पाकिस्तान, बांग्लादेश और मलेशिया में रह रहे हिंदुओं पर आई रिपोर्ट बताती है कि कैसे दुनिया के कई हिस्सों में हिंदुओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। उन्हें सामाजिक, आर्थिक और मानसिक उत्पीडऩ का सामना करना पड़ रहा है। खासकर, पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिंदू उत्पीडऩ की घटनाएं अधिक सामने आती हैं। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इन देशों के कट्टरपंथियों की नजर में हिंदुओं को जीने का अधिकार भी नहीं है। यहाँ हिंदू आबादी में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। हिंदुओं की हत्या और उनका धर्मांतरण यहाँ के कट्टरपंथी मुस्लिमों के लिए एक तरह से नेकी का काम है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में सिलसिलेवार ढंग से हिंदुओं की हत्या की जाती रही है। नाबालिग लड़कियों का अपहरण करके उनसे जबरन निकाह किया जाता है। हिंदुओं को बरगला कर और दबाव डाल कर उनका धर्मांतरण किया जाता है। अभी कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के थार जिले में एक नाबालिग हिंदू लड़की का कथित तौर पर अपहरण करके उसका धर्मांतरण करा दिया गया। यह प्रमाणित सच है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की जनसंख्या के आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं कि वहाँ देश के बँटवारे के बाद से ही हिंदुओं को नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
अभी हाल में हिंदुओं के उत्पीडऩ के संबंध में सर्वोच्च हिंदू अमेरिकी संस्था द हिंदू अमेरिका फाउंडेशन की रिपोर्ट आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं वहां उन्हें हिंसा, सामाजिक उत्पीडऩ और अलग-थलग होने का सामना करना पड़ रहा है। द हिंदू अमेरिका फाउंडेशन (एचएएफ) ने दक्षिण एशिया में हिंदुओं और प्रवासियों पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि समूचे दक्षिण एशिया और दुनिया के अन्य हिस्सों में रह रहे हिंदू अल्पसंख्यक विभिन्न स्तरों के वैधानिक और संस्थागत भेदभाव, धार्मिक स्वतंत्रता पर पाबंदी, सामाजिक पूर्वाग्रह, हिंसा, सामाजिक उत्पीडऩ के साथ ही आर्थिक और सियासी रूप से हाशिये वाली स्थित का सामना करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 'हिंदू महिलायें खास तौर पर इसकी चपेट में आती हैं और बांग्लादेश तथा पाकिस्तान जैसे देशों में अपहरण और जबरन धर्मांतरण जैसे अपराधों का सामना करती हैं। कुछ देशों में जहां हिंदू अल्पसंख्यक हैं वहां राज्यतर लोग भेदभावपूर्ण और अलगाववादी एजेंडा चलाते हैं, जिसके पीछे अकसर सरकारों का मौन या स्पष्ट समर्थन होता है।' महत्त्वपूर्ण बात यह है कि संस्था ने भारत के राज्य जम्मू-कश्मीर को भी इसी श्रेणी में रखा है। यह दुर्भाग्य है कि अपने ही देश में हिंदू सुरक्षित नहीं है। अब तक की हमारी सरकारें देखती रहीं और कश्मीर से हिंदुओं को मार-मार कर भगा दिया गया। जब अपने ही देश में हिंदुओं के उत्पीडऩ पर हमारी सरकारों का दिल नहीं पसीजा, तब अन्य देशों में उनकी खैर-खबर कौन लेता?
यह रिपोर्ट इस बात का प्रमाण है कि हिंदू जहाँ भी अल्पसंख्यक हैं, वहाँ उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है। असल में मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है, बल्कि उनके मानवाधिकार लगभग छीन ही लिए गए हैं। शांति और सहिष्णुता में भरोसा करने वाले हिंदू समाज के मानवाधिकारों की रक्षा होनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन को इस रिपोर्ट पर संज्ञान लेना चाहिए। अब आवश्यक हो गया है कि हिंदुओं के उत्पीडऩ को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठोस कदम उठाए जाएं।
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’सांख्यिकी दिवस और पीसी महालनोबिस - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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