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शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

तीर्थाटन का केंद्र बन रहा है मध्यप्रदेश

धर्म और अध्यात्म भारत की आत्मा है। यह धर्म ही है, जो भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एकात्मता के सूत्र में बांधता है। भारत की सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करते हैं तो हमें साफ दिखायी देता है कि धार्मिक पर्यटन हमारी परंपरा में रचा-बसा है। तीर्थाटन के लिए हमारे पुरखों ने पैदल-पैदल ही इस देश को नापा है। भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व समुदाय को भी आकर्षित करती है। हम अनेक धार्मिक स्थलों पर भारतीयता के रंग में रंगे विदेशी सैलानियों को देखते ही हैं। दरअसल, भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों का देश कहा जाता है। भारत का ह्रदय ‘मध्यप्रदेश’ अपनी नैसर्गिक सुन्दरता, आध्यात्मिक ऊर्जा और समृद्ध विरासत के चलते सदियों से यात्रियों को आकर्षित करता रहा है। आत्मा को सुख देनेवाली प्रकृति, गौरव की अनुभूति करानेवाली धरोहर, रोमांच बढ़ानेवाला वन्य जीवन और विश्वास जगानेवाला अध्यात्म, इन सबका मेल मध्यप्रदेश को भारत के अन्य राज्यों से अलग पहचान देता है। मध्यप्रदेश में धर्म-अध्यात्म से जुड़े ऐसे अनेक स्थान हैं, जहाँ देशभर से लोग खिंचे चले आते हैं।

देखें: मध्यप्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थल


मध्यप्रदेश में यहाँ-वहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और योगेश्वर श्रीकृष्ण के चरणों की रजधूलि बिखरी पड़ी हैं। उज्जैन, जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने सांदीपनी ऋषि के गुरुकुल में ज्ञानार्जन किया। चित्रकूट, जहाँ प्रभु श्रीराम माता सीता और भ्राता लखन सहित वनवास में रहे। मध्यप्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग- महाकाल और ओंकारेश्वर हैं। ऐसा माना जाता है कि इक्ष्वाक वंश के राजा मान्धाता ने तपस्या कर भगवान शंकर को प्रसन्न किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ही महादेव ने औंकार रूप में अपना निवास ओंकारेश्वर में बनाया है। ऐसी मान्यता है कि ओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य ने नहीं बनाया, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है। इसके चारों ओर हमेशा जल भरा रहता है। ओंकारेश्वर दीक्षा भूमि भी है, जहाँ आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने आचार्य गोविन्द भगवत्पाद से दीक्षा ली। अध्यात्म में रुचि रखनेवालों को मध्यप्रदेश प्राचीनकाल से अपने पास बुलाता रहा है। जब आदिगुरु शंकराचार्य की उम्र केवल 8 वर्ष थी, तब गुरु की खोज उन्हें ओंकारेश्वर तक खींच लायी। केरल के कालाड़ी से लगभग 1600 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए वे लगभग 1200 वर्ष पहले ओंकारेश्वर आए थे। मध्यप्रदेश की सरकार ने संतों के मार्गदर्शन में ओंकारेश्वर के मान्धाता पर्वत पर आदि शंकारचार्य को समर्पित ‘एकात्म धाम’ विकसित करने का संकल्प लिया है। यहाँ आदिगुरु शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित की जा चुकी है, जिसे ‘एकात्म की प्रतिमा’ नाम दिया गया है।

महाकाल की नगरी उज्जैन तो मंदिरों के शहर के रूप में प्रसिद्ध है। देशभर से भगवान शिव के श्रद्धालु ज्योतिर्लिंग ‘महाकाल’ के दर्शन को आते हैं। प्रतिदिन होनेवाली भस्म आरती और महाकाल के श्रृंगार में शामिल होने के लिए श्रद्धालु रातभर प्रतीक्षा करते हैं। उज्जैन में महाकाल लोक के निर्माण के बाद से तो उज्जैन आनेवाले श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है। शिप्रा नदी के किनारे बसा यह शहर राजा विक्रमादित्य की न्यायप्रियता का साक्षी है। इसके साथ ही यहाँ सांदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा-दीक्षा भी उज्जैन में ही हुई। यह काल की गणना का भी केंद्र है। यहाँ की वेदशाला भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा से जोड़ती है। उज्जैन को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। यहाँ भैरव, चिंतामन गणेश,  देवी हरसिद्धि मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और चौबीस खंबा मंदिर सहित रामघाट प्रमुख स्थान हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से महाकाल मंदिर के समीप ही भारत माता का आकर्षक मंदिर भी बनाया गया है। इस मंदिर में भारत माता की मोहक प्रतिमा स्थापित की गई है। 

इंदौर के पास महेश्वर, धार और मांडू तीन प्रमुख पर्यटन स्थल हैं। महेश्वर सदानीरा नर्मदा के सबसे सुन्दर और विस्तृत घाट के लिए प्रसिद्ध है। धार, राजा भोज द्वारा निर्मित भोजशाला के स्थापत्य के लिए ख्यात है, जो देवी सरस्वती की उपासना का स्थल है। न्यायप्रिय देवी अहिल्याबाई होल्कर की राजधानी महेश्वर मध्यप्रदेश के प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थलों में से एक है। इस शहर को पवित्र शहर का दर्जा भी मिला हुआ है। महेश्वर का अपना पौराणिक महत्व है, सहस्त्रार्जुन से लेकर मंडन मिश्रा और आदि शंकराचार्य की बहस की कहानियां। महेश्वर वायु पुराण, नर्मदा पुराण, स्कंद पुराण आदि में वर्णित महिष्मती नगरी आज का महेश्वर है। यह ऐतिहासिक शहर लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर के राजकौशल, धार्मिकता और बुद्धिमता का जीवंत साक्षी है।

महेश्वर में नर्मदा घाट पर पुण्यश्लोक देवी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनाया गया मंदिर। फोटो- लोकेन्द्र सिंह/Lokendra Singh

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने का सराहनीय निर्णय भी लिया है। यह निर्णय मध्यप्रदेश के विकास और धार्मिक पर्यटन को नयी ऊंचाईयों पर ले जाने के साथ ही उसे बड़ी पहचान देगा। यह सर्वविदित है कि उज्जैन-इंदौर संभाग सांस्कृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है। इसी संभाग के मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर, नलखेड़ा में बगुलामुखी माई का मंदिर, खंडवा में दादा धूनीवाले, इंदौर में खजराना गणेश मंदिर सहित अनेक और स्थान ऐसे हैं, जो धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के स्थान है।

भगवान शिव ने कैलाश और काशी के बाद अमरकंटक को परिवार सहित रहने के लिए चुना है। सदानीरा माँ नर्मदा के दर्शन एवं उसकी परिक्रमा के लिए देशभर से श्रद्धालु मध्यप्रदेश में आते हैं। माँ नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक अध्यात्म नगरी के रूप में विकसित हो रहा है। प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध अमरकंटक में अध्यात्म के चटख रंग बिखरे पड़े हैं। अमरकंटक माँ नर्मदा के साथ ही शोणभद्र और जोहिला नदी का उद्गम स्थल भी है। अमरकंटक के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं- नर्मदा उद्गम मंदिर, प्राचीन मंदिर समूह, कपिल धारा, दूध धारा, पंच धारा, शम्भू धारा, दुर्गा धारा, चक्रतीर्थ, अरण्यक आश्रम मंदिर, कबीर चबूतरा, भृगु कमण्डल, धूनी-पानी, श्रीयंत्र मंदिर, फरस विनायक, सोनमूड़ा, माई की बगिया, श्री दिगम्बर जैन सर्वोदय तीर्थ क्षेत्र, प्राचीन जलेश्वर मंदिर, अमरेश्वर मंदिर, और माई का मंडप। अमरकंटक आकर तीर्थयात्रियों का अंतरमन आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाता है। कालिदास के मेघदूत जब लंबी यात्रा पर निकले थे, तब उन्होंने अपनी थकान मिटाने के लिए अमरकंटक को ही अपना पड़ाव बनाया था। कवि कालिदास ने 'मेघदूत' में लिखा है कि रामगिरि पर कुछ देर रुकने के बाद तुम (मेघदूत) आम्रकूट (अमरकंटक) पर्वत जाकर रुकना। अमरकंटक ऊंचे शिखरों वाला पर्वत है। वह अपने ऊंचे शिखर पर ही तुम्हारा स्वागत करेगा। मार्ग में जंगलों में लगी आग को तुमने बुझाया होगा, इसलिए तुम थक गए होगे।

पुण्यदायिनी सदानीरा नर्मदा में स्नान करते श्रद्धालु। फोटो- लोकेन्द्र सिंह/ Lokendra Singh

मध्यप्रदेश में एक ओर जहाँ द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण प्रतिवर्ष मुरैना में आकर ढ़ाई दिन रहते हैं तो वहीं ओरछा में राजा राम का शासन है। महारानी कुंवर गणेश के पीछे-पीछे श्रीराम अयोध्या से ओरछा तक चले आये थे। ओरछा राजाराम के मंदिर के लिए ही नहीं, अपितु अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। मुरैना के गाँव ऐंती में शनिदेव का त्रेताकालीन प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि महाबली हनुमान जी ने जब शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराया, तो शनिदेव ऐंती गांव के पर्वत पर आकर विराजे। बुद्ध का सन्देश देते साँची के स्तूप हैं तो जैन धर्म के महात्म को बताने वाला सोनागिर है। दतिया में प्रसिद्ध पीताम्बरा पीठ और धूमावती माई का मंदिर है, जहाँ राजा और रंक सब माई की जय-जयकार करते हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के समीप भी अनेक धार्मिक महत्व के स्थान हैं। सीहोर के गणेश जी का मंदिर हो, छींदवाले हनुमान और भोजपुर का विशाल शिवलिंग, श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र हैं। भोजपुर में बेतवा नदी किनारे 106 फीट लम्बे, 77 फीट चौड़े और 17 फीट ऊंचे चबूतरे पर शिवमंदिर बना है। यह विश्व का विशालतम शिवलिंग है। योनिपट्ट सहित शिवलिंग की ऊंचाई 22 फीट है। इस विशाल मंदिर को उत्तर भारत का सोमनाथ कहा जाता है।

प्रेम, शांति, विश्वास और बंधुत्व के प्रतीक सांची के बौद्ध स्तूप मध्यप्रदेश को वैश्विक मानचित्र पर प्रमुख स्थान दिलाता है। यहाँ दुनियाभर से बुद्ध के आस्थावान श्रद्धालु आते हैं। उल्लेखनीय है कि मौर्य सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म की शिक्षा-दीक्षा के लिए प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर एकान्त स्थल की तलाश थी। ताकि एकांत वातावरण में बौद्ध भिक्षु अध्ययन कर सकें। सांची में उनकी यह तलाश पूरी हुई। जिस पहाड़ी पर सांची के बौद्ध स्मारक मौजूद हैं उसे पुरातनकाल में बेदिसगिरि, चेतियागिरि और काकणाय सहित अन्य नामों से जाना जाता था। यह ध्यान, शोध और अध्ययन के लिए अनुकूल स्थल है। सम्राट अशोक के काल में ही बौद्ध धर्म के अध्ययन और प्रचार-प्रसार की दृष्टि से सांची कितना महत्वपूर्ण स्थल हो गया था, इसे यूं समझ सकते हैं कि सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा ने भी कुछ समय यहीं रहकर अध्ययन किया। दोनों भाई-बहन बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए सांची से ही बोधि वृक्ष की शाखा लेकर श्रीलंका गए थे। 

मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने-संवारने में अग्रणी भूमिका निभा रही है। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की गति में तीव्रता 2016 के बाद दिखायी देती है, जब उज्जैन में आयोजित ‘सिंहस्थ’ के दौरान ‘वैचारिक कुंभ’ की महान परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया। वैचारिक महाकुंभ से निकले अमृत स्वरूपी 51 मार्गदर्शक बिंदुओं के प्रकाश में सरकार ने आगे बढ़ना शुरू किया। ‘महाकाल लोक’ का निर्माण भी उन्हीं 51 बिंदुओं में से एक था। सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए प्रतिबद्ध मध्यप्रदेश की सरकार ने महाकाल लोक को मिल रहे जन-प्रसाद से उत्साहित होकर, सांस्कृतिक पुनरुत्थान की अगली कड़ी में ओरछा में श्रीराम राजा कॉरिडोर एवं वनवासी राम लोक, जाम सावली में हनुमान धाम, सलकनपुर में देवी लोक, दतिया में माई पीतांबरा का धाम और श्रीराम वन गमन पथ का निर्माण का संकल्प लिया है।

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यह आलेख हिन्दी विवेक के मध्यप्रदेश विशेषांक में 6 नवंबर, 2024 को प्रकाशित हुआ है।

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