Pages

गुरुवार, 31 जुलाई 2025

डॉ. देवेन्द्र दीपक जी : जिन्होंने अपनी मेधा से राष्ट्रीयता के दीपक को प्रज्वलित रखा

श्री देवेन्द्र दीपक जी को प्रो. संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक 'लोगों का काम है कहना' भेंट करते लोकेन्द्र सिंह

वरिष्ठ साहित्यकार श्रद्धेय देवेंद्र दीपक जी का सुखद सान्निध्य प्राप्त हुआ। निमित्त बने युवा पत्रकार आयुष पंडाग्रे। आयुष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गीतों की पुस्तक देवेंद्र दीपक जी को भेंट करने के लिए जाने वाले थे, तब मैंने उनसे कहा कि "साथ चलते हैं। मुझे भी जाना है।" लगभग डेढ़ घंटे हम श्रद्धेय दीपक जी के पास रहे। घड़ी की सुइयों पर कौन ध्यान देता, हम तो बस उनको सुनते जा रहे थे। बाहर सावन की रिमझिम थी और भीतर नेह की बारिश। हम एक विरले साहित्यकार की बौद्धिक यात्रा में गोते लगा रहे थे। राष्ट्रीय विचार की पगडंडी पर उनके जीवन में जो संघर्ष आए, उनके समाधान कैसे निकाले, वह सब हमारे सामने आ रहा था। डॉ. दीपक जी ने काव्य विधा में अद्भुत काम किया है। हमें आठ पंक्ति की कविता लिखने में जोर लगाना पड़ना है, आपने कई काव्य नाटक लिखे हैं। नि:संदेह आप पर माँ सरस्वती की विशेष कृपा है। आपने अपनी मेधा राष्ट्रीय चेतना के जागरण में समर्पित की है। आप राष्ट्रीय धारा के यशस्वी साहित्यकारों की माला के चमकते मोती हैं।

जो आजकल लोकतंत्र, संविधान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के झंडाबरदार बने घूम रहे हैं, उनकी सरकारें कितनी असहिष्णु और तानाशाह रही हैं, उसका जिक्र भी डॉ. देवेन्द्र दीपक जी की बातों में आया। सोचिए, संघर्षपूर्ण जीवन से निकलकर एक अच्छे शिक्षक के रूप में जो प्रबुद्ध युवा स्वयं को प्रतिष्ठित कर रहा था, उसकी नौकरी केवल इसलिए छीन ली गई क्योंकि उसका संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक सेवक संघ से था। श्री देवेंद्र दीपक ने संघ के शिक्षावर्ग में हिस्सा लिया तो सरकार ने उन्हें नौकरी से बेदखल कर दिया। लेकिन उन्होंने भी हार न मानी। अपने आचरण से जो विश्वास कमाया था उसके आधार पर उसी व्यवस्था ने उनकी सेवाओं को बहाल कर दिया। लेकिन, डेढ़ साल के सेवाकाल का नुकसान कर दिया। अपने सेवाकाल में उन्हें अनेक स्थानांतरणों का सामना भी करना पड़ा।

वरिष्ठ साहित्यकार श्री देवेन्द्र दीपक जी के साथ लेखक लोकेन्द्र सिंह और युवा पत्रकार आयुष पंडाग्रे

इस सत्संग में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अरुण भगत जी का आत्मीय जिक्र भी आया। डॉ. भगत श्रद्धेय दीपक जी के प्रति बहुत सम्मान रखते हैं और दीपक जी का भगत जी के प्रति अनुराग है। जब भगत जी पत्रकारिता की पढ़ाई करने के लिए भोपाल आये थे तब उन्हें देवेंद्र जी के यहीं आश्रय लिया था। भगत जी अपने साथ बिहार से आरएसएस के प्रचारक की चिट्ठी लेकर आये थे। तब से बना यह रिश्ता अब तक जारी है। डॉ. अरुण भगत जी ने देवेंद्र दीपक जी पर उल्लेखनीय साहित्यिक कार्य किया है। उनकी संपादकीय टिप्पणियों/लेखों को संकलित करके पुस्तक ‘डॉ. देवेन्द्र दीपक के संपादकीय’ के रूप में हमारे लिए प्रस्तुत करके बड़ा काम किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘डॉ. देवेन्द्र दीपक का आपातकालीन साहित्य : दृष्टि और मूल्यांकन’ शीर्षक से भी एक महत्वपूर्ण पुस्तक की रचना की है, जो यह स्थापित करती है कि देवेन्द्र दीपक जी ने आपातकाल के दौरान एक साहित्यकार के नाते अपने दायित्व का निर्वहन किया। आपातकाल पर श्री दीपक जी ने खूब लिखा है। प्रो. अरुण कुमार भगत द्वारा संपादित पुस्तकों में काव्य पुरुष डॉ. देवेंद्र दीपक: दृष्टि और मूल्यांकन, मास्टर धरमदास  का व्यंग्य बोध और संत रविदास की राम कहानी: दृष्टि और मूल्यांकन भी प्रमुख है। डॉ. अरुण भगत कहते हैं कि डॉ. देवेंद्र दीपक के साहित्य में सूक्तियों की भरमार है। इन सूक्तियों में जीवन-दर्शन छिपा है। इनपर बड़े स्तर पर शोध होना चाहिए। उनकी रचना या लेखन में सांस्कृतिक और सामाजिक उन्मेष के साथ सामाजिक समरसता है।

इस चर्चा में नर्मदापुर महाविद्यालय के हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. कृष्ण गोपाल मिश्र का उल्लेख भी आया। उन्होंने श्री देवेंद्र दीपक जी पर बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक ‘डॉ. देवेन्द्र दीपक : विमर्श के विविध आयाम’ की रचना की है। डॉ. कृष्ण गोपाल मिश्र जी की साहित्यिक सक्रियता अनुकरणीय है। उनके माध्यम से लगातार कुछ न कुछ सार्थक रचा जा रहा है। 

काव्य पुरुष श्री देवेन्द्र दीपक जी का काव्य नाटक 'सुषेण पर्व'

इस अवसर पर डॉ. देवेन्द्र दीपक जी के साहित्य भंडार के दर्शन करने का लाभ भी मिला। भोपाल के शालीमार गार्डन में स्थित उनके घर में दो कमरों में साहित्य भरा पड़ा है। पुरानी फाइलें रखी हैं, जिन पर काम किया जाना है। उसके लिए वे डॉ. भगत जी की बाट जोह रहे हैं। जीवन को उत्सव कैसे बनाया जाता है, यह भी मैंने उनसे सीखने का प्रयास किया है। 94 वर्ष की उम्र में भी उनका लिखना-पढ़ना निरंतर जारी हैं। उन्होंने अभी नौ महापुरुषों पर एकालाप तैयार किए हैं, जो जल्द ही हिन्दी साहित्य जगत के पाठकों के सम्मुख संवाद-विमर्श के लिए प्रस्तुत होंगे। उम्र के अंक गणित को उन्होंने बहुत पीछे छोड़ दिया है। स्मरण शक्ति इतनी जबरदस्त है कि मुझे सोचकर हैरानी हो रही थी। 

बहरहाल, साहित्य के संत एवं काव्य पुरुष डॉ. देवेन्द्र दीपक जी ने इस प्रसंग पर मुझे अपना काव्य-नाटक ‘सुषेण पर्व’ भेंट किया। इसके साथ ही मैंने आग्रहपूर्वक उनसे ‘वह सूरज : मैं सूरजमुखी’ पुस्तक भी स्नेह-आशीष के रूप में माँग ली। अपनी ओर से मैंने उन्हें भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली के पूर्व महानिदेशक एवं मीडिया प्राध्यापक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक ‘लोगों का काम है कहना…’ भेंट की। आज मैं अपने साथ सुखद स्मृतियां, अनुभवजन्य ज्ञान, जीवन का उत्साह, उमंग, आनंद एवं समाज जीवन की दिशा के कुछ सूत्र लेकर घर लौटा हूँ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share