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गुरुवार, 20 सितंबर 2018

हिंदुत्व का अर्थ

भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण-3
- लोकेन्द्र सिंह 
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने 'भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ का दृष्टिकोण' में हिंदुत्व पर बहुत ही महत्वपूर्ण विचार देश के सामने रखे हैं। उनके विचार हिंदुत्व की भारतीय संकल्पना को पूर्ण रूप से स्पष्ट करते हैं। 'हिंदुत्व' गाहे-बगाहे बौद्धिक और राजनीतिक जगत में चर्चा का विषय बना रहता है। दुर्भाग्य से भारत में कुछ ऐसी ताकतें हैं, जो भारतीय अवधारणाओं के प्रति सामान्य जन के मन में घृणा उत्पन्न करने का प्रयास करती रहती हैं। राष्ट्रवाद और हिंदुत्व ऐसे ही शब्द हैं, जिनको लेकर भारत विरोधी विचार से प्रेरित लोग सदैव नकारात्मक ढंग से बात करते हैं। हिंदुओं की नाराजगी से बचने के लिए आजकल उन्होंने 'हिंदुत्व' पर रणनीति बदल ली है। अब वह दो हिंदुत्व बताते हैं- कट्टर हिंदुत्व और सॉफ्ट हिंदुत्व। हिंदुत्व को श्रेणीबद्ध करते समय वह आगे कहते हैं कि आरएसएस का हिंदुत्व कट्टर है। हिंदुत्व को बदनाम करने के लिए चलने वाले इस षड्यंत्र के मुकाबले सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बहुत ही सहजता से हिंदुत्व के विराट, उदार, सहिष्णु स्वरूप के दर्शन सबको कराए हैं। उन्होंने सकारात्मक ढंग से अपना विचार रखा।

संघ का हिंदुत्व अलग नहीं : 
हिंदुत्व पर हमलावर रहने वाले किसी भी वर्ग का जिक्र उन्होंने नहीं किया। सबसे पहले उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि 'संघ का हिंदुत्व' अलग से कुछ नहीं है। संघ ने किसी नये हिंदुत्व की रचना नहीं की है। संघ उसी विचार को लेकर चलता है, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा में है। इसलिए संघ का हिंदुत्व भारत का मूल विचार है। हिंदुत्व उस मूल्य समुच्चय का विचार है, जो विविधता में एकता का उत्सव मनाता है। सभी विविधताएं अपने यहां स्वीकार्य हैं, भारत की पहचान यह बनी है, यह वैश्विक धर्म है, भारत में इसका निर्माण हुआ और एक दृष्टि के नाते समय-समय पर विश्व को इस ज्ञान को देने वाला भारत है। 

हिंदुत्व में सबके लिए स्थान : 
हिंदुत्व, हिंदूराष्ट और मुस्लिम पहचान के संबंध में वह आगे बहुत महत्वपूर्ण बात कहते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से उन्होंने उस मिथ्यारोप का भी समुचित एवं स्पष्ट उत्तर दिया है, जो संघ को मुस्लिम विरोधी कहते रहते हैं। उनके उस गुब्बारे की भी हवा निकली होगी, जिस पर उन्होंने लिख रहा है- 'संघ के हिंदूराष्ट्र में मुसलमानों के लिए कोई स्थान नहीं है।' सरसंघचालक डॉ. भागवत ने बिना किसी लाग-लपेट के स्पष्ट कहा है कि हिंदू राष्ट्र का मतलब यह नहीं है कि इसमें मुस्लिम नहीं रहेगा, जिस दिन ऐसा कहा जायेगा उस दिन वह हिंदुत्व नहीं रहेगा। हिंदुत्व तो वसुधैव कुटुम्बकम् की बात करता है। डॉ. भागवत पहले भी अनेक अवसर पर कह चुके हैं कि भारत की पहचान हिंदू है और इसमें सबके लिए स्थान है। उनका कहना सर्वथा उचित है। हिंदुत्व कभी इतना संकीर्ण और अनुदार नहीं हो सकता कि वह अन्य विचार/संप्रदाय का स्वागत न कर पाए। 

इसलिए भारत हिंदू राष्ट्र :
हिंदुत्व ही तो है जो विश्व को सीख देने की स्थिति में है कि अपने से भिन्न पहचान (भाषा, नस्ल, विचार, संप्रदाय) का सम्मान करो। विविधताओं का उत्सव मनाओ। धर्म सबको साथ लेकर चलना सिखाता है, संघ भी यही कर रहा है। अपने इस व्याख्यान में उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संघ भारत को हिंदू राष्ट्र क्यों कहता है? वह कहते हैं कि संघ का काम बंधु भाव का है और इस बंधु भाव का एक ही आधार है- विविधता में एकता। यह विचार देने वाली हमारी चलती आयी हुई विचारधारा है, जिसे दुनिया हिंदुत्व कहती है, इसलिए हम अपने देश को हिंदू राष्ट्र कहते हैं। भले संघ विरोधियों को भारत को हिंदू राष्ट्र कहने में दिक्कत होती है, किंतु बाहर अनेक स्थानों पर भारत और उसके सभी नागरिकों की पहचान हिंदू के नाते ही है। भारत के मुसलमान को भी बाहर हिंदी मुसलमान के नाते पहचाना जाता है। 

हिंदुत्व के तीन आधार :
सरसंघचालक ने तीन बिंदुओं को हिंदुत्व का आधार बताया- देशभक्ति, पूर्वज गौरव और संस्कृति। हिंदुत्व के यह तीन आधार भारत में रहने वाले प्रत्येक भारतीय के साझे हैं। इसलिए हिंदुत्व में सब समाहित हैं। उन्होंने जो कहा उसके आधार पर यह माना जा सकता है कि हिंदुत्व धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पहचान है। यह राष्ट्रीयता है, जिसे कुछ लोग भारतीयता कहते हैं। हिंदुत्व और भारतीयता, में से किस शब्द का प्रयोग उचित है? इसके विवाद में पडऩे से बचने की सलाह भी उन्होंने दी है। उनका मत है कि दोनों का अर्थ एक ही है। दोनों का प्रस्थान बिंदु एक ही है। इसलिए जिसको जो शब्द अच्छा लगता है, उसका प्रयोग कर सकता है। 
          
बहरहाल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का यह व्याख्यान हिंदुत्व पर दिए गए सार्वकालिक श्रेष्ठ भाषणों/व्याख्याओं में शामिल किया जाएगा। हिंदुत्व की जो व्याख्या उन्होंने की है, उसका सबको अनुकरण करना चाहिए। यदि हम यह कर पाए तो यह निश्चित मानिए कि समाज में चल रहे विभिन्न प्रकार के आपसी संघर्ष, मन/मतभेद के झगड़े समाप्त हो जाएंगे। सबके बीच बंधु भाव बढ़ेगा।
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व्याख्यानमाला के पहले दिन की चित्रमयी झलकी देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - 

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