कॉमिक्स ‘अमर चित्रकथा’ खूब रुचि लेकर पढ़ते थे। बदलते परिवेश में अमर चित्रकथा की कहानियां डिजिटल माध्यमों पर उपलब्ध हैं। श्रीकृष्ण, छोटा भीम, मोटू-पतलू इत्यादि कार्टून शृंखला के रूप में भी नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने की कहानियां बच्चों तक पहुँच रही हैं। जब नयी पीढ़ी डिजिटल दुनिया में प्रवेश कर ही गई है, तब उनके साथ संतुलन साधते हुए दादी-नानी की कहानियों का विकल्प उन्हें डिजिटली रूप में उपलब्ध कराना ही होगा। इसके अलावा हमारे पास अन्य कोई विकल्प नहीं है। अच्छा कंटेंट नहीं मिलेगा, तब वे व्यर्थ की सामग्री को देखकर बड़े होंगे। हमें यह स्वीकार करना होगा कि आज का दौर पूरी तरह बदल चुका है। बच्चे हों या बड़े, सब अपनी-अपनी दुनिया में खोए हुए हैं। मनोरंजन के साधन अब असीमित हैं। बच्चे अब यूट्यूब और अन्य प्लेटफार्मों पर कार्टून के माध्यम से कहानियां देखते हैं। ‘छोटा भीम’, ‘मोटू-पतलू’, ‘लिटिल कृष्णा’, ‘बाल गणेश’, ‘वीर द रोबोट बॉय’, ‘द हनुमान’, ‘लव-कुश’ और ‘अर्जुन : द वॉरियर प्रिंस’ जैसे कार्टून उनके नए साथी बन गए हैं। भारत के बाहर के कैरेक्टर्स पर आधारित कार्टूनों ने भी बच्चों के बीच जगह बनायी है। या कहें कि वर्तमान परिदृश्य में उन्हें ही अधिक देखा जा रहा है। हम थोड़े प्रयास करें, तो भारतीय पृष्ठभूमि के कार्टून बच्चों की पहली पसंद बन सकते हैं। हमें थोड़ा समय देकर, उनके साथ बैठकर, इन कार्टूनों को देखकर और बच्चों के साथ संवाद करके उनके मन में रुचि जगानी होगी।  

याद रहे कि ये कार्टून और एनिमेटेड कहानियां बच्चों को एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। इनमें भी नैतिक कहानियां, वीरता और बुद्धिमत्ता से जुड़े प्रसंग होते हैं। बच्चे इन कहानियों के पात्रों से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं, क्योंकि ये उनकी दृश्य दुनिया का हिस्सा हैं। ये कहानियां उन्हें एक साथ कई तरह की जानकारी देती हैं - जैसे कि रंग, आकार, और ध्वनियाँ। इससे बच्चों के बौद्धिक विकास में मदद मिलती है। इसलिए दादी-नानी की कहानियों की जगह जब ऑडियो-विजुअल आधारित कहानियां ले रही हैं, तब उनके चयन में हमें सावधानी बरतनी होगी। वैसे, श्रेष्ठ तो यही होगा कि हमारे घरों में दादी-नानी द्वारा कहानी सुनाए जाने की परंपरा पुन: दिखायी दे। क्योंकि, दादी-नानी की कहानियों में जो अपनापन, स्पर्श और भावनात्मक जुड़ाव था, वह शायद ही किसी आधुनिक माध्यम में मिल पाए। 


हिन्दी विवेक के 7-13 सितंबर, 2025 के अंक में प्रकाशित




शनिवार, 20 सितंबर 2025

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी : भारतीय कालगणना की ओर बढ़ते कदम

भारत का समय-पृथ्वी का समय

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में मुख्यमंत्री आवास के बाहर लगी 'विक्रमादित्य वैदिक घड़ी'

पिछले कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश की धरती सांस्कृतिक पुनरुत्थान का केंद्र बन गई है। सांस्कृतिक पुनरुत्थान के इन प्रयासों में नयी कड़ी है- विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का लोकार्पण। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री निवास पर ‘विक्रमादित्य वैदिक घड़ी’ का अनावरण करके भारतीय कालगणना की ओर आम लोगों का ध्यान तो खींचा ही है, इसके साथ ही कालगणना की अपनी परंपरा को फिर से लोक प्रचलन में लाने के प्रयासों का केंद्र बिन्दु भी मध्यप्रदेश को बना दिया है। यह पहल उम्मीद जगाती है कि भविष्य में पंचांग पर आधारित यह ‘विक्रमादित्य वैदिक घड़ी’ लोक प्रचलन में आ जाएगी और तिथि, मुहूर्त, माह, व्रत, त्योहार की सटीक जानकारी प्राप्त करने की हमारी कठिनाई को दूर कर देगी। सबको उम्मीद है कि हमारे हाथ पर बंधी डिजिटल घड़ियों में भी जल्द ही यह सुविधा आ जाएगी कि हम उनमें ‘भारत का समय’ देख सकें। फिलहाल ‘विक्रमादित्य वैदिक घड़ी’ ऐप के रूप में उपलब्ध है, जिसे हम अपने मोबाइल फोन में उपयोग कर सकते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक नगर उज्जैन का कालगणना के साथ गहरा नाता है। यहाँ प्रकाशित ज्योतिर्लिंग को इसलिए ही ‘महाकाल’ कहा गया है। यह शुभ संयोग ही है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी महाकाल की नगरी उज्जैन से आते हैं।

शुक्रवार, 19 सितंबर 2025

प्रधानमंत्री मोदी ने किया स्वदेशी का आग्रह

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने जन्मदिन पर मध्यप्रदेश की भूमि से ‘स्वदेशी’ का आग्रह किया है। नवरात्रि से हमारे उत्सवों की एक शृंखला शुरू हो रही है। इसके साथ ही जीएसटी की संशोधित दरें भी 22 सितंबर से शुरू हो रही हैं। ऐसे में बाजार में खरीदारी का वातावरण रहनेवाला है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी का यह आह्वान केवल तात्कालिक नहीं है अपितु उनका आग्रह है कि हमारा स्थायी स्वभाव स्वदेशी के अनुकूल बन जाना चाहिए। प्रत्येक भारतीय को यह स्मरण रखना चाहिए कि ‘स्वदेशी’ का आह्वान, केवल एक नारा नहीं, बल्कि 2047 तक विकसित भारत के निर्माण का एक मजबूत आधार है। धार में ‘प्रधानमंत्री मित्र पार्क’ के उद्घाटन के अवसर पर उनके संबोधन से यह स्पष्ट होता है कि सरकार अब आर्थिक आत्मनिर्भरता को राष्ट्र निर्माण की प्रमुख रणनीति मान रही है। यह सिर्फ वस्तुओं के उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी सोच है जो भारतीयता के गौरव और देश की आर्थिक शक्ति को केंद्र में रखती है।

बुधवार, 17 सितंबर 2025

लेखक एवं मीडिया शिक्षक लोकेन्द्र सिंह को मध्यप्रदेश सरकार ने 'राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी सम्मान-2025' से किया सम्मानित

भोपाल स्थित रवींद्र भवन में आयोजित अलंकरण समारोह में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने किया सम्मानित

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक, लेखक एवं ब्लॉगर लोकेन्द्र सिंह को 'राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी सम्मान-2025' से सम्मानित किया गया। मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग की ओर से भोपाल के रवींद्र भवन में आयोजित अलंकरण समारोह में उन्हें यह सम्मान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र सिंह लोधी और लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने प्रदान किया। सरकार यह सम्‍मान प्रतिवर्ष हिन्दी सॉफ्टवेयर सर्च इंजिन, वेब डिजाइनिंग, डिजीटल भाषा प्रयोगशाला, प्रोग्रामिंग, सोशल मीडिया, डिजीटल ऑडियो विजुअल एडीटिंग आदि में उत्‍कृष्‍ट योगदान के लिए देती है। उल्लेखनीय है कि ग्वालियर में जन्मे लोकेन्द्र सिंह देश के जाने-माने ब्लॉगर हैं। सोशल मीडिया और डिजीटल ऑडियो-वीडियो प्रोडक्शन में उनकी सक्रियता है। उनकी डॉक्युमेंट्री फिल्में राष्ट्रीय पुरस्कारों से पुरस्कृत हैं। नागरिकों को सोशल मीडिया का प्रशिक्षण देने में भी उनकी सक्रियता रहती है। इससे पूर्व मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी भी ‘फेसबुक/ब्लॉग/नेट’ हेतु ‘अखिल भारतीय नारद मुनि’ पुरस्कार से अलंकृत कर चुकी है। वर्तमान में आप माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक प्राध्यापक हैं।

दैनिक भास्कर में प्रकाशित समाचार

युवाओं को साहित्य से जोड़े रखने के लिए आपने सोशल मीडिया के माध्यम से ऑडियो-विजुअल सामग्री का उपयोग करके अनूठे प्रयोग किए हैं। लेखक लोकेन्द्र सिंह का कहना है कि नयी पीढ़ी ऑडियो-वीडियो कंटेंट बहुत देख-सुन रही है। इसलिए लेखकों को प्रयास करना चाहिए कि हिन्दी साहित्य की अच्छी सामग्री को लोगों तक पहुंचाने के लिए ऑडियो-वीडियो प्रारूप को अपनाएं। सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग करके नयी पीढ़ी का प्रबोधन किया जा सकता है। लेखक लोकेन्द्र सिंह का कहना है कि जब उन्होंने इस प्रकार के प्रयास किए तो प्रारंभ में ही उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए। उनकी डाक्युमेंट्री फिल्म ‘बाचा : द राइजिंग विलेज’ को राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। गाय पर बनायी फिल्म ‘गो-वर’ को खूब सराहा गया। इसी तरह छोटे कद को लेकर बनायी फिल्म ‘कद : हाइट डजन्ट मैटर’ ने भी फिल्म क्रिटिक की सराहना बटोरी है। 


लेखक-ब्लॉगर लोकेन्द्र सिंह को सम्मानित करते मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री धर्मेन्द्र सिंह लोधी एवं लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह

मध्यप्रदेश से हिन्दी ब्लॉगिंग में उनका नाम राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित है। उन्होंने ऑनलाइन माध्यमों में वर्ष 2006-07 से लेखन प्रारंभ कर दिया था। ब्लॉग पर समसामयिक विषयों पर आलेखों के अतिरिक्त कहानी, कविता, ललित निबंध, रेखाचित्र, पुस्तक समीक्षाएं और यात्रा वृत्तांत प्रकाशित हैं। विभिन्न संस्थाओं की ओर से जारी की जाने वाली सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग डायरेक्टरी में आपका ब्लॉग शामिल रहता है। ब्लॉगिंग पर चर्चा के लिए गूगल भी आपको आमंत्रित कर चुका है। आपकी पहचान ट्रैवल ब्लॉगर के रूप में भी है। नयी पीढ़ी ऑडियो-वीडियो सामग्री बहुत देख-सुन रही है।

सम्मान समारोह में मंच पर उपस्थित हैं- मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, संस्‍कृति एवं पर्यटन राज्‍यमंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री धर्मेंद्र सिंह लोधी, लोक निर्माण मंत्री श्री राकेश सिंह, विधायक श्री भगवानदास सबनानी, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी, संचालक संस्कृति श्री एमपी नामदेव, वीर भारत न्यास के न्यासी सचिव श्रीराम तिवारी सहित सम्मानित हुए साहित्यकार।

इन महानुभावों को मिले सम्मान- 

  • राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी सम्मान : श्री प्रशांत पोळ-जबलपुर (2024) एवं  श्री लोकेन्द्र सिंह राजपूत- भोपाल (2025)
  • राष्ट्रीय निर्मल वर्मा सम्मान : सुश्री रीता कौशल-ऑस्ट्रेलिया (2024) एवं डॉ. वंदना मुकेश- इंग्लैण्ड (2025)
  • राष्ट्रीय फादर कामिल बुल्के सम्मान : डॉ. इंदिरा गाजिएवा-रूस (2024) एवं श्रीमती पदमा जोसेफिन वीरसिंघे (2025)
  • राष्ट्रीय गुणाकर मुले सम्मान : डॉ. राधेश्याम नापित-शहडोल (2024) एवं डॉ. सदानंद दामोदर सप्रे-भोपाल (2025)
  • राष्ट्रीय हिन्दी सेवा सम्मान : डॉ. के.सी. अजय कुमार-तिरुवनंतपुरम् (2024) एवं डॉ. विनोद बब्बर-दिल्ली (2025)


16 सितंबर, 2025 को भोपाल से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र 'लोकसत्य' में प्रकाशित समाचार


सोमवार, 8 सितंबर 2025

अशोक स्तंभ को तोड़ना, भारत की आत्मा और संविधान पर हमला है

जम्मू-कश्मीर की हजरतबल दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तम्भ को तोड़ा जाना एक गहरी चिंता का विषय है। इस घटना पर राष्ट्रीय स्तर पर विचार-मंथन होना चाहिए। ईद-ए-मिलाद जैसे मौके पर, एक नवनिर्मित शिलापट्ट से राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ को तोड़ना केवल एक राजनीतिक विरोध नहीं, बल्कि धार्मिक कट्टरता और राष्ट्र-विरोधी भावना का शर्मनाक प्रदर्शन है। यह कृत्य एक विशेष प्रकार की मानसिकता की ओर संकेत करता है, जिसका प्रदर्शन अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध प्रतिमाओं से लेकर पाकिस्तान-बांग्लादेश के हिन्दू मंदिरों और भारत में जम्मू-कश्मीर की हजरतबल दरगाह में अशोक स्तंभ पर हमले में होता है। इसी कट्टरपंथी सोच ने भारत में अनेक मंदिरों को निशाना बनाया है। इस मानसिकता ने संप्रदाय के नाम पर दुनियाभर में मूर्तियों और प्रतीकों को ध्वस्त किया है। सोचिए कि जो सोच प्रतीक चिह्नों से इनती नफरत करती है, उसने मनुष्यों के साथ किस तरह का बर्बर व्यवहार किया गया होगा।

छत्रपति के दुर्गों का जयगान है ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’

- श्री जगदीश तोमर, वरिष्ठ साहित्यकार

युवा साहित्यकार श्री लोकेन्द्र सिंह कृत ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ मूलत: उन दुर्गों का वृतांत है जो सह्याद्रि पर्वतमाला के साथ  खड़े, हिन्दू पदपादशाही के निर्माता छत्रपति शिवाजी महाराज का आज पर्यन्त जयगान कर रहे हैं। श्री लोकेन्द्र ने अपनी इस कृति में छत्रपति शिवाजी महाराज के उन दुर्गों का उल्लेख किया है, जिनके दर्शन उन्होंने अपनी श्रीशिव छत्रपति दुर्ग दर्शन यात्रा के दौरान किया। लेखक छत्रपति के इन दुर्गों को ‘स्वराज्य के मजबूत प्रहरी’ निरूपित करते हैं। उनके शब्दों में- “ये दुर्ग स्वराज्य के प्रतीक हैं... और जब देश, विदेशी आक्रांताओं के अत्याचारों एवं दासता के अंधकार में घिरता जा रहा था, तब इन दुर्गों से ही स्वराज्य का संदेश देनेवाली मशाल जल उठी थी”।

इस संदर्भ में यात्राप्रिय लेखक श्री लोकेन्द्र पुणे के दक्षिण-पश्चिम में स्थित रायरेश्वर गढ़ का स्मरण करते हैं। उनके अनुसार  इस गढ़ में स्थित शिवालय में 15-16 वर्षीय किशोर शिवा ने अपने कुछ मित्रों के साथ (380 वर्ष पूर्व) स्वराज्य की शपथ ली थी। और इस प्रकार यह गढ़ स्वराज्य की संकल्प-भूमि सिद्ध हुआ है। 

इस संकल्प के साथ आरंभ हुई स्वराज्य की विजय यात्रा का गौरवशाली विवरण ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ के प्राय: हर पृष्ठ  पर अंकित है। उनमें विजित दुर्गों का भूगोल यथा- पुणे से उनकी दूरी, समुद्र तल से उनकी ऊंचाई आदि का वर्णन है और  इससे अधिक भारतीय इतिहास के गौरवशाली प्रसंगों का चित्रण भी इसमें बड़ी सजीवता से हुआ है।

इस कृति में सिंहगढ़ विजय के साथ-साथ तानाजी की उत्सर्ग-कथा, द्वितीय छत्रपति शंभूराजे की बलिदान-गाथा आदि-आदि  अनेक ऐतिहासिक घटनाएं वर्णित हैं। उनके अतिरिक्त अनेकानेक लोमहर्षक घटनाएं भी इस पुस्तक में हैं, जो देश के जनमानस को लंबे समय से आलोड़ित-उद्वेलित करती रही हैं और आज भी कर रही हैं।

इस पठनीय पुस्तक में छत्रपति के जीवन को संवारने, उनमें स्वदेश और स्वधर्म के रक्षण-संरक्षण के लिए वांछित संस्कार जगाने तथा उन्हें यथावश्यक दिशा-निर्देश देने में जीजा माता की महनीय भूमिका, छत्रपति का वैभवपूर्ण एवं जन-जन प्रिय  राज्याभिषेक, उनकी प्रबंधपटुता, अद्भुत सैन्य व्यवस्था आदि का विशेष उल्लेख है। छत्रपति की राजमुद्रा का संस्कृत में  होना भी जनगण के लिए गर्व और गौरव का विषय हो सकता है। कारण मात्र यही है कि इससे पूर्व ये मुद्राएं अरबी या फारसी में हुआ करती थीं।

बहुत संक्षेप में कहा जाए तो यह कहना आवश्यक होगा कि श्री लोकेन्द्र सिंह की उक्त कृति का पठन-पाठन-अनुशीलन समाज को अनेक दृष्टियों से समृद्ध करेगा तथा राष्ट्रसापेक्ष जीवन जीने के लिए अनुप्रेरित करेगा।

इस सोद्देश्य लेखन के लिए युवा लेखक का अनेकश: अभिनंदन। 

(समीक्षक, वरिष्ठ साहित्यकार हैं। आप पूर्व में साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश की प्रेमचंद सृजनपीठ के निदेशक रहे हैं।)


पुस्तक : हिन्दवी स्वराज्य दर्शन

लेखक : लोकेन्द्र सिंह

मूल्य : 250 रुपये (पेपरबैक)

प्रकाशक : सर्वत्र, मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल

पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है। खरीदने के लिए चित्र पर क्लिक करें

मंगलवार, 2 सितंबर 2025

शुद्ध-सात्विक प्रेम ही संघ कार्य का आधार

100 वर्ष की संघ यात्रा : नये क्षितिज

यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष है। संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। समाज के बीच संघ को लेकर सही-सही जानकारी पहुँचे, इसलिए आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने तीन दिन तक प्रबुद्ध लोगों के बीच संघ का विचार रखा। दिल्ली के विज्ञान भवन में 26 से 28 अगस्त तक यह व्याख्यानमाला आयोजित हुई। आखिरी दिन सरसंघचालक जी ने प्रबुद्धजनों के प्रश्नों का उत्तर भी दिया। उनके तीनों व्याख्यान का सार हम आपके लिए यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के यूट्यूब चैनल पर तीनों व्याख्यान सुने जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में भी इसी प्रकार का आयोजन हुआ था। शताब्दी वर्ष के अवसर पर इस वर्ष चार स्थानों पर इस प्रकार व्याख्यानमाला आयोजित होगी, ताकि अधिक से अधिक लोगों तक संघ का सही स्वरूप पहुँच सके।

सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि संघ का निर्माण भारत को केंद्र में रखकर हुआ है और इसकी सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है। संघ कार्य की प्रेरणा संघ प्रार्थना के अंत में कहे जाने वाले “भारत माता की जय” से मिलती है। संघ भले हिंदू शब्द का उपयोग करता है, लेकिन उसका मर्म ‘वसुधैव कुटुंबकम’ है। गांव, समाज और राष्ट्र को संघ अपना मानता है। संघ कार्य पूरी तरह स्वयंसेवकों द्वारा संचालित होता है। कार्यकर्ता स्वयं नए कार्यकर्ता तैयार करते हैं। उन्होंने कहा कि संघ का संपूर्ण कार्य शुद्ध-सात्विक प्रेम के आधार पर चलता है। उन्होंने कहा- “संघ का स्वयंसेवक कोई व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा नहीं रखता। यहाँ कोई पुरस्कार नहीं हैं, बल्कि नुकसान ही अधिक हैं। स्वयंसेवक समाज-कार्य में आनंद का अनुभव करते हुए कार्य करते हैं। जीवन की सार्थकता और मुक्ति की अनुभूति सेवा से होती है। सज्जनों से मैत्री करना, दुष्टों की उपेक्षा करना, कोई अच्छा करता है तो आनंद प्रकट करना, दुर्जनों पर भी करुणा करना - यही संघ का जीवन मूल्य है।

सोमवार, 1 सितंबर 2025

प्रतिभाशाली युवाओं से देश की सेवा करने का आग्रह

भारत के लिए प्रतिभा पलायन दशकों से एक गंभीर चुनौती रहा है। हमारे देश में सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करने वाले युवा, जिन्होंने सरकारी खर्च पर उच्च शिक्षा हासिल की, अकसर स्नातक होने के बाद अच्छे ‘पैकेज’ के आकर्षण में दूसरे देशों की ओर रुख कर लेते हैं। अपनी प्रतिभा से उस देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सोचिए, अगर ये प्रतिभाशाली लोग विदेश नहीं गए होते और भारत में रहकर ही अपनी सेवाएं देते, तब आज भारत कहाँ होता? केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में आईआईएसईआर के दीक्षांत समारोह में युवा वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए ‘ब्रेन ड्रेन’ (प्रतिभा पलायन) के मुद्दे पर चिंता जताई है और देश की सेवा करने की एक भावनात्मक अपील भी की है। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अपील- “देश छोड़कर मत जाना” केवल भावनात्मक आग्रह भर नहीं है अपितु इसके पीछे राष्ट्रीय विकास की ठोस चिंता है। जब योग्य युवा देश में रहकर अपनी ऊर्जा और ज्ञान का उपयोग करेंगे, तभी शोध, नवाचार और तकनीकी प्रगति भारत को आत्मनिर्भर बना पाएगी।