राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है। वह समाज के उत्थान के लिए कार्यरत है। लगभग 92 वर्षों की यात्रा में संघ ने समाज में व्यापक स्थान बनाया है। आरएसएस के संबंध में अकसर उसके ही कार्यकर्ता कहते हैं कि संघ में आए बिना संघ को समझा नहीं जा सकता। वास्तविकता भी यही है। संघ विरोधियों और संकीर्ण राजनेताओं के कारण संघ की चर्चा राजनीतिक गलियारे में अधिक होती है, जबकि राजनीति से संघ का लेना-देना बहुत अधिक नहीं है। संघ तो समाज के बाकि क्षेत्रों में अधिक सक्रिय है। सेवा का क्षेत्र भी ऐसा ही है। भला कितने सामान्य नागरिक जानते होंगे कि पूरे देश में आरएसएस के स्वयंसेवक एक लाख 70 हजार से अधिक नियमित सेवा कार्य चलाते हैं। यह सब काम संघ बिना किसी प्रचार के करता है। 'प्रसिद्धि परांगमुखता' संघ का सिद्धाँत है। संघ के लिए सेवा उपकार या पुण्यकार्य की भावना से किया जाने वाला कार्य नहीं है, बल्कि यह तो स्वयंसेवकों के लिए 'करणीय कार्य' है। किंतु, समय की आवश्यकता है कि समाज में यह भरोसा पैदा किया जाए कि देश में बहुत से अच्छे लोग हैं, जो रचनात्मक, सकारात्मक और सृजनात्मक कार्यों में संलग्न हैं। देश का वातावरण ऐसा है कि अच्छाई का प्रचार करने की आवश्यकता आन पड़ी है, ताकि अच्छे कार्यों में और लोग जुटें।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में तात्याटोपे नगर में स्थिति समन्वय भवन में संघ के सेवा विभाग की इस वेबसाइट का लोकार्पण सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने उचित ही कहा कि सेवागाथा की सफलता तब ही मानी जाएगी, जब यह अन्य लोगों को वंचित समाज के बीच काम करने के लिए प्रेरित कर सके। 9 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर 'सेवागाथा' (www.sewagatha.org) के लोकार्पण कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मध्यभारत प्रांत के संघचालक सतीश पिंपलीकर और प्रांत सह संघचालक अशोक पाण्डेय भी उपस्थित थे। अपने कार्यों के प्रचार और प्रसिद्धि से दूर रहने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारकों ने बहुत चिंतन-मनन के बाद 'सेवागाथा' सरीखी वेबसाइट प्रारंभ करने का निर्णय लिया होगा। सेवागाथा पर देशभर में स्वयंसेवकों के द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों की सच्ची कथाएं उपलब्ध रहेंगी। सेवागाथा संघ के सेवाभावी पक्ष को समाज के समक्ष लाने का प्रयास करेगी। बहरहाल, अब तक संघ को राजनीति और थोड़ा-बहुत इधर-उधर जोड़कर देखने वाले लोग 'सेवागाथा' के माध्यम से संघ के सेवाकार्यों से भी परिचित हो सकेंगे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज के सभी वर्गों के बीच आत्मीयता से कार्य कर रहा है। वर्तमान स्थिति में शायद ही समाज जीवन का कोई क्षेत्र होगा, जहाँ संघ के स्वयंसेवक प्रामाणिकता और स्वयं प्रेरणा से कार्य नहीं कर रहे होंगे। संघ ने प्रारंभ से ही अपने हाथ में सिर्फ व्यक्ति निर्माण का कार्य लिया था। साथ में यह भी तय किया था कि संघ कुछ नहीं करेगा, परंतु संघ के स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ेंगे। अर्थात् समाज की आवश्यकतानुसार सभी क्षेत्रों में कार्य करने के लिए संघ अच्छे कार्यकर्ताओं को तैयार करने का कार्य करेगा और यह कार्यकर्ता दशों दिशाओं में जाएंगे। प्रत्यक्ष समाज के बीच काम करने से संघ के कार्यकर्ताओं के मन में वंचित और पिछड़े बंधुओं के प्रति गहरी संवेदनाएं हैं। समाज के अपने बंधुओं की पीड़ा और वेदना के प्रति संवेदनशील होने के कारण ही स्वयंसेवक सेवा कार्य संचालित कर रहे हैं। सेवागाथा के लोकार्पण कार्यक्रम में सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने संघ द्वारा किए जा रहे 'सेवाकार्य' का स्पष्ट किया है- ''संघ के स्वयंसेवक सेवा कार्य इसलिए नहीं करते हैं कि यह पुण्यकार्य है, अपितु उनके लिए तो यह करणीय कार्य है।'' उन्होंने कहा कि सेवाकार्य करते समय यही विचार करना चाहिए कि हम अपने कर्तव्य का निर्वहन कर रहे हैं, कोई विशेष कार्य नहीं कर रहे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सेवा कोई स्पर्द्धा का विषय नहीं है। किसने अधिक सेवा की यह विचार करना निम्न स्तर की भावना है। सेवा आंकड़ों में गिनने की बात नहीं, अपितु अनुभूति का विषय है। सेवा के विषय में हमें यह समझना होगा कि सेवा कभी भी योजना करके नहीं की जाती है। जब हम समाज की वेदना और पीड़ा को समझ लेते हैं, सेवा कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सेवा प्रमुख सुहासराव हिरमेठ (सेवागाथा के लोकार्पण कार्यक्रम में उपस्थिति) ने संघ के 90 वर्ष पूरे होने पर प्रकाशित पाञ्चजन्य के विशेषांक (90 बरस राष्ट्र सेवा के, 11 दिसंबर 2016 ) में लिखा है - 'संघ के लिए सेवा समाज में समरसता निर्माण करने का साधन है। हिंदू चिंतन ने जो सेवा के बारे में कहा है, वही सेवा-कार्यों के लिए संघ का आधार है।' उल्लेखनीय है कि संघ वर्ष-2017 को 'सामाजिक समरसता वर्ष' के रूप में लेकर चल रहा है। सेवागाथा को प्रारंभ करते समय संभवत: यह विचार भी मन में आया होगा कि संघ के स्वयंसेवकों की अनुकरणीय सेवागाथाओं को पढ़कर संवेदनशील जन इस कार्य से बड़ी संख्या में जुड़ेंगे, ताकि सामाजिक समरसता के महत्त्वपूर्ण कार्य को और अधिक विस्तार दिया जा सके। सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने भी अपने उद्बोधन में इस ओर इशारा किया था। उन्होंने कहा था कि संघ के स्वयंसेवकों द्वारा संचालित एक लाख 70 हजार से अधिक कार्य कम नहीं हैं, तो अधिक भी नहीं हैं। नि:स्वार्थ भाव से किए जाने वाले सेवाकार्यों की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है।
हमारे समाज की स्थिति क्या है? वह कौन-से वर्ग हैं, जिनका हाथ पकड़ने की आवश्यकता है? सेवाकार्यों की आवश्यकता क्या है? सेवा कार्य किसलिए करना है? इन प्रश्नों का उत्तर भी सरकार्यवाह भैय्याजी जोशी के उद्बोधन में आता है। उन्होंने बताया- 'समाज में चार वर्ग हैं, जिनके संबंध में हमें विचार करना चाहिए। एक वर्ग आर्थिक रूप से बहुत दुर्बल है। इस वर्ग के पास आजीविका का संकट है। दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल जुटा पाता है। देश की जनसंख्या का 35 प्रतिशत हिस्सा आर्थिक रूप से बहुत कमजोर है। यह वर्ग हमें कुछ करने के लिए प्रेरित करता है। दूसरा वर्ग किन्ही कुरीतियों के कारण सम्मान से अछूता है, जिसे हम कथित तौर पर दलित मानते हैं। इस वर्ग ने बरसों दुर्व्यवहार का सामना किया है। छूआछूत जैसी अमानवीय स्थितियां झेली हैं। आज भी देश के कई हिस्सों में उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है। क्या इस समाज के हृदय की वेदना को हम समझते हैं? कौन उनको बराबर लाएगा? यह हमारा कर्तव्य है कि इस वर्ग को समाज में सम्मान मिले। इन्हें अपने बराबर में लाकर खड़ा करने का उद्यम हमें ही करना होगा। तीसरा वर्ग घूमंतु समाज है, जो अस्थिर जीवन जी रहा है। नागरिक अधिकारों से भी वंचित है। आजीविका के लिए उसे गलत, यहाँ तक कि आपराधिक मार्ग का चुनाव करना पड़ता है। इस समाज के बीच 'अच्छा जीवन' जीने का विचार उत्पन्न करने की जिम्मेदारी किसकी है? उनके बच्चों को शिक्षित कर मुख्यधारा में लाने के लिए हमें आगे आना ही पड़ेगा। चौथा वर्ग वनवासी समाज है। यह वर्ग बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित है। सामान्य बुखार का इलाज भी इन्हें नहीं मिल पाता है।' यकीनन, इन वर्गों को देखकर हमारे मन में स्वत: ही यह भाव उत्पन्न होना चाहिए कि इनके प्रति हम अपने कर्तव्य का निर्वहन करें। इन वर्गों को सम्मान दें और उनको न्यूनतम सुविधाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था बनाएं। हालाँकि, सेवा के द्वारा न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि समाज के इन वर्गों के अंदर आत्मविश्वास का निर्माण करना है ताकि वह स्वावलंबी बन सके। भैय्याजी ने कहा कि सेवा कार्यों के माध्यम से हम समाज को परावलंबन से निकालकर स्वाबलंबी बना सके तभी सेवा कार्यों की सार्थकता है।
भारतीय लोगों का स्वाभाविक गुण हैं सेवा करना : सरकार्यवाह भैय्याजी ने कहा कि कुछ बाहरी लोगों को यह भ्रम हो गया था कि भारत को सेवा सिखाने की आवश्यकता है। इस विचार को लेकर वह भारत आए। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में गए, तब उनका भ्रम दूर हुआ। उन्हें समझ आया कि सेवा करना भारत के लोगों का स्वाभाविक गुण है। यह उन्हें अलग से सिखाने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि यह उनके संस्कार, परंपरा और व्यवहार में शामिल है।
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सेवागाथा पर क्या है खास :
वर्तमान में सेवागाथा पर सामग्री दो भाषाओं हिंदी और अंग्रेजी में उपलब्ध है। सेवागाथा पर प्रकाशित सामग्री को मुख्यतौर पर तीन श्रेणी में रखा गया है- परिवर्तन यात्रा, समर्पित जीवन, सेवादूत। परिवर्तन स्तंभ के अंतर्गत छोटे-छोटे रचनात्मक कार्यों की ऐसी सच्ची कहानियाँ हैं, जिन्होंने सार्थक बदलाव की नींव रखी। जबकि समर्पित जीवन स्तंभ में ऐसे तपस्वी लोगों पर केंद्रित सामग्री को शामिल किया जाएगा, जिन्होंने समाज की बेहतरी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। ऐसे व्यक्तित्व, जिन्होंने नींव का पत्थर बनकर समाज में सकारात्मक परिवर्तन के उदाहरण प्रस्तुत किये। जिनसे प्रयासों से हजारों लोगों के जीवन को नई दिशा मिली है। इस स्तंभ के अतंर्गत ऐसे ही समर्पित जीवन से परिचित कराने का प्रयास किया जाएगा। वहीं, सेवादूत स्तंभ के अंतर्गत ऐसे सेवादूतों की सच्ची कहानियाँ प्रकाशित होंगी, जिन्होंने प्रकृति के प्रकोप के बीच कराहती मानवता पर सामाजिक आस्था व आत्मीयता का लेप लगाया हैं। ऐसे लोग जो मुसीबत के समय में सबसे पहले पहुँचकर लोगों के लिए देवदूत बन जाते हैं। इसके साथ ही वेबसाइट पर गैलरी भी है, जिसमें सेवाकार्यों के प्रमुख चित्र उपलब्ध कराए जाएंगे।
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आरएसएस ने 1990 में प्रारंभ किया सेवा विभाग :
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता प्रारंभ से ही सेवा कार्य करते रहे हैं। प्राकृतिक आपदा हो या फिर युद्ध या अन्य किसी प्रकार की दुर्घटना, स्वयंसेवक त्वरित सहायता करने के लिए उपलब्ध रहते हैं। संघ के स्वयंसेवक स्वभावगत सेवाभावी हैं, अपितु संघ ने वर्ष 1990 में पूरी तरह से सेवा के लिए समर्पित कार्य विभाग 'सेवा विभाग' प्रारंभ किया। संघ के सेवा विभाग की योजना से देशभर में 1,70,700 सेवा कार्य संचालित किए जा रहे हैं। यह सेवाकार्य 800 से अधिक छोटी-बड़ी संस्थाओं के माध्यम से किए जा रहे हैं। विशेष बात यह है कि यह आंकड़ा सिर्फ ऐसे सेवा कार्यों का है, जो नियमित हैं। संघ की कार्ययोजना के अनुसार सेवा कार्य उन्हें ही माना जाता है, जो दैनन्दिन या साप्ताहिक हैं। जबकि 15 दिन, एक माह, साल में एक बार किए या कुछेक बार किए जाने वाले कार्यों को संघ में सेवा उपक्रम कहा जाता है। सेवा विभाग की देखरेख में चल रहे सेवा उपक्रमों की संख्या 60 हजार से भी अधिक है। सेवा कार्य में संलग्न बड़ी संस्थाओं में सेवाभारती प्रमुख है।
उल्लेखनीय सेवा कार्य :
- वर्ष 1962 में चीनी आक्रमण के समय भारतीय सेना की मदद,
- 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के समय दिल्ली में यातायात व्यवस्था एवं घायल जवानों के लिए रक्त उपलब्ध कराना, अन्य युद्धों के समय भी संघ के स्वयंसेवकों ने अपने दायित्व का निर्वहन किया।
- 1947 में बँटवारे के दौरान मुस्लिम दंगों से पीडि़त हिंदुओं की सेवा,
- 1950 में बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थियों को सहारा,
- 1950 में ही असम में आए भयंकर भूकम्प के दौरान,
- 1972-73 में महाराष्ट्र में पड़े भयंकर अकाल के दौरान सब प्रकार की मदद,
- 1966 बिहार में अकाल, 1973 में कर्णाटक में सूखा, 1977 में आंध्रप्रदेश में चक्रवात, 1977 में ही तमिलनाडु तट पर चक्रवात, इसी वर्ष राजस्थान में बाढ़ का प्रकोप, 1978 में दिल्ली में यमुना की बाढ़, 1979 में गुजरात में मच्चू बाँध टूटने से आई विपदा, 1983 में असम में दंगे, 1984 में भोपाल में गैस त्रासदी, 1987-88 गुजरात का सूखा, 1988 में केरल में ट्रेन दुर्घटना, 2000 में गुजरात में भयंकर भूकंप, अभी हाल में उत्तराखंड की आपदा सहित आपद स्थिति में संघ के स्वयंसेवक समर्पित भाव से उपस्थित रहते हैं।
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संस्कार देंगी सेवागाथा की कहानियाँ :
कथाओं में तीन तत्वों की प्रधानता होती है। कथाएं ज्ञानवर्धन करती हैं, मनोरंजन करती हैं और संस्कार देती हैं। सेवा विभाग की वेबसाइट पर सेवाकार्यों की जो कहानियाँ प्रकाशित होंगी, वह ज्ञानवर्धन और मनोरंजन से अधिक संस्कार देने का काम करेंगी। ताकि समाज के अन्य लोग, जिनके भीतर संवेदनाएं हैं, सेवा कार्य करने के लिए प्रेरित हो सकें। यही सेवागाथा की सफलता भी होगी।
- भैय्याजी जोशी, सरकार्यवाह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
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निष्काम भाव से सेवाकार्य कर रहा है संघ :
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समाज के भीतर निष्काम भाव से सेवाकार्य कर रहा है। विद्याभारती, सेवाभारती, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ जैसे अनुषांगिक संगठन समाज के विभिन्न क्षेत्रों में रचनात्मक कार्य कर रहे हैं। भोपाल में ही मातृछाया और आनंदधाम जैसे अनूठे प्रयास सेवाभारती द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। वर्तमान समय में अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष चल रहा है। इसलिए समय की आवश्यकता है कि अच्छे कार्य में संलग्न लोगों के बारे में समाज जाने, ताकि शेष समाज भी रचनात्मक कार्य की ओर बढ़े। भारत का मूल विचार है कि सबमें एक ही चेतना है। पूरा विश्व एक परिवार है। सत्य एक ही है। इसी विचार को क्रियान्वित करने का कार्य संघ विगत 92 वर्षों से कर रहा है।
- शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश
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सेवाभावी और संवेदनशील लोगों को जोड़ना है उद्देश्य :
संघ की इस वेबसाइट के माध्यम से हम समाज के बीच में सेवाव्रतियों की कहानियाँ पहुँचाना चाहते हैं, जिन्हें पढ़ और जानकर समाज के अन्य लोग भी हमारे साथ कदम से कदम मिलाकर मानवता की सच्ची सेवा कर सकेंगे। भारत में फैले लाखों लोग चाहते हैं कि देश के लिए कुछ अच्छा कर सकें, किसी के आँसू पोंछ सकें, किसी का सहारा बन सकें। किन्तु आवश्यकता है कि कोई उनका विश्वास जीते और उन्हें साथ में जोड़े। सेवागाथा का कार्य यही रहेगा कि वह सेवाभावी और संवेदनशील नागरिकों को न केवल जोड़े, बल्कि यथासंभव उनका सहयोग लिया जाता रहे।
- विजयलक्ष्मी सिंह, संपादक, सेवागाथा
('मीडिया विमर्श' पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट)
सेवागाथा वेबसाइट के लोकार्पण के चित्र |
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