भारतीय राजनीति के पन्नों पर
भारतीय जनता पार्टी के राजनेता मनोहर पर्रिकर का नाम सदैव के लिए स्वर्ण अक्षरों
में लिखा गया है। जब भी भविष्य में भारतीय राजनीति का अध्ययन करने के लिए अध्येता
इस पुस्तक के पृष्ठ पलटेंगे, तो स्वर्णिम अक्षरों में लिखा ‘मनोहर पर्रिकर’ उनके मन को सुकून देगा। यह नाम
विश्वास दिलाएगा कि काजल की कोठरी में भी बेदाग रहकर देशहित में राजनीति की जा
सकती है। कोयले की खदान में हीरे ही बेदाग और चमकदार रह सकते हैं। राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के विचार से संस्कारित मनोहर पर्रिकर शुचिता की राजनीति के पर्याय
बन गए। उन्होंने भारतीय राजनीति के उस समय में ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा
और समर्पण के ऊंचे मूल्य स्थापित किए, जब राजनीति भ्रष्टाचार
और नकारात्मकता का पर्याय हो चुकी थी। मनोहर पर्रिकर जैसे राजनेता घोर अंधेरे में
भी रोशनी की उम्मीद की तरह आम जन को नजर आते थे। वह हम सबके सामने शुचिता की
राजनीति के आदर्श मूल्य और जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करके गए हैं। आदर्शों पर कैसे
चला जाता है, उसके पग चिह्न भी बना कर गए हैं। राजनीति में
आने वाले युवाओं को उनके बनाए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
स्वर्गीय पर्रिकर अदम्य साहस और जीवटता के प्रतीक पुरुष भी थे। जीवन के
अंतिम समय तक अपनी सांस को कर्तव्य पथ आगे बढऩे में लगा दिया। वे पिछले एक साल से
अग्नाशय कैंसर से जूझ रहे थे। इस बीच अनेक अवसर आए जब उन्होंने अपने मूल्यों को
प्रामाणिकता से प्रस्तुत किया। वे अपने काम के प्रति इतने निष्ठावान थे कि गंभीर
बीमारी से लडऩे के दौरान भी उन्होंने अपने आधिकारिक काम को नहीं छोड़ा। पिछले वर्ष
सितम्बर में आई उन तस्वीरों को कौन भूल सकता है, जब वे
दिल्ली के एम्स अस्पताल से ही आधिकारिक फाइलों को पढ़ कर कार्यवाही कर रहे थे। 6 दिसंबर, 2018 को जब वह अचानक गोवा में बन रहे जुआरी
ब्रिज और तीसरे मांडवी ब्रिज का जायजा लेने पहुँच गए। गोवा की विधानसभा में बजट
सत्र के दौरान जब उन्होंने कहा- हाउ इज द जोश, तब उनके
आत्मविश्वास और उत्साह के स्तर का पता चलता है।
जब भी मनोहर पर्रिकर को याद किया जाएगा, तब उनके
वैचारिक अधिष्ठान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ‘व्यक्ति
निर्माण की कार्यपद्धति’ का जिक्र भी होगा। अपने जीवन की सभी
उपलब्धियों को वह संघ शिक्षा को समर्पित कर देते थे। पाकिस्तान और आतंकवाद को सबक
सिखाने के लिए रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने ‘सर्जिकल
स्ट्राइक’ जैसा साहसिक कदम उठा कर भारत के पौरुष से दुनिया को परिचित कराया। अपनी इस
उपलब्धि को भी उन्होंने संघ को समर्पित कर दिया। रक्षा मंत्री के अपने संक्षिप्त
कार्यकाल में ही उन्होंने सेना को अत्याधुनि हथियारों से सुसज्जित करने के कदम
उठाए और सैनिकों के हितों की चिंता भी आगे बढ़कर की।
संघ के आदर्श स्वयंसेवकों की परंपरा में मनोहर पर्रिकर का नाम शामिल
रहेगा। संघ से विरासत में मिली सादगी और अनुशासन को उन्होंने न केवल बरकरार रखा,
बल्कि दुनिया को यह भी बताया कि आखिर ‘स्वयंसेवक’ होना क्या है? संघ के संबंध में जितने भी भ्रम एक
षड्यंत्र के अंतर्गत समाज में फैलाए गए हैं, उन सबकी धूल
झाडऩे के लिए अकेले मनोहर पर्रिकर का जीवन ही पर्याप्त है।
उनके जाने से भारतीय राजनीति में एक शून्य पैदा
हुआ है। उस शून्य को भरने का प्रयास शेष राजनीति को करना चाहिए। उनके द्वारा
निर्मित ‘मनोहर
पथ’ पर आगे बढ़ कर इस शून्य को आसानी से
भरा जा सकता है। भारत को सदैव मनोहर पर्रिकर जैसे त्यागी, तपस्वी,
कर्मशील और निष्ठावान राजनेताओं की आवश्यकता रहेगी।
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