- लोकेन्द्र सिंह -
आतंकियों के कायराना हमले में हमने भारत माँ के लाल खोये हैं। देश में दु:ख और आक्रोश की लहर है। प्रत्येक राष्ट्रभक्त नागरिक बलिदानियों के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदनाएं प्रकट कर रहा है। हम सबकी जिम्मेदारी है कि बलिदानी जवानों के परिवार की चिंता करें। उनका बलिदान व्यर्थ न जाए, इसकी चिंता सरकार तो करे ही, समाज को भी करनी चाहिए। अपना जीवन गंवाने वाले यह जवान अपने परिवार से दूर रहकर हम सबकी सुरक्षा कर रहे थे। उनके कारण हम अपने परिवार के साथ सानंद रह पा रहे हैं। क्या ऐसे में हमारा दायित्व नहीं बनता कि जवानों के परिवार को हम अपना परिवार बना लें? हुतात्माओं के परिवारों के साथ खड़े होने से उन जवानों का हौसला बुलंद होगा, जो सीमा पर डटे हुए हैं। देश की सेवा में वह बेफिक्री से सजग रहेंगे। अपने देश के नागरिकों के समर्थन से वह कायर आतंकियों को उनके सही ठिकाने पहुँचा सकेंगे।
उरी की घटना के बाद हमने आतंकियों को उनके आका पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर में घुसकर मारा था। हम फिर ऐसा कर सकते हैं। बल्कि अब इससे बड़ा और कड़ा कदम उठाने की जरूरत है। आतंकियों के साथ-साथ उनके पनाहगार ‘ना-पाकिस्तान’ को सबक सिखाने का समय आ गया है। आतंक की फैक्ट्री पर ताला डालने का वक्त है। आतंकी गिरोह जैश-ए-मोहम्मद ने पुलगाव में किए कायरतापूर्ण हमले की जिम्मेदारी ली है। अब भारत सरकार को यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि वह हमले को अंजाम देने वाले आतंकी गिरोह जैश-ए-मोहम्मद, उसके आतंकियों और उनके संरक्षणकर्ताओं को सही अंजाम तक पहुँचाएगी।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भरोसा दिलाया है कि वह जवानों के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। चूँकि प्रधानमंत्री मोदी दृढ़ इरादों वाले राजनेता हैं। सुरक्षा जवानों के प्रति उनकी संवेदनाएं एवं लगाव जग-जाहिर है। इस प्रकार की जनहानि पर वह चुप नहीं बैठेंगे, यह वह पहले भी दिखा चुके हैं। निश्चित ही प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार कोई बड़ी कार्रवाई करेगी। दु:ख की इस घड़ी में जहाँ सबको सरकार के साथ खड़े होकर आतंकियों को सबक सिखाने की योजना बनानी चाहिए, उस समय में भी कुछ राजनीतिक दल, तथाकथित पत्रकार एवं बुद्धिजीवी घटिया राजनीति करने से नहीं चूक रहे।
एक ओर जहाँ पुलवामा आतंकी हमले के बाद से देशभक्त नागरिक दुःखी हैं और अपने ढंग से वीर जवानों को श्रृद्धांजलि देने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर हमारा अंग्रेजी मीडिया, विशेषकर वह मीडिया जो पिछले कुछ दिन से सेकुलर जमात के लिए रॉबिनहुड बना हुआ है; बलिदानी जवानों के लिए असंवेदना प्रकट कर रहा है। जिन हुतात्माओं ने देश के लिए बलिदान दिया है, अंग्रेजीदां मीडिया के लिये ये जवान केवल ‘मारे’ गए हैं। शहीद/बलिदानी शब्द से शायद उन्हें नफरत है या फिर उन्हें शब्दों के अर्थ की समझ नहीं है। उन्हें अगर अंग्रेजी के अलावा कुछ और समझ नहीं आता है तब भी अंग्रेजी में इसे ‘Martyr’ कहते हैं। किन्तु, अधिकांश अंग्रेजी समाचार पत्रों ने ‘Killed’ शब्द का ही उपयोग किया है। पत्रकारिता का यह स्तर निश्चित ही समूची पत्रकारिता को कलंकित करके छोड़ेगा।
दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंक की फैक्ट्री बन चुका है। यह भी सबको पता है कि आतंकी गिरोह जैश-ए-मोहम्मद कहाँ पनाह पाता है? यह भी किससे छिपा है कि भारत के संदर्भ में पाकिस्तान की सरकार और सेना दोनों की नीति का हिस्सा है- सीमा पार आतंकवाद। हमारे राजनेताओं को समझना चाहिए कि यह समय संकुचित राजनीति का नहीं है। यह राष्ट्रनीति का समय है। यह एकजुट होकर, एक स्वर में बोलने का समय है। माँ भारती ने अपने सपूत खोये हैं। देश की जनता में शोक के साथ ही आक्रोश की भी लहर है। मोदी सरकार से पहले की तरह अपेक्षा है कि वह जवाने के बलिदान को व्यर्थ न जाने दे।
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वीर रस से भरी यह कविता लिखी है इस छोटी बेटी वत्सला चौबे की नानीजी एवं साहित्यकार श्रीमती अरुणा दुबे ने। इस कविता के माध्यम से वत्सला ने पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि दी है।
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वीर रस से भरी यह कविता लिखी है इस छोटी बेटी वत्सला चौबे की नानीजी एवं साहित्यकार श्रीमती अरुणा दुबे ने। इस कविता के माध्यम से वत्सला ने पुलवामा के शहीदों को श्रद्धांजलि दी है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 75वीं पुण्यतिथि - दादा साहेब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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