आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में भारत पर पाकिस्तान की जीत के बाद जम्मू-कश्मीर में ही नहीं, बल्कि देश के अनेक हिस्सों में जश्न मनाया गया, पाकिस्तानी झंडे फहराए गए और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे बुलंद किए गए। पाकिस्तान की जीत पर आतिशबाजी भी की गई। भारत की हार पर पटाखों का यह शोर और पाकिस्तान की जय-जयकार किस बात का प्रकटीकरण है? आखिर भारत में कोई पाकिस्तान से इतनी मोहब्बत कैसे कर सकता है कि उसका विजयोत्सव मनाए? पाकिस्तान परस्त चंद लोगों की यह प्रवृत्ति एक पूरे समुदाय की निष्ठा और देशभक्ति पर प्रश्न चिह्न खड़ा करती है। दुनिया का कोई हिस्सा ऐसा नहीं होगा, जहाँ अपने देश की पराजय पर हर्ष व्यक्त किया जाता हो। भारत में पाकिस्तान परस्ती मानसिकता को परास्त करने की आवश्यकता है। पाकिस्तान की जय-जयकार करने वाले देशद्रोहियों को उनकी सही जगह दिखाने की आवश्यकता है। सुखद बात है कि पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने वालों को पकड़कर जेल की हवा खिलाई जा रही है। सबसे पहले मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले के मोहद गाँव से 15 युवकों को पकड़ा गया, जो पाकिस्तान की जीत के बाद उन्माद फैला रहे थे। देश में अन्य जगहों पर भी धरपकड़ जारी है। कर्नाटक के कोडागू जिले से तीन लोगों को पकड़ा गया है। उत्तराखंड के मसूरी में भी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले तीन किशोरों को पकड़ा गया है। पाकिस्तान परस्त मानसिकता को हतोत्साहित करने के लिए इस प्रकार की कार्रवाई स्वागत योग्य है। यकीनन समाजकंटकों में कानून का डर होना चाहिए। देशविरोधियों को ऐसा सबक सिखाया जाना चाहिए कि देश को पीड़ा पहुँचाने की हरकत करने से पहले वह दस बार सोचें। दरअसल, इस प्रकार की प्रवृत्ति का दमन इसलिए भी आवश्यक है ताकि दो समुदायों के बीच बढ़ रही खाई की चौड़ाई को रोका जा सके।
हिन्दुस्तान में रहकर पाकिस्तान की जीत पर 'ईद' मनाने वालों पर गुस्सा आना स्वाभाविक है। ऐसे लोगों के लिए जब यह कहा जाए कि इन्हें 'पाकिस्तान चले जाना चाहिए', तब यह कतई गलत नहीं है। जिनका दिल और दिमाग पाकिस्तान में ही बसता है और उसके लिए ही धड़कता है, तब उनका यहाँ रहने का अर्थ भी क्या है? इस संबंध में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैय्यद गयारूल हसन रिजवी का कहना उचित ही है। उन्होंने कहा है कि 'हिन्दुस्तान में कुछ लोगों ने पाकिस्तान की जीत की बराबरी ईद से की है... जो पाकिस्तान की जीत से खुश होते हैं, उन्हें वहीं जाकर रहना चाहिए, क्योंकि उनके दिल वहीं बसते हैं... या बेहतर होगा उन्हें सरदह पार छोड़कर आया जाए।' भारतीय क्रिकेटर गौतम गंभीर ने भी जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुख को ट्वीटर पर आड़े हाथों लेते हुए लिखा है कि 'मीरवाइज सीमा पार क्यों नहीं चले जाते। वहां आपको ज्यादा आतिशबाजी मिलेगी। सामान पैक करने में मैं आपकी मदद कर सकता हूं।' हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेहरे मीरवाइज ने पाकिस्तान की जीत के बाद ट्वीटर पर लिखा था- 'चारों ओर पटाखों की आवाज से लगता है कि ईद समय से पहले आ गयी है। पाकिस्तान की टीम को बधाई।' इससे पहले उन्होंने पाकिस्तान की जीत पर जुलूस निकाल रहे युवकों को संबोधित भी किया।
दरअसल, भारत और पाकिस्तान के आपसी तनाव का असर खेल पर भी दिखाई देता है। खासकर क्रिकेट का मुकाबला जब भी होता है, युद्ध जैसे हालात बन जाते हैं। मानो क्रिकेट के मैदान पर दो दल नहीं, बल्कि सेना की दो टुकडिय़ां जंग कर रही हों। एक लिहाज से इस प्रकार का युद्धोन्माद उचित नहीं है। किन्तु, पाकिस्तान ने हमें जितने घाव दिए हैं, उनका दर्द हमें सामान्य नहीं रहने देता। पीठ पर वार करने वाले पाकिस्तान को हम जब सामने पाते हैं, तब उसे धूल चटाने को आतुर रहते हैं। प्रत्येक भारतीय की भावनाएं उफान पर होती हैं। भारत की टीम जब पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेल रही होती है, तब प्रत्येक हिन्दुस्तानी की रगों में रक्त नहीं, बल्कि देशभक्ति दौड़ रही होती है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान की जीत पर जश्न और जय-जयकार कैसे सहन की जा सकती है? पाकिस्तान एक आतंकी देश है। भारत में आतंकी हमलों के लिए सीधेतौर पर पाकिस्तान जिम्मेदार है। सीमा पर आए दिन हमारे वीर जवानों की मौत का जिम्मेदार भी पाकिस्तान ही है। पाकिस्तान के हाथ मानवता के लहू से लाल हैं। आतंक से जूझ रहे भारतीयों के लिए आतंकी देश की क्रिकेट टीम से सहानुभूति होना सहज नहीं है। वैसे भी हमने कभी नहीं देखा कि भारत जब ऑस्ट्रेलिया या इंग्लैंड से हारता है, तब देश में कहीं भी ऑस्ट्रेलिया या इंग्लैंड के लिए पटाखे फोड़े जाते हों। इसलिए यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि पाकिस्तान की जीत पर हिन्दुस्थान में जश्न क्यों? क्या भारत के विभिन्न हिस्सों में अनेक पाकिस्तान पल रहे हैं? क्या भारत में रह रहे कुछ लोगों का मन पाकिस्तान में बसता है? क्या कुछ लोग हिन्दुस्थान में रहकर हिन्दुस्थान के विरुद्ध हैं? देश के प्रत्येक हिस्से में पाकिस्तान परस्त लोगों की पहचान करना जरूरी है। यह बीमारी खाज की तरह और फैले, इसका इलाज जरूरी है। यह काम अधिक प्रभावशाली ढंग से भारतीय मुसलमान कर सकता है। उसे यह जिम्मेदारी उठानी चाहिए कि उसको कठघरे में खड़ा करने वाले सलाखों के पीछे खड़े दिखाई दें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share