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सोमवार, 17 सितंबर 2018

संघ की पहल

'भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण' - 1
- लोकेन्द्र सिंह 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय व्याख्यानमाला कार्यक्रम पर सबकी नजर है। देश में भी और देश के बाहर भी। सब जानना चाहते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक संगठन आरएसएस ‘भविष्य का भारत’ को किस तरह देखता है? संघ का ‘भारत का विचार’ क्या है? दरअसल, यह उत्सुकता इसलिए भी है क्योंकि पिछले 93 वर्षों में कुछेक राजनीतिक/वैचारिक खेमों से संबद्ध राजनेताओं, लेखकों, पत्रकारों, कलाकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर अनेक मिथक गढ़ दिए हैं। किंतु, संघ सब प्रकार के दुष्प्रचारों की चिंता न करते हुए समाज के बीच कार्य करता रहा और तमाम आरोपों का उत्तर अपने आचरण/कार्य से देता रहा। परिणामस्वरूप आज संघ का विस्तार ‘दशों दिशाओं...’ में हो गया है। उसके निष्ठावान स्वयंसेवक सबदूर ‘दल बादल...’ से छा गए हैं। इसके बावजूद व्यापक स्तर पर किए गए दुष्प्रचार के कारण समाज के कुछ हिस्सों में संघ को लेकर स्पष्टता नहीं है। एक विश्वास व्यक्त किया जा रहा है कि इस महत्वपूर्ण आयोजन से बहुत हद तक भ्रम और मिथक के बादल छंट जाएंगे।
          प्रारंभिक दो दिन (17 और 18 सितंबर) सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ‘भविष्य का भारत’ विषय पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण प्रस्तुत करेंगे। तीसरे दिन, 19 सितंबर को व्याख्यानमाला में आमंत्रित महानुभावों के प्रश्नों का उत्तर देंगे। संघ ने इस कार्यक्रम के लिए देश-दुनिया से चयनित लोगों को आमंत्रित किया है। इनमें सब प्रकार के संगठनों (राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृति एवं अन्य) से चयनित प्रतिनिधि आमंत्रित हैं। जब इस आयोजन की जानकारी संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने दिल्ली में प्रेस के सामने रखी थी, तब मीडिया के एक वर्ग ने जानबूझ कर (संभवत: टीआरपी के लिए) यह समाचार चला दिया था कि संघ कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को अपने कार्यक्रम में बुलाएगा। उसके बाद स्वाभाविक तौर पर एक अनावश्यक बहस प्रारंभ हो गई। जबकि संघ के प्रचार प्रमुख ने उसी समय स्पष्ट किया था कि अभी राहुल गांधी को बुलाने की कोई योजना नहीं बनी है। हम किसको बुलाएंगे, यह हम तय करेंगे। परंतु, अभी इतना तय है कि हम सब विचार और कार्यक्षेत्र के लोगों को बुलाएंगे। संघ ने राहुल गांधी को चिट्ठी भेजी है या नहीं, अब भी यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुआ है। 
          बहरहाल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भविष्य में भारत को कहाँ देखना चाहता है, यह तो उसकी शाखा में नित्य की जाने वाली प्रार्थना से ही स्पष्ट होता है। ‘परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्’ अर्थात् संघ भारत को परम् वैभव के शिखर पर देखना चाहता है। विश्वगुरु की भूमिका में। दुनिया का नेतृत्व करते हुए। संघ का भारत के संदर्भ में जो विचार है वह कोई नया नहीं है। जो भारत के वेद-उपनिषदों में कहा गया है, उसका सार लेकर ही संघ काम करता है। उसके लिए भारत का अभिप्राय स्वामी विवेकानंद के उस भारत से है, जिसकी एक झलक उन्होंने शिकागो विश्व धर्म संसद में प्रस्तुत की थी। विश्व बंधुत्व की बात करने वाला भारत। सबको साथ लेकर चलने वाला भारत। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से समय-समय पर भारत के विचार की संकल्पना को प्रस्तुत किया जाता है। इस श्रृंखला में यह महत्वपूर्ण अवसर है। संभवत: यह पहला अवसर है जब संघ अपना दृष्टिकोण रखने के लिए इस प्रकार का आयोजन कर रहा है। संघ की इस पहल का आत्मीय स्वागत किया जाना चाहिए।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-09-2018) को "दिखता नहीं जमीर" (चर्चा अंक- 3099) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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