मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ी महत्वपूर्ण घोषणा की है। भोपाल में आयोजित महिला स्व-सहायता समूहों के सम्मेलन में मुख्यमंत्री ने कहा है कि महिला स्व-सहायता समूहों को पाँच करोड़ रुपये तक के ऋण पर गारंटी सरकार देगी और तीन प्रतिशत ब्याज अनुदान भी सरकार ही देगी। इसमें कोई दोराय नहीं कि मध्यप्रदेश सरकार अपनी महिला नीति के अंतर्गत महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में प्रयासरत है। इसमें महिला स्व-सहायता समूहों को प्रोत्साहित करने की नीति भी शामिल है। प्रदेश के मुखिया की इस घोषणा से न केवल महिला स्व-सहायता समूहों को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि महिलाओं के हाथ भी मजबूत होंगे। मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार महिला स्व-सहायता समूहों को जब 700 करोड़ रुपये के पोषण आहार का कारोबार मिलेगा, तब महिलाओं को आर्थिक ताकत मिलेगी। एक सबल प्रदेश एवं देश के निर्माण में महिलाओं की उपस्थिति आर्थिक क्षेत्र में बढऩी ही चाहिए।
पिछले माह भारत और अमेरिका की सह मेजबानी में हैदराबाद में वैश्विक उद्यमिता सम्मेलन का आयोजन किया गया। उस आयोजन से यह बात निकल कर सामने आई थी कि उद्योग जगत में महिलाओं की उपस्थिति एवं सक्रियता बहुत कम है। नवंबर महीने में आई नैस्कॉम की रिपोर्ट भी कहती है कि भारत में अभी मौजूद 5000 स्टार्टअप्स में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 11 फीसदी है। महिलाओं के 3 फीसदी स्टार्टअप्स को ही फंड मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में यदि मध्यप्रदेश सरकार महिलाओं के स्व-सहायता समूहों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयास कर रही है, तब उसका स्वागत किया जाना चाहिए। मध्यप्रदेश में महिलाएं अब पोषण आहार बनाने के लिए आधुनिक प्लांट लगा सकती हैं, आधुनिक मशीनें खरीद सकती हैं, इसके लिए अब धन की कमी आड़े नहीं आएगी। सरकार उन्हें पाँच करोड़ रुपये तक का ऋण उपलब्ध कराने में मदद करेगी। यह ऋण बैंकों में लगने वाली स्टाम्प ड्यूटी से भी मुक्त रहेगा। ऋण लौटने में कठिनाई न हो, इसके लिए सरकार ऋण पर तीन प्रतिशत ब्याज अनुदान में देगी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने महिला स्व-सहायता समूहों के उत्पादनों को प्रोत्साहित करने, उनकी मार्केटिंग करने और उन्हें बाजार में उचित स्थान दिलाने के लिए भी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस घोषणा पर यह भी प्रश्न उठाए जा सकते हैं कि जब मध्यप्रदेश सरकार पर पहले से ही आर्थिक बोझ है, ऐसे में बड़े पैमाने पर ऋण एवं अनुदान बाँटने से क्या यह बोझ और अधिक बढ़ नहीं जाएगा? प्रश्न यह भी है कि क्या महिलाओं को मिलने वाले इस अनुदान और ऋण की गारंटी का बहुत-से लोग अनुचित लाभ नहीं उठाएंगे? ग्रामीण स्तर पर गठित महिला स्व-सहायता समूहों के साथ जुड़ी महिलाएं कहीं न कहीं कागजी कार्यवाहियों के लिए बिचौलियों पर निर्भर हैं। ऐसे में यह आशंका है कि सरकार जो लाभ महिलाओं को देने जा रही है, वह उतनी मात्रा में महिलाओं तक नहीं पहुंच जाएगा। बहस का विषय यह भी हो सकता है कि इस प्रकार के अनुदान की भरपाई कहाँ से की जाएगी? बहरहाल, यह प्रश्न जितने महत्वपूर्ण हैं, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि आर्थिक जगत में उत्साह से आ रही महिलाओं को सहयोग देना और उनका समर्थन करना।
देश-प्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए आवश्यक है कि लघु-कुटीर उद्योगों एवं उससे भी छोटे प्रयासों को ताकत दी जाए। महिला स्व-सहायता समूहों की सफलता की कई कहानियां हैं, जो इस बात की हामी भरती हैं कि संकल्प से सिद्धि संभव है। यह बात सही है कि प्रदेश सरकार को अपनी नीतियों के क्रियान्वयन पर होमवर्क करने की आवश्यकता है। सरकार की नीतियां तो बहुत अच्छी हैं, किंतु कड़ी निगरानी के अभाव में हितग्राहियों की बजाय दूसरे लोग लाभ उठा लेते हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं को दी जा रही सुविधाओं से महिलाएं ही सशक्त हों, कोई और नहीं। यदि यह सुनिश्चित कर लिया तो यह ऋण एवं अनुदान व्यर्थ नहीं जाएगा।
(नईदुनिया में 19 दिसम्बर, 2017 को प्रकाशित लेख)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share