जम्मू-कश्मीर में सेना के विरुद्ध नामजद एफआईआर दर्ज किया जाना समूचे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। जम्मू-कश्मीर सरकार को यह एफआईआर वापस लेनी चाहिए। केंद्र सरकार को बिना देरी इस मामले में दखल देना चाहिए। जम्मू-कश्मीर की सरकार में पीडीपी के साथ भारतीय जनता पार्टी भी सहयोगी है। भले ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सेना के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के प्रकरण में भाजपा के विधायकों ने विरोध किया हो, किंतु इस प्रकार का विरोध करना ही पर्याप्त नहीं है। भाजपा को पीडीपी पर दबाव बनाना चाहिए। क्योंकि, राज्य सरकार के इस कदम से सेना की प्रतिष्ठा पर प्रश्न उठ रहा है। राज्य सरकार के इस निर्णय का लाभ देश विरोधी ताकतें उठाएंगी।
जम्मू-कश्मीर में सेना की छवि खराब करने के षड्यंत्र रचे ही जाते हैं। क्योंकि सेना कमजोर होगी तो उसका सीधा लाभ देशद्रोहियों को होगा। इसलिए अत्यंत आवश्यक है कि समूचा देश अपनी सेना के साथ खड़ा हो। सेना के जवानों ने निर्दोष लोगों पर गोली चलाई है, ऐसा भी नहीं है। शोपियां में किन परिस्थितियों में सेना को गोली चलानी पड़ी है, वह सबके सामने है। सेना ने सदैव ही संयम से काम लिया है। सेवा के बदले भी पत्थर झेले हैं।
हमने वह वीडियो भी देखा था, जिसमें एक सैनिक को घेर कर जम्मू-कश्मीर के समाजकंटक तत्व मार-पीट कर रहे थे, किंतु उस सैनिक ने बंदूक हाथ में होते हुए अपना संयम नहीं खोया था। इसलिए देश को पूरा भरोसा है कि शोपियां में सेना ने फायरिंग की है तो जरूर स्थितियां भयावह होंगी। अपनी जान बनाने के लिए सेना के जवानों को गोलियां चलानी पड़ीं। आत्मरक्षा में गोली चलाना किसी भी प्रकार गलत नहीं है। समय और परिस्थितियां ऐसी थी कि सेना के जवानों के पास कोई और विकल्प नहीं था। सामने निर्दोष लोग नहीं थे, बल्कि जवानों की जान लेने की कोशिश कर रहे उपद्रवी थे।
प्रारंभिक पूछताछ और घटना की समूची जानकारी लेने के बाद सेना का शीर्ष नेतृत्व अपने जवानों के साथ खड़ा हो गया है। जनरल अन्बु ने स्पष्ट कर दिया कि इस प्रकरण में कोई गिरफ्तारी नहीं होगी। जनरल अन्बु ने यह भी कहा कि एफआईआर के सरकार के फैसले से सेना सहमत नहीं है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले मेजर लीतुल गोगोई को भी समाजविरोधी ताकतों ने खलनायक सिद्ध करने का प्रयास किया था, किंतु सेना और देश का साथ मिलने से उनका यह षड्यंत्र विफल रहा।
अब प्रश्न यह उठ रहा है कि सेना के जवानों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के लिए राज्य सरकार ने केंद्रीय रक्षामंत्री से चर्चा कर अनुमति ली है। यदि ऐसा हुआ है तो यह बहुत खेदजनक स्थिति है। मोदी सरकार से ऐसे किसी प्रकार के कदम की अपेक्षा नहीं है। केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को तत्काल इसका खण्डन जारी करना चाहिए। उन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि केंद्र सरकार का क्या मत है, इस घटना पर? देश के सैनिक जम्मू-कश्मीर में किन परिस्थितियों में रहते हैं, समूचा देश इस बात को जानता है। सेना के मनोबल को ऊंचा रखने के लिए जरूरी है कि केंद्र सरकार जवानों के साथ खड़ी हो।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share