भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण
- लोकेन्द्र सिंह
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने 'भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण' व्याख्यान माला में अंतिम दिन अभ्यागतों के प्रश्नों के उत्तर दिए। प्रश्न वही थे, जो हमेशा संघ से पूछे जाते हैं किंतु इस बार यह प्रश्न अधिक महत्वपूर्ण थे क्योंकि उनको समाधानमूलक उत्तरों ने पूर्ण कर दिया। संघ ने 'सनातन प्रश्नों' के उत्तर अधिकृत एवं सर्वोच्च पदाधिकारी के माध्यम से संपूर्ण समाज के सम्मुख रख दिए हैं। भले ही कोई उनसे सहमत हो या असहमत, किंतु अब कम से कम अनेक प्रश्नों पर संघ का अधिकृत पक्ष तो सार्वजनिक हो गया है। हालाँकि अनेक प्रश्नों के उत्तर संघ पूर्व में भी अपने कार्य-व्यवहार, अधिकृत वक्तव्यों एवं प्रस्तावों के माध्यम से समाज के सामने रख चुका है। कुल मिलाकर इस बौद्धिक यज्ञ की पूर्णाहुति लोक-विमर्श और लोक-व्यवहार को दिशा देने वाली रही। व्याख्यानमाला में शामिल अभ्यागतों के 215 प्रश्नों के उत्तर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने दिए। तीसरे दिन के आयोजन को कुछ नाम देना हो तो 'समाधानमूलक प्रश्नोत्तरी' दिया जा सकता है।
सरसंघचालक ने प्रश्नों के उत्तर औपचारिक ढंग से नहीं अपितु अत्यंत आत्मीय भाव से दिए। प्रबुद्ध सभा की ओर से प्रश्न आया है इसलिए उसका उत्तर दिया जाना है, ऐसा मानकर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा अपितु प्रश्नों के उत्तर देते समय समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया। वास्तविकता को सामने रखा और रचनात्मक ढंग से संबंधित विषय पर संघ का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। जाति व्यवस्था, आरक्षण, एससी-एसटी एक्ट, अल्पसंख्यक, समलैंगिकता, जम्मू-कश्मीर, शिक्षा नीति भाजपा और संघ जैसे कई मुद्दों पर आए प्रश्नों पर उन्होंने खुलकर संघ का पक्ष रखा। जाति व्यवस्था के बारे में उन्होंने अनुकरणीय बात कही- 'जाति व्यवस्था कभी रही होगी, अब जाति अव्यवस्था है। सामाजिक विषमता को बढ़ाने वाली सभी बातें बाहर होनी चाहिए। यह यात्रा लंबी है, लेकिन यह करनी ही होगी।'
गांधीजी और आंबेडकर जी ने भी अनुभव किया, संघ में नहीं पूछते जाति :
संघ के संबंध में सामान्य समाज का मत है कि आरएसएस में किसी प्रकार का जातिभेद नहीं है। हालाँकि कुछ विरोधी लोग जानबूझ कर संघ को ब्राह्मणों या महाराष्ट्रीयनों का संगठन कहते हैं। इसके पीछे उनके वैचारिक एवं राजनीतिक स्वार्थ हैं। किंतु वास्तविकता में यह सत्य नहीं है। स्वयं महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव आंबेडकर ने आरएसएस के संबंध में यह प्रत्यक्ष अनुभव किया है कि यहाँ जातिभेद कभी नहीं रहा। यह सत्य है कि संघ ने जातिगत विषमता को पाटने में जितना कार्य किया है, उतना संभवत: किसी व्यक्ति या संस्था ने नहीं किया। संघ की शाखा में सब मंडल बनाकर एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर खेलते हैं। संघ में किसी से जाति नहीं पूछी जाती। यहाँ सब एकसमान हैं।
आरक्षण नहीं, आरक्षण की राजनीति है समस्या :
वर्तमान समय में आरक्षण और अनुसूचित जाति-जनजाति संरक्षण काननू को लेकर देशभर (विशेषकर उन राज्यों में जहाँ निकट भविष्य में चुनाव हैं) में आंदोलन चल रहा है। इन दोनों विषयों पर स्पष्ट मत रखने के लिए साहस चाहिए। संघ के पास वह साहस है। यह साहस संघ को समाज से ही प्राप्त हुआ है। संघ-भाजपा और राजनीति के प्रश्नों का उत्तर देते समय डॉ. भागवत ने कहा कि संघ राजनीति नहीं करता। हाँ, संघ राष्ट्रनीति की चिंता जरूर करता है, खुलकर करता है। यही कारण है कि डॉ. भागवत आरक्षण और एससी-एसटी एक्ट पर खुलकर संघ का पक्ष रख सके। उन्होंने स्पष्ट कहा कि संघ संविधान सम्मत सभी प्रकार के आरक्षण की व्यवस्था का समर्थन करता है। आरक्षण कब तक चलेगा, इसका निर्णय वही करेंगे, जिनके लिए आरक्षण की व्यवस्था है। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरक्षण समस्या नहीं है। आरक्षण की राजनीति समस्या है। समाज के सभी अंगों को साथ लाने पर ही काम करना होगा। जो ऊपर हैं, उन्हें झुकना होगा और जो नीचे हैं, उन्हें एडी ऊपर करके बढऩा होगा।
एससी-एसटी एक्ट रहना चाहिए :
एससी-एसटी एक्ट पर भी उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति-जनजाति के संरक्षण के लिए यह कानून रहना चाहिए, किंतु इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। दोनों ही ज्वलनशील मुद्दों पर सरसंघचालक ने जो विचार रखे हैं, हिंदू समाज और देशहित में उस पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए। आरक्षण और एससी-एसटी एक्ट के नाम पर हिंदू समाज में जो मनमुटाव बढ़ रहा है, उसका समाधान भी उन्होंने सुझाया है। उन्होंने कहा है कि जिनको हजारों साल तक दबकर रहना पड़ा, अपने उन बंधुओं को आगे लाने के लिए 100-150 साल भी झुककर रहना पड़े तो यह महंगा सौदा नहीं है।
श्रीरामजन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर :
राममंदिर का प्रश्र संघ के सामने न आए यह तो संभव ही नहीं है। इस संबंध में भी उन्होंने स्पष्ट मत रखा है। 'संघ के सरसंघचालक होने के नाते मेरा मत है कि श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर बनना ही चाहिए। राम जहां आस्था का विषय नहीं हैं, वहां भी वह मर्यादा का विषय हैं। राष्ट्रनीति से देशहित में विचार किया होता तो अब तक मंदिर बन चुका होता।' धारा-370, 35ए, समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण पर उन्होंने देशहित में विचार रखे, जिनका स्वागत संघविरोधी भी संभवत: कर सकते हैं।
कुल मिला कर कह सकते हैं कि संघ ने इस प्रकार का आयोजन करके एक बड़ी लकीर सबके सामने खींच दी है। यह आयोजन संघ के इतिहास में सदैव स्मरण रहेगा। संघ संबंधी विमर्श में भी इस आयोजन को बार-बार उल्लेखित किया जाता रहेगा।
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