पिछले ढाई साल में तीन तलाक का मसला काफी बड़ा हो गया है। तीन तलाक पर व्यापक बहस प्रारंभ हो चुकी है। हालाँकि, मुस्लिम महिलाओं की ओर से लम्बे समय से तीन तलाक को खत्म करने के लिए आंदोलन चलाया जा रहा है। लेकिन, अब तक उन्हें न्याय नहीं मिला। अब तक की सरकारों ने मुस्लिम महिलाओं की आवाज को न तो सुना और न ही उनका समर्थन किया। वरन् शाहबानो प्रकरण में तो तत्कालीन कांग्रेसनीत केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलटकर एक तरह से मुस्लिम महिलाओं को उनकी बदहाली पर छोड़ दिया था। महिलाओं के संघर्ष को उस वक्त ताकत और सफल होने की उम्मीद मिली, जब मई-२०१४ में केंद्र में भाजपानीत सरकार का गठन हुआ। क्योंकि, भारतीय जनता पार्टी सदैव से समान नागरिक संहिता और मुस्लिम महिलाओं की बेहतरी के लिए तीन तलाक को खत्म करने की हिमायती रही है। भाजपा के शीर्ष नेता अकसर अपने भाषणों में मुस्लिम महिलाओं के हित में तीन तलाक को खत्म करने की मांग उठाते रहे हैं। हाल में सम्पन्न उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी तीन तलाक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना था। माना जा रहा है कि उत्तरप्रदेश में भाजपा को जो प्रचंड बहुमत मिला है, उसमें मुस्लिम महिलाओं की बड़ी हिस्सेदारी है।
आधुनिक युग में भी अमानवीय परिस्थितियां झेलने को मजबूर मुस्लिम महिलाएं कबीलाई व्यवस्था से मुक्ति चाहती हैं। जब दुनिया में महिलाएं पुरुषों से आगे निकलकर समाज का नेतृत्व कर रही हैं, तब कोई यह मंजूर नहीं करेगा कि किसी को चार शादियां करने का अधिकार हो या कोई तीन बार तलाक बोल कर अपनी पत्नी को घर से निकाल दे। मुस्लिम धर्मगुरु इस मसले पर संविधान की दुहाई देते हुए कहते हैं कि हमारे संविधान में विभिन्न समुदायों को धार्मिक आजादी दी गई है। उनका कहना सही है, लेकिन धार्मिक आजादी असीमित नहीं है। संविधान में प्रत्येक व्यक्ति को यह भरोसा भी दिया गया है कि उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा की जाएगी। सम्मान से जीना मुस्लिम महिलाओं का मौलिक अधिकार है। इसलिए जब-जब संविधान से प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर आंच आएगी, तब-तब न्यायपालिका से दखल देने की मांग स्वाभाविक ही उठेगी। इस मामले को पीडि़त महिलाओं की तरफ से और नागरिक अधिकारों के नजरिए से ही देखा जाना चाहिए, न कि धार्मिक चश्मे से। लेकिन, दु:ख की बात है कि प्रभावी मुस्लिम धर्मगुरु और इस्लामिक संस्थाएं पुरुषवादी मानसिकता का प्रदर्शन कर रहे हैं। वह अब भी महिलाओं को मानवाधिकार और समानाधिकार से वंचित रखना चाहते हैं।
मुस्लिम नेतृत्व को समझना चाहिए कि आज के वक्त में महिलाओं को इस तरह पीछे धकेलकर नहीं रखा जा सकता। तीन तलाक कोई अच्छी व्यवस्था नहीं है। इससे मुस्लिम महिलाएं आतंकित हैं। इसलिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की ओर से दायर पिटीशन पर दस लाख से अधिक महिलाओं ने तीन तलाक को खत्म करने के लिए अपना समर्थन दिया है। एक सर्वे के मुताबिक 90 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक, हलाला और चार विवाह की व्यवस्था को समाप्त करना चाहती हैं। मुस्लिम महिलाएं अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर मदद की गुहार कर रही हैं। उन्हें उम्मीद है कि केंद्र सरकार उनके साथ खड़ी होगी। यह सच भी है। पूर्व में वर्तमान सरकार उच्चतम न्यायालय में हलफनामा देकर यह स्पष्ट कर चुकी है कि वह चाहती है कि महिला विरोधी तीन तलाक की व्यवस्था पर तत्काल रोक लगाई जाए।
अब देश की सर्वोच्च अदालत के ओर मुस्लिम महिलाओं की निगाहें टिकी हैं। उच्चतम न्यायालय भी इस मामले को गंभीरता से ले रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर उसने इस पर अभी फैसला नहीं किया तो यह सालोंसाल लटका ही रहेगा और शायद दशकों तक विवाद बना रहे। अदालत के इस रुख से आस बंधी है कि शायद इस बारे में कोई आखिरी फैसला हो जाए। मामले की गंभीरता को देखकर ही तीन तलाक के मामले में अब सर्वोच्च अदालत की सामान्य पीठ के बजाय वृहद संवैधानिक पीठ सुनवाई करेगी। एक बहुविवादित मसले को हल करने की दिशा में यह महत्त्वपूर्ण कदम है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ गरमी की छुट्टियों में भी तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह के सवाल पर रोजाना सुनवाई करेगा। महिलाओं को उम्मीद है कि देश की सर्वोच्च न्यायपालिका से उन्हें सम्मान से जीने का अधिकार मिलेगा। उनके साथ न्याय किया जाएगा।
महिलाओं को उम्मीद है कि देश की सर्वोच्च न्यायपालिका से उन्हें सम्मान से जीने का अधिकार मिलेगा। उनके साथ न्याय किया जाएगा।
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने, वर्तमान सरकार अवश्य कोई कदम उठाएगी