'भूखे तो नहीं मर रहे हैं ना, इसलिए चुकाइए टैक्स।' केंद्रीय पर्यटन मंत्री अल्फोंस कन्ननथम का यह कथन बताता है कि वह मंत्री तो बन गए हैं, लेकिन अभी उनकी अफसरी नहीं छूटी है। उनके इस कथन से यह भी साबित होता है कि वह देश-समाज की वास्तविकता से परिचत नहीं हैं। उन्हें भारतीय जनमानस की समझ भी नहीं है। उनकी राजनीतिक समझ भी शून्य है। अन्यथा इस प्रकार का बयान नहीं देते। चूँकि वह एक नेता के रूप में जनता के बीच कभी रहे नहीं, सीधे मंत्री बने हैं, इसलिए उन्हें नहीं पता कि इस प्रकार के बयान जनता के मन पर क्या असर छोड़ते हैं और पार्टी को अनर्गल बयानों का क्या नुकसान उठाना पड़ता है। यह पहली बार नहीं है जब अल्फोंस अपने कथन से स्वयं तो विवाद में आए ही, बल्कि भाजपा के सामने भी संकट खड़ा किया है। इससे पूर्व मंत्री बनने के तत्काल बाद ही वह अनावश्यक रूप से बीफ के विषय में भी बोल चुके हैं।
केंद्रीय पर्यटन मंत्री अल्फोंस कन्ननथनम ने पेट्रोल की कीमतों को लेकर जिस प्रकार का वक्तव्य दिया है, उससे सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उन्होंने कहा- 'पेट्रोल वही लोग खरीदते हैं, जिनके पास कार-बाइक है, निश्चित तौर पर वे भूखे नहीं मर रहे। जो इसका खर्च उठा सकते हैं, उन्हें पैसे तो देने होंगे। हम यहां पिछड़ों के कल्याण के लिए, प्रत्येक गांव को बिजली देने, घर बनाने, टॉयलेट बनाने के लिए हैं। इस पर काफी सारा पैसा खर्च होगा। इसलिए हम उन लोगों पर टैक्स लगा रहे हैं, जो इस काबिल हैं।' अच्छी बात है कि सरकार का ध्यान वंचित-पिछड़ों और गरीबों का जीवनस्तर ऊंचा उठाने पर है। इसके लिए मोदी सरकार ईमानदारी से प्रयास करती भी दिख रही है। किंतु, अल्फोंस साहब को समझना चाहिए कि जब डीजल-पेट्रोल की कीमत बढ़ती हैं, तब उसकी मार गरीबों पर ही सबसे अधिक पड़ती है।
दूसरी बात यह कि अब अल्फोंस साहब को अफसरी छोड़कर जनता के बीच में जाना चाहिए ताकि उन्हें समझ आएगा कि बाइक अब अमीरों के घर की ही जरूरत नहीं है, बल्कि एक सामान्य परिवार में भी बाइक पहुँच गई है। तीसरी बात यह कि देश में मध्यमवर्गीय आबादी बहुत अधिक है, जो इस महंगाई के दौर में खींच-तान करके अपना जीवन चला रही है। मध्यमवर्गीय परिवारों में भी कार-बाइक हैं। यह वर्ग और अधिक महंगाई झेलने की स्थिति में नहीं है। चौथी बात यह कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंत्री परिषद का कोई भी सदस्य इस प्रकार का वक्तव्य देने का अधिकारी नहीं है। क्योंकि, संप्रग सरकार के दौरान जब डीजल-पेट्रोल के दाम बेतहाशा बढ़ रहे थे, तब भाजपा ने इसे मुद्दा बनाकर जनता से जनादेश माँगा था।
भाजपा ने देश की जनता को भरोसा दिलाया था कि वह सरकार में आए तो पेट्रोल-डीजल के दाम स्थिर रखेंगे। किंतु, सच यही है कि सरकार ने पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी के समय भी लगातार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई है। जुलाई 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल एक सौ बारह डॉलर प्रति बैरल था, जो अब आधे से भी नीचे यानी चौवन डॉलर प्रति बैरल पर आ चुका है। फिर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में इतनी बढ़ोतरी क्यों हो रही है? जनता को इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा है। दरअसल, वर्तमान स्थिति में तेल के दाम पूरी तरह से तेल कंपनियों के नियंत्रण में है। इसलिए सरकार भी यहाँ असहाय नजर आती है। किंतु, जनता के हित में यह व्यवस्था बदलनी चाहिए। कम से कम मोदी सरकार को तेल कंपनियों के सामने मजबूर नहीं दिखना चाहिए, बल्कि जनता के हित में मजबूती से खड़ा होना चाहिए।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-09-2017) को सुबह से ही मगर घरपर, बड़ी सी भीड़ है घेरी-चर्चामंच 2732 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस : काका हाथरसी, श्रीकांत शर्मा और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंचुनाव पांच नहीं दो-तीन साल में ही हो जाने चाहिए, सर पर तलवार लटकेगी तो काम भी होगा और जुबान भी काबू में रहेगी !
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