अपनी ही भूमि पर हिंदुत्व का अपमान आसानी से किया जा सकता है, इस बात को एक बार फिर समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता नरेश अग्रवाल ने सिद्ध कर दिया। राज्यसभा में बुधवार को उन्होंने हिंदुओं के भगवान राम, माता जानकी और भगवान विष्णु को लेकर अमर्यादित टिप्पणी कर दी। गली-चौराहे के नेता की तरह बोलते हुए उन्होंने हिंदुओं की आस्था के केंद्र राम, माता जानकी और विष्णु को शराब से जोड़ दिया। उनकी टिप्पणी सरासर हिंदुत्व का अपमान है। क्या यह सीधे तौर पर हिंदू आस्थाओं पर चोट नहीं है? बिना विचार किए कही गई अपनी इस टिप्पणी को लेकर नरेश अग्रवाल को तनिक भी अफसोस नहीं हुआ। उन्हें कतई यह नहीं लगा कि उन्होंने देश की बहुसंख्यक आबादी की भावनाओं को ठेस पहुँचाई है। भारतीय जनता पार्टी के सांसदों ने अग्रवाल के बयान पर आपत्ति जताते हुए उनसे माफी की माँग की तब उन्होंने साफ-तौर पर इनकार कर दिया। बाद में, बे-मन से कहा कि अगर उनकी टिप्पणी से किसी की भावना को ठेस पहुंची है, तो वह उसे वापस लेते हैं। स्पष्ट है कि उन्हें अपनी गलती के लिए कोई मलाल नहीं था।
भारत में जिस तरह से हिंदू धर्म और हिंदू समाज की आस्थाओं को लेकर अपमानजनक टीका-टिप्पणी कर दी जाती है, क्या अन्य पंथों के संदर्भ में इस प्रकार की टिप्पणी इतनी ही सहजता से की जा सकती है? क्या सपा नेता नरेश अग्रवाल मुस्लिम और ईसाई पंथ के पैगंबर-मसीहा के संबंध में ठसक के साथ ऐसी टिप्पणी कर सकते हैं? यह कैसी धर्मनिरपेक्ष कानून व्यवस्था है कि मुस्लिम पैगंबर पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाले कथित हिंदू नेता कमलेश तिवारी को जेल में डाल दिया जाता है, लेकिन वहीं हिंदुओं की आस्थाओं पर टिप्पणी करने वाले हर बार बच जाते हैं? यहाँ स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि भारत का संविधान किसी भी व्यक्ति को अभिव्यक्ति की इतनी आजादी नहीं देता कि वह किसी की आस्थाओं का मजाक बनाए।
हम हर कदम पर यही सीखते हैं कि हमें सभी धर्मों का समान आदर करना चाहिए। लेकिन, वोटबैंक की राजनीति करने वाले नेता हर कदम पर इस सबक को रौंद देते हैं। उनकी आँखों में वोटों का लालच होता है। राजनेताओं को समझना होगा कि यह आदत ठीक नहीं। इस प्रवृत्ति ने पहले ही देश का बहुत नुकसान कर दिया है। अब हिंदू समाज और अधिक अपमान सहन करने की स्थिति में नहीं है। अपने खिलाफ होने वाली अपमानजनक घटनाओं को वह याद रखता है और अवसर आने पर प्रतिकार भी करता है।
वर्ष 2014 के आम चुनाव के बाद जब कांग्रेस ने अपनी शर्मनाक पराजय के कारण जानने की कोशिश की, तब पार्टी के वरिष्ठ नेता एके एंटनी ने कहा था कि कांग्रेस की छवि 'हिंदू विरोधी पार्टी' की बन गई है। कांग्रेस को 'छद्म धर्मनिरपेक्षता' और अल्पसंख्यकों के प्रति अधिक झुकाव रखने वाली छवि से छुटकारा पाना होगा। इसका आशय यही है कि मुस्लिम वोटों की चाह में कांग्रेस ने 60 वर्ष तक तुष्टीकरण की राजनीति की। इस रास्ते पर चलते हुए कांग्रेस धीरे-धीरे एक तरह से मुस्लिम हितैषी कम, बल्कि हिंदू विरोधी पार्टी अधिक बन गई। वर्ष 2014 के बाद से कांग्रेस हिंदुओं से किए दुभात (दोहरे बर्ताव) का परिणाम भुगत रही है। बाकि राजनेताओं और राजनीतिक दलों को कांग्रेस की गति से सबक लेना चाहिए था, लेकिन ऐसा लगता है कि उनकी बुद्धि के पट अभी खुले नहीं है।
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