भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की पत्रिका 'योजना' के जुलाई-2018 के अंक में प्रकाशित |
- जगदीश उपासने एवं लोकेन्द्र सिंह
किसी भी राष्ट्र की पहचान उसके मानव संसाधन से बनती है। जबकि श्रेष्ठ मानव संसाधन शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करता है। एक सामान्य किंतु महत्वपूर्ण बात सभी जानते हैं कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति वहाँ के नागरिकों पर निर्भर करती है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त किए हुए नागरिक ही अपने देश की प्रगति में सहयोग कर सकते हैं। शिक्षित नागरिक ही अपने देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने में सक्षम होते हैं। स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा के महत्व को समझाते हुए यहाँ तक कहा है कि 'यदि शिक्षा से सम्पन्न राष्ट्र होता तो आज हम पराभूत मन:स्थिति में न आए होते।' भारत में स्वामी विवेकानंद ऐसे संन्यासी हुए जिन्होंने नागरिकों को शिक्षित बनाने पर सर्वाधिक जोर दिया। भारत जैसे विविधता सम्पन्न और विशाल देश में अब भी शिक्षा सब तक नहीं पहुँच सकी है। अनेक स्थानों पर शिक्षा के उपक्रम प्रारंभ तो हो गए किंतु उसमें गुणवत्ता नहीं है। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था में भारतीय दृष्टिकोण ही नदारद है। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने अपने पहले साल से ही शिक्षा में गुणात्मक एवं भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार सुधार का शुभ संकल्प ले लिया था। सरकार के संकल्प 'सबको शिक्षा-अच्छी शिक्षा' की पूर्ति के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय योजनाबद्ध तरीके से निरंतर कार्य कर रहा है। पिछले चार वर्ष में स्कूली शिक्षा के साथ-साथ उच्च शिक्षा में भी महत्वपूर्ण आवश्यक कदम सरकार ने उठाए हैं। शिक्षा के दोनों स्तर पर जितने भी प्रयास हुए हैं, सराहनीय हैं।
स्कूली शिक्षा में आ रहा सकारात्मक बदलाव :
केंद्र सरकार ने चार साल में शिक्षा की बुनियाद अर्थात स्कूली शिक्षा को मजबूत करने के लिए ठोस और नवाचारी कदम उठाए हैं। वहीं, पूर्व से चली आ रही व्यवस्था एवं नियमों में आवश्यक संशोधन भी किए। सरकार ने शिक्षा को सस्ती, सुलभ और जवाबदेह बनाने के साथ ही उसकी गुणवत्ता पर पूरा ध्यान दिया है। डिजिटल युग की ओर बढ़ते भारत में शिक्षा के डिजिटलीकरण पर भी सरकार ने ध्यान दिया है। केंद्र सरकार की प्रभावी नीतियों के चलते 6 से 13 वर्ष की उम्र के अधिक से अधिक बच्चे स्कूल जाने लगे हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक इस वर्ग में 20.78 करोड़ बच्चे हैं। प्राथमिक से आगे की पढ़ाई करने वाले बच्चों का औसत 90 प्रतिशत से अधिक हो गया है, जिसे सरकार सौ फीसदी तक पहुँचाने के लिए प्रयासरत है। कक्षाओं में छात्र-शिक्षक के अनुपात में भी सुधार आया है। वर्ष 2009-10 में जहाँ 32 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक था, वहीं अब यह घटकर 24 से भी कम छात्रों पर एक शिक्षक तक आ गया है। शिक्षक भी बच्चों के मानस को समझें और अपनी कक्षा को रुचिकर बनाएं, इसके लिए शिक्षकों को प्रोत्साहित एवं प्रशिक्षित किया जा रहा है। सरकार ने 12 वीं के बाद पढ़ा रहे अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण देने की भी पहल की है। मार्च 2019 तक स्कूलों में पढ़ा रहे करीब 15 लाख शिक्षकों को प्रशिक्षित कर दिया जाएगा।
समग्र शिक्षा अभियान के माध्यम से स्कूलों की हालत सुधारने के साथ ही उन्हें अधिक जवाबदेह बनाने का प्रयास सरकार कर रही है। अध्ययन-अध्यापन छात्रों और शिक्षकों के लिए बोझ न हो, बल्कि यह आनंद का विषय बने, इसके लिए विभिन्न स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। अभी तक चलन था कि शिक्षक तय समय में पाठ्यक्रम पूरा कर अपने दायित्व से इतिश्री कर लेते थे। पाठ्यक्रम को पूरा करना ही उनकी प्राथमिकता में था। किंतु, अब लर्निंग आउटकम पर अधिक जोर दिया जा रहा है। इसके लिए मॉड्यूल विकसित किया गया है। इसमें छात्रों को कब-क्या आना चाहिए, इस पर पूरा जोर दिया गया है। रटकर पास होने की प्रवृत्ति को खत्म करने की भी पहल की गई है। बच्चों में सोचने, समझने और कुछ नया करने की प्रवृत्ति को विकसित किया जा रहा है। अटल टिंकरिंग लैब इसी से जुड़ी एक पहल है। इसके अलावा ब्लैक बोर्ड की जगह कक्षाओं को स्मार्ट बोर्ड से लैस करने और प्रत्येक स्कूल में पुस्तकालय और खेलने की सुविधाओं को जुटाने की पहल की गई है।
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए शिक्षा का अधिकार कानून में संशोधन :
सरकार ने फरवरी 2017 में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए शिक्षा का अधिकार (आटीई) कानून के नियमों में संशोधन किया। इसमें पहली बार आठवीं कक्षा तक कक्षावार एवं विषयवार प्राप्त परिणामों को समाहित किया गया ताकि गुणवत्तायुक्त शिक्षा के महत्व पर जोर दिया जा सके। इसके तहत प्रारंभिक स्तर तक की प्रत्येक कक्षा के लिए भाषा (हिन्दी, अंग्रेजी एवं उर्दू), गणित, पर्यावरण अध्ययन, विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान में विषयों की जानकारी के बारे में एक बुनियादी स्तर तय किया गया है। इस स्तर तक प्रत्येक कक्षा के अंत में छात्रों को पहुंचना चाहिए।
इसके साथ ही अप्रशिक्षित प्राथमिक शिक्षकों को प्रशिक्षण देने के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 23 (2) में आवश्यक संशोधन कर प्रशिक्षण की अवधि को 31 मार्च 2019 तक बढ़ाया गया है। इससे शिक्षक एवं शिक्षण प्रक्रियाओं की समग्र गुणवत्ता में सुधार होगा।
राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) :
सरकार ने बच्चे के मूल्यांकन की व्यवस्था में भी बदलाव किया है। पूर्व में राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण पाठ्यपुस्तक सामग्री पर आधारित था, अब यह एक योग्यता आधारित मूल्यांकन है। राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण के माध्यम से ऐसा पहली बार हुआ है कि शिक्षकों के पास यह समझने के लिए एक उपकरण आया कि विभिन्न कक्षाओं में बच्चे को वास्तव में क्या सीखना चाहिए। बच्चों को क्रियाकलापों के जरिये कैसे पढ़ाया जा सकता है और कैसे यह मापा एवं सुनिश्चित किया गया।
स्वच्छ विद्यालय के तहत सबसे साफ-सुथरे विद्यालयों को पुरस्कार :
सरकारी स्कूलों में साफ-सफाई एवं स्वच्छता कार्यों में उत्कृष्टता को पहचानने और उसे प्रेरित करने के लिए स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार की शुरुआत की गई है। पिछले वर्ष अर्थात् 2017 में इस पुरस्कार के लिए कुल 2 लाख 68 हजार 402 स्कूलों ने वेब पोर्टल/मोबाइल ऐप के जरिये आवेदन किया था। राष्ट्रीय स्तर पर 643 स्कूलों का मूल्यांकन किया गया और 1 सितंबर 2017 को 172 स्कूलों को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए गए, जिसमें शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय शामिल थे।
अनेक स्कूलों में बालक-बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं होने के कारण भी अभिभावक अपनी बच्चियों को शिक्षा के लिए चाहकर भी स्कूल नहीं भेजते थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले से अपने पहले संबोधन में 15 अगस्त 2014 को प्रत्येक स्कूल में बालक-बालिकाओं के लिए अलग से एक साल के अंदर शौचालय बनाने का वादा किया था। प्रधानमंत्री के इस संकल्प को पूरा कर लिया गया है।
मिड-डे मील में गड़बड़ियों को किया समाप्त, भोजन को बनाया अधिक पौष्टिक :
मध्यान्ह भोजन योजना में भारी गड़बड़ी की जा रही थी। यह एक तरह से भ्रष्टचार का जरिया बन गई थी। मोदी सरकार ने मिड डे मील में होने वाली गड़बडिय़ों को ई-पोर्टल और आधार नबंर की मदद से बहुत हद तक कम कर दिया है। इसके लिए बजट से होने वाले धन आवंटन को वास्तविकता पर आधारित करने का प्रयास किया गया है। मंत्रालय के अनुसार आधार के चलते फर्जी नामों कमी आई है। शुरुआती आंकड़ों के अनुसार झारखंड और आंध्रप्रदेश से ऐसे 4 लाख फर्जी नाम हटा दिए गए हैं। इससे सरकारी खजाने का बोझ बहुत कम हुआ है। मध्यान्ह भोजन योजना की रियल टाइम निगरानी के लिए आंकड़े जुटाने की एक स्वचालित प्रणाली स्थापित की गई है। इसके साथ ही मिड-डे मील में दिए जाने वाले भोजन की पौष्टिकता पर भी सरकार ने ध्यान दिया है।
विज्ञान एवं अंकगणित का एक पाठ्यक्रम :
बदलते समय में विज्ञान और गणित की प्रमुख भूमिका को देखते हुए सरकार ने इसमें अपेक्षित बदलाव किया है। अब सभी राज्यों के बोर्ड में एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम पर आधारित शिक्षा ही दी जायेगी। इससे शिक्षा में समानता बढ़ेगी।
स्टूडेंट्स डेटा मैनेजमेंटट एंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम का सृजन (SDMIS) :
देश में सभी छात्रों के आधार विवरण के साथ एक डेटाबेस तैयार किया जा रहा है जो ड्रॉप आउट यानी पढ़ाई बीच में ही छोडऩे पर लगाम लगाने, नकली नामांकन पर रोक लगाने, नियोजन प्रकिया में सुधार लाने और संसाधनों की कुशल उपयोगिता सुनिश्चित करने में मदद करेगा। अब तक करीब 21 करोड़ छात्रों को इसके दायरे में लाया जा चुका है।
राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय (NDL) :
मानव संसाधन विकास मंत्रालय देश के शैक्षणिक संस्थानों के बीच उपलब्ध मौजूदा ई-सामग्री और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के जरिये शिक्षा का राष्ट्रीय मिशन के तहत राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय की स्थापना की है। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने 19 जनू, 2018 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय पठन-पाठन दिवस के अवसर पर भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी का लोकार्पण किया। एनडीएल का लक्ष्य देश के सभी नागरिकों को डिजिटल शिक्षण संसाधन उपलब्ध कराना है तथा ज्ञान प्राप्ति के लिए उन्हें सशक्त, प्रेरित और प्रोत्साहित करना है। इस डिजिटल पुस्तकालय में पाठ्य पुस्तक, निबंध, वीडियो-आडियो पुस्तकें, व्याख्यान, उपन्यास तथा अन्य प्रकार की शिक्षण सामग्री शामिल है। कोई भी व्यक्ति, किसी भी समय और कहीं से भी राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी का उपयोग कर सकता है। यह सेवा नि:शुल्क है और 'पढ़े भारत, बढ़े भारत' के संदर्भ में सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। इस पुस्तकालय में 200 भाषाओं में 160 स्रोतों की 1.7 करोड़ अध्ययन सामग्री उपलब्ध है। लाइब्रेरी के अंतर्गत 30 लाख उपयोगकर्ताओं का पंजीयन हुआ है। सरकार का लक्ष्य प्रति वर्ष इस संख्या में 10 गुना वृद्धि का है। डिजिटल पुस्तकालय वेबसाइट के अलावा मोबाइल एप पर भी उपलब्ध है।
स्कूली शिक्षा में डिजिटलीकरण :
1. आधार : 30 नवंबर 2016 तक 5 से 18 वर्ष की उम्र के 24 करोड़ 49 लाख 20 हजार 190 बच्चों को आधार से जोड़ दिया गया था, जो उनकी कुल जनसंख्या का लगभग 70 प्रतिशत है।
2. ई-संपर्क : 50 लाख 07 हजार 729 शिक्षकों से संबंधित आंकड़ों को ई-संपर्क पोर्टल से जोड़ दिया गया है।
3. जीआईएस (Geographic information system) मैपिंग : स्कूलों को ग्राफिक इंफोर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) से जोड़ दिया गया है। इससे किसी भी बस्ती से एक उचित दूरी पर स्कूलों की कमी को पूरा करने में आसानी हुई है। इस प्रकार देश के सभी स्कूलों के आंकड़े और जानकारी U-DISE (Unified District Information System for Education) पर उपलब्ध है।
4. ई-पाठशाला : दोषरहित अध्ययन सामाग्री को उपलब्ध कराने के लिए ई-पाठशाला शुरू की गई है, जहां सभी पुस्तकें और अन्य अध्ययन सामाग्री उपलब्ध हैं।
5. शाला दर्पण : स्कूलों के कारगर प्रशासन व्यवस्था के लिए शाला दर्पण के तहत उन्हें स्कूल मैनेजमेंट सिस्टम से जोड़ा गया है। 5 जून 2015 को 1099 केंद्रीय विद्यालयों से इसकी शुरुआत हुई।
6. शाला सिद्धि योजना : स्कूलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए 7 नवंबर 2015 से शाला सिद्धि योजना शुरू की गई है। इस पोर्टल पर सभी स्कूल निर्धारित सात मापदंडों के आधार पर स्वंय का मूल्याकंन करते हैं, जो सभी के लिए उपलब्ध होता है।
7. शगुन : केंद्र सरकार प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे नवाचारों और प्रगति से छात्रों और शिक्षकों को जोडऩे की कोशिशों में जुटी हुई है। इस को देखते हुए सर्व शिक्षा अभियान के लिए एक समर्पित वेब पोर्टल 'शगुन' का शुभारंभ किया गया है।
उच्च शिक्षा का भी हो रहा है विस्तार :
बीते चार वर्ष में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी सरकार ने महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं। सरकार ने जहाँ गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा के विस्तार के लिए देशभर में 100 से अधिक केंद्रीय विद्यालय और 62 नये नवोदय विद्यालय खोले हैं। वहीं, उच्च शिक्षा के विस्तार के लिए देशभर में 7 नये आईआईएम, 6 नये आईआईटी खोलने के साथ ही एक नया केंद्रीय विश्वविद्यालय, एक आईआईटीटी और एक एनआईटी की स्थापना की है। उच्च शिक्षा में बदलाव के लिए रचनात्मक प्रयोग एवं पहल प्रारंभ की हैं। कॉलेज में कक्षा में अध्यापन पर अधिक जोर दिया है तो विश्वविद्यालय में अध्यापन के साथ शोध को अधिक प्रोत्साहन दिया है। कॉलेज में अध्यापकों के लिए अब एपीआई व्यवस्था समाप्त कर दी गई है, ताकि शिक्षक एपीआई स्कोर की चिंता छोड़ अध्यापन पर ध्यान दे सकें। वहीं, कॉलेज में अब प्राध्यापकों की नियुक्ति का रास्ता भी मानव संसाधन मंत्रालय ने खोल दिया है। कॉलेज में नये नियुक्त होने वाले अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण को अनिवार्य किया है, ताकि वह उच्च शिक्षा को अधिक सुगम और प्रभावी ढंग से विद्यार्थियों तक पहुँचाने में सक्षम हो सकें। वहीं, विश्वविद्यालयों में भारत सरकार शोध को बढ़ावा दे रही है। एक हजार करोड़ का एक फंड बना है। हेफा जैसे वित्तीय सहायता देने वाली एजेंसी के जरिए संस्थानों को अब शोध के लिए भरपूर पैसा दिया जा रहा है। सरकार 20 संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने की योजना पर काम कर रही है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति :
शिक्षा नीति में बदलाव की माँग लंबे समय से की जा रही है, किंतु अब तक इस दिशा में कोई पहल प्रारंभ नहीं की गई थी। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के प्रारंभ से ही नई शिक्षा नीति के लिए ठोस प्रयास प्रारंभ कर दिए थे। नई शिक्षा नीति देश के अनुकूल हो, इसके लिए पूरे देश में शिक्षाविदों एवं सामान्य नागरिकों के बीच व्यापक विमर्श चलाया गया। ऑनलाइन राय माँगी गई और बड़ी संख्या में सुझाव प्राप्त किए गए। बड़े पैमाने पर विशेषज्ञों, अध्यापकों, नीति निर्माताओं, सांसद और विधायकों से प्राप्त सुझावों पर सरकार अंतिम रूप से विचार करने के बाद जल्द ही देश के सामने एक नई शिक्षा नीति लेकर आएगी।
राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (रूसा) :
यह मानव संसाधन विकास मंत्रालय की एक महत्वाकांक्षी योजना है जिसके तहत राज्यों के उच्चतर शिक्षण संस्थाओं की गुणवत्ता के स्तर को बढ़ाने की कोशिश हो रही है। रूसा के मानदंडों को पूरा करने पर राज्य की शिक्षण संस्थाओं को विशेष वित्तीय सुविधा और योजनाएं दी जाती हैं। इस अभियान की सभी जानकारियों को ऑनलाइन या ऐप के माध्यम से सभी स्तर पर निगरानी रखी जा रही है।
राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (National Assessment and Accreditation Council) :
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत यह सर्वोच्च संस्था है जो देश के महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों का मूल्याकंन करती है। पहले मूल्याकंन के लिए राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (नैक) अपनी टीम भेजता था, जो मौके पर मानदंडों को परखते थे। इसमें भ्रष्टाचार का बोलबाल था। इसको खत्म करके मोदी सरकार ने स्व-मूल्यांकन की प्रक्रिया को ऑनलाइन कर दिया है।
राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework) :
देश की उच्च शिक्षण संस्थाओं में गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए 2016 से इस रैंकिग सिस्टम को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया है। इस रैकिंग सिस्टम में देश के सभी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता के निर्धारित मानदंडों के आधार पर रैंकिग की जाती है। 'भारत रैंकिंग 2017' में कुल 2,995 संस्थानों ने भाग लिया। इसके अंतर्गत 232 विश्वविद्यालय, 1024 प्रौद्योगिकी संस्थान, 546 प्रबंधन संस्थान, 318 फार्मेसी संस्थान तथा 637 सामान्य स्नातक महाविद्यालय शामिल हैं। सरकार के इस प्रयास ने देश के महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में एक स्वस्थ्य प्रतिस्पर्धा भी प्रारंभ हुई है। सभी शिक्षा संस्थान अपनी गुणवत्ता सुधार कर शीर्ष रैंकिंग में आने के लिए प्रयासरत हो गए हैं।
ग्लोबल इनिशियेटिव ऑफ एकेडमिक नेटवर्क्स (Global Initiative for Academic Network) :
ग्लोबल इनिशियेटिव ऑफ एकेडमिक नेटवर्क्स को 'ज्ञान' ( GIAN ) कहा गया है। इस योजना का शुभारंभ आईआईटी गांधीनगर, गुजरात में 30 नवम्बर 2015 को किया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से देश में उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है। देश-विदेश के श्रेष्ठ शिक्षाविदों का एक प्रतिभा समूह बनाने का प्रयास है, जिसके माध्यम से उच्च शिक्षा में नवाचारी पाठ्यक्रम प्रारंभ किए जा सकें। ज्ञान के अंतर्गत अब तक 1649 पाठ्यक्रम प्रारंभ किए गए हैं। ज्ञान के माध्यम से विदेश के उच्च शिक्षा संस्थानों के विषय विशेषज्ञों के अनुभव का लाभ भारत के उच्च शिक्षा संस्थाओं को प्राप्त हो रहा है।
उन्नत भारत अभियान :
मानव संसाधन विकास मंत्रालय, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्रालय ने मिलकर इस योजना की शुरुआत की है। इस योजना का शुभारंभ 12 जनवरी 2017 को हुआ। इसके अंतर्गत उच्चतर शिक्षण संस्थाएं चुने हुए नगर निकायों और गांवों के समूहों को विकास कार्यो की योजना बनाने और लागू करने में सहयोग देंगी। प्रथम चरण के लिए आईआईटी दिल्ली संयोजक संस्था के रूप में काम कर रहा है।
हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी (HEFA) :
भारत की उच्च शिक्षण संस्थाओं में अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशालाओं एवं संसाधनों को उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने एक सार्थक कदम उठाया है। इसके लिए 12 सितंबर 2016 को केंद्रीय कैबिनट ने हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी (हेफा) की स्थापना को मंजूरी दी। यह एजेंसी उच्च शिक्षण संस्थाओं में अन्तराष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशालाओं एवं अन्य साधनों को उपलब्ध कराने के लिए धन की व्यवस्था करेगी। केनरा बैंक को सरकार ने इसका प्रमोटर बनाया है। इसमें सरकार की 1000 करोड़ रुपये कि हिस्सेदारी है। सभी उच्च शिक्षण संस्थान इससे लोन लेने के लिए योग्य होंगे। सरकार लोन के ब्याज का भार उठाएगी, जबकि शिक्षण संस्थाओं को केवल मूलधन चुकता करना होगा।
नेशनल एजुकेशनल डिपॉजिटरी (NAD) :
सरकार ने डिग्रियों के फर्जीवाडे के रोकने और उन्हें ऑनलाइन उपलब्ध कराने के लिए नेशनल एजुकेशनल डिपॉजिटरी (एनएडी) की स्थापना की है। जहां शिक्षा से जुड़े सभी दस्तावेज, जैसे अंकतालिका, प्रमाणपत्र डिजिटल रूप से मौजूद होंगे। इनसे कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकेगा। एनएडी पर उपलब्ध दस्तावेजों को अब ऑनलाइन ही सत्यापित किया जा सकेगा। डिजिलॉकर भी एक नवाचारी पहल है।
अनुसंधान पार्कों को मंजूरी :
आईआईटी दिल्ली, आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी कानपुर, आईआईटी हैदराबाद और आईआईएससी बेंगलूरू में से प्रत्येक में 75 करोड़ रुपये की लागत से पांच नये अनुसंधान पार्क स्थापित करने के प्रस्ताव को केंद्र सरकार से मंजूरी दे दी गई है। आईआईटी, मुंबई और आईआईटी खडग़पुर में से प्रत्येक में 100 करोड़ रुपये की लागत से पहले से ही स्वीकृत अनुसंधान पार्कों को जारी रखने की मंजूरी भी दी गई है। आईआईटी गांधीनगर में कुल 90 करोड़ रुपये की लागत से अनुसंधान पार्क स्थापित करने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्त पोषण किया जा रहा है।
स्मार्ट इंडिया हैकथॉन 2017 :
पहली बार भारत ने 42,000 से ज्यादा इंजीनियरिंग छात्रों की भागीदारी के साथ स्मार्ट इंडिया हैकथॉन 2017 का आयोजन किया था, जिसमें 30 मंत्रालयों के 600 डिजिटल समस्याओं का समाधान किया गया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस पहल में प्रतिभागी तकनीकी समस्याओं की पहचान कर उनके समाधान की कोशिश करते हैं। द्वितीय स्मार्ट इंडिया हैकथॉन 2018 की घोषणा की गई है।
कौशल विकास योजना :
भारत युवाओं का देश है। युवाओं के हाथों में हुनर देकर उन्हें रोजगार के लिए दक्ष बनाना एक बड़ी चुनौती है। मोदी सरकार ने इस चुनौती को स्वीकार किया है और युवाओं को विभिन्न विद्याओं में कौशल देने की योजना बनाई है। युवाओं के कौशल प्रशिक्षण के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) के अंतर्गत संचालित पाठ्यक्रमों में सुधार, बेहतर शिक्षण और प्रशिक्षित शिक्षकों पर विशेष जोर दिया गया है। प्रशिक्षण में अन्य पहलुओं के साथ व्यवहार कुशलता और व्यवहार में परिवर्तन भी शामिल है। पीएमकेवीवाई के अंतर्गत प्रारंभिक चरण में देश के 24 लाख युवाओं को विभिन्न उद्योगों से संबंधित स्किल ट्रेनिंग देना सरकार का लक्ष्य है। वहीं, वर्ष 2022 तक 50 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए एक प्रक्रिया के तहत देशभर में प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं।
इम्पैक्टिंग रिसर्च इनोवेशन एण्ड टेक्नोलॉजी (इंप्रिंट) इंडिया :
इंप्रिंट इंडिया कार्यक्रम आईआईटी और आईआईएससी की संयुक्त पहल है, जो इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण चुनौतियों के समाधान का खाका तैयार करती है। देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध एवं अनुसंधान कार्यों का रोड मैप तैयार करने और इसे जनता से जोडऩे के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 5 नवम्बर 2015 को इंप्रिंट इंडिया योजना का शुभारम्भ किया था। 'इम्प्रिंट इंडिया' का उद्देश्य समाज में नवाचार के लिए आवश्यक क्षेत्रों की पहचान करना, पहचाने गए क्षेत्रों में प्रत्यक्ष वैज्ञानिक अनुसंधान और इन क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए उचित कोष की आपूर्ति सुनिश्चित करना। इसके साथ ही अनुसंधानों के परिणामों का शहरी और ग्रामीण क्षेत्र पर प्रभाव का आकलन करना भी उसके उद्देश्यों का एक प्रमुख हिस्सा है।
उच्च शिक्षा में अन्य नवाचारी पहल :
मोदी सरकार ने अपने चार वर्ष के कार्यकाल में उच्च शिक्षा में प्रशिक्षण, अनुसंधान और डिजिटलाइजेशन पर महत्वपूर्ण कार्य किया है। इस संबंध में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने डिजिटल शैक्षिक सामग्री तैयार कर उसे ऑनलाइन उपलब्ध कराने पर जोर दिया है। डिजिटल शिक्षा के प्लेटफार्म उपलब्ध कराए हैं, जिनमें स्वयं (swayam), स्वयं प्रभा (swayamprabha), ई-यंत्र, राष्ट्रीय डिजिटल पुस्तकालय (एनडीएल), वाई-फाई सुविधा (400 विश्वविद्यालय, 1000 कॉलेज लगभग) प्रमुख हैं। हैकथान भी इसी प्रकार की एक प्रमुख नवाचारी पहल है। अनुसंधान को बढ़ावा देने के अनेक प्रयासों के साथ प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप भी एक उल्लेखनीय योजना है। उद्योग-शिक्षा साझेदारी की प्रथम पहल के रूप में उच्चतर आविष्कार योजना को प्रारंभ किया गया है। तकनीकी शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के लिए टैक्विप कार्यक्रम शुरू किया गया है।
मोदी सरकार के चार वर्ष के कार्यकाल में शिक्षा के क्षेत्र में यह प्रगति न केवल संतोषजनक है, बल्कि आशाएं भी जगाती है। एक भरोसा यह भी जागा है कि भारत के शिक्षा संस्थान नये ढंग से समय की आवश्यकता के अनुसार तैयार हो रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में हुए प्रयोगों में एक बात विशेष है कि यह सब समयानुकूल हैं, युवाओं को रोजगार सृजन करने में दक्ष बनाने में समर्थ हैं और भारतीय मूल्यों के समावेश के साथ हैं। इसलिए यह विश्वास बढ़ जाता है कि भारत के शिक्षा संस्थानों से निकलने वाले विद्यार्थी अधिक जिम्मेदारी के साथ देश को नये फलक पर पहुँचाने में योगदान करेंगे।
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