साभार : पाञ्चजन्य / Panchjanya |
भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने में अपने आप को सेकुलर एवं प्रगतिशील कहनेवाले वर्ग की प्रमुख भूमिका है। जिस प्रकार से एक-दो घटनाओं को आधार बनाकर हिन्दू समाज के प्रति अभियान चलाए जाते हैं और मुस्लिम समाज को भड़काने एवं हिन्दुओं के विरुद्ध खड़ा करने का प्रयास किए जाते हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि वास्तव में सेकुलर वर्ग ही सांप्रदायिक है। सेकुलर बिरादरी के कारण जिस प्रकार का नकारात्मक वातावरण बना है, उसके कारण से हिन्दुओं पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं। अभी हाल में उत्तरप्रदेश के बरेली जिले के गाँव गौसगंज में मुस्लिम समुदाय ने हिन्दू समुदाय पर पथराव कर दिया, लोगों को घेरकर पीटा गया और तोड़फोड़ की गई। असामाजिक तत्वों की यह भीड़ गाँव के युवक तेजराम को घसीटकर मस्जिद में ले गए और वहाँ उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि समूचा सेकुलर वर्ग तेजराम की मॉब लिंचिंग पर मुंह में दही जमाकर बैठा हुआ है।
अखलाक की मौत की बात सारी दुनिया में हुई और लेफ्ट मीडिया ने भारत को लिंचिस्तान घोषित कर दिया।
— Ashok Shrivastav (@AshokShrivasta6) July 30, 2024
लेकिन तेजाराम को मस्जिद में लिंच करके मार दिया गया, पर इसके चर्चे कहीं नहीं हुए pic.twitter.com/NecSziTeLb
आखिर क्या कारण हैं कि मुस्लिम बंधुओं के साथ होनेवाली ऐसी ही घटना पर हो-हल्ला मचानेवाले हिन्दुओं की मॉब लिंचिंग पर खामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं? जिस समय में मुस्लिम भीड़ मस्जिद में तेजराम की पीट-पीटकर हत्या कर रही थी, उसी वक्त यह सेकुलर वर्ग कांवड़ियों द्वारा तोड़-फोड़ की एक-दो घटनाओं को आधार बनाकर समूचे कांवड़ियों और हिन्दुओं को बदनाम करने में लगे हुए हैं। यह किस तरह का चयनित दृष्टिकोण है? इसे सेकुलर बिरादरी के लेखकों एवं पत्रकारों का दोगला आचरण क्यों नहीं माना जाना चाहिए? इसे सांप्रदायिकता का पोषण करनेवाली प्रवृत्ति क्यों नहीं मानी जानी चाहिए?