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सोमवार, 26 नवंबर 2018

उजाले से भरा स्वदेश का दीपावली विशेषांक

- लोकेन्द्र सिंह -
स्वदेश ग्वालियर समूह की ओर से प्रतिवर्ष प्रकाशित होने वाले दीपावली विशेषांक की प्रतीक्षा स्वदेश के पाठकों के साथ ही साहित्य जगत को भी रहती है। समृद्ध विशेषांकों की परंपरा में इस वर्ष का विशेषांक शुभ उजाले से भरा हुआ है। प्रेरणा देने वाली कहानियां, संवेदनाएं जगाने वाली कविताएं और ज्ञानवर्धन करने वाले आलेख सहित अन्य पठनीय सामग्री लेकर यह विशेषांक पाठकों के सम्मुख उपस्थित है। प्रख्यात ज्योतिर्विद ब्रजेन्द्र श्रीवास्तव की वार्षिक ज्योतिष पत्रिका स्वदेश के दीपावली विशेषांक को और अधिक रुचिकर बनाती है।
          विशेषांक का दूसरा ही लेख युवा ज्योतिपुँज पियूष तांबे ने लिखा है। पियूष ने हमारी आँखों पर पड़ी उस पट्टी को हटाने का प्रयास किया है, जिसके कारण हमें अपनी समृद्ध 'गुरुकुल' परंपरा दिखाई नहीं पड़ती है। लंबे समय की औपनिवेशिक दासिता के कारण हम यह मान चुके हैं कि गुरुकुल परंपरा इतिहास की बात है। जबकि पियूष ने अपने लेख में गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था की तार्किक व्याख्या कर बताया है कि संपूर्ण देश में गुरुकुल परंपरा को लेकर एक वातावरण तैयार हो रहा है। देश-दुनिया में अनेक गुरुकुल आज भी संचालित हो रहे हैं। लेखक देवीराम उपाध्याय और दत्तराज देशपांडे के आलेखों में एवं भारतीय शिक्षण मंडल के गुरुकुल प्रकल्प के सह प्रमुख दीप कोइराला के साक्षात्कार में वर्तमान में सफलतापूर्वक संचालित गुरुकुलों की कहानी ज्ञात होती है। इसी तरह लेखक दिनेश पाठक ने भी भारत के प्राचीन विद्या केंद्र और उनके विस्तार की गौरव से भरने वाली जानकारी दी है। 
          इस विशेषांक के संपादक एवं वरिष्ठ पत्रकार सुरेश हिंदुस्तानी ने अपने लेख 'राम पथ : जीवन की सात्विक संहिता' के माध्यम से श्रीराम के चरित्र को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। उनका यह लेख संदेश देता है कि भगवान श्रीराम के प्रति भक्ति तभी सार्थक है, जब उनके बताए आदर्श को हम अपने जीवन में उतारें। प्रभु श्रीराम आदर्श समाज जीवन की दिशा को प्रस्तुत करने वाले भारतीय संस्कृति के नायक हैं। उन्होंने महलों के सुख-सुविधा को त्यागकर राष्ट्रहित में कण्टक पथ को स्वीकार किया। विशेषांक में निर्वासन (अनिल अग्निहोत्री), मैं बदल गई हूँ (सुनीता पाठक), ठहरे हुए बूढ़े (प्रमोद भार्गव), कुछ तो बचेगा (भगवत भट्ट) और लौट आई रोशनी (डॉ. ज्योत्सना सिंह) जैसी उम्दा कहानियां हैं, जो हमें एक नये विहान की ओर ले जाती हैं। 
          लेखक एवं मीडिया प्राध्यापक प्रो. संजय द्विवेदी ने विजयादशमी पर दिए गए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के व्याख्यान से 'सशक्त भारत के सूत्र' निकाल कर सबके समक्ष प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने बताया है कि यूँ तो विजयादशमी पर सरसंघचालक का उद्बोधन विशिष्ट रहता ही है, किंतु इस बार का व्याख्यान विशेष है। उचित ही है। वर्तमान समय में जिस प्रकार देश-दुनिया की उम्मीद भरी निगाहें संघ पर टिकी हैं, वैसे में संघ की ओर से उचित ही पाथेय अपने स्वयंसेवकों एवं समाज के शेष बंधुओं को दिया गया है। अपन राम का भी एक यात्रा वृत्तांत लेख विशेषांक में प्रकाशित हुआ है, जिसमें यह बताने का प्रयास किया गया है कि संघ ने सामाजिक समरसता के लिए कितना अधिक कार्य किया है। संघ अपने प्रारंभ से ही हिंदू समाज को संगठित, सशक्त और समरस बनाने का संकल्प लेकर चल रहा है। सामाजिक समरसता के लिए संघ की प्रयासों से महात्मा गांधी और बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर तक प्रभावित हो चुके हैं। 
          बहरहाल, कहना होगा कि स्वदेश का यह दीपावली विशेषांक भी सदैव की भाँति पाठकों की उम्मीदों पर खरा उतरेगा। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि स्वदेश के दीपावली विशेषांक राष्ट्रीय विचार का उजाला समेट कर लाते हैं और अपने पाठकों के अंतर्मन में उसकी लौ को स्थापित करने का साधु प्रयत्न करते हैं।

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