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सोमवार, 8 मई 2017

स्वच्छता की ओर बढ़ते कदम

 एक  बार फिर केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत किए गए सर्वे के परिणाम देश के सामने रखे हैं। सर्वे के आंकड़ों पर भरोसा करें, तब यह स्पष्ट है कि हम स्वच्छता की ओर बढ़ रहे हैं। दरअसल, स्वच्छता अभियान के परिणाम पर भरोसा करने का कारण मात्र आंकड़े नहीं हैं, बल्कि हमने अनुभव किया है कि धीरे-धीरे स्वच्छता हमारी आदत होती जा रही है। अब हम यहाँ-वहाँ कचरा फेंकने से बचते हैं, जबकि पहले कहीं भी कचरा फेंकने में कोई संकोच नहीं होता था। स्वच्छता अभियान के कारण हमारे मन का संस्कार हुआ है। स्वच्छता के प्रति जागरूक करने वाले सार्वजनिक हित के विज्ञापन और लघु फिल्मों ने हमारे मन को चेताया है। स्वच्छ शहरों की रैंकिंग घोषित करने की सरकार की नीति का भी कहीं न कहीं प्रभाव पड़ रहा है। जागरूक नागरिक और शहर की सरकारें चाहती हैं कि उनके शहर के माथे पर 'अस्वच्छ शहर' का कलंक नहीं लगे। इस तथ्य को हम सर्वे के परिणाम में अनुभूत कर सकते हैं। पूर्व के सर्वेक्षणों में जो शहर स्वच्छता के मामले में बहुत पीछे थे, इस सर्वे में उन्होंने अपनी स्थिति सुधारी है। अर्थात् हम स्वच्छता की ओर बढ़ रहे हैं। हालाँकि हमें पूरी ईमानदारी से यह भी स्वीकार करना होगा कि तस्वीर जितनी उजली दिखाई जा रही है, उतनी है नहीं।
          मध्यप्रदेश के दृष्टिकोण से सर्वे के परिणाम उत्साह बढ़ाने वाले हैं, क्योंकि अब तक मध्यप्रदेश का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहता था। वर्ष 2015 में जब सर्वे के आंकड़ों को देश के सामने रखा गया था, तब स्वच्छता की श्रेणी में मध्यप्रदेश का शहर दमोह सबसे आखिरी पायदान पर था। इसके अलावा तब 31 राज्यों के 476 शहरों की सूची में भिण्ड 475, नीमच 467, ग्वालियर 400 और उज्जैन 355वें पायदान पर रहा। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल भी स्वच्छता के मामले में 106वें स्थान पर रही। यह अच्छी बात है कि मध्यप्रदेश के नागरिकों और सरकार ने इस तस्वीर से हतोत्साहित होने की जगह इसे चुनौती की तरह स्वीकार किया और अपनी छवि सुधारने का संकल्प किया। वर्ष 2017 में इसी शुभ संकल्प का सुखद परिणाम आया है। 
          सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश की औद्योगिक राजधानी और लघु मुंबई के नाम से ख्यात इंदौर शहर भारत का सबसे स्वच्छ शहर बन गया है। वहीं प्रदेश की राजधानी भोपाल दूसरे स्थान पर रहा। विकास मंत्रालय ने देशभर में 434 शहरों में सर्वे किया, जिसमें लगभग 18 लाख लोगों ने हिस्सा लिया। मध्यप्रदेश के नागरिकों के लिए अधिक प्रसन्नता की बात यह है कि वर्ष 2014 से 2016 तक स्वच्छ शहरों की सूची में लगातार पहले स्थान पर रहने वाले मैसूर को पीछे छोड़कर इंदौर ने शीर्ष स्थान प्राप्त किया है। इसके साथ ही शीर्ष 100 स्वच्छ शहरों की सूची में प्रदेश के 23 शहरों ने जगह बनाई है। 
          यहाँ हमें यह जरूर समझ लेना चाहिए कि स्वच्छ शहरों की सूची में अन्य शहर लुढ़के नहीं हैं, बल्कि अब तक उनसे पीछे रहने वाले शहरों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। स्वच्छता में बाजी मारने वाले दक्षिण भारत के शहर अब भी स्वच्छ हैं। स्वच्छता को लेकर वहाँ के लोगों का नागरिक बोध शेष भारत से अच्छा रहा है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि उत्तर और मध्य भारत के शहरों का अच्छा प्रदर्शन स्वच्छ भारत अभियान की सफलता है। इस अभियान के प्रणेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी ने भी लंबी छलांग लगाई है। वर्ष 2014 में 418वें स्थान पर रहने वाला बनारस इस साल 32वें नंबर पर पहुंच गया है। दरअसल, स्वच्छता की होड़ में पिछडऩे वाले राज्य अब जी-जान से अपनी 'लकीर' बड़ी करने में जुट गए हैं। पिछले दो वर्षों में साफ-सफाई से जुड़े बुनियादी ढांचे और सेवा में अच्छी-खासी प्रगति हुई है। 
          हमें याद होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता के परम आग्रही महात्मा गाँधी की जयंती पर वर्ष 2014 में सम्पूर्ण देश में अपने महत्त्वाकांक्षी आंदोलन 'स्वच्छ भारत अभियान' का शुभारंभ किया था। यह अभियान पाँच साल के लिए है। यानी 2019 तक भारत को स्वच्छ बनाने का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य प्रधानमंत्री ने  लिया है। वर्ष 2019 में महात्मा गांधी जयंती को 150 वर्ष हो रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी यदि अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं, तब यह महात्मा गांधी के प्रति उनका सबसे बड़ा समर्पण होगा। 
          बहरहाल, अभियान का उद्देश्य शहरों और गाँवों को स्वच्छ बनाने का है। इसके तहत शहरों-गाँवों में शौचालयों का निर्माण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा, मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करना, स्वच्छ और शुद्ध पेयजल का प्रबंध करना आदि शामिल है। अभियान के माध्यम से प्रधानमंत्री स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहते हैं। स्वच्छता को आदत बनाना उनका मुख्य उद्देश्य प्रतीत होता है। इसके लिए उन्हें समाज के प्रमुख और प्रभावशाली व्यक्तियों को स्वच्छ भारत अभियान से जोड़ा था। ताकि वे स्वच्छता के लिए लोगों को प्रेरित कर सकें। यह बात सही है कि भारत को स्वच्छ बनाने के लिए सरकार ठोस उपाय तो कर देगी, जैसे शौचालयों का निर्माण कर देगी, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा भी उपलब्ध करा दी जाएगी, पेयजल की शुद्धता के लिए भी प्रयास कर लेगी, लेकिन क्या इतने से स्वच्छता आ जाएगी? सरकार की ओर से यह प्रयास आवश्यक हैं। स्वच्छ भारत की तस्वीर बनाने के लिए ठोस उपाय जरूरी हैं। लेकिन, उससे भी अधिक स्वच्छता के प्रति समाज जागरण जरूरी है। शौचालय बनने के बाद उसकी साफ-सफाई की जितनी चिंता नगर निगम या ग्राम पंचायत को करनी है, उससे अधिक चिंता जनता को करनी होगी। 
        मध्यप्रदेश की राज्य एवं स्थानीय सरकारों और नागरिकों को सर्वे के आंकड़ों से अधिक खुशफहमी नहीं पालनी चाहिए, बल्कि स्वच्छता के लिए और अधिक गंभीरता एवं जिम्मेदारी से प्रयास करते रहना होगा। क्योंकि आंकड़ों से इतर देखें, तब हमको दिखाई देगा कि अभी स्वच्छता के लिए और अधिक काम करने की आवश्यकता है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-05-2017) को
    संघर्ष सपनों का ... या जिंदगी का; चर्चामंच 2629
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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