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शनिवार, 17 अगस्त 2024

आंतरिक सुरक्षा को लेकर सजग है आरएसएस

“कोई पूछता है कि देश के लोग सुरक्षित क्यों हैं? तो मैं कहना चाहूँगा कि यहाँ संविधान है, लोकतंत्र है, सेना है और किस्मत से आरएसएस है”। - न्यायमूर्ति केटी थॉमस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पूर्व जज केटी थॉमस का बयान

सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति केटी थॉमस के इस कथन के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवकों की देशभक्ति एवं बलिदान की कथाएं हैं। जब हम इतिहास के पृष्ठ पलटते हैं तो संघर्ष के समय में आरएसएस के कार्यकर्ता साहस के साथ मोर्चा लिए खड़े दिखाई देते हैं। स्वतंत्रता के बाद जब पहली बार पाकिस्तान ने आक्रमण किया तब, 1962 में चीन ने पीठ में छुरा घोंपा तब और उसके बाद भी जब देश पर शत्रु ने हमला किया तब, प्रत्येक अवसर पर संघ के स्वयंसेवकों ने यथासंभव देश की सुरक्षा में अपना योगदान दिया। गोवा मुक्ति आंदोलन में तो संघ ने अग्रणी भूमिका का निर्वहन किया। इस आंदोलन में उज्जैन, मध्यप्रदेश के ही एक स्वयंसेवक राजाभाऊ महाकाल ने तिरंगे की शान में सीने पर गोली खाई थी। युद्ध ही क्यों, संघ के स्वयंसेवक शेष समय में भी आंतरिक सुरक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत आरएसएस के समविचारी संगठन अपने निहित कार्यों को संपादित करने के साथ-साथ समाज का इस प्रकार प्रबोधन करते हैं कि वहाँ अराजकतावादी ताकतें पनप नहीं पाती हैं। 

देश की सुरक्षा के लिए संघ के स्वयंसेवक सदैव तत्पर और सजग रहते हैं। बाहरी दुश्मनों से निपटने के लिए देश की सीमा पर अदम्य साहसी भारतीय सेना खड़ी है। किंतु, विदेशी ताकतें भारत को भीतर से भी तोडऩे के लिए षड्यंत्र रचती रहती हैं। ऐसे में सेना जैसा अनुशासन रखने वाले सजग नागरिकों की आवश्यकता रहती है, जो आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में देश के सुरक्षा बलों के अप्रत्यक्ष रूप से सहायक सिद्ध हो सकें। संघ के स्वयंसेवक शाखा में ऐसा ही अनुशासन और सजगता सीखते हैं। स्वयंसेवकों के इसी अनुशासन को आधार बना कर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि संघ के स्वयंसेवक तीन दिन में सेना के लिए तैयार हो सकते हैं। 

Statement of former judge KT Thomas on Rashtriya Swayamsevak Sangh

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार और समाज दोनों को ही समय-समय पर बाहरी और भीतरी हमले के संबंध में चेताता रहा है। देश की आंतरिक सुरक्षा संघ की प्राथमिकता में शामिल है। इसलिए संघ की शीर्ष बैठकों में आंतरिक सुरक्षा के विषय पर निरंतर चर्चा होती रहती है। मुम्बई बम धमाकों (वर्ष 1993) के बाद तो संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने बाकायदा 'देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे' शीर्षक से एक प्रस्ताव पारित किया था। अपने इस प्रस्ताव में संघ ने देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति चिंता जताई, उसे और अधिक मजबूत करने की माँग सहित पाँच प्रमुख आग्रह सरकार के समक्ष प्रस्तुत किए। इसके बाद 1994 में 'आंतरिक सुरक्षा' और 1995 में 'आंतरिक परिस्थिति' शीर्षक से प्रस्ताव पारित किया था। वर्ष 1995 के अपने प्रस्ताव में संघ ने स्वयंसेवकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि राष्ट्रीय एकता और अपने सांस्कृतिक मूल्यों का बोध जगाकर राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत एकात्म समाज को खड़ा करने के कार्य को और भी अधिक गतिमान और बलवान बनाने के लिए पूरी शक्ति से जुट जाएं। संघ ने राष्ट्रीय सुरक्षा-1996, राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती-2001, आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौतियां-2004, आतंकवाद और भारत की आंतरिक सुरक्षा-2006 प्रस्ताव पारित कर भी आंतरिक सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता एवं चिंता को प्रकट किया। इसके साथ ही अन्य प्रस्तावों में भी कहीं न कहीं संघ के नीति निर्माता समूह ने आंतरिक सुरक्षा को मुद्दे को सम्मिलित किया है। 

यदि हम मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखें तो संघ के समविचारी संगठनों के प्रयास के कारण ही यहाँ अराजक एवं विभाजनकारी ताकतें सक्रिय नहीं हो पाईं। प्रदेश के कुछ हिस्सों नक्सलियों के प्रभाव में आए, किंतु नक्सली उन हिस्सों को पूरी तरह से लाल गलियारे में परिवर्तित नहीं कर पाए। क्योंकि, उन क्षेत्रों के नागरिकों के बीच संघ का काम पहले से उपस्थित था और जहाँ नहीं था, वहाँ संघ ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। संघकार्य से उन क्षेत्रों के नागरिकों में अपने राष्ट्रभक्ति की भावना प्रकट हुई और वह नक्सलियों के जाल में नहीं फंस पाए। मध्यप्रदेश में संघ की उपस्थिति को मजबूत माना जाता है। यहाँ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं, अपितु सुदूर वनवासी क्षेत्रों में भी संघ प्रत्यक्ष एवं समविचारी संगठनों के माध्यम से समाज हित में कार्य कर रहा है। शिक्षा एवं स्वावलंबन के लिए वनवासी कल्याण आश्रम और सेवा भारती जैसे संगठन वनवासी समाज के बीच में काम कर रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद भी सामाजिक कार्यों के माध्यम से इन क्षेत्रों में सक्रिय है। यह जान लेना जरूरी होगा कि वनवासी समाज के बीच समाजकंटक ताकतें पूरी ताकत के साथ सक्रिय हैं। यह ताकतें समाज को बांटने के लिए हर प्रकार के षड्यंत्र रच रही हैं। वनवासियों को हिंदू समाज से तोडऩे और उन्हें अपने ही मूल के प्रति विद्रोही बनाने का दुष्चक्र भी देश विरोधी ताकतें रचती हैं। किंतु, वनवासी कल्याण आश्रम और सेवा भारती जैसे संगठन अपने सेवाकार्यों से वनवासी समाज को अपना बना लेते हैं और उनके मन में कोई भ्रम ही उत्पन्न नहीं होने देते। जो वनवासी बंधु समाजकंटकों के संपर्क में आ भी जाते हैं, उनका भी मन बदलने में देर नहीं लगती। संघ अपने निस्वार्थ सेवाकार्यों से उन्हें जागरूक कर रहा है। वनवासी कल्याण आश्रम और सेवाभारती सुदूर क्षेत्रों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। उनके प्रयास से ऐसे क्षेत्रों में विद्यालय प्रारंभ हुए हैं, जहाँ सरकार भी शिक्षा का उजियारा लेकर नहीं पहुंच सकी। पूर्ण एवं एकल विद्यालयों के माध्यम से संघ के स्वयंसेवक बच्चों को शिक्षित ही नहीं कर रहे, अपितु उनको संस्कार भी देने का कार्य करते हैं। उनको राष्ट्रीय स्वाभिमान से भी जोड़ते हैं।

मध्यप्रदेश एक समय में आतंकवादी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का जाल भी फैल गया था। परंतु, सिमी का काम मध्यप्रदेश में चल नहीं सका। मध्यप्रदेश के जाग्रत समाज ने सिमी का भण्डा फोड़ दिया और राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित सरकार ने आतंकी संगठन को प्रतिबंधित करने में कतई देर नहीं लगाई। संघ के स्वयंसेवक लगातार सरकार को चेता रहे थे कि प्रदेश में स्टूडेंट मूवमेंट के नाम पर आतंकी संगठन खड़ा हो रहा है। बाद में, जब आतंकी बम धमाकों में सिमी की संल्पितता उजागर हुई, तो संघ की चेतावनी सबको स्मरण हुई। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिर्फ आंतरिक सुरक्षा पर चिंता ही व्यक्त नहीं करता है, अपितु उसके स्वयंसेवक सदैव देश की सुरक्षा के लिए चौकन्ने रहते हैं। जिन क्षेत्रों में संघ का कार्य प्रभावी ढंग से चलता है, वहाँ समाज जाग्रत रहता है। उन क्षेत्रों में ऐसी स्थिति कतई नहीं रहती कि लोगों को अपने पड़ोस की भी जानकारी न हो। बल्कि, उन क्षेत्रों में लोगों का आपस में आत्मीय संपर्क एवं संवाद रहता है। इस कारण वहाँ समाज के बीच कोई भी संदिग्ध व्यक्ति या गतिविधि छिप नहीं सकती। संघ का मानना है कि देश की अखण्डता के लिए आवश्यक है कि देश भीतर से भी मजबूत हो। देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित हो और यह सब संभव है, समाज के जाग्रत एवं संगठित रहने से। इसलिए संघ का जो समाज संगठन का कार्य है, वह भी आंतरिक सुरक्षा में अप्रत्यक्ष रूप से सहायक सिद्ध होता है।

15 अगस्त 2024 को स्वदेश भोपाल में प्रकाशित- देश की रक्षा के लिए तत्पर संघ

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