कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने अंतत: अपने मन की इच्छा देश की जनता के सामने खुलकर प्रकट कर दी है। कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने साफ कहा कि यदि 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस बड़ी पार्टी बन कर सामने आती है, तो वह प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे। राहुल गांधी की इस स्वाकारोक्ति में कुछ भी आश्चर्य जैसा नहीं है। सब जानते हैं कि राहुल गांधी भारत का प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं। नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य होने के नाते उनकी स्वाभाविक सोच यही है कि भारत का प्रधानमंत्री बनना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के आपत्तिजनक बयान 'देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है' की तर्ज पर राहुल गांधी के मन में यह बात गहरे बैठी है कि 'कांग्रेस की ओर से संगठन और सत्ता के शीर्ष पद पर पहला हक उनके परिवार का है।'
कांग्रेस में राहुल गांधी की इस सोच पर प्रश्न उठाने वाला कद्दावर नेता भी नहीं है। इतिहास साक्षी है कि जिसने भी नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य के मुकाबले अपनी दावेदारी प्रस्तुत की, उसे या तो हासिए पर धकेल दिया गया या फिर पार्टी से ही बेदखल कर दिया गया है। इन्हीं परिस्थितियों के कारण कांग्रेस पर वंशवाद के आरोप लगते हैं और नेहरू-गांधी प्राइवेट लिमिटेड होने का ठप्पा भी लगता है। यहाँ यह भी विचार करना होगा कि यदि राहुल गांधी स्वयं भी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा व्यक्त नहीं करते तो कांग्रेस के वरिष्ठ से लेकर नवागत कनिष्ठ नेता भी युवराज की जय-जयकार करते। यह इसलिए कहना कठिन नहीं है, क्योंकि 'प्राइवेट लिमिटेड' पार्टियों को छोड़कर किसी भी राजनीतिक दल में संभव नहीं है कि जिसके नेतृत्व में लगातार पार्टी का सूपड़ा साफ हो रहा है, उसे दरकिनार करने की जगह पदोन्नत कर माथे पर बैठा लिया जाए। कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में एक के बाद एक कई चुनावों में शर्मनाक पराजयों का सामना किया है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री बनने की लालसा व्यक्त कर पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को संकेत कर दिया है कि वह प्रधानमंत्री पद का सपना न देखें, कांग्रेस में यह अधिकार सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार को है। राहुल गांधी 2019 में प्रधानमंत्री पद के करीब जाएंगे या फिर उससे और अधिक दूर, यह तो भविष्य ही बताएगा। किंतु, फिलहाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राहुल गांधी के इस बयान को आड़े हाथ लिया है। कर्नाटक के चुनाव प्रचार के दौरान वह न केवल राज्य के विधानसभी चुनाव बल्कि 2019 के चुनाव को ध्यान में रखकर देश की जनता को 'राहुल गांधी की इच्छा' पर विमर्श करेंगे।
भारत के प्रधानमंत्री पद पर देश की जनता शक्तिशाली, दृढ़ इच्छाशक्ति और लोकप्रिय नेतृत्व को देखना चाहती है। वह ऐसे नेता को पसंद करती है, जिसके कारण देश-दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़े। राहुल गांधी में यह खूबियां दिखाई नहीं देती हैं। यही कारण है कि भाजपा के विरुद्ध एकजुट होने का प्रयास कर रहा तीसरा मोर्चा भी राहुल गांधी को अपना नेता बनाने को तैयार नहीं है। राहुल गांधी की इच्छा प्रदर्शन से अब तीसरा मोर्चा अस्तित्व में आएगा, इसकी संभावना भी कम हुई हैं।
बहरहाल, राहुल गांधी को समझना चाहिए कि भारत के प्रधानमंत्री पद के लिए अभी उन्हें बहुत परिपक्वता चाहिए। वह जिस तरह से महत्वपूर्ण अवसर पर गलत पक्ष के साथ खड़े होने का चुनाव करते हैं, उसे जनता ने कभी स्वीकार्यता नहीं दी है। देश में जब उनकी जरूरत महसूस होती है, तब वह न जाने कौन दिशा में चले जाते हैं? देश में जब बड़े नेताओं से परिपक्व और समाधान देने वाले वक्तव्य की जरूरत होती है, तब वह अपने राजनीतिक लाभ के लिए झूठ बोलते नजर आते हैं। राहुल गांधी अभी भारत की युवा आँखों में भरोसेमंद सपना दिखाने में सक्षम नहीं है। कांग्र्रेस का नेतृत्व भले ही उन्हें विरासत में मिल गया है, लेकिन देश का नेतृत्व संभालने के लिए उन्हें स्वयं को सिद्ध करना होगा। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं को सिद्ध किया। प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह से लगातार पूरे देश में लोगों का भरोसा जीत रहे हैं, उसके मुकाबले 2019 में राहुल गांधी को अपने लिए कोई उम्मीद नहीं पालनी चाहिए।
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