रविवार, 2 जुलाई 2017

मोदी राजनीति का दस्तावेज 'मोदी युग'

 यह  मानने में किसी को कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि हमारे समय में भारतीय राजनीति के केंद्र बिन्दु नरेन्द्र मोदी हैं। राजनीतिक विमर्श उनसे शुरू होकर उन पर ही खत्म हो रहा है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से लेकर बाकि राजनीतिक दलों की राजनीतिक रणनीति में नरेन्द्र मोदी प्राथमिक तत्व हैं। विधानसभा के चुनाव हों या फिर नगरीय निकायों के चुनाव, भाजपा मोदी नाम का दोहन करने की योजना बनाती है, जबकि दूसरी पार्टियां मोदी की काट तलाशती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थक जहाँ प्रत्येक सफलता को नरेन्द्र मोदी के प्रभाव और योजना से जोड़कर देखते हैं, वहीं मोदी आलोचक (विरोधी) प्रत्येक नकारात्मक घटना के पीछे मोदी को प्रमुख कारक मानते हैं। इसलिए जब राजनीतिक विश्लेषक संजय द्विवेदी भारतीय राजनीति के वर्तमान समय को 'मोदी युग' लिख रहे हैं, तब वह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। अपनी नई पुस्तक 'मोदी युग : संसदीय लोकतंत्र का नया अध्याय' में उन्होंने वर्तमान समय को उचित ही संज्ञा दी है। ध्यान कीजिए, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) और कांग्रेसनीत केंद्र सरकार को कब और कितना 'मनमोहन सरकार' कहा जाता था? उसे तो संप्रग के अंग्रेजी नाम 'यूनाइटेड प्रोगेसिव अलाइंस' के संक्षिप्त नाम 'यूपीए सरकार' से ही जाना जाता था। इसलिए जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और भाजपानीत सरकार को 'मोदी सरकार' कहा जा रहा है, तब कहाँ संदेह रह जाता है कि भारतीय राजनीति यह वक्त 'मोदीमय' है। हमें यह भी निसंकोच स्वीकार कर लेना चाहिए कि आने वाला समय नेहरू, इंदिरा और अटल युग की तरह मोदी युग को याद करेगा। यह समय भारतीय राजनीति की किताब के पन्नों पर हमेशा के लिए दर्ज हो रहा है। भारतीय राजनीति में इस समय को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। इसलिए 'मोदीयुग' पर आई राजनीतिक चिंतक संजय द्विवेदी की किताब महत्वपूर्ण है और उसका अध्ययन किया जाना चाहिए।
          लेखक संजय द्विवेदी की पुस्तक 'मोदी सरकार' के तीन साल के कार्यकाल का मूल्यांकन करती है। श्री द्विवेदी के पास राजनीतिक विश्लेषण का समृद्ध अनुभव है। पत्रकारिता में भी शीर्ष पदों पर रहकर उन्होंने राजनीति को बरसों बहुत करीब से देखा है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के पहले से नरेन्द्र मोदी की राजनीति पर लेखक की पैनी नजर रही है। नरेन्द्र मोदी की राजनीति पर केंद्रित उनकी एक पुस्तक वर्ष 2014 में आई थी- 'मोदीलाइव'। यह पुस्तक 2014 के अभूतपूर्व चुनाव का अहम दस्तावेज थी। जबकि 'मोदी युग' मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल और इन तीन साल में मोदी राजनीति का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। मोदीयुग नाम से ऐसा नहीं समझा जाना चाहिए कि यह पुस्तक मोदी सरकार का गुणगान करती है। ऐसा भ्रम होना स्वाभाविक है, क्योंकि इस समय मोदी की खुशामद में अनेक पुस्तकें आ रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी हमारे समय का ऐसा राजनीतिक व्यक्तित्व हैं कि उन पर अनेक लोग अपने-अपने अंदाज से लिख रहे हैं। मोदीयुग में मोदी की जय-जयकार होगी, कुछ लोगों को ऐसा भ्रम इसलिए भी हो सकता है क्योंकि लेखक संजय द्विवेदी की पहचान 'राष्ट्रीय विचारधारा के लेखक' के नाते भी है। किन्तु, मोदी राजनीति पर केंद्रित अपने आलेखों में लेखक ने अपने लेखकीय धर्म को बहुत जिम्मेदारी से निभाया है। उन्होंने मोदी सरकार की लोककल्याणकारी नीतियों का समर्थन भी किया है, तो अनेक स्थानों पर सवाल भी खड़े किए हैं। एक अच्छे लेखक की यही पहचान है कि जब वह राजनीति का ईमानदारी से विश्लेषण करता है, तब अपने वैचारिक आग्रह को एक तरफ रखकर चलता है। वैसे भी राष्ट्रवादी विचारकों के लिए अपने वैचारिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए राजनीति साधन नहीं है, जिस प्रकार कम्युनिस्टों के लिए राजनीति ही उनके वैचारिक लक्ष्यपूर्ति का साधन है। यहाँ वैचारिक धरातल पर खड़े रहकर राजनीति का निष्पक्ष मूल्यांकन संभव है। आवरण के बाद दो पृष्ठ पलटने के बाद ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले का चित्र देखकर भी यह भ्रम हो सकता है कि इस पुस्तक में भाजपा और मोदी की आलोचना संभव ही नहीं है। लेखक ने यह पुस्तक अपने मार्गदर्शक श्री होसबाले को समर्पित की है।  क्योंकि, किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए यह समझना मुश्किल है कि 'राष्ट्र सबसे पहले' की अवधारणा में भरोसा करने वाले व्यक्ति के लिए राजनीति अलग विषय है और विचार अलग। 
          मोदीयुग के पहले ही लेख में लेखक श्री द्विवेदी लिख देते हैं कि कैसे यह वक्त 'भारतीय राजनीति का मोदी समय' है। वह लिखते हैं- 'राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के लिए यह समय वास्तव में स्वर्णयुग है, जबकि पूर्वांचल के असम में सरकार बनाकर उसने कीर्तिमान रच दिया। हरियाणा भी इसकी एक मिसाल है, जहाँ पहली बार भाजपा की अकेले दम पर सरकार बनी है। मणिपुर जैसे राज्य में उसके विधायक चुने गए हैं। ऐसे कठिन राज्यों में जीत रही भाजपा अपने भौगोलिक विस्तार के रोज नए क्षितिज छू रही है। भाजपा और संघ परिवार को ये अवसर यूँ ही नहीं मिले हैं... नरेन्द्र मोदी दरअसल इस विजय के असली नायक और योद्धा हैं, उन्होंने मैदान पर उतर कर एक सेनापति की भाँति न सिर्फ नेतृत्व दिया बल्कि अपने बिखरे परिवार को एकजुट कर मैदान में झोंक दिया।' लेखक का स्पष्ट कहना है कि भाजपा के विस्तार और लगातार विजयी अभियान के पीछे नरेन्द्र मोदी की नीति और मेहनत का निवेश है। 
जैसा कि ऊपर लिखा गया है कि पुस्तक में मोदी सरकार का प्रशस्ति गान नहीं है। लेखन ने जहाँ जरूरी समझा, वहाँ नागफनी से चुभते सवाल खड़े किए हैं। नोटबंदी को उन्होंने 'कालेधन के खिलाफ आभासी' लड़ाई लिखा है। नोटबंदी के आगे सरकार के कैशलेस के विचार को खारिज करते हुए लेखक श्री द्विवेदी ने इस व्यवस्था को 'भारतीय मन और प्रकृति के खिलाफ' बताया है। कैशलेस को उन्होंने नोटबंदी से उपजा शिगूफा भी कहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबंध में अकसर यह कहा जाता है कि वह अभी तक चुनावी मोड से बाहर नहीं निकल सके हैं। जहाँ तक मेरी समझ है, इसका एक बड़ा कारण उनकी भाषण शैली है। बाकि यह भी सच है कि वह अब भी विपक्ष पर उसी तरह हमलावर हैं, जैसे कि सत्ता में आने से पहले थे। यहाँ लेखक प्रधानमंत्री मोदी से अपेक्षा व्यक्त करते हैं कि उन्हें शक्ति को सृजन में लगाना चाहिए। विपक्ष पर हल्लाबोल की मुद्रा से बाहर आना चाहिए। उनका कहना सही है- 'रची जा रही कृत्रिम लड़ाइयों में उलझकर भाजपा अपने कुछ समर्थकों को तो खुश रखने में कामयाब होगी, किंतु इतिहास बदलने और कुछ नया रचने की अपनी भूमिका से चूक जाएगी।' लेखक संजय द्विवेदी ने यह भी लिखा है कि मोदी सरकार को अत्यधिक डिजिटलाइजेशन से बचना चाहिए। बौद्धिक और राष्ट्रप्रेमी समाज बनाने की चुनौती पर काम करना चाहिए। इसके लिए निष्पक्ष और स्वतंत्र बुद्धिजीवियों से सरकार को संपर्क करना चाहिए। अपने एक लेख में उन्होंने 'एफडीआई' पर भाजपा सरकार की नीति पर भी चुभते हुए सवाल उठाए हैं। 
          मोदीयुग में लेखक संजय द्विवेदी एक ओर मोदी सरकार की नीतियों और व्यवहार की आलोचना करते हैं, तो वहीं उसे सचेत भी करते हैं। इसके साथ ही लेखक उन लोगों और संस्थाओं को भी उजागर करते हैं, जो दुर्भावनापूर्ण ढंग से मोदी सरकार को बदनाम करने का षड्यंत्र रचती हैं। खासकर, मोदी सरकार को एक समुदाय का दुश्मन सिद्ध करने के लिए देश में 'असहिष्णुता' का बनावटी वातावरण बनाने वाली बेईमान बौद्धिकता पर लेखक ने खुलकर चोट की है। इस असहिष्णु समय में, लिखिए जोर से लिखिए किसने रोका है भाई, आभासी सांप्रदायिकता के खतरे, कौन हैं जो मोदी को विफल करना चाहते हैं और कुछ ज्यादा हड़बड़ी में हैं मोदी के आलोचक सहित दूसरे अन्य लेखों में भी आप पढ़ पाएंगे कि कैसे कुछ ताकतें भ्रम उत्पन्न करके एक पूर्ण बहुमत की सरकार को बेकार के प्रश्नों में उलझाने की साजिश कर रही हैं। बहरहाल, पिछले तीन साल में भारत में एक अलग प्रकार की राजनीतिक हलचल देखने को मिली है। एक ओर भारतीय जनता पार्टी 'सबका साथ-सबका विकास' का दावा और वायदा करती हुई अपना विस्तार करती जा रही है, वहीं दूसरी ओर अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के संकट से जूझ रहे कुछेक राजनीतिक दल और विचारधाराएं सुनियोजित तरीके से ऐसे मुद्दों एवं घटनाओं को चर्चा के केंद्र में बनाकर रखे हुए हैं, जिनसे आम समाज का कोई भला नहीं होना है। हालाँकि यह भी सच है कि इन प्रयासों से उनका राजनीतिक एजेंडा भी पूरा होता नहीं दिखता है। इस समय की राजनीति को जानना और समझना बेहद जरूरी है। 'मोदीयुग' पुस्तक इस काम में हमारी भरपूर मदद कर सकती है। महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की टिप्पणियों को पढ़कर भी इस पुस्तक की गहराई को समझा जा सकता है। प्रख्यात लेखक विजय बहादुर सिंह, नवोदय टाइम्स के संपादक अकु श्रीवास्तव, लोकसभा टीवी के संपादक आशीष जोशी, ख्यातिनाम कथाकार इंदिरा दांगी, लेखिका एवं मीडिया शिक्षक डॉ. वर्तिका नंदा, ईटीवी उर्दू के वरिष्ठ संपादक तहसीन मुनव्वर और सुविख्यात एंकर सईद अंसारी ने भी पुस्तक के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए हैं। छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने लेखक संजय द्विवेदी की लेखनी की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। पुस्तक की प्रस्तावना मूल्यानुगत मीडिया के संपादक और वरिष्ठ मीडिया अध्यापक प्रोफेसर कमल दीक्षित ने लिखी है और प्रख्यात लेखक डॉ. सुशील त्रिवेदी ने भूमिका लिखी है। पुस्तक में 63 लेख शामिल किए गए हैं। यह पुस्तक का पहला संस्करण है, जो हिंदी पत्रकारिता दिवस 30 मई, 2017 के सुअवसर पर आया है। 
मोदीयुग : संसदीय लोकतंत्र का नया अध्याय
लेखक : संजय द्विवेदी
मूल्य : 200 रुपए
प्रकाशक : पहले पहल प्रकाशन, 25 ए, प्रेस कॉम्प्लेक्स, एमपी नगर, भोपाल (मध्यप्रदेश) - 462011
वितरक : मीडिया विमर्श, 428-रोहित नगर, फेज-1, भोपाल (मध्यप्रदेश)- 462039

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-07-2017) को रविकर वो बरसात सी, लगी दिखाने दम्भ; चर्चामंच 2655 पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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