राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, महाकौशल प्रांत के सह-प्रचार प्रमुख प्रशांत बाजपेयी का हृदयघात से निधन
जब से सूचना मिली है कि प्रशांत जी नहीं रहे, मन है कि विश्वास ही नहीं कर रहा है। मन थोड़ी देर सहज रहता है, फिर अचानक से ध्यान आता है कि प्रशांत जी नहीं रहे, तो बेचैनी बढ़ जाती है। फिर अगले ही क्षण इस अविश्वसनीय समाचार को ‘असत्य’ मानकर मन सहज हो जाता है। कुलमिलाकर मन मानने को तैयार नहीं है कि आज से ठीक 14 दिन बाद यानी 8 सितंबर को जिसका जन्मदिन था, वह 46 वर्ष की अल्पायु में ही हमको छोड़कर जा चुका है। जिसका हृदय धर्म, देश, समाज और मित्रों के लिए खूब धड़कता था, 24 अगस्त को अचानक से उसकी हृदय गति ही रुक गई। हृदयघात ने हम सबके ‘प्रशांत’ को छीन लिया। सोच रहा हूँ कि नियति को भी क्या सूझी होगी कि एक हँसता-खिलता फूल चट से तोड़ लिया…..
महाकौशल प्रांत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-प्रचार प्रमुख प्रशांत बाजपेयी एक अध्ययनशील और तार्किक युवा चेहरे थे। उनके चेहरे पर तेज, वाणी में ओज और आँखों में सदैव चमक रहती थी। लेखनी में गजब की धार थी। तर्क, तथ्य और कथ्य का ऐसा संयोजन करते कि गंभीर विषय को भी बड़ी सरलता से पाठकों तक पहुँचाने में सफल रहते। उनको मैंने सबसे पहले पाञ्चजन्य में पढ़ा। स्तम्भ लेखन में उनकी कुशलता थी ही, वक्तृत्व कला में भी उनकी कोई सानी नहीं थी। यूँ तो मैंने उन्हें अनेक अवसरों पर सुना था लेकिन मुझे याद है कि शहडोल में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिक्षावर्ग- द्वितीय वर्ष में पैनल डिस्कशन कार्यशाला में उन्होंने जिस ढंग से विभिन्न प्रश्नों के उत्तर दिए, उससे वहाँ उपस्थिति सैकड़ों स्वयंसेवक उनके प्रशंसक हो गए थे।
प्रशांत जी से जब भी मिलना होता, खूब बातें होती। निरंतर अध्ययन के कारण उन्हें विभिन्न विषयों की गहरी समझ थी। जब वे किसी विषय पर बोलना शुरू करते थे, तो उनकी आँखों से आत्मविश्वास झलकता था। पुस्तकों के साथ ही वे अपने आसपास के समाज का भी लगातार अध्ययन करते रहते थे। देश-समाज में कहाँ क्या चल रहा है, उनकी बारीक नजर रहती थी। इसलिए उनकी बातों में केवल समस्याएं और चुनौतियां ही नहीं अपितु समाधान भी होते थे। जनजातीय विषयों की उनकी समझ गजब की थी। उनका मानना था कि वातानुकूलित कक्षों में बैठकर जनजातीय विषयों की समझ विकसित नहीं हो सकती। जनजातीय समुदाय में अलगाव की भावना को पैदा करनेवाली ताकतें भी उनके बीच जाकर ही काम करती हैं। इसलिए जनजातीय समुदाय, उनकी समस्याओं एवं चुनौतियों को समझने एवं उनके समाधान के लिए हमें, उनके बीच में ही जाना होगा। पिछले वर्ष उनके साथ अमृतसर में दो दिन रहना हुआ, तब उनसे सिख संप्रदाय के संबंध में बहुत महत्वपूर्ण बातें जानने को मिली। बाद में मुझे पता चला कि जब वे सिख संगत का कार्य करते थे, तब उन्होंने इस संबंध में बहुत अध्ययन किया था। कहने का अभिप्राय है कि उन्हें जो भी कार्य मिलता, उसके विविध पहलुओं को गहरायी में जाकर समझना उनका स्वभाव था।
संघ के प्रचार विभाग के कार्यकर्ता को कैसा होना चाहिए, उसका एक अच्छा उदाहरण प्रशांत बाजपेयी थे। प्रचार विभाग के कार्यों को संपादित करने के साथ ही निरंतर अध्ययन करना और विमर्श के मुद्दों पर चिंतन-मनन करना, उनके व्यक्तित्व से यह सीखना चाहिए। संघ कार्य में उनकी सक्रियता से व्यावसायिक जीवन और सामाजिक जीवन में संतुलन बनाने का गुण भी उनसे सीख सकते हैं। प्रशांत जी किसी भी कार्य को पूर्ण समर्पण और निष्ठा के साथ करते थे। जब उन्हें प्रचार विभाग की ओर से जबलपुर में प्रांत स्तर का फिल्म फेस्टीवल आयोजित करने की जिम्मेदारी मिली, तो उन्होंने पहली बार में ही ‘जबलपुर शॉर्ट/डॉक्यूमेंट्री फिल्म महोत्सव’ को स्थापित कर दिया। प्रशांत जी, महाकौशल फिल्म विकास समिति, जबलपुर के अध्यक्ष के रूप में भी सक्रिय थे। पिछली बार जब मिलना हुआ था, तब उन्होंने कहा कि आपसे सीखकर मैंने भी पॉडकास्ट शुरू कर दिया है। दरअसल, वीडियो ब्लॉगिंग के मेरे प्रयास उन्हें काफी पसंद आए थे। यूट्यूब चैनल 'अपना वीडियो पार्क' पर कई वीडियो देखने के बाद उन्होंने लंबी चर्चाएं उन विषयों पर की। प्रशांत जी जिन राष्ट्रीय विचार के वाहक पत्रों- पाञ्चजन्य और ऑर्गेनाइजर को पढ़कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों से प्रभावित हुए और उससे जुड़े, बाद में चलकर उन्होंने इन्हीं पाञ्चजन्य और ऑर्गेनाइजर में खूब लिखा।
प्रशांत जी के यूँ अचानक चले जाने से एक बड़ा शून्य उभरा है, जिसको भरा नहीं जा सकता। हम आपको सदैव याद करेंगे और आपसे सीखते रहेंगे….. आपकी कमी खूब खलेगी। विनम्र श्रद्धांजलि…..
बेहद दुखद समाचार
जवाब देंहटाएंऐसे जिम्मेदार और कर्मठ लोगों का इस तरह चले जाना बहुत दुखद और अपूरणीय क्षति है।
जवाब देंहटाएंस्तब्धकारी सूचना है। भारत मां का एक लाल हमसे छिन गया। आपने अत्यंत मार्मिक लेखन किया है उनके व्यक्तित्व को प्रभावी अभिव्यक्ति दी है। ऊं शांति
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