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रविवार, 26 अगस्त 2018

भारत, भारतीयता और भारत के देशभक्त नागरिकों के प्रति नकारात्मक विचार


- लोकेन्द्र सिंह 
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर अपनी अपरिपक्वता जाहिर की है। यूरोप के दौरे के दौरान विदेशी जमीन पर उन्होंने जिस प्रकार के विचार प्रकट किए हैं, उससे भारत और भारतीय संस्कृति के प्रति उनके दृष्टिकोण का पता भी चलता है। इससे पहले भी वह अमेरिका में कह चुके हैं कि भारत को इस्लामिक आतंकी समूहों से नहीं, बल्कि 'हिंदू आतंकवाद' से अधिक खतरा है। पहले उन्होंने भारत के हिंदू समाज और हिंदू संस्कृति की छवि को धूमिल किया और अब भारत के मुस्लिम, अनुसूचित जाति-जनजाति और गरीब वर्ग को बदनाम करने का प्रयास किया है। जर्मनी के हैम्बर्ग में विद्यार्थियों से बात करते हुए उन्होंने आतंकवाद को गरीबी से जोड़कर एक तरह से आतंकी संगठनों के पैरोकार की भूमिका का निर्वहन किया है। क्या उनके इस तर्क से सहमत हुआ जा सकता है कि गरीबी और बेरोजगारी के कारण आईएसआईएस जैसे आतंकी समूह निर्मित होते हैं? उन्होंने कहा  कि अगर दलित और अल्सपसंख्यक जैसे समुदायों की विकास की दौड़ में अनदेखी हुई तो देश में आईएस की तरह आतंकवादी समूह बन सकते हैं? इस कथन का क्या आशय निकाला जाए? आतंकवाद जैसी वैश्विक समस्या पर यह किस स्तर का चिंतन है? भारत से लेकर दुनिया में जहाँ भी आतंकी घटनाएं हो रही हैं, उसके पीछे क्या वास्तव में गरीबी है? आईएसआईएस के जो उद्देश्य हैं, उसमें क्या गरीबी उन्मूलन शामिल है? कोई भी आतंकी समूह देश-दुनिया से गरीबी को समाप्त करने के लिए उद्देश्य से काम नहीं कर रहा है। आखिर किस तरह के अध्ययन के आधार पर राहुल गांधी ने यह विचार रखा है?
          यदि आतंकवाद पर राहुल गांधी की अवधारणा सही है, तब पिछले 60-65 वर्षों में देश के प्रत्येक हिस्से में जो आतंकी हमले हुए और सिमी जैसे आतंकी समूह बने, उनके लिए क्या कांग्रेस की सरकारें जिम्मेदारी लेंगी? क्या राहुल गांधी यह बात कह सकते हैं कि उनकी पार्टी और परिवार लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद भी गरीबी दूर नहीं कर सके और अल्पसंख्यकों को विकास की मुख्यधारा में शामिल नहीं कर सके, इसलिए भारत में आतंकवाद के दोषी उनकी पार्टी और परिवार हैं? राहुल गांधी और कांग्रेस यह स्वीकार नहीं कर सकते। दरअसल, सत्य यह है कि आतंकवाद के पीछे गरीबी और बेरोजगारी नहीं है। बल्कि एक विचार है। अपने को सर्वोपरि मानने का कट्टर विचार। विचार ही किसी को आतंकी बनाता है। दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी किसी गरीब परिवार से नहीं आते। वे अनपढ़ और बेरोजगार भी नहीं रहे हैं। कई आतंकी तो अत्यधिक शिक्षित हैं। 
          यह और भी चिंता, दु:ख और शर्म की बात है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का अध्यक्ष नोटबंदी, जीएसटी और बेरोजगारी के मुद्दे पर देश के हालातों की तुलना इराक की अराजकता से कर रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि भाजपा सरकार ने जिस तरह से देश में नोटबंदी और जीएसटी लागू की उससे कई लोगों के उद्योग चौपट हो गए और लाखों लोग बेरोजगार हो गए। बेरोजगारी की वजह से पनपा गुस्सा ही मॉब लिंचिंग की शक्ल में सामने आ रहा है। यह कुतर्क की हद है। यदि मॉब लिंचिंग के पीछे नोटबंदी और जीएसटी है तब इनके लागू होने से पहले जो घटनाएं हुईं, उनके पीछे का कारण क्या था? देश का एक नेता जिसे कांग्रेस अपनी ओर से देश के प्रधानमंत्री के तौर पर प्रस्तुत कर रही है, वह इराक की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों से भारत की तुलना कर रहा है। दरअसल, अपनी इस सोच से राहुल गांधी ने कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों का बचाव किया है। उनको लगता है कि ऐसा करने से भारत का अल्पसंख्यक समाज प्रसन्न हो जाएगा। अब तक उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि भारत का मुस्लिम समाज विकास की मुख्यधारा में शामिल होना चाहता है। वह कट्टरपंथी सोच और तुष्टीकरण से निकलना चाहता है। जबकि राहुल गांधी अपने विचारों से इस समुदाय को वापस उसी जगह धकेलना चाहते हैं, जहाँ उसे कांग्रेस ने वर्षों से रखा हुआ था। 
          यह पहली बार नहीं है, जब राहुल गांधी ने विदेशी जमीन पर भारत को बदनाम किया है। इससे पहले सिंगापुर और मलेशिया के दौरे पर राहुल गांधी ने देश के अंदरूनी हालातों पर सवाल उठाया था। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की प्रेस वार्ता के मामले में राहुल ने सिंगापुर में कहा था कि लोग न्याय के लिए न्यायपालिका के पास जाते हैं, लेकिन पहली बार चार न्यायमूर्ति न्याय के लिए लोगों के पास आए हैं। बहरीन में भी उन्होंने मोदी सरकार पर हमला करते हुए कहा था कि देश में विघटन के हालात पैदा हो रहे हैं। 
          राहुल गांधी को भारत की समझ बिल्कुल भी नहीं है। उन्होंने जर्मनी में महिलाओं से जुड़े एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि भारत में महिलाओं के साथ जो अपराध हो रहा है, उसके पीछे भारत का 'कल्चर' है। इस उत्तर से स्पष्ट समझ आता है कि राहुल गांधी को भारत और भारतीय संस्कृति की कितनी समझ है। अपने इस दौरे पर राहुल गांधी ने देश की छवि खराब करने का ही काम किया है। उन्हें समझना चाहिए कि भारत में राष्ट्रीयता के मूल्य इतने कमजोर नहीं हैं कि नोटबंदी, जीएसटी, गरीबी और बेरोजगारी के कारण यहाँ का नागरिक अपने देश और मानवता के विरुद्ध हथियार उठा कर खड़ा हो जाए। भारत, भारतीयता और भारत के नागरिकों के प्रति राहुल गांधी का आकलन सर्वथा गलत है। नोटबंदी और जीएसटी पर तो देश के विभिन्न राज्यों की जनता उन्हें स्पष्ट तौर पर समझा भी चुकी है, लेकिन इसके बाद भी वह समझने के लिए तैयार नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को समझना चाहिए कि अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को घेरने के लिए देश की संस्कृति, एकता और अखंडता को चोट पहुँचाने वाले विचार व्यक्त करना बुद्धिमानी नहीं है।  

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