'सत्य कभी पराजित नहीं होता।'
'कितने भी काले बादल हों, सूरज को अधिक समय तक ढंक नहीं सकते।'
'सच सामने आ ही जाता है।'
'न्याय में देर है, अंधेर नहीं।'
यह लोकोक्तियां बताती हैं कि सच को परास्त करने के लिए कोई कितने भी षड्यंत्र रच ले, किंतु एक दिन आता है जब सत्य की ही जीत होती है और झूठों का मुंह काला। मक्का मस्जिद बम धमाके मामले में स्वामी असीमानंद समेत सभी आरोपियों के बरी होने के बाद 'हिंदू आतंकवाद' पर रचा गया षड्यंत्र पूरी तरह उजागर हो गया है। यह देश का दुर्भाग्य है कि वोटों की खातिर एक पार्टी ने इस देश की पहचान को आतंकवाद से जोडऩे का भयंकर षड्यंत्र रचा था। विश्व में जिस 'हिंदू' की उदारता, मानवता और करुणा के उदाहरण दिए जाते हैं, उस हिंदू को सिर्फ इसलिए बदनाम करने का षड्यंत्र रचा गया ताकि अपनी राजनीतिक बिसात बची रहे, ताकि एक समुदाय का तुष्टीकरण किया जा सके। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने 'भगवा आतंकवाद' और 'हिंदू आतंकवाद' जैसे शब्द दिए हैं। इस पर विचार किया जाना चाहिए कि आतंकवाद को धर्म और रंग से न जोडऩे की वकालत करने वाली कांग्रेस ने ही आखिर क्यों हिंदू और भगवा आतंकवाद की अवधारणा रची?
कांग्रेस सरकार के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा था कि देश को भगवा आतंकवाद से खतरा है। यही आरोप राहुल गांधी पर भी है। पूर्व केंद्र सरकार के गृह और वित्तमंत्री रहे पी. चिदंबरम ने भी यही दोहराया था। गृह मंत्रालय के पूर्व अधिकारी आरवीएस मणि ने भी इस बात की पुष्टी की है कि उनके स्थानांतरण के बाद मंत्रालय में 'हिंदू आतंकवाद' की कहानी गढ़ी गई। इस कहानी को सच दिखाने के लिए कुछ किरदार भी रचे गए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने वोटबैंक का बचाव करने के लिए कांग्रेस सरकार ने निर्दोष लोगों को बलि का बकरा बनाया। अब हिंदुओं की एकता और आक्रोश से घबराई कांग्रेस अपनी पोल खुलने पर कह रही है कि उसने या उसके किसी नेता ने 'हिंदू आतंकवाद' या 'भगवा आतंकवाद' शब्द का जिक्र नहीं किया। कांग्रेस बार-बार भूल जाती है कि यह डिजिटल युग है। पारदर्शी समय। अब अपनी बात से मुकरना आसान नहीं है। कांग्रेस के नेताओं के हिंदू को बदनाम करने के लिए क्या-क्या कहा है, सब सार्वजनिक उपलब्ध है। मुख्यधारा और सोशल मीडिया से लेकर सामान्य लोगों के पास वह वीडियो उपलब्ध हैं, जिनमें सुशील शिंदे और चिदंबरम ने हिंदू आतंकवाद शब्द का न केवल उपयोग किया है, बल्कि उसकी व्याख्या भी की है।
इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस का व्यवहार बहुत चिंताजनक है। कांग्रेस के नेता सफाई देते समय भी हिंदू विरोध को ही प्रकट कर रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हिंदू आतंकवाद पर क्षमा माँगने की जगह कह रहे हैं कि महात्मा गाँधी की हत्या और गुजरात दंगे क्या थे? मतलब वह अब भी परोक्ष रूप से कह रहे हैं कि 'हिंदू आतंकवाद' की उनकी अवधारणा सही है। दूसरी ओर कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दल संवैधानिक जाँच एजेंसी एनआईए की निष्पक्षता पर ही सवाल उठा रहे हैं। वह न्यायालय को भी कठघरे में खड़ा करने से नहीं चूक रहे हैं। जिस न्याय व्यवस्था को आज कांग्रेस संदिग्ध बनाने का निंदनीय कृत्य कर रही है, उसी न्यायालय ने पूर्व में इसी प्रकरण में 70 मुस्लिमों को बरी किया था। किंतु, तब न्याय व्यवस्था पर किसी ने प्रश्न नहीं उठाए थे। यह स्वाभाविक भी है कि न्यायालय में दोषियों को सजा और निर्दोषों को बरी ही किया जाता है। लेकिन, मालेगांव और मक्का मस्जिद प्रकरण में निर्दोष हिंदुओं के बरी होने पर उनका ही सबसे अधिक पीड़ा है, जिनके झूठ और षड्यंत्र की कलई खुल रही है।
बहरहाल, इस प्रकरण से हमारे राजनेताओं को सीख लेनी चाहिए कि अपने लक्ष्य को भेदने के लिए निर्दोष लोगों के कंधों पर बंदूक रख कर नहीं चलानी चाहिए। तुष्टीकरण के लिए इस हद तक भी नहीं जाना चाहिए कि एक समुदाय को ही बदनाम कर दिया जाए। निश्चित ही न्यायालय के निर्णय से न्याय में जनता को भरोसा बढ़ा है।
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