- लोकेन्द्र सिंह
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 1984 के सिख विरोधी दंगों पर गलत बयानी कर अपने लिए और अपनी पार्टी के लिए नया संकट खड़ा कर लिया है। राहुल गांधी ने उन पीडि़त परिवारों के जख्म भी हरे कर दिए हैं, जिन्होंने उन दंगों में अपनों को खोया था। इतिहास में ऐसा उदाहरण शायद ही कोई दूसरा मिले, जब एक सिर-फिरे व्यक्ति के अपराध की कीमत एक संप्रदाय से वसूली गई। यूरोप में घूम-घूम कर भारत और भारतीयता के संदर्भ में गलत बयानी कर रहे राहुल गांधी ने बहुत ही आसानी से कह दिया कि 1984 के सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस की कोई भूमिका नहीं है। जबकि उनके पिताजी राजीव गांधी ने खुले मंच से 19 नवंबर, 1984 को अप्रत्यक्ष रूप से दंगों में कांग्रेस की भूमिका को स्वीकार करते हुए कहा था- 'जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है।' राजीव गांधी के इस बयान का अभिप्राय अपनी पार्टी के नेताओं द्वारा किए गए सिख बंधुओं के कत्लेआम को सामान्य की प्रतिक्रिया बता कर मामले को रफा-दफा करने से था।
राहुल गांधी यह क्यों भूल गए कि उनकी पार्टी के नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 2013 में लगभग 4000 सिखों की हत्याओं पर संसद में माफी माँगी थी। इसके बाद तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी खेद जताया था। यदि 1984 के दंगों में कांग्रेस की संलिप्तता नहीं थी, तब पार्टी ने अपने सिख नेता को आगे करके सिखों की हत्या के लिए माफी क्यों माँगी। सोनिया गांधी ने किस बात के लिए खेद प्रकट किया था? इतना ही नहीं स्वयं राहुल गांधी ने इसी वर्ष सिखों की हत्या के आरोपी सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर से किनारा किया था। अप्रैल में जब राहुल गांधी ने केंद्र सरकार के विरोध में राजघाट पर अनशन किया तो वहां पर जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार की मौजूदगी को लेकर जबरदस्त विरोध शुरू हो गया। इस विरोध के चलते ही इन दोनों नेताओं को वहां से हटाना पड़ा था।
क्या राहुल गांधी बता सकते हैं कि कांग्रेस की नेता और भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या होने पर पूरे देश में किन लोगों ने सिर्फ सिख समुदाय के लोगों को निशाना बनाया? सिखों की हत्या करने वाले क्या सामान्य लोग थे? या फिर उनमें ज्यादातर कांग्रेस के कार्यकर्ता थे, जो अपने शीर्ष नेताओं के इशारे पर अपनी नेता की हत्या का बदला पूरे समुदाय से ले रहे थे। बाद में, सिख दंगों के प्रमुख आरोपी राजीव गांधी की सरकार में प्रमुख पदों पर रहे। इसका तो एक ही मतलब निकलता है कि इंदिरा गांधी की हत्या का कथित बदला लेने वाले कांग्रेसी नेताओं को राजीव गांधी सरकार ने पुरस्कृत किया था।
84 के सिख विरोधी दंगों को लगभग तीन दशक बीत गए हैं, लेकिन पीडि़त परिवारों के घाव अब तक भरे नहीं हैं। कांग्रेस और उसके शीर्ष नेता अपने वक्तव्य एवं व्यवहार से सिख समुदाय के जख्मों को कुरेदते रहते हैं। सिख समुदाय उस एकतरफा भीषण दंगे को भूलना चाहता है, लेकिन कांग्रेस की राजनीति यह होने नहीं देती है। यह समझना मुश्किल है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अकाट्य प्रमाणों की अनदेखी करते हुए सिख विरोधी दंगों में कांग्रेस की संलिप्तता पर झूठ क्यों बोला है? यह समझना भी मुश्किल है कि वह इस झूठ से क्या पाना चाहते हैं? फिलहाल तो उन्होंने अपनी पार्टी को बड़ी मुसीबत में डाल दिया है। कांग्रेस के बड़े नेता और प्रवक्ताओं को इस झूठ पर पर्दा डालने में बहुत कठिनाई हो रही है।
राहुल गांधी को यह स्वीकार करना चाहिए कि कांग्रेस के दामन पर 1984 के सिख दंगों के दाग बहुत गहरे हैं। लगभग 4000 सिख बंधुओं के रक्त से रंजित कांग्रेस के दामन को आसानी से छिपाया या धोया नहीं जा सकता।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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