बुधवार, 5 मार्च 2025

रोहित का मोटापा नहीं, उनके रिकॉर्ड्स देखिए

भारतीय क्रिकेट टीम आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में बेहतरीन खेल का प्रदर्शन कर रही है, लेकिन कांग्रेस की नेता डॉ. शमा मोहम्मद ने देश और खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने की जगह भारतीय क्रिकेट दल के कप्तान रोहित शर्मा की सेहत को लेकर ओछी टिप्पणी करके विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. शमा मोहम्मद ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा के शरीर को लेकर आपत्तिजनक एवं निंदनीय बयान दिया है। यही कारण है कि कांग्रेस ने तत्काल उनके बयान से किनारा किया। डॉ. शमा ने लिखा कि “रोहित शर्मा एक खिलाड़ी के तौर पर मोटे हैं। उन्हें वजन कम करने की जरूरत है। निश्चित रूप से यह भारत का अब तक का सबसे निराशाजनक कप्तान”। कोई भी सभ्य नागरिक किसी के शरीर को लेकर इस प्रकार की टिप्पणी नहीं कर सकता। दरअसल, ऐसा लगता है कि नफरत और नकारात्मकता की आग कांग्रेस के खेमे में इस हद तक फैल गई है कि उसके दायरे में अब केवल भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं है अपितु उसके निशाने पर कोई भी आ सकता है। कांग्रेस की प्रवक्ता की इस टिप्पणी के बाद उनकी जमकर आलोचना हो रही है। डॉ. शमा को भी मजबूरी में यह टिप्पणी हटानी पड़ी है। हालांकि अपनी ओछी एवं संकीर्ण मानसिकता के लिए उन्होंने अब तक सार्वजनिक रूप से माफी नहीं माँगी है। यह बताता है कि उन्होंने अपने नेताओं के दबाव में पोस्ट तो हटा ली लेकिन उनका मौलिक दृष्टिकोण नकारात्मक ही है। 

एक अन्य पोस्ट में कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. शमा लिखती हैं- “अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में रोहित शर्मा में ऐसा क्या विश्वस्तरीय है? वह एक औसत कप्तान होने के साथ-साथ एक औसत खिलाड़ी भी हैं, जिन्हें भारत का कप्तान बनने का सौभाग्य मिला”। बहरहाल, डॉ. शमा को पता होना चाहिए कि रोहित शर्मा न केवल बेहतरीन खिलाड़ी हैं अपितु उनकी कप्तानी में भारत ने शानदार प्रदर्शन किया है। किसी खिलाड़ी की योग्यता को उसके रूप-रंग और शरीर की बनावट के आधार पर नहीं अपितु उसकी उपलब्धियों एवं आंकड़ों के देखना चाहिए। 

रोहित शर्मा दुनिया के उन गिने-चुने बल्लेबाजों में हैं, जिन्होंने अपने देश के लिए सबसे अधिक बार शतक लगाए हैं। एक दिवसीय क्रिकेट में सबसे अधिक शतक बनाने वाले खिलाड़ियों की सूची में 32 शतक लगाकर रोहित शर्मा तीसरे स्थान पर हैं। सभी प्रकार के अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में सर्वाधिक शतक लगाने के मामलों में वह दसवें स्थान पर हैं। एक दिवसीय मुकाबले में अपनी टीम के लिए सबसे अधिक दोहरे शतक (3) लगाने का कीर्तिमान भी उनके नाम है। एक दिवसीय क्रिकेट के विश्व कप में सबसे अधिक शतक (5) लगाने का अद्भुत कीर्तिमान भी उनके नाम है। एक दिवसीय क्रिकेट में सर्वाधिक छक्के लगाने का कीर्तिमान भी उनके नाम है। वे तेजी से रन बनाकर भारतीय टीम को प्रतिद्वंद्वी टीम के मुकाबले आगे लेकर जाते हैं। निडर होकर खेलने का अंदाज उन्हें बाकी सबसे अलग करता है। इसके अलावा और भी कई उपलब्धियां हैं, जो उन्हें विश्व के बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार कराते हैं। 

एक कप्तान के तौर पर भी वे अब तक के सबसे सफल कप्तानों में से एक हैं। उनकी कप्तानी में भारत बिना कोई मैच हारे एक दिवसीय क्रिकेट के विश्व कप में अंतिम मुकाबले तक पहुँची। वर्ष 2024 में टी-20 का विश्व कप उनकी कप्तानी में ही जीते हैं। अब तक रोहित शर्मा ने 140 मैचों में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया है, जिसमें भारत ने 101 मैच जीते हैं। जबकि भारत को 33 मैचों में हार का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा 3 मैच ड्रॉ रहे हैं। रोहित शर्मा के रिकॉर्ड पर नजर डाले तो आईसीसी की प्रतियोगिताओं में उन्होंने 92.8 प्रतिशत मैचों में जीत हासिल की है। उनके बाद दूसरे नंबर पर रिकी पोंटिंग हैं, जिन्होंने अपनी कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया को 88.3 प्रतिशत मैच जिताए हैं। वहीं, महान खिलाड़ी क्लाइव लॉयड ने 88.2 प्रतिशत मैचों में वेस्टइंडीज को जिताया है। यह सब उपलब्धियां देखे बिना किसी के शरीर को आधार बनाकर ओछी टिप्पणी करना नकारात्मक मानसिक अवस्था को प्रदर्शित करता है।

किसी भी क्षेत्र में देश के लिए बेहतर करने का जज्बा रखनेवाले प्रतिभावान लोगों का सम्मान कैसे बढ़ाया जाता है, उनका हौसला कैसे बढ़ाया जाता है, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को यह बात भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से सीखनी चाहिए। जब भारतीय क्रिकेट टीम 2023 में एक दिवसीय क्रिकेट का विश्वकप हार गई, तब प्रधानमंत्री मोदी ने अपने खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को कमजोर नहीं होने दिया। उनका हौसला बढ़ाया। जिसका परिणाम रहा कि भारत की टीम बहुत जल्दी एक बड़ी हार से उबर आई और 2024 में टी-20 क्रिकेट में विश्व विजेता बनकर भारत का परचम फहरा दिया।

शनिवार, 1 मार्च 2025

अब नहीं चलेगी हिन्दी विरोध की राजनीति

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बहाने तमिलनाडु में फिर से हिन्दी विरोध की राजनीति होते देखना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उनके पुत्र उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए हिन्दी विरोध की राजनीति को हवा देना शुरू कर दिया है। उनको लगता है कि राज्य में अपनी प्रासंगिकता को बचाने और भाजपा के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए यही एक रास्ता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस संबंध में मुख्यमंत्री स्टालिन झूठ का सहारा लेने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। जब भारत के दक्षिणी हिस्से से उन्हें हिन्दी विरोध में कोई खास समर्थन मिलता नहीं दिखा तो उन्होंने अपनी कुटिल मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल सहित अन्य राज्यों में भाषायी संघर्ष का विस्तार करने की दृष्टि से बयानबाजी प्रारंभ कर दी है। एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति क्षुद्र राजनीति करने के लिए ऐसे मूखर्तापूर्ण बयान दे रहा है कि उससे उसकी ही जगहंसाई हो रही है। 

भारत के उत्तरी हिस्से के राज्यों के नागरिकों को भाषा के आधार पर भड़काने के लिए उन्होंने कहा कि “अन्य राज्यों के प्यारे बहनों और भाइयों, क्या आपने कभी सोचा है कि हिन्दी ने कितनी भारतीय भाषाओं को निगल लिया है? हिन्दी उत्तर भारत की भाषाओं को निगल गई है। भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, खरिया, खोरठा, कुरमाली, कुरुख, मुंडारी जैसी भाषाएं अब अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं”। 

हद है, उन्हें भाषा और बोली का अंतर भी नहीं पता। उन्हें भाषा के विकास का इतिहास पढ़ना चाहिए। यह सब भाषाएं नहीं हैं अपितु हिन्दी की बोलियां हैं, जो हिन्दी के संसार को समृद्ध करती हैं। हिन्दी ने इन्हें निगला नहीं है अपितु इनका संरक्षण किया है। यदि भारत में भारतीय भाषाओं को निगलने का काम कोई कर रहा है, तो वह अंग्रेजी है। हमारे नीति-नियंताओं ने स्वतंत्रता के बाद भारतीय भाषाओं की विरासत को महत्व देने की जगह अंग्रेजी के प्रभुत्व को स्वीकार कर लिया था। जिसके कारण नयी पीढ़ी विदेशी भाषा को सीखने के प्रयत्न में अपनी मातृभाषा से दूर होने लगी। 

यदि स्टालिन वाकई तमिल भाषा को लेकर संवेदनशील हैं, तब उन्हें अंग्रेजी के प्रभुत्व का विरोध करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा सरकार का तो उन्हें धन्यवाद देना चाहिए, जिन्होंने तमिल एवं अन्य भारतीय भाषाओं के महत्व को स्थापित करने के अनेक प्रयास किए हैं। तमिल भाषा और संस्कृति की महिमा का बखान करने में प्रधानमंत्री मोदी कोई अवसर नहीं चूकते हैं। उन्होंने इस बात पर बार-बार बल दिया है कि तमिल दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है, जो पूरे देश के लिए गर्व का विषय है। तमिल इतिहास के संरक्षण और सम्मान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता सिंगापुर में तिरुवल्लुवर सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना, जकार्ता के मुरुगन मंदिर में महाकुंभाभिषेकम समारोह में उनकी भागीदार और संसद में सिंगोल की प्रतिष्ठा से प्रदर्शित हुई। उनकी पहल पर ‘काशी-तमिल संगमम’ और ‘सौराष्ट्र-तमिल संगमम’ जैसी अनूठी पहल प्रारंभ हुई है। इस पहल के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि “काशी और तमिलनाडु के बीच शाश्वत सभ्यतागत संबंधों का उत्सव मनाते हुए, यह मंच सदियों से विकसित आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को एक साथ लाता है”।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन जिस राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बहाने वे हिन्दी विरोध की राजनीति करना चाह रहे हैं, वह शिक्षा नीति तो भारतीय भाषाओं का संरक्षण करती है। पहली बार है जब शिक्षा नीति में मातृभाषा में अध्ययन-अध्यापन को प्राथमिकता दी है। 

शिक्षा नीति के त्रिभाषा सूत्र को अपनाने और एक भाषा के रूप में भारतीय भाषा सीखने को हिंदी थोपना नहीं कह सकते। त्रिभाषा सूत्र में विद्यार्थी अपनी रुचि की भाषा को चुन सकता है। उसके सामने कोई बंधन या मजबूरी नहीं है। हिन्दी को थोपने के आरोप तब सही माने जाते जब हिन्दी सीखना अनिवार्य किया जाता। इसलिए स्टालिन का हिन्दी विरोध केवल और केवल संकीर्ण राजनीति है। उन्हें अपना राजनीतिक भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। हिन्दी विरोध को हवा देकर वे भ्रम का वातावरण खड़ा करना चाहते हैं, ताकि उसमें से अपनी राजनीतिक जमीन के लिए कुछ रास्ता बनाया जा सके। उम्मीद है कि तमिलनाडु की जनता उनकी इस संकीर्ण राजनीति में नहीं उलछेगी। 

कहना होगा कि तमिलनाडु समेत पूरे दक्षिण भारत के तमाम राज्यों में हिन्दी के प्रति अब वह व्यवहार नहीं रहा, जो दशकों ऐसी ही संकीर्ण राजनीति ने बनाया था। अब वहाँ के लोग हिन्दी सीखने में उत्साह दिखा रहे हैं क्योंकि हिन्दी सीखने से उनके लिए संपूर्ण भारत में रोजगार के अवसर खुलते हैं। एक तरह से देखें तो हिन्दी विरोध की राजनीति तमिलनाडु की जनता के विकास के मार्ग को भी अवरुद्ध करती है। इसलिए भी ऐसा माना जा सकता है कि तमिलनाडु के लोग स्टालिन के भड़काने से भड़केंगे और बहकेंगे नहीं। वे सब दशकों पुरानी मानसिकता और छलावे से निकलकर बहुत दूर आ चुके हैं।