संपूर्ण देश को बेसब्री से प्रतीक्षा थी कि जम्मू-कश्मीर से संबंधित अलगाववादी अनुच्छेद-370 पर सर्वोच्च न्यायालय क्या निर्णय सुनाता है। वैसे तो सब आश्वस्त थे कि न्यायालय में न्याय, सत्य और संविधान की विजय सुनिश्चित है। इसके बावजूद एक आशंका तो थी ही कि कहीं न्यायालय से प्रतिकूल निर्णय न आ जाए। यदि सर्वोच्च न्यायालय यह मान लेता कि अनुच्छेद-370 को हटाया नहीं जा सकता इसलिए उसे बहाल किया जाए, तब केंद्र सरकार के सामने बड़ी दुविधा खड़ी हो जाती। यह तो विश्वास है कि मोदी सरकार कोई न कोई मार्ग निकालती और इस अलगाववादी अनुच्छेद को पुन: स्थायी रूप से हटा देती। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी का अपनी स्थापना के समय से ही यह संकल्प है कि देश की एकता-अखंडता को प्रभावित करनेवाले इस अनुच्छेद को समाप्त करना आवश्यक है। इसके लिए भाजपा के नेताओं ने अपना बलिदान भी दिया है। भाजपा के वैचारिक प्रेरणास्रोत श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान भी जम्मू-कश्मीर में ‘एक निशान, एक विधान और एक प्रधान’ की माँग करते हुआ।
जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए भी अब अनुच्छेद 370 का मुद्दा अप्रासंगिक हो गया है। 5 अगस्त, 2019 के बाद से प्रदेश में तेजी से बदलाव आया है। वहाँ रोजगार के नये अवसर निर्मित हुए हैं। पर्यटन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। राज्य में रिकॉर्ड 1.88 करोड़ पर्यटक आए। आधारभूत संरचनाएं खड़ी हो रही हैं। पत्थरबाजी और हिंसा जैसी घटनाएं बीते दौर की बातें हो गई हैं। पथराव की घटनाएं, जो 2018 में 1,767 तक पहुंच गईं थीं, अब 2023 में पूरी तरह से बंद हो गई हैं। साफ है कि पत्थरबाजी की घटनाओं में 65 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई है। इसी तरह से 2018 में जम्मू कश्मीर में 199 युवा आतंकवादी बने थे, ये संख्या 2023 में घटकर 12 रह गई है। आतंकवादियों का नेटवर्क तबाह हो गया है।
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एक समय था जब श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराना संभव नहीं था, परंतु अब अनुच्छेद-370 हटाने के बाद से यह चौक तिरंगे की रोशनी में ही डूबा रहता है |
जम्मू-कश्मीर में बीते तीन दशकों की उथल-पुथल के बाद आम लोग सामान्य रूप से जीवन जी रहे हैं। अनुच्छेद-370 खत्म होने के बाद राज्य में शांति और विकास को लोग महसूस कर रहे हैं। ऐसे में जम्मू-कश्मीर का बहुसंख्यक नागरिक समुदाय भी अब फिर से अनुच्छेद-370 नहीं चाहता था। याद रहे कि अनुच्छेद-370 एवं 35ए के कारण से जम्मू-कश्मीर में हिन्दू समुदाय के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का शोषण किया जा रहा था। उन्हें बुनियादी एवं संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा था। मोदी सरकार ने इन प्रावधानों को निष्प्रभावी करके वंचित वर्ग के संवैधानिक अधिकारों का संरक्षण किया है।
#Article370 एक अस्थाई व्यवस्था थी - सर्वोच्च न्यायालय
— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) December 11, 2023
न्याय और संविधान की विजय। pic.twitter.com/kG8aB8s4zl
बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने अपने निर्णय में कहा है- “अनुच्छेद-370 एक अस्थायी प्रावधान था। संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 से स्पष्ट है कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है”। मुख्य न्यायमूर्ति ने यह स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार के हर निर्णय को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। ऐसा करने से अराजकता फैल जाएगी। अगर केंद्र के फैसले से किसी तरह की मुश्किल खड़ी हो रही हो, तभी इसे चुनौती दी जा सकती है।
सर्वोच्च न्यायालय के इस कथन को उन लोगों को ध्यान से सुनना चाहिए, जो केंद्र सरकार के प्रत्येक निर्णय में मीन-मेख निकालते हैं। जो केंद्र सरकार के राष्ट्रीय महत्व के निर्णयों पर भी अकारण ही हो-हल्ला मचाते हैं। देश में एक समूह ऐसा भी तैयार हो गया है, जो राष्ट्रीय महत्व के निर्णयों में अड़ंगा लगाने के लिए बात-बेबात न्यायालय की ओर दौड़ लगाता है। एक तरह से ये समूह न्यायालय का बहुमूल्य समय भी नष्ट करता है। मान लिया कि विपक्षी दल, सरकार के अच्छे निर्णयों का खुलकर समर्थन नहीं कर सकते, तब उन्हें कम से कम विरोध भी नहीं करना चाहिए। कुछ मामलों में चुप्पी साध लेना ही बेहतर होता है।
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से एक और बात स्पष्ट होती है कि मोदी सरकार ने अनुच्छेद-370 एवं 35ए को हटाने के लिए किसी भी प्रकार से संविधान की अनदेखी नहीं की है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्टतौर पर कहा है कि अनुच्छेद-370 को हटाने के पीछे केंद्र सरकार की नीयत भी शुभ थी और उसने सभी प्रकार से संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया है। कुलमिलाकर कहना होगा कि अब विवादित एवं अलगाववादी अनुच्छेद-370 एवं 35ए सदैव के लिए समाप्त हो गया है। मोदी सरकार की यह एक बड़ी उपलब्धि है। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से संपूर्ण देश में हर्ष का वातावरण है।
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