गणतंत्र दिवस के अवसर पर एक नौजवान की हत्या इसलिए कर देना कि वह तिरंगा लेकर वंदेमातरम का जयघोष कर रहा था, भारत में दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। सहसा विश्वास ही नहीं होता कि यह घटना हिंदुस्थान में हुई है। स्थान का उल्लेख किये बिना यदि घटना का वर्णन किया जाए तो यही लगेगा कि यह घटना पाकिस्तान में हुई होगी। घटना इस प्रकार है- उत्तरप्रदेश के कासगंज जिले में गणतंत्र दिवस पर स्थानीय युवकों ने तिरंगा यात्रा का आयोजन किया था। जब तिरंगा यात्रा कासगंज के मुस्लिम बाहुल्य मोहल्ले से गुजर रही थी, तो भारत माता की जय और वंदेमातरम के जयघोष लगाने पर समुदाय विशेष के लोगों ने तिरंगा यात्रा पर पथराव और गोलीबारी कर दी। गोली लगने से अभिषेक गुप्ता (चंदन) नाम के नौजवान की मौत हो गई। समुदाय विशेष की उग्र भीड़ ने पूरी रैली को घेर लिया। युवकों को अपनी जान बचाने के लिए मोटरसाइकलें छोड़कर भागना पड़ा। भीड़ ने उन मोटरसाइकलों को आग के हवाले कर दिया गया। इस घटना के बाद हिंदू समाज ने भी आक्रोश व्यक्त किया है।
यह पूरी घटना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि चिंता का विषय भी है कि एक समुदाय इतना असहिष्णु है कि उसे वंदेमातरम स्वीकार नहीं। यह घटना और अधिक चिंताजनक इसलिए भी है कि क्योंकि तथाकथित बुद्धिजीवी समाज ने पहले तो चुप्पी साध ली थी। उसे इस घटना में कोई असहिष्णुता नजर नहीं आई। किंतु, बाद में आश्चर्यजनक ढंग से कथित प्रगतिशील एवं वामपंथी खेमे के बुद्धिजीवियों ने हत्या के लिए मृतक को ही जिम्मेदार ठहराने का प्रयास प्रारंभ कर दिया है। उनका तर्क है कि युवकों ने मुस्लिम विरोधी नारेबाजी की, जिससे मुस्लिम समाज के लोग उग्र हो गए। वह तिरंगे के साथ भगवा झण्डा लेकर चल रहे थे। हिंसा को जायज ठहराने के यह निहायती बेहूदा तर्क हैं। यह तर्क नहीं, बल्कि कुतर्क हैं। इस बात के कोई सबूत नहीं है कि मृतक चंदन गुप्ता या किसी अन्य युवक ने मुस्लिम विरोध नारेबाजी की थी। यदि कथित बुद्धिजीवियों यह कहना सही भी हो तब भी किसी व्यक्ति की हत्या कैसे जायज ठहराई जा सकती है। अपने इस तर्क के आधार पर क्या वह गौ-हत्या के नाम पर हो रही हत्याओं को भी जायज मानेंगे? हिंदू विरोधी नारेबाजी, फिल्म या साहित्य से आहत होकर जब प्रतिकार स्वरूप हिंदू उग्र प्रदर्शन करता है, उसे भी उचित माना जाएगा क्या?
इस प्रकार की घटनाएं उस विशेष समुदाय को कठघरे में खड़ा कर देती हैं। उस पर वामपंथियों की बौद्धिक जुगाली उस समुदाय को और अधिक संदिग्ध बना देती है। ज्यादा अच्छा होता कि मुस्लिम समाज सामने आता और इस घटना की निंदा करता। अपितु, वामपंथियों के कुतर्कों को भी खारिज करता। बौद्धिक समाज देश का नेतृत्व करता है। उसे समानदृष्टि से घटनाओं को देखना चाहिए। तथाकथित बौद्धिक वर्ग एवं मीडिया द्वारा इस प्रकार के भेदपूर्ण लेखन एवं अभिव्यक्ति ने हिंदू-मुस्लिम की खाई को चौड़ा ही किया है। कहीं न कहीं हिंदू समाज को यह लगता है कि यह बौद्धिक वर्ग एवं मीडिया उसके दु:ख में भी अपना राजनीतिक खेल खेलता है। दोनों समुदाय के बीच यदि सामंजस्य बनाना है तो निश्चित ही हमें इस प्रकार की गैर-जिम्मेदार अभिव्यक्ति से बचना होगा। इस प्रकार की हिंसा आपसी भाई-चारे एवं देश-समाज की एकता में बाधक है। कुतर्कों से असामाजिक तत्वों को बचाने की अपेक्षा उन्हें हतोत्साहित करने की आवश्यकता है। हिंदुस्थान के गणतंत्र दिवस पर देशभक्त नौजवान की हत्या होना दु:खद है। ऐसी एक भी घटना आज की स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। उत्तरप्रदेश की सरकार को इस घटना की उच्च स्तर पर जाँच करानी चाहिए। दोषियों को सजा हो, यह भी सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए। उत्तरप्रदेश की जनता ने कानून व्यवस्था बनाने और सबके साथ समान व्यवहार के लिए भाजपा सरकार को चुना है। इस बात का ध्यान सदैव उत्तरप्रदेश की सरकार को रखना चाहिए।
इस प्रकार के जुलूस के समय पुलिस की जैसी चौकसी होनी चाहिए थी, वह नहीं थी. गुंडे तो हर दल में हैं बल्कि कहना चाहिए कि हर दल में उनकी ही चलती है. कासगंज में जो हुआ या जो आज भी हो रहा है, वह उत्तर प्रदेश सरकार की नाकामी है. ऐसा मैं ही नहीं, इस प्रदेश के राज्यपाल भी कह रहे हैं.
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही अच्छा लेख लिखा है। रोज भारत का खबर पढ़ने के लिए इस वेबसाइट को देखें। Latest News This Toppics
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