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मंगलवार, 19 सितंबर 2017

पतन का प्रतीक अमर्यादित भाषा

 विरोध  की भाषा बताती है कि वह कितना नैतिक है और कितना अनैतिक। जब विरोधी भाषा की मर्यादा को त्याग कर गली-चौराहे की भाषा में बात करने लगें, समझिए कि उनका विरोध खोखला है। उनका विरोध चिढ़ में बदल चुका है। अपशब्दों का उपयोग करने वाला व्यक्ति भीतर से घृणा और नफरत से भरा होता है। वह पूरी तरह कुंठित हो चुका होता है। अमर्यादित भाषा से वह अपने भीतर की कुंठा को ही प्रकट करता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की भाषा में उपरोक्त स्थिति दिखाई देती है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके एवं वर्तमान में कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने पिछले दिनों जिस प्रकार के अपशब्दों का उपयोग देश के प्रधानमंत्री के लिए किया था, उसी परिपाटी को अब वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने आगे बढ़ाया है। शब्द इस प्रकार के हैं कि उनका सार्वजनिक उल्लेख भी नहीं किया जा सकता। मनीष तिवारी ने प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल कर स्पष्ट कर दिया है कि कांग्रेस के नेता किस स्तर तक नरेन्द्र मोदी के प्रति घृणा का भाव रखते हैं।
 
          राजनीति में विरोध और मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन विरोध का यह स्तर कतई ठीक नहीं है। संभव है कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए इस प्रकार के शब्दों का उपयोग करने की छूट मिली हुई हो, जो अब सार्वजनिक स्तर तक पहुँच गई है। भारतीय राजनीति में इससे पहले कभी संवैधानिक पद 'प्रधानमंत्री' के लिए इस प्रकार की भाषा का उपयोग नहीं हुआ है। कांग्रेस के नेताओं को चाहिए कि वह नरेन्द्र मोदी से भले नफरत करते हों, किंतु कम से कम भारत के प्रधानमंत्री पद की गरिमा का ध्यान रखें। 
          प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति कांग्रेस का अंधविरोध फिर भी समझ आता है, लेकिन देश के 'बड़े' पत्रकारों को क्या हो गया है? मोदी के जन्मदिन के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने भी मर्यादा भंग कर दी। एक विदुषी महिला पत्रकार, जिसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी बौद्धिक दृष्टि से समृद्ध है, वह किस स्तर पर खुद को प्रस्तुत कर रहीं हैं? मृणाल पांडे ने स्वयं को उन लोगों की भीड़ में खड़ा कर लिया जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन को 'जुमला दिवस' के रूप में प्रचारित कर रहे थे। यहाँ तक भी बर्दाश्त कर लिया जाता, किंतु वह इससे भी नीचे चली गईं। उन्होंने ट्वीट में लिखा- 'जुमला दिवस' पर आनंदित, पुलकित, रोमांचित वैशाखनंदन। साथ में 'गधे' का चित्र भी लगाया है। 
          एक अनधिकृत व्यक्ति द्वारा अपशब्द के उपयोग पर समूचा कांग्रेसी एवं वामपंथी बौद्धिक खेमा हरकत में आ गया था और उस अपशब्द के लिए राष्ट्रीय विचारधारा से संबद्ध संगठनों को दोषी ठहरा रहा था। मृणाल पांडे द्वारा प्रयुक्त अपशब्द क्या, दधीची द्वारा प्रयुक्त अपशब्द से किसी प्रकार कमतर है? यह ट्वीट उनके भीतर के खोखलेपन को प्रदर्शित करता है। इसी प्रकार की भाषा-शैली का उपयोग दिवगंत गौरी लंकेश भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए करती थीं। मोदी विरोध में नेताओं के साथ-साथ तथाकथित पत्रकारों एवं बुद्धिजीवियों की भाषा का स्तर भी गिर गया है। इनकी भाषा यह भी बताती है कि यह निष्पक्ष और ईमानदार पत्रकार नहीं, बल्कि विचारधाराओं के खेमे के योद्धा हैं। 
          जो लोग 'अभ्रद' और 'अमर्यादित' भाषा का उपयोग करने पर कथित 'भक्तों' को गरियाते नहीं थकते थे। अब वही लोग पतित भाषा का उपयोग देश के संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति के लिए खुलकर कर रहे हैं। यहाँ हमें गौर करना होगा कि एक ओर अनुचित भाषा का उपयोग करने वाले लोग सामान्य हैं, उनकी कोई विशिष्ट पहचान नहीं, उन्हें बौद्धिक भी नहीं माना जाता। जबकि दूसरी ओर अपशब्दों का उपयोग करने वाले लोग बौद्धिक जगत के हस्ताक्षर हैं, उनकी बड़ी पहचान और नाम हैं, बड़े पत्रकार एवं लेखक हैं, राजनीतिक दल का शीर्ष नेतृत्व है। ऐसे में किसको अधिक दोषी माना जाएगा? हमें एक बार जरूर सोचना चाहिए कि किस खेमे में अधिक गंदगी है? 
          भाषा के दृष्टिकोण से अशिक्षित लोगों से फिर भी अमर्यादित भाषा की अपेक्षा की जा सकती है, किंतु जो स्वयं में भाषा के विद्वान हैं, भाषा की पाठशाला हैं, उनके श्रीमुख से इस प्रकार के अपशब्द किंचित भी अपेक्षित नहीं है। राजनीतिक और वैचारिक विरोध में हम जिस तरह अंधे और कुंठित हो रहे हैं, यह सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं। हमें जरा ठहर कर विचार करना चाहिए कि हम किस ओर जा रहे हैं? हमसे किस तरह का आचरण अपेक्षित है और हम कर क्या रहे हैं? हमें अपनी भाषा का मूल्यांकन करना चाहिए। यदि कांग्रेस और बुद्धिजीवियों ने अभी अपनी भाषा पर विचार नहीं किया तब यह अमर्यादित भाषा उन्हें पतन की ओर ले जाएगी।

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