शनिवार, 25 जनवरी 2025

हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी ‘रायगढ़’

 राष्ट्रीय पर्यटन दिवस पर विशेष

श्री दुर्गदुर्गेश्वर रायगड़ में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के सामने शौर्य प्रदर्शन करना सूर्या फाउंडेशन के युवाओं का दल

श्री दुर्गदुर्गेश्वर अर्थात् हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी- रायगढ़। सह्याद्रि की पर्वत शृंखलाओं में प्राकृतिक रूप से सुरक्षित रायगढ़ हिन्दवी स्वराज्य का बेजोड़ किला है। किला अपने उत्तर और पूर्व से काल नदी से घिरा हुआ है। सह्याद्रि की लहरदार घाटियों एवं घने जंगल में छिपा यह किला दूर से नजर नहीं आता है। यह भी रायगढ़ की विशेषता है। यह किला दुर्जय है। महाराज के जीवित रहते रायगढ़ न केवल प्रतिष्ठा अर्जित कर रहा था अपितु अजेय भी रहा। सब प्रकार से अत्यंत सुरक्षित होने के कारण यूरोप के यात्रियों ने रायगढ़ को ‘पूर्व का जिब्राल्टर’ भी कहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज सन् 1670 में हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी को राजगढ़ से रायगढ़ लेकर आए। राजसी गौरव एवं भव्यता के साथ 1674 में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक समारोह रायगढ़ पर सम्पन्न हुआ। राज्याभिषेक समारोह में उपस्थित अंग्रेज प्रतिनिधि ऑक्झिंडन ने रायगढ़ राजधानी की सामरिक सुरक्षा और दुर्जेयत्व की प्रशंसा में अपनी दैनंदिनी में लिखा है-“यह किला केवल विश्वासघात से ही जीता जा सकता है, अन्यथा यह दुर्जेय है”। उसका यह कथन लगभग 15 वर्षों के पश्चात् सन् 1689 में प्रमाणित हुआ जब औरंगजेब की सेना के घेरे के समय दुर्गपति सूर्याजी पिसाल द्वारा विश्वासघात करने के कारण किले पर मुस्लिम सल्तनत का अधिकार हुआ। उस समय रायगढ़ में हिन्दवी स्वराज्य के दूसरे छत्रपति शंभूराजे का शासन था।

‘संघ और तिरंगे’ पर दुष्प्रचार का उत्तर है- राष्ट्रध्वज और आरएसएस

- कृष्णमुरारी त्रिपाठी ‘अटल’ 

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में सहायक प्राध्यापक एवं जानेमाने ब्लॉगर लोकेन्द्र सिंह की नवीन कृति ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ अर्चना प्रकाशन भोपाल से प्रकाशित है। राष्ट्रीय विचारों पर तथ्यात्मक लेखन के चलते लेखक की अपनी सशक्त पहचान है। इसके लिए वे साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश सहित अनेक संस्थाओं से पुरस्कृत हैं। उनकी अब तक 14 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से कुछ पुस्तकों में उन्होंने सह-लेखक और संपादक के तौर पर भी भूमिका निभाई है। इनमें से उनकी चर्चित कृति ‘संघ दर्शन: अपने मन की अनुभूति’ रही है। लोकेन्द्र सिंह की सद्य: प्रकाशित कृति ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ भी शिवाजी महाराज से जुड़े यात्रा संस्मरणों पर आधारित इसी कड़ी की पुस्तक है।

देखिए- RashtraDwaj Aur RSS | Book Introduction by Sourabh Tameshwari | In the presence of Major Gaurav Arya


शनिवार, 11 जनवरी 2025

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर पर आरएसएस के प्रचारक के विचार

पुस्तक चर्चा : बाबा साहब के विविध पहलुओं की अभिव्यक्ति - राष्ट्र-ऋषि बाबासाहब डॉ. अंबेडकर

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के संबंध में सबने अपने-अपने दृष्टिकोण बना रखे हैं। उनके विचारों एवं व्यक्तित्व को समग्रता से देखने के प्रयास कम ही हुए हैं। बाबा साहब को लेकर राजनीतिक क्षेत्र से उठी एक बहस जब देश में चल रही है, तब एक पुस्तक ‘राष्ट्र-ऋषि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर’ पढ़ने में आई। अर्चना प्रकाशन, भोपाल से प्रकाशित यह पुस्तक केवल 80 पृष्ठ की है लेकिन लेखक निखिलेश महेश्वरी जी ने ‘गागर में सागर’ भरने का प्रयत्न बड़ी कुशलता से किया है। बाबा साहब से जोड़कर अकसर उठनेवाली बहसों के लगभग सभी मुद्दों को छूने और उन पर एक सम्यक दृष्टिकोण पाठकों के सामने रखने का कार्य लेखक ने किया है। राजनीतिक और सामाजिक चेतना जगाकर जिस एकात्मता के लिए बाबा साहब ने प्रयास किए, उसी एकात्मता के लिए साहित्य के धर्म का निर्वहन निखिलेश जी ने किया है। लेखक का मानना है कि बाबा साहब आधुनिक भारत के ऋषि हैं, जिन्होंने समाज जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया। उल्लेखनीय है कि निखिलेश महेश्वरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं। आप इस समय देश के सबसे बड़े शैक्षिक संगठन विद्या भारती में मध्यभारत प्रांत के संगठन मंत्री हैं। यह पुस्तक पढ़कर पाठक जान सकते हैं कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रति संघ में अपार श्रद्धा है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जिस सामाजिक समता का स्वप्न बाबा साहब ने देखा था, वह संघ की शाखा से लेकर समाज में साकार होता दिखायी देता है। इसकी प्रत्यक्ष अनुभूति बाबा साहब से लेकर महात्मा गांधी तक कर चुके हैं।

देखिए : पत्रकारिता में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान

बुधवार, 8 जनवरी 2025

घर-घर दीप जलाएं… आओ, एक और दीपावली मनाएं

प्राण-प्रतिष्ठा द्वादशी महोत्सव : श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ


एक वर्ष पहले पौष शुक्ल द्वादशी (22 जनवरी, 2024) को भारतवासियों ने त्रेतायुग के बाद एक बार फिर अपने आराध्य भगवान श्रीराम के स्वागत में घर-घर दीप जलाए थे। श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में बने भव्य मंदिर में जब श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई, तब प्रत्येक रामभक्त की आँखों से नेह की धारा बह रही थी। आखिर रामभक्त भाव-विभोर हों भी क्यों नहीं, लगभग 500 वर्षों की प्रतीक्षा एवं संघर्ष के बाद जन्मभूमि में उल्लासपूर्वक श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई। यह दिन भारत के लिए अविस्मरणीय है। प्रत्येक भारतवासी का मन था कि श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को उत्सव की परंपरा में शामिल कर दिया जाए। जैसे रावण का वध करके प्रभु श्रीराम के अयोध्या लौटने की घटना को हमने दीपोत्सव के रूप में त्रेतायुग से आज तक अपनी स्मृति में संजोकर रखा है, उसी तरह श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के उत्सव को भी ‘दीपावली’ की भाँति ही मनाया जाए। पौष शुक्ल द्वादशी को प्रत्येक हिन्दू घर रोशन हो और देहरी-मुडेर पर दीपों की मालिका जगमगाए।

मंगलवार, 7 जनवरी 2025

पत्रकार सुरक्षित होंगे, तभी बचेगा लोकतंत्र

छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकार के हत्यारों को मिले कड़ी सजा

लोकतंत्र की मजबूती के लिए पत्रकारिता एवं पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। कहना होगा कि किसी भी देश में पत्रकार सुरक्षित नहीं है। भारत में भी पत्रकारों पर हमले होते रहते हैं। यहाँ तक कि उनकी हत्या कर दी जाती है। हालिया घटना छतीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर से जुड़ी हुई है। हत्या के बाद उनके शव को सेप्टिक टैंक में डालकर ऊपर से प्लास्टर कर दिया गया। मुकेश की हत्या के पीछे एक रिपोर्ट को प्रमुख कारण बताया जा रहा है। यह रिपोर्ट घटिया सड़क निर्माण की पोल खोलने से संबंधित है। पत्रकार मुकेश की रिपोर्ट के अनुसार, ठेकेदार सुरेश चंद्राकार ने मिरतुर से गंगालूर के बीच सड़क बनाने का ठेका लिया था, लेकिन सड़क अधूरी बनने के बाद भी प्रशासन ने 90 प्रतिशत से अधिक भुगतान कर दिया। इस मामले में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। इसी मामले को स्वतंत्र एवं निर्भीक पत्रकार मुकेश चंद्रकार ने उजागर किया था। उनकी खोजी रिपोर्ट के सामने आने के बाद सड़क निर्माण की परियोजना पर छत्तीसगढ़ सरकार ने जाँच बैठा दी थी। पूरी आशंका है कि इसी कारण ठेकेदारों ने मुकेश को अपने निशाने पर ले लिया। मामले में मुख्य आरोपी सहित चार लोग पकड़े गए हैं।

सोमवार, 6 जनवरी 2025

आक्रांता और लुटेरा ही था गजनवी

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने महमूद गजनवी को बताया लुटेरा

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने महमूद गजनवी को आक्रमणकारी और डाकू-लुटेरा बताकर खलबली मचा दी है। आसिफ ने समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा है कि “महमूद गजनवी आता था और लूटमार करके वापस चला जाता था। हालांकि, हमारे यहाँ उसे हीरो के तौर पर चित्रित किया जाता है, लेकिन मैं उसे हीरो नहीं मानता”। उनके बयान को पाकिस्तान में ‘एंटी पाकिस्तान’ कहा जा रहा है। पाकिस्तान के दूसरे बड़े नेता रक्षा मंत्री के बयान को ‘भारतीय सोच’ बता रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान महमूद गजनवी को अपना आदर्श मानता है। यहाँ तक कि पाकिस्तान ने अपनी मिसाइलों को गजनवी का नाम दिया है। हालांकि, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का कहना बिल्कुल ठीक है क्योंकि जिस समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और यहाँ लूट-मार की थी, तब पाकिस्तान नाम का अस्तित्व ही नहीं था। भले ही पाकिस्तान इतिहास को झुठलाए लेकिन यह सत्य है कि भारत और पाकिस्तान का साझा इतिहास है। वह इतिहास बताता है कि पाकिस्तान के लिए भी महमूद गजनवी एक लुटेरा ही था।

रविवार, 5 जनवरी 2025

अखिल विश्व के प्रेरणास्रोत राम

देखें यह वीडियो- इंडोनेशिया से लेकर कंबोडिया तक और थाईलैंड से तुर्किस्तान तक ‘सिय राम मय सब जग जानी’


मानव देह में भगवान श्रीराम ने जिन शाश्वत जीवन मूल्यों की स्थापना की, वे सार्वभौमिक, सर्वकालिक एवं सार्वदेशिक हैं। इसलिए राम केवल भारत में ही नहीं अपितु दुनियाभर में आराध्य हैं। जीवन की अलग-अलग भूमिकाओं में मनुष्य का आचरण कैसा होना चाहिए, इसका आदर्श राम ने प्रस्तुत किया है। प्रो. फादर कामिल बुल्के ने लिखा है- “मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गाँव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा था कि आप रामायण क्यों पढ़ते है? उत्तर मिला कि मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूँ”। इस प्रसंग से ही स्पष्ट हो जाता है कि दुनिया में राम के नाम की महिमा क्यों है? क्यों दुनियाभर में उन्हें पढ़ा और पूजा जाता है। राम का जीवन मर्यादा सिखाता है। सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व का भाव जगाता है। राम का संदेश मनुष्य को देवत्व की ओर लेकर जाता है। संपूर्ण विश्व में रामराज्य की अवधारणा साकार हो, मूल्य आधारित समाज व्यवस्था निर्मित हो, इसलिए सब अपने यहाँ राम का चरित्र लेकर गए हैं। भारत के स्वाभिमान श्रीराम के स्वरूप एवं संदेश का प्रसार नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार से लेकर लाओस तक की संस्कृति में स्पष्ट दिखायी पड़ता है। गैर-हिन्दू समुदाय भी उन्हें उतनी ही श्रद्धाभाव से पूजते हैं, जितना कि हिन्दू। इंडोनेशिया दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी का देश है। लेकिन भारत की भाँति यहाँ भी कण-कण में राम व्याप्त हैं। दुनिया की सबसे बड़ी रामायण का मंचन इंडोनेशिया में किया जाता है। इंडोनेशिया के मुस्लिम भगवान राम को अपना नायक, आदर्श और प्रेरणास्रोत मानते हैं।

शनिवार, 4 जनवरी 2025

धर्म की सीख

धार्मिक कहानियां सिखाती हैं जीने की कला


AI द्वारा निर्मित प्रतीकात्मक चित्र

सार्थक और देवकी का परिवार बहुत धार्मिक है। उनके माता-पिता अकसर श्री रामचरितमानस और श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करते हैं। एक दिन सार्थक और देवकी अपनी माँ के पास बैठे थे। उनके मन में जिज्ञासा उठी कि मम्मी और पापा धार्मिक किताबें क्यों पढ़ते रहते हैं। एक ही प्रकार की पुस्तक को बार-बार पढ़ने से क्या होता है? दरअसल, सार्थक और देवकी को धर्म-अध्यात्म और भारतीय संस्कृति की उतनी अधिक जानकारी नहीं थी क्योंकि वे जिस स्कूल में पढ़ते हैं, वहाँ के पाठ्यक्रम में भी भारत की कहानियां नहीं पढ़ाई जाती हैं।

पंचिंग बैग नहीं है हिन्दू धर्म

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने दिए सनातन विरोध बयान

तथाकथित सेकुलर राजनीतिक दल और नेताओं ने हिन्दू धर्म को पंचिंग बैग समझ लिया है। अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने और एक खास वोटबैंक को खुश करने के लिए अकसर तथाकथित सेकुलर नेता हिन्दू धर्म को लक्षित करके विवादित बयानबाजी करते रहते हैं। कोई सनातन धर्म की तुलना डेंगू से करता है तो कभी सनातन के समूल नाश पर सेमिनार कराए जाते हैं। कभी संसद में जोश में आकर कह दिया जाता है कि “जो लोग अपने आपको हिन्दू कहते हैं, वो चौबीस घंटे हिंसा, हिंसा, हिंसा; नफरत, नफरत, नफरत; असत्य, असत्य, असत्य कहते हैं”। अब केरल के मुख्यमंत्री एवं कम्युनिस्ट नेता पिनराई विजयन ने सनातन धर्म को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करके हिन्दू विरोध की मानसिकता को प्रकट किया है। उनकी टिप्पणी बताती हैं कि सनातन धर्म के संबंध में उनकी समझ बहुत उथली है और उन्होंने जानबूझकर हिन्दू धर्म को निशाना बनाने का प्रयास किया है। यही कारण है कि कि मुख्यमंत्री विजयन की टिप्पणियों का विरोध न केवल भारतीय जनता पार्टी कर रही है अपितु कांग्रेस ने भी विरोध किया है। हालांकि, विश्व हिन्दू परिषद ने विपक्षी दल में शामिल सभी राजनीतिक दलों की सोच पर सवाल उठाए हैं। क्योंकि कांग्रेस के नेताओं की ओर से जो विरोध दर्ज कराया जा रहा है, वह गोल-मोल है।

शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

एकात्मता का दर्शन है- महाकुंभ

महाकुंभ का संदेश : एक हो पूरा देश


भारत की संस्कृति का आधार एकात्मता का स्वर है। भारतीय समाज में जो ऊंच-नीच की बीमारी आई, वह विशेष कालखंड की देन है। सत्य तो यह है कि भारत की संस्कृति में ऊंच-नीच के लिए कोई स्थान नहीं। यह दुनिया की इकलौती संस्कृति है जो कहती है कि हम सबमें ईश्वर का अंश है। यानी जो पिंड तुम्हारा है, वही पिंड मेरा है। भारत का दर्शन न तो जाति के आधार पर और न ही रंग-रूप एवं वेष-भूषा के आधार पर लोगों में विभेद करता है। भारत का दर्शन तो सबको अपना मार्ग चुनने की स्वतंत्रता देता है। यह बात हिन्दुत्व की आलोचना करनेवालों को समझनी चाहिए। हिन्दुत्व और भारतीयता के मूल विचार को समझना है तो उसका एक अवसर महाकुंभ के रूप में आ रहा है। कुंभ ऐसा मेला है, जहाँ भारत के कोने-कोने से लोग आते हैं। सभी जाति-बिरादरी, प्रांत, भाषा और संप्रदाय के लोग कुंभ में शामिल होते हैं, बिना किसी भेदभाव के। सब मिलकर संगम में डुबकी लगाते हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा है कि “महाकुंभ की विशेषता केवल इसकी विशालता में ही नहीं है। कुंभ की विशेषता इसकी विविधता में भी है। इस आयोजन में करोड़ों लोग एक साथ एकत्रित होते हैं। लाखों संत, हजारों परम्पराएँ, सैकड़ों संप्रदाय, अनेक अखाड़े, हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनता है। कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखता है, कोई बड़ा नहीं होता है, कोई छोटा नहीं होता है। अनेकता में एकता का ऐसा दृश्य विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा”।