- लोकेन्द्र सिंह
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उनके किसी सलाहकार ने भ्रमित कर दिया है। जिसके कारण वह समझ नहीं पा रहे हैं कि राजनीति के मैदान में उन्हें भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करना है या फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से। अपने इस भ्रम के कारण वह उस संगठन का प्रचार-प्रसार करते रहते हैं, जो प्रसिद्धपरांगमुखता का पालन करते हुए सामाजिक कार्य में संलग्न है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बार-बार अनर्गल टिप्पणी करने से न तो राहुल गांधी को कोई लाभ होने वाला है और न कांग्रेस के खाते में राजनीतिक लाभ आएगा। संघ समाज के बीच में काम करता है। इसलिए आमजन संघ को भली प्रकार जानते और समझते हैं। उसके प्रति घृणा और नफरत पैदा करने के कांग्रेस के सब प्रयत्न विफल होना तय है। वैसे भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर झूठा आरोप लगाने के एक मामले में राहुल गांधी न्यायालय के चक्कर काट रहे हैं।
अपने हालिया विदेश दौरे के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जिस तरह आरएसएस पर अनर्गल टिप्पणियां की हैं, उसके बाद तो संघ को उन्हें प्रत्युत्तर देने की भी जरूरत नहीं। निश्चित ही संघ सदैव ही आरोप-प्रत्यारोप के खेल से दूर रहा है। वह अहर्निश समाज संगठन और सेवा कार्यों में संलग्न है। इतनी फुरसत ही कहाँ कि बेकार के आरोपों का जवाब दिया जाए। संघ ने कभी भी कह कर इस प्रकार के मिथ्या प्रचार का जवाब नहीं दिया है, बल्कि वह तो अपने कार्य-व्यवहार से अपना परिचय देता है। यही परिचय जन-जन के मन में संघ के प्रति श्रद्धा का भाव जगाता है।
यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तुलना किसी आतंकवादी या कट्टरपंथी संगठन से की है। वह पहले भी संघ की तुलना प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी से कर चुके हैं। उस समय भी देश की जनता ने उनके इस झूठ पर उनकी समझ का आकलन कर लिया था। अब एक बार फिर उन्होंने आरएसएस की तुलना आतंकी संगठन आईएसआईएस और कट्टरपंथी इस्लामी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से करके अपने वैचारिक और मानसिक खोखलेपन को उजागर किया है। जर्मनी में उन्होंने संघ की तुलना अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से की और लंदन में उन्होंने आरएसएस को मुस्लिम ब्रदरहुड के समकक्ष रख दिया। लंदन स्थित थिंक टैंक अंतरराष्ट्रीय सामरिक अध्ययन संस्थान को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि आरएसएस भारत के स्वभाव को बदलने और संस्थाओं पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। उनका यह कथन आपत्तिजनक से कहीं अधिक हास्यास्पद है। क्या वाकई राहुल गांधी को मुस्लिम ब्रदरहुड की जानकारी है? क्या उन्होंने इस्लामिक स्टेट की गतिविधियों की जानकारी हासिल की है? क्या वह अपने ही देश के सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ठीक से जान पाए हैं? इन सबके संबंध में उनके अध्ययन का आधार क्या है?
एक तरफ वह संघ के प्रति नफरत का वातावरण बनाने का असफल प्रयास कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी पार्टी के प्रमुख नेता कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संघ से अनुशासन और देशभक्ति सीखने की सलाह दे रहे हैं। मध्यप्रदेश में जब कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया विदिशा में अपने ही कार्यकर्ताओं से पिटते-पिटते बचे तो उन्होंने कहा कि हमें संघ से अनुशासन सीखना चाहिए। मध्यप्रदेश में ही कांग्रेस के सेवा दल ने बाकायदा लिखित प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया है कि आरएसएस और सेवादल दोनों को फौजी अनुशासन और जज्बे के लिए जाना जाता है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी संभवत: भूल रहे हैं कि उनके नाना एवं देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को भी संघ के संबंध में प्रारंभ में इसी प्रकार भ्रामक जानकारी दी गई थी। जिसके आधार पर उन्होंने संघ के प्रति अनेक पूर्वाग्रह पाल लिए थे। संघ के प्रति उनका दुराग्रह इतना अधिक था कि एक समय में वह किसी भी प्रकार से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बंद कर देना चाहते थे। लेकिन, 1962 में चीन के आक्रमण के समय उनकी आँखें खुलीं। झूठ का पर्दा हटा। उन्होंने देखा कि जिन्होंने संघ के संबंध में उनके कानों में जहर भरा था, वह चीन के पाले में खड़े थे, जबकि आरएसएस के कार्यकर्ता तन-मन-धन-प्राण से हर मोर्चे पर अपने देश के साथ खड़े थे। स्वयंसेवकों की देशभक्ति को देखकर ही प्रधानमंत्री नेहरू ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गणतंत्र दिवस की परेड में आमंत्रित किया।
कांग्रेस में सदैव से दो वर्ग रहे हैं। एक, खुलकर या दबे-छिपे आरएसएस का समर्थक है और उसके कार्यों की सराहना करता है। दूसरा वर्ग संघ से न केवल चिढ़ता है बल्कि उससे नफरत करता है। यह वर्ग ही सदैव कांग्रेस के नेतृत्व के कानों में संघ के प्रति जहर घोलता है। यही वर्ग संघ को सांप्रदायिक, भगवा आतंकवाद और कट्टरवाद से जोडऩे का षड्यंत्र करता रहता है। लेकिन, यह वर्ग हर मोर्चे पर असफल हुआ है क्योंकि संघ तीखे राजनीतिक प्रहार सह कर भी अपने कर्तव्य पथ से डिगा नहीं है। समाज में संघ की छवि सेवा कार्य करने वाले संगठन की है। अच्छा हो राहुल गांधी भी जल्द ही अपने भ्रम दूर कर लें। इससे उन्हें ही लाभ होगा। वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर ठीक से ध्यान केंद्रित कर पाएंगे। वरना, संघ पर अनर्गल टिप्पणी कर वह अपने प्रति ही अविश्वास अर्जित करेंगे।
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