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रविवार, 1 अक्तूबर 2017

विकास की मुख्यधारा में आए गाँव

स्वतंत्रता के बाद सत्तर वर्षों तक गाँव और गरीब की सिर्फ बात ही होती रही, उनकी बेहतरी के लिए कोई कार्ययोजना कभी नहीं बन सकी। ब्रिटिश शासन से सत्ता सीधे कांग्रेस के हाथों में आई थी। कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व ने महात्मा गाँधी के आग्रह के बाद भी गाँवों की सुध नहीं ली और तब से गाँवों की अनदेखी करने की परंपरा-सी बन गई थी। कांग्रेस ने अपनी राजनीति चलाने के लिए गाँधीजी की विरासत पर स्वामित्व का सदैव दावा किया है, लेकिन उनके सपनों के भारत को साकार करने के प्रयास कभी नहीं किए। यह तथ्य है कि भारत की आत्मा गाँव में बसती है और गाँव का विचार महात्मा गाँधी के चिंतन के केंद्र में रहा। इसलिए जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'स्मार्ट सिटी' की तर्ज पर 'स्मार्ट गाँव' विकसित करने का निर्णय लिया, तब लगा कि गाँधीजी के विचारों की वास्तविक उत्तराधिकारी भारतीय जनता पार्टी है। इस बात को प्रमाणित करने के लिए सरकार की अन्य योजनाओं को भी देख लेना उचित होगा, जिनमें भारत की बुनियादी समस्याओं को दूर करने का उद्देश्य निहित है। भारत सरकार ने जब यह निर्णय किया कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी ग्रामीण मिशन के तहत गाँवों का उत्थान किया जाएगा, आदर्श गाँव विकसित किए जाएंगे, तब लगा कि 70 साल में ही सही आखिर गाँवों के अच्छे दिन आ गए हैं। 

आदर्श गाँव के संबंध में विचार और चर्चा करते समय इतना स्पष्ट होना चाहिए कि इस योजना का अभिप्राय गाँवों को शहरों में तब्दील करना कतई नहीं है। जब भी आदर्श गाँव की चर्चा चलती है, तब आधुनिक सुविधाओं से सम्पन्न, संचार के सभी साधनों की उपलब्धता वाले गाँव का विचार मन में आता है। हम कल्पना करते हैं कि गाँव की सड़कें भी शहरों की तरह बेहतरीन हों। चौबीस घंटें बिजली आपूर्ति हो। इंटरनेट उपब्लध हो। ऐसा नहीं है कि गाँव में यह नहीं होना चाहिए। निश्चित ही यह बुनियादी जरूरते हैं, प्रत्येक गाँव में यह सुविधाएँ उपलब्ध होनी ही चाहिए। लेकिन, हमें समझना चाहिए कि गाँव का शहरीकरण ही गाँव का विकास नहीं है। यह अभारतीय विचार है। गाँव की अपनी मौलिकता है, उसे बचाए रखना भी उतना ही जरूरी है। आदर्श गाँव का विचार करते समय हमें समग्रता से विचार करना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी की सरकार से उम्मीद है कि वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ग्रामोदय के एकात्मिक प्रारूप के आधार पर ही आदर्श गाँव विकसित करेगी। आदर्श गाँव हमारे समृद्ध संस्कृति और जीवन मूल्यों के केन्द्र बनने चाहिए। यह गाँव भारतीय अवधारणा के मुताबिक हमें परिवार से गाँव, गाँव से जिला, जिला से प्रदेश, प्रदेश से देश और देश से विश्व को एकसूत्र में बाँधने वाली इकाई के रूप में विकसित हों। 11 अक्टूबर, 2014 को प्रारंभ की गई सांसद आदर्श ग्राम योजना का उद्देश्य यही है कि गाँव और वहाँ के लोगों में उन मूल्यों को स्थापित करना है, जिससे वे स्वयं के जीवन में सुधार कर दूसरों के लिए एक आदर्श गांव बनें। इस योजना में लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसद शामिल हैं। प्रधानमंत्री ने दूसरे दलों के सांसदों से भी एक-एक गाँव गोद लेने का आग्रह किया है। योजना के मुताबिक प्रत्येक सांसद एक गाँव की जिम्मेदारी लेकर 2016 तक उसका विकास करेगा। बाद में, दूसरे गाँवों की जिम्मेदारी लेकर उन्हें भी विकास की राह पर लेकर आएंगे। 

यह आलेख 'गाँवों की तरक्की की आदर्श योजना' शीर्षक से वर्ष 2017 में प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय एवं शिवानंद द्विवेदी की पुस्तक 'परिवर्तन की ओर' में शामिल है।

इस बार गाँव आदर्श रूप में विकसित होंगे, इसका भरोसा गाँव के विकास के प्रति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संजीदगी है। यही कारण है कि वे बार-बार सांसदों से उनके गाँव के विकास की रिपोर्ट लेते रहते हैं। भाजपा के जिन सांसदों ने गाँव के विकास में रुचि नहीं दिखाई थी, प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए प्रोत्साहित किया था। गैर-भाजपाई सांसदों से भी प्रधानमंत्री ने आग्रह किया है कि वह भी एक गाँव गोद लेकर उसके उत्थान की चिंता करें। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रशिक्षण चूंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रचना में हुआ है, इसलिए वे अपनी वाणी की अपेक्षा कर्म से शिक्षा देते हैं। बनारस से 25 किलोमीटर दूर स्थित है गाँव जयापुर इसका उदाहरण है। प्रधानमंत्री ने जयापुर को गोद लिया है। भले ही प्रधानमंत्री स्वयं जयापुर नहीं जा पाते, लेकिन अपने गोद लिए गाँव की चिंता सदैव करते हैं। आज जयापुर सबके सामने आदर्श गाँव के रूप में प्रस्तुत है। प्रधानमंत्री द्वारा गोद लेने से पूर्व गाँव में मूलभूत सुविधाएं नहीं थीं, लेकिन अब यहाँ न केवल सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य की समुचित व्यवस्था है, बल्कि लोगों के बीच आपसी सहयोग की भावना भी गहरी हो गई है। गाँव के संबंध में जैसी कल्पना रहती है कि वहाँ के लोग आपस में मिलकर ही अपनी समस्याओं और चुनौतियों से निपट लेते हैं, वैसी कल्पना जयापुर में साकार दिखती है। जयापुर के गाँव वासियों से जब यह पूछा जाता है कि अच्छे दिन आ गए क्या? तब वे उत्तर देते हैं कि जयापुर के अच्छे दिन आ गए हैं। अब यहाँ सब सुख है। मोदीजी ने जब से गाँव को गोद लिया है, तब से गाँव की सूरत ही बदल गई है। इस लेख के लेखक का ननिहाल पिपरौआ, मध्यप्रदेश में ग्वालियर से तकरीब 35 किलोमीटर दूर स्थित है। तीन-चार साल पहले बारिश के समय गाँव में जाना मुश्किल हो जाता था। अब कभी भी गाँव जाइए, कोई दिक्कत नहीं। शहर से गाँव तक बेहतर सड़क मार्ग है। पानी की सुविधा है। लगभग प्रत्येक घर में शौचालय है। बिजली चौबीस घंटा तो नहीं, लेकिन पहले से अधिक समय के लिए रहती है। 

गाँव पिपरौआ के विकास का उल्लेख पत्रकार-लेखक लोकेन्द्र सिंह को कोट करते हुए रेनू सैनी ने अपनी पुस्तक 'मोदी सक्सेस गाथा' में किया है।

रेनू सैनी की पुस्तक 'मोदी सक्सेस गाथा- प्रधानमंत्री मोदी के जीवन की 101 प्रेरक कहानियां' से साभार।

यह सिर्फ एक या दो गाँव की कहानियाँ नहीं हैं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का गाँव अजनास भी तेजी से सुविधा सम्पन्न बन रहा है। देवास जिले के खातेगाँव विधानसभा के अंतर्गत आने वाले अजनास गाँव को नशामुक्त बनाने के प्रयास तेजी से हो रहे हैं। लोक सभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन ने इंदौर से लगभग 55 किलोमीटर दूर स्थित पोटलोद गाँव को गोद लिया है। इस गाँव बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा था। लेकिन, अब यह तेजी से विकास की राह पर चल पड़ा है। इसी तरह गृह मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा चिह्नित गाँव बेंती सोलर एनर्जी से रोशन हो रहा है। गृहमंत्री के गोद लेने के बाद बेंती देशभर में चर्चित हो गया है। पंजाब नेशनल बैंक ने यहाँ सोलर स्ट्रीट लाइट लगवाई हैं। सांसद हेमामालिनी का गोद लिया गाँव रावल (मथुरा), उमा भारती का गाँव पवा (ललितपुर), किरण खेर का गाँव सारंगपुर (चंडीगढ़) और धर्मेन्द्र प्रधान का गाँव लक्ष्मी बिगहा (पटना) सांसद आदर्श गाँव योजना के अनुरूप विकसित होकर नये आयाम प्रस्तुत करेंगे। लगभग सभी भाजपा सांसद पूरी शिद्दत से अपने गोद लिए गाँव की चिंता कर रहे हैं। भले ही वह गाँव में नियमित नहीं पहुँच रहे, लेकिन उनके प्रतिनिधि ग्राम विकास के कार्यों पर पूरी नजर रखे हुए हैं। गुजरात के नवसारी के भाजपा सांसद सीआर पाटिल ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आदर्श सांसद गाँव योजना को सबसे पहले जमीन पर उतार दिया है। कावेरी नदी के किनारे बसा चिखली गाँव पहला आदर्श गाँव बन गया है। पाटिल ने महज चार माह में गाँव की तस्वीर बदल दी। चिखली में वाई-फाई है। यहाँ हेलीपेड भी है। सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, जिन्हें थानों से जोड़ा गया है। ऐसी अनेक आधुनिक सुविधाएँ चिखली में उपलब्ध हैं। 

भाजपा के लिए जिस गाँव के प्रति अधिक लगाव होना चाहिए, वह गाँव है- धानक्या। राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित धानक्या गाँव पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बचपन का साक्षी रहा है। चूँकि यह वर्ष दीनदयाल उपाध्याय का जन्म शताब्दी वर्ष है। इसलिए इस साल धानक्या को भी पूर्ण आदर्श गाँव में विकसित करके सबके लिए रोल मॉडल बना देना चाहिए। धानक्या की जिम्मेदारी केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने ली है। उन्होंने एक समग्र योजना इसके लिए बनाई है, जिसमें बुनियादी जरूरतें और आधुनिक सुविधाओं को शामिल किया गया है। गाँव में भू-जल स्तर काफी गिर गया है। पानी की समस्या से निपटने के लिए तकरीबन सात किमी दूर बांडी नदी से पाइप लाइन द्वारा गाँव में पानी लाने की योजना है। स्वच्छता के लिए पूरी पंचायत में विशेष प्रयास हुए हैं। यहाँ लगभग प्रत्येक गाँव में शौचालय बन गया है। कहा जा सकता है कि पंचायत खुले में शौच मुक्त हो गई है। सबसे बड़ा प्रस्ताव यहाँ मिनी सचिवालय का है। इसके शुरू होने से चिकित्सक, पटवारी, ग्राम सेवक, महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, लोकमित्र और ग्राम सचिव एक ही छत के नीचे गाँव के लोगों की मदद के लिए उपलब्ध होंगे। गाँव वासियों को अपने छोटे-बड़े काम के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। अच्छी शिक्षा और चिकित्सा सुविधा के लिए भी ठोस प्रयास जारी हैं। चूँकि सांसद एवं केन्द्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह स्वयं खिलाड़ी हैं, इसलिए युवाओं के लिए गाँव में उत्तम खेल सुविधाएँ उपलब्ध हों, इसके लिए खेल मैदान विकसित किया जा रहा है। गाँव में प्रवेश करते ही प्रत्येक व्यक्ति को अहसास हो जाए कि धानक्या में एकात्म मानवदर्शन के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय का बचपन बीता है, इसके लिए दीनदयाल जी की स्मृति में राष्ट्रीय स्मारक की आधारशिला यहाँ रखी गई है। 

विकास के पथ पर आगे बढ़ते इन गाँवों कहानियाँ हमें बताती हैं कि ग्रामवासिनी भारत माता के अच्छे दिन आ गए हैं। विकास की अवधारणा में पहली बार ईमानदारी से गाँव शामिल हुए हैं। 70 साल के इंतजार के बाद अब गाँव तक विकास की किरणें पहुँचनी शुरू हुईं हैं। उम्मीद की जा सकती है कि वह दिन दूर नहीं, जब गाँव से न शिक्षा के लिए पलायन होगा, न स्वास्थ्य के लिए। रोजगार की तलाश में किसी को भी गाँव छोड़कर शहर आने की आवश्यकता नहीं होगी।

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