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शुक्रवार, 12 मई 2017

उचित नहीं आआपा का 'राजनीतिक अभ्यास'

 आम  आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र में जिस प्रकार से ईवीएम से छेड़छाड़ का प्रदर्शन किया है, उसे किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता है। आआपा सरकार ने दो संवैधानिक संस्थाओं (विधानसभा और चुनाव आयोग) का एक तरह से उपहास उड़ाया है। आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज जब ईवीएम जैसी दिखने वाली मशीन पर मतदान प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रदर्शन कर रहे थे, तब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर सरकार के तमाम मंत्री-नेता सदन में हँस रहे थे। यह हँसी किसलिए थी? क्या इसलिए कि उन्होंने अपने दावे को सच करके दिखाया? क्या इसलिए कि उन्होंने भाजपा की जीत को धोखेबाजी सिद्ध कर दिया? क्या इसलिए कि उन्होंने चुनाव आयोग को झूठा साबित कर दिया? आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल और समूची पार्टी की इस हँसी में दंभ था, दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति थी, धूर्तता थी और नकलीपन था। भ्रष्टाचार के आरोपों का जवाब देने की जगह विधानसभा में खेले गए इस नाटक से आआपा की कलई पूरी तरह खुल कर सामने आ गई है।
          भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन से उपजी पार्टी और भ्रष्टाचार के खात्मे का संकल्प लेने वाले नेता पर जब उसके ही लोग घूसखोरी का आरोप लगा रहे हैं, तब ज्यादा जरूरी था कि अरविंद केजरीवाल आरोपों पर ठोस सफाई देते। लेकिन, वह तो भ्रष्टाचार के आरोपों पर चुप्पी रखकर नकली ईवीएम में छेड़छाड़ के नाटक पर सदन में अपनी खिलखिलाहट बिखेर रहे थे। जब केजरीवाल ने ट्वीट किया था कि 'सत्य की जीत होगी...' और जब दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की घोषणा की गई, तब सबको यही उम्मीद थी कि अरविंद और उनकी पार्टी भ्रष्टाचार के बेहद गंभीर आरोपों पर ठोस जवाब देगी। विधानसभा में कपिल मिश्रा के आरोपों के विरुद्ध सबूत प्रस्तुत किया जाएगा। लेकिन, दिल्ली विधानसभा में जो हुआ उसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। यह कहने में किसी को कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल ईवीएम की आड़ में अपना चेहरा छिपा रहे हैं। ईवीएम पर हंगामा खड़ा करके हो-हल्ला में वह भ्रष्टाचार के आरोपों को टालना चाह रहे हैं। भ्रष्टाचार के आरोपों से ध्यान हटाना का यह सुनियोजित नाटक ही प्रतीत होता है। जनता सब समझती है। आखिर क्या कारण हैं कि जब बार-बार अपने ही लोगों की तरफ से केजरीवाल पर अंगुली उठाई जा रही है, तब उस हालत में केजरीवाल उन आरोपों का जवाब देने के बजाए अचानक ईवीएम के मुद्दे को चर्चा के केंद्र में क्यों ला रहे हैं? 
           अरविंद केजरीवाल और सौरभ भारद्वाज यदि वाकई ईवीएम में छेड़छाड़ के 10 तरीके जानते हैं, तब उन्हें थोड़ा सब्र रखना चाहिए था। विधानसभा को नाटक का मंच बनाने की जगह उन्हें चुनाव आयोग के कार्यालम में जाना चाहिए था। चुनाव आयोग ने 12 मई को सभी राजनीतिक दलों को ईवीएम में छेड़छाड़ करके दिखाने के लिए आमंत्रित किया है, अब देखना होगा कि अरविंद केजरीवाल और सौरभ भारद्वाज अपना ज्ञान दिखाने वहाँ जाएंगे या नहीं? यदि आआपा चुनाव आयोग पहुँचकर ईवीएम में छेड़छाड़ सिद्ध नहीं कर सकी, तब बहुत थू-थू होने वाली है। और यदि आम आदमी पार्टी की ओर से कोई 'नेता कम इंजीनियर' चुनाव आयोग जाए ही नहीं, तब यह स्वत: ही सिद्ध हो जाएगा कि दिल्ली विधानसभा में 'खिलौना ईवीएम' से खेल खेला गया। और हाँ, यदि आम आदमी पार्टी का प्रतिनिधि वास्तविक ईवीएम में छेड़छाड़ साबित कर देगा, तब आआपा को लाभ तो पहुँचेगा ही भारतीय राजनीति और लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी। लेकिन, फिलहाल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी जिस तरह से संवैधानिक संस्थाओं को संदेह के कठघरे में खड़ा कर रही है, उसकी निंदा ही की जा सकती है। 
            लोकतंत्र में अपनी बात कहने, विरोध करने और राजनीति करने की एक मर्यादा है। देश में व्यवस्थाओं पर सवाल उठाने की एक स्वस्थ परंपरा है। आआपा की राजनीति से इन सबका अमर्यादित ढंग से उल्लंघन होता दिखाई दे रहा है। संवैधानिक व्यवस्थाओं और लोकतंत्र को चोटिल करने वाला यह 'राजनीतिक अभ्यास' किसी भी सूरत में उचित नहीं है। 

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