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सोमवार, 14 अगस्त 2017

दु:खद है बच्चों की मौत

 गोरखपुर  के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में छह दिनों के भीतर 60 से ज्यादा बच्चों की मौत हमारी अव्यवस्थाओं की सच्चाई है। एक ओर हम आजादी की 71वीं वर्षगाँठ मनाने की तैयारियां कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे बच्चे मर रहे हैं। बच्चों की जिंदगी इस तरह जाया होना, हमारे लिए कलंक है। देश में बीमारी या अभावों के कारण एक भी बच्चे की मृत्यु '70 साल के आजाद भारत' के लिए चिंता की बात है। किसी भी प्रकार का तर्क हमें बच्चों की मौत की जिम्मेदारी से नहीं बचा सकता। अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से या फिर किसी बीमारी से ही क्यों न हो, इस तरह बच्चों या किसी भी उम्र के व्यक्ति की मौत हो जाना, बहुत दु:खद और दर्दनाक है। गोरखपुर की इस घटना ने देश को हिला कर रख दिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चाहिए कि बच्चों की मौत के मामले पर मन में पूरी संवेदनशीलता रखें और व्यवहार में कठोरता। संवेदनशीलता, बच्चों और उनके परिवार के प्रति। कठोरता, लापरवाह और भ्रष्ट व्यवस्था के प्रति। दोषियों को दण्डित करना जरूरी है। वरना कभी न कभी फिर से हम पर दु:खों का पहाड़ टूटेगा।
           दुनिया का सबसे भारी बोझ है, बच्चे का शव। किसी भी माता-पिता की गोद-बाजुओं में इतनी ताकत नहीं होती कि वह अपने बच्चे की मिट्टी का बोझ उठा सकें। इसलिए यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन है? यह अच्छी बात है कि सरकार इस मामले पर सक्रिय हो गई है। कॉलेज के प्राचार्य को लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित कर दिया गया है। बच्चों की मौत के वास्तविक कारणों का पता करने के लिए उच्च स्तरीय जाँच समिति बनाने का निर्णय भी लिया है। इस अवसर पर भावुक होकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उचित ही कहा है कि यह सियासत का नहीं, संवेदना का समय है। यकीनन मुख्यमंत्री ने सही कहा। किंतु, यहाँ उन्हें अपने मंत्रियों और नेताओं को भी समझाना चाहिए कि किसी भी तर्क से इस प्रकार की घटना पर अपना बचाव नहीं किया जा सकता। उन्हें अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। 
          सरकार का कोई भी नुमाइंदा यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकता कि 'अगस्त' में यहाँ वर्षों से इंसेफेलाइटिस (जापानी बुखार) के कारण मौत हो रही हैं। दु:ख की घड़ी में यह थ्योरी समाज का कोई भी संवेदनशील व्यक्ति स्वीकार नहीं करेगा। वर्षों से उत्तरप्रदेश बीमार था, इसलिए उसका इलाज करने की जिम्मेदारी जनता ने आपको सौंपी है। आपसे समाधान चाहिए, बेकार के तर्क नहीं। यदि प्रदेश में वही सब चलना है, तब फिर सरकार में आपके होने का क्या अर्थ रह जाता है? आपको पहले से मालूम था कि 'अगस्त' में जापानी बुखार से पीडि़त लोग बड़ी संख्या में आते हैं, तब आपने उससे निपटने के इंतजाम क्यों नहीं किए? इंसेफेलाइटिस पूर्वांचल में 1978 से भारी तबाही मचा रही है। प्रत्येक वर्ष यह किसी डायन की तरह आती है और सैकड़ों जिंदगियों को लील जाती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ स्वयं इस महामारी के प्रति समाज और सरकार को चेताते रहे हैं। सांसद रहते हुए उन्होंने संसद में इंसेफेलाइटिस बीमारी से होने वाली जनहानि का मुद्दा उठाया था। उन्होंने प्रेसवार्ता में भी बताया कि जब वह 9 अगस्त को अस्पताल में आए थे, तब भी उन्होंने इंसेफेलाइटिस से पीडि़त मरीजों की जानकारी ली थी। जब मुखिया इस बीमारी को लेकर इतना गंभीर है, फिर यह चूक कैसे हो गई? 
          इस दुर्घटना का सबसे बड़ा कारण 'ऑक्सीजन की कमी' को बताया जा रहा है। खबरों के मुताबिक ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली एजेंसी ने बकाया पैसों का भुगतान न होने की वजह से आपूर्ति रोक दी थी। पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाने से बच्चों की मौत हो गई। यदि जाँच में यह साबित होता है कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई है, तब यह बहुत गंभीर बात होगी। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 'कमीशन के खेल' में शामिल प्रत्येक व्यक्ति के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोर्ई भी 'अमानव' अपने कमीशन के चक्कर में किसी बच्चे की प्राणवायु रोकने की हिम्मत न कर पाए।

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