प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने बहुचर्चित रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में हर बार समाजहित और देशहित की बातों को उठाते रहे हैं। संभवत: वह समाज को भी राष्ट्र निर्माण की भूमिका में सक्रिय करना चाहते हैं। क्योंकि, उनका प्रशिक्षण उस वैचारिक पृष्ठभूमि में हुआ है, जिसका मानना है सार्थक बदलाव समाज को जागरूक और सक्रिय करके ही आ सकते हैं। स्थायी बदलाव के लिए समाज को उसकी भूमिका का भान करना और उस भूमिका में उसे सक्रिय करना आवश्यक है। सरकार के बूते समाज में स्थायी बदलाव संभव नहीं है। सरकार सुविधा प्रदान करने में सक्षम है, लेकिन राष्ट्र निर्माण की वास्तविक शक्ति तो नागरिकों के हाथ में निहित है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री 'मन की बात' में बार-बार समाज को उसकी जिम्मेदारियों का ध्यान दिलाते हैं और नागरिकों से आग्रह करते हैं कि वह भी सरकार के साथ कदमताल करें।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 30वें 'मन की बात' कार्यक्रम में अनेक ऐसे ही आग्रह किए, जो समाज और देशहित में हैं। नये भारत के निर्माण का सपना उन्होंने समाज को दिखाया है और यह भी बताया है कि यह सपना समाज के बूते ही साकार हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना उचित ही है कि - 'नया भारत न सरकारी कार्यक्रम है और न ही किसी राजनीतिक दल का घोषणापत्र। यह 125 करोड़ भारतीयों का आह्वान है। नये भारत का सपना सच हो सकता है। जरूरी नहीं कि हर चीज सरकारी पैसे से होती है। अगर हर नागरिक संकल्प करे कि अपनी जिम्मेदारी निभाऊंगा, एक दिन पेट्रोल-डीजल का इस्तेमाल नहीं करूंगा। इन छोटी-छोटी बातों से न्यू इंडिया बनेगा।' जिस प्रकार प्रधानमंत्री के आह्वान पर लाखों लोगों ने एलपीजी पर सबसिडी छोड़कर गरीब परिवारों में एलपीजी पहुँचाने में सरकार की मदद की है, वस्तुत समाजकार्य किया है। उसी प्रकार नागरिक यदि एक दिन पेट्रोल-डीजल का उपयोग न करें, तब देश का बहुत पैसा बचाया जा सकता है। साथ ही, भविष्य के लिए पेट्रोल-डीजल बचाया जा सकता है। पर्यावरण की सुरक्षा में भी कुछ योगदान संभव है।
बहरहाल, उन्होंने 'खाने की बर्बादी' से जुड़ा एक और बड़ा सामाजिक मुद्दा जनता के सामने चर्चा के लिए प्रस्तुत किया है। उन्होंने ने देश के लोगों से खाने की बर्बादी रोकने की अपील की। यकीनन हमें विचार करना चाहिए कि हम कितना खाना बर्बाद करते हैं? क्या हम खाने की बर्बादी को रोक नहीं सकते? हमारे यहाँ घर, होटल, विवाह एवं सामाजिक कार्यक्रमों में बड़ी मात्रा में जूठन छोड़ा जाता है। अन्न की यह बर्बादी, अन्न देवता का अपमान है। उन हजारों-लाखों लोगों का अपमान है, जो भूख से मर रहे हैं। हमारी संस्कृति इस प्रकार भोजन की बर्बादी की अनुमति नहीं देती है। इसलिए इस विषय में समाज को सोचना चाहिए और खाने की बर्बादी को रोकने के लिए घर से प्रयास शुरू करना चाहिए। नये भारत के निर्माण के लिए प्रधानमंत्री के उक्त आह्वान के साथ सबको खड़ा होना चाहिए, भले ही उनसे और उनकी पार्टी से कुछ लोगों की राजनीतिक और वैचारिक असहमति होगी।
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