ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर हाल ही में जारी हुई वेबसीरीज ‘आईसी814- द कंधार हाईजैक’ को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है। दरअसल, पूरी वेबसीरीज में आतंकियों के वास्तविक नामों की जगह उनके कोडनेम का इस्तेमाल किया गया है। भारतीय वायुसेना की उड़ान संख्या-आईसी814 का हाईजैक करनेवाले आतंकियों ने अपने वास्तविक नाम एवं पहचान छिपाने के लिए बर्गर, चीफ, शंकर और भोला जैसे कोडनेम रखे थे। वेबसीरीज के निर्माता ने इस तथ्य का गलत ढंग से उपयोग करते हुए आतंकियों की पहचान इन्हीं नामों से स्थापित करने का प्रयास किया। हालांकि फिल्म के अंत में आतंकियों के वास्तविक नामों का उल्लेख किया गया है। हम सब जानते हैं कि फिल्म समाप्त होने के बाद आनेवाली जानकारियों को आमतौर पर दर्शक पढ़ते नहीं है। ऐसे में वेबसीरीज के दर्शकों के मन में यह बात बैठ जाती कि आतंकियों में हिन्दू ‘भोला’ और ‘शंकर’ भी शामिल थे। उल्लेखनीय है कि भारत में इस्लामिक आतंकवाद के बचाव में और हिन्दुओं को बदनाम करने की नीयत से ‘हिन्दू आतंकवाद’ की फर्जी अवधारणा को स्थापित करने के लिए अनेक प्रकार की साजिशें हो चुकी हैं। हिन्दुओं की छवि खराब करने की दिशा में ही फिल्म निर्माताओं की इस कलाकारी को देखना चाहिए।
‘कोडनेम’ की आड़ लेकर पतली गली से बचकर निकलने का प्रयास कर रहे फिल्म निर्माताओं को बताना चाहिए कि क्या उन्होंने पूरी फिल्म में कहीं यह स्थापित करने का प्रयास किया है कि आतंकियों ने अपनी पहचान छिपाने के लिए कोडनेम क्यों इस्तेमाल किए? वेबसीरीज में आतंकियों की वास्तविक पहचान को स्पष्ट करने के कोई गंभीर प्रयास दिखायी नहीं देते हैं। वेबसीरीज देखते समय आम दर्शक यह समझ ही नहीं सकता कि ‘भोला’ और ‘शंकर’ तो कोडनेम हैं, आतंकियों के वास्तिवक नाम तो मोहम्मद शाकिर, मोहम्मद ज़हूर मिस्त्री, मोहम्मद सन्नी अहमद, मोहम्मद शाहिद अख्तर और मोहम्मद इब्राहिम अख्तर हैं। फिल्म निर्माता ने वेबसीरीज में बड़ी चतुराई से पाकिस्तान और आतंकी गिरोह आईएसआई को क्लिनचिट दे दी है। इसके साथ ही आतंकियों के प्रति सहानुभूति पैदा करनेवाला दृश्यांकन भी किया है। कहना होगा कि सिनेमा में इस प्रकार की कलाकारी भारत में स्वीकार नहीं की जानी चाहिए।
यह सोचकर ही हैरानी होती है कि वास्तविक घटना पर सिनेमा बनाते समय कोई निर्माता तथ्यों के साथ इस प्रकार का खिलवाड़ क्या सोचकर करता होगा? यह इकलौती फिल्म/वेबसीरीज नहीं है, जहाँ तथ्यों के साथ छेड़छाड़ करके हिन्दू समाज की छवि पर चोट करने का प्रयास और आतंकियों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न करने का प्रयास किया गया हो। यह अच्छी बात है कि अब समाज जागरूक हो गया है और ऐसी धोखाधड़ी को स्वीकार नहीं करता है। सोशल मीडिया पर नागरिकों की तीव्र प्रतिक्रियाओं को देखकर भारत सरकार का सूचना और प्रसारण मंत्रालय सक्रिय हुआ, यह भी सुखद है। मंत्रालय ने नेटफ्लिक्स को नोटिस भेजकर स्पष्टीकरण माँगा और तथ्यों की गलत ढंग से प्रस्तुति के लिए फटकार लगाई है। जिसका परिणाम यह हुआ कि नेटफ्लिक्स अब वेबसीरीज की शुरुआत में ही कोडनेम के साथ वास्तविक नामों का उल्लेख कर रहा है।
नेटफ्लिक्स ने भविष्य में इस प्रकार की गलती नहीं दोहराने का वादा भी किया है। हालांकि, यह गंभीर अपराध करने के बाद केवल माफी माँग कर छूट जाने का मामला हो गया है। इस प्रकरण से सबक लेकर सरकार को ओटीटी पर प्रसारित होनेवाली सामग्री के नियमन के लिए कुछ ठोस प्रावधान करने चाहिए। क्योंकि आज सिनेमाघरों से अधिक कंटेंट ओटीटी पर ही प्रसारित हो रहा है। ओटीटी पर कोई नियमन नहीं होने से भारतीयता के विरोधी सोचवाले फिल्म निर्माता रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर भारत और उसकी संस्कृति को गलत ढंग से प्रस्तुत कर समाज में विकृत विमर्श स्थापित कर रहे हैं। इसे अविलंब रोकने के उपायों पर विचार करना चाहिए।
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