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मंगलवार, 10 अप्रैल 2018

जाएं तो जाएं कहाँ

पाकिस्तान में हिंदुओं का जबरन मतांतरण
 पाकिस्तान  के लोग आज भी यह सिद्ध करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे कि कि उन्होंने भारत के टुकड़े 'मुस्लिमों के लिए अलग देश' के नाम पर किए थे। पाकिस्तान की माँग के साथ यह कहा गया था कि हिंदू और मुसलमान, दो अलग मुल्क हैं, यह एकसाथ नहीं रह सकते। किंतु, भारत ने उस अवधारणा को झूठ सिद्ध किया। भारत में मुसलमान न केवल सुख से हैं, बल्कि तरक्की भी कर रहे हैं। उनकी आबादी भी बड़ी है। भारत में उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता है। वह अपने हक के लिए आवाज भी बुलंद कर लेते हैं। पाकिस्तान में स्थिति ठीक उलट है। इस्लाम के नाम पर बने 'पाकिस्तान' में गैर-मुस्लिमों के लिए कोई सम्मान एवं स्थान नहीं है। विभाजन के बाद से वहाँ हिंदुओं की जनसंख्या बढऩे की जगह लगातार खतरनाक ढंग से कम होती गई है। अपने अधिकारों की बात करना तो दूर की बात है, हिंदू वहाँ अपने जीवन के लिए ही संघर्ष कर रहा है। हिंदुओं के लिए तो पाकिस्तान एक तरह से नर्क हो गया है। उनके सामने तीन ही विकल्प हैं- एक, पाकिस्तान में रहना है तो अपना धर्म छोड़ कर इस्लाम कबूल करना होगा। दो, मुस्लिम नहीं बने तब बलात् धर्मांतरण के लिए तैयार रहो या मर जाओ। दोयम दर्जे का जीवनयापन करो। तीन, अपने धर्म एवं स्वाभिमान को बचाने के लिए पाकिस्तान छोड़ दो।

            हिंदुओं के लिए तीसरा विकल्प भी आसान नहीं है। आखिर वह पाकिस्तान छोड़ कर कहाँ जाएंगे? कौन-सा देश है, जो हिंदुओं का स्वागत करे? उनकी आँखों में एक ही स्थान दिखाई देता है- हिंदुस्थान। किंतु, यहाँ भी जिस तरह 'रोहिंग्या मुसलमानों' के लिए स्थान और संवेदनाएं हैं, वैसी स्थिति पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं के लिए नहीं है। अपनी आपराधिक गतिविधियों के कारण जिन रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार से भगाया गया, भारत में उनका न केवल स्वागत किया गया बल्कि उनके लिए लंगर भी लगाए गए। जबकि पाकिस्तान से आए हिंदू समाज और सरकार की बेरुखी से वापस जाने को मजबूर हुए। मामला राजस्थान से डिपोर्ट किए गए लगभग 500 हिंदुओं का है। यह लोग पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अपना धर्म और स्वाभिमान को बचाने के लिए भागकर हिंदुस्तान आए थे। राजस्थान में उन्होंने शरण ली। किंतु, वीजा की अवधि नहीं बढऩे के कारण उन्होंने वापस पाकिस्तान भेज दिया गया। जब यह लोग पाकिस्तान पहुँचे तो उनके धर्म परिवर्तन की पूरी तैयारी वहाँ की गई थी। एक बड़े कार्यक्रम में कलमा पढ़वा कर उनको इस्लाम में मतांतरित कर दिया गया। धर्म परिवर्तन का यह कार्यक्रम पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ की पार्टी ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग के पदाधिकारियों ने आयोजित कराया था। कई दिन से धर्म परिवर्तन के जलसे की सूचना पर्चों के माध्यम से दी जा रही थी। एसएमएस और व्हाट्सएप पर भी इस आयोजन की जानकारी प्रसारित की गईं। इसलिए यह जानकार आश्चर्य होता है कि बड़े पैमाने पर कराए जाने वाले इस धर्मांतरण को रोकने के लिए कोई आगे नहीं आया। न पाकिस्तान की सरकार ने हस्तक्षेप किया और न ही मानवाधिकारों के लिए कार्य करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में कोई आपत्ति दर्ज कराई। 
          इस पूरे घटनाक्रम में कुछ प्रश्न अपना उत्तर माँग रहे हैं। भारत के मीडिया को सीरिया और म्यांमार से विस्थापित मुसलमानों के मानवाधिकारों की चिंता तो है, किंतु पाकिस्तान या बांग्लादेश से आने वाले हिंदुओं की चिंता क्यों नहीं है? हिंदुओं के मानवाधिकार पर न मीडिया ने बहस कराई और न ही कथित बुद्धिजीवियों ने लेख लिखे। हिंदुओं की दुर्दशा पर उनकी आँखों से संवेदना के दो आँसू भी नहीं निकले। दूसरा सबसे बड़ा सवाल यह है कि देश और राज्य में भाजपानीत सरकार होने के बाद भी पाकिस्तान से आए हिंदुओं को वापस नर्क में जाने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा? उनके वीजा की अवधि क्यों नहीं बढ़ाई जा सकी? भारत की नागरिकता ही उन्हें क्यों नहीं दे दी गई? यदि कोई कानूनी अड़चन थी, तब उन परिवारों की स्थिति का ध्यान रखकर थोड़ी राहत नहीं दी जा सकती थी क्या? पाकिस्तान से आने वाले हिंदू भारत में विश्वास और अच्छे दिन की आस लेकर आते हैं। वह किसी भी सूरत में वापस लौटने के लिए नहीं आते हैं। दिल्ली में रह रहे ऐसे ही परिवारों से जब बात की तो उन्होंने बताया कि वह यहाँ रहकर कुछ भी कर लेंगे, लेकिन वापस पाकिस्तान नहीं जाएंगे। वहाँ मुसलमान हमें कुछ नहीं मानते हैं। वह हमें अपने धर्म के अनुसार न तो पूजा-पाठ करने देते हैं और न ही जीने देते हैं। 
इसलिए स्वीकार करना पड़ता है इस्लाम : 
पाकिस्तान में गैर-मुस्लिमों को कट्टरपंथी मुस्लिम निशाना बनाते हैं। उन पर अत्याचार करते हैं। विशेषकर उनके निशाने पर हिंदू समुदाय रहता है। मुस्लिम नौजवान ही नहीं, अपितु शादीशुदा लोग भी हिंदू लड़कियों को अगवा कर उनके साथ दुष्कर्म करते हैं और जबरन उनका धर्मांतरण कर निकाह कर लेते हैं। वहाँ के लोग हिंदुओं की दुकानों पर भी लूट-पाट करते हैं। शांति से जीने के लिए कट्टरपंथी मुस्लिम और संस्थाएं हिंदुओं पर दबाव बनाती हैं कि मुसलमान बन जाओ। अपनी जान-माल की रक्षा के लिए मजबूरी हिंदू को यह राह चुननी पड़ती है। हिंदुओं के उत्पीडऩ के संबंध में पिछले वर्ष सर्वोच्च हिंदू अमेरिकी संस्था 'द हिंदू अमेरिका फाउंडेशन' की रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं वहां उन्हें हिंसा, सामाजिक उत्पीडऩ और अलग-थलग होने का सामना करना पड़ रहा है। हिंदू अल्पसंख्यक विभिन्न स्तरों के वैधानिक और संस्थागत भेदभाव, धार्मिक स्वतंत्रता पर पाबंदी, सामाजिक पूर्वाग्रह, हिंसा, सामाजिक उत्पीडऩ के साथ ही आर्थिक और सियासी रूप से हाशिये वाली स्थित का सामना करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 'हिंदू महिलायें खास तौर पर इसकी चपेट में आती हैं और बांग्लादेश तथा पाकिस्तान जैसे देशों में अपहरण और जबरन धर्मांतरण जैसे अपराधों का सामना करती हैं।
भारत सरकार ने किए हैं सराहनीय प्रयास : 
पिछले तीन साल में भारत से लगभग 1400 हिंदुओं को वापस पाकिस्तान भेजा गया है। यह स्थिति तब है जब केंद्र से लेकर राज्य तक भाजपा की सरकार हैं। हालाँकि, एक सच यह भी है कि सरकार पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदुओं की सुरक्षा एवं बेहतरी के लिए प्रयासरत है। सरकार का पूरा प्रयास रहता है कि हिंदुओं को वापस न लौटना पड़े, किंतु कानूनी खाना-पूर्ति कर पाने में असमर्थ हिंदुओं को मजबूरी में डिपोर्ट किया जाता है। भाजपानीत केंद्र सरकार ने वर्ष 2016 में पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने के लिए 'नागरिकता कानून-1955' में आवश्यक संशोधन किया है। उसी वर्ष दिल्ली के मजनूटीला में रह रहे हिंदुओं को वापस भेजा जा रहा था, तब सरकार के हस्तक्षेप से उस प्रक्रिया को टाला गया। इसी तरह 25 मार्च को पाकिस्तान में धर्मांतरित किए गए 500 लोगों को भारत से वापस भेजने पर राजस्थान हाईकोर्ट ने स्टे लगाया था। किंतु, जब तक स्टे ऑर्डर आया, तब तक उन लोगों की ट्रेन पाकिस्तान पहुंच चुकी थी। पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदुओं के प्रति सरकार के नजरिए के संबंध में जब विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री चंपत राय ने बताया कि वर्तमान सरकार ऐसे हिंदुओं की यथासंभव चिंता कर रही है। मोदी सरकार के आने के बाद से इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी उठाए गए हैं। धर्मांतरण करने वाले हिंदुओं के संबंध में श्री राय ने कहा कि उन्हें साहस का परिचय देना चाहिए। एकजुट होकर मुस्लिम कट्टरपंथ का विरोध करना चाहिए। 
पाकिस्तान में 15 से 2 प्रतिशत से कम रह गए हिंदू : 
विभाजन के समय पाकिस्तान में हिन्दुओं की जनसंख्या लगभग 15 प्रतिशत थी, जो वर्तमान में 2 प्रतिशत से भी कम रह गई है। यह अपने आप में आश्चर्य ही है कि किसी समुदाय की जनसंख्या बढऩे की जगह तेजी से घट गई है। पाकिस्तान में हिंदू जनसंख्या ही नहीं, बल्कि उनके पूजा स्थल भी कम हो गए हैं। हिन्दुओं के पूजा स्थल तोड़ दिए गए या फिर उन पर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया। एक आंकड़े के मुताबिक वर्तमान में पाकिस्तान में 428 मंदिरों में से सिर्फ 26 में ही पूजा-पाठ होता है। 
भविष्य में ठीक होगी स्थिति : 
एक पीढ़ी यह मानने के लिए भी तैयार नहीं थी कि पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार होता है। कम से कम आज यह बात स्वीकार की जाने लगी है। भारत में ही नहीं, सब जगह यह विमर्श हो रहा है कि पाकिस्तान में गैर-मुस्लिमों विशेषकर हिंदुओं का उत्पीडऩ किया जाता है। इसके परिणाम निकट भविष्य में दिखाई देंगे। आने वाले समय में स्थितियां ठीक होंगी। भारत में भी अंतर आया है। अब सरकार पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदुओं की सहायता करती है। - चंपत राय, अंतरराष्ट्रीय महामंत्री, विश्व हिंदू परिषद

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पाञ्चजन्य (8 अप्रैल 2018) में प्रकाशित

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन घनश्याम दास बिड़ला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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