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रविवार, 24 दिसंबर 2017

भारत में 2004 से लेकर 2014 तक की राजनीति का हाल-ए-बयां करती पुस्तक

- विनय कुशवाह 

प्राचीन भारत में सारी सत्ता राजा के इर्द-गिर्द घूमती थी। शासन की प्रणाली प्रजातांत्रिक न होकर राजतंत्र वाली होती थी, जिसमें राजा ही सर्वोपरि होता था। राजा का आदेश ही सबकुछ होता था। राज्य की प्रजा राजा के माध्यम से ही देश के लिए कार्य करती थी। प्रजा से कर वसूला जाता था और राज्य के विकास, राजा के महल और सेना पर बड़ी मात्रा में खर्च किया जाता था। कर की राशि कहां और कितनी खर्च की गई, इसका हिसाब-किताब लगभग नगण्य ही होता था। ना तो उस जमाने में लोकपाल था, ना ही कैग, ना ही ईडी था और ना ही सीबीआई। राजा अपने राज्य में स्वयं ही न्यायालय होता था। यदि ऐसा कुछ आज के समय यानी इक्कीसवीं शताब्दी में हो कि प्रजातंत्र से चुनी गई सरकार अपनी मनमानी करें और शासन को बपौती समझ ले। ऐसा ही कुछ भारत में सन् 2004 से लेकर 2014 तक के शासन में हुआ। इसी समय का हाल-ए-बयां करती एक पुस्तक " देश कठपुतलियों के हाथ में "।
            यह पुस्तक श्री लोकेन्द्र सिंह जी के द्वारा लिखी गई जो स्पंदन भोपाल के द्वारा प्रकाशित हुई है। यह किताब कोई शब्दों का जाल नहीं बुनती। समय-समय पर विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित लेखों को एक प्रकार से गागर में सागर भरने की कोशिश की गई है। यह पुस्तक बताती है कि भारतीय राजनीति में 2004 से 2014 तक का समय किस प्रकार उथल-पुथल भरा रहा और किस प्रकार प्रजातांत्रिक मूल्यों को ताक पर रखकर एक टेक्नोक्रेट को प्रधानमंत्री बनाकर एक प्रकार से रिमोट कंट्रोल सरकार चलाई। यही लेख इस पुस्तक का शीर्षक बना।
           यह पुस्तक हमें सरकार के सुशासन से कुशासन की ओर जाने की कहानी बयां कर रही है। भारतीय शिक्षण पद्धति को किस प्रकार प्रभावित किया जा रहा है। जहां बच्चों को देशभक्ति परक शिक्षा दी जानी चाहिए वही उन्हें कट्टर वामपंथ की ओर ढ़केला जा रहा है। गांधी की जगह लेनिन को स्थान दिया जा है। वही सरकार के द्वारा तुष्टीकरण की नीतियों को बढ़ावा देने की बात हो या कश्मीर में अलगाववादियों को रियायत देने की बात हो। पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ हो रहे अत्याचारों से मुहं मोड़ना हो या भारत में मुस्लिम समुदाय के प्रति अति सहायता का भाव रखना हो, सभी मुद्दों पर इस पुस्तक में प्रकाश ड़ाला गया है।
           किस प्रकार संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु और मुंबई पर हमले करने वाले आमिर अजमल कसाब को येन-केन-प्रकारेण बचाने की कोशिश की गई। आंतकियों को शहीदों का दर्जा तक देने की कोशिश होती रही इस पुस्तक में अच्छे सलीके से बताया गया है।
          नरेन्द्र मोदी, गुजरात के मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ उनकी छवि तत्कालीन समय में एक राष्ट्रीय नेता की थी और कई नेताओं को डर था कि कही यह प्रधानमंत्री न बन इसलिए दुष्प्रचार की सीमाएं लांघी गई।
          भ्रष्टाचार समाज को किस प्रकार खोखला बना देता है और जनता की गाढ़ी कमाई एवं राष्ट्रहित के लिए उपयोग में आने वाले धन का किस प्रकार दुरुपयोग किया गया। इस प्रकार समाज में नवचेतना जगाने वाले कुल 46 लेख इस पुस्तक में है जो भारतीय राजनीति को समझने में आपकी समझ और विकसित करेंगे।

(लेखक युवा पत्रकार हैं. यह समीक्षा उनके ब्लॉग 'स्वछंद' पर प्रकाशित है)

https://vinayswachhand.blogspot.in/2017/12/blog-post_23.html

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