लाल बत्ती की विदाई का निर्णय लेने के लिए केंद्र सरकार की सराहना की जानी चाहिए। यह निर्णय इसलिए और स्वागतयोग्य है कि किसी को भी लाल बत्ती का उपयोग करने की छूट नहीं दी गई। सरकार ने स्वयं से इसकी शुरुआत की है। यानी प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री भी बत्ती का उपयोग नहीं कर सकते। केंद्र सरकार के निर्णय के मुताबिक आगामी एक मई से विशिष्ट-अतिविशिष्ट व्यक्तियों के वाहनों पर बत्ती का उपयोग नहीं होगा। राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री, निगम मंडलों के पदाधिकारी तथा सभी सरकारी अफसरों के वाहन भी अब बत्ती विहीन हो जाएंगे। हालाँकि सेना, पुलिस, रुग्णवाहिका और अग्निशमन दल के वाहनों पर ही बत्ती का उपयोग किया जा सकता है।
केंद्र सरकार के निर्णय के अनुपालन में मध्यप्रदेश सरकार ने हमेशा की तरह पहल की है। बत्तीबंद का निर्णय एक मई से लागू होना है, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्रिगणों ने समाचार माध्यमों से सूचना प्राप्त होते ही अपने वाहनों बत्ती हटाना शुरू कर दिया। एक तरह से बत्ती हटाने की होड़ मच गई। यह सर्वविधित है कि लाल बत्ती केवल एक सुविधा नहीं रह गई थी, बल्कि एक ऐसी संस्कृति का प्रतीक बन गई थी जिसका लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं होना चाहिए। बत्ती विशिष्टा से भी कहीं अधिक रसूख का प्रतीक बन गई थी। लाल बत्ती वाहन से लैस व्यक्ति जनता को यही संदेश देते थे कि वे उनसे अलग और विशिष्ट हैं। उनके लिए सड़क पर अलग से चलने की व्यवस्था हो। जब वो लाल बत्ती के साथ आएं, तो उनके लिए रास्ता छोड़ा जाए। बत्ती बंद करने के बाद अब सरकार को तथाकथित विशिष्टजनों के काफिले को भी छोटा करने पर विचार करना चाहिए। यदि इस दिशा में इसी प्रकार की पहल सरकार करती है, तब वास्तव में 'वीआईपी कल्चर' खत्म हो सकेगा।
बहरहाल, बत्ती बंद करने का निर्णय करके सरकार ने देश की जनता को एक सकारात्मक संदेश देने का काम किया है कि भारत में कोई राजा और प्रजा नहीं हैं। विशिष्ट और सामान्य का भेद नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट करके कहा भी है- 'हर भारतीय विशेष है। हर भारतीय वीआइपी है। खुश हूं कि अब एक नई शुरुआत हुई है। न्यू इंडिया (नये भारत) की भावना से 'वीआइपी कल्चर' के यह प्रतीक खत्म हो गए हैं।' यकीनन इस निर्णय से जनता में यह संदेश गया है कि केंद्र में देश के सामान्य जन की हितैषी सरकार है। यहाँ विचार किया जाना चाहिए कि जो स्वयं को लोकतंत्र के सच्चे हिमायती कहते रहे हैं, जिन्होंने लम्बे समय तक देश के शासन को संभाला है, उन्होंने क्यों 'वीआईपी कल्चर' के प्रतीक हटाने की पहल नहीं की? जबकि लाल बत्ती हटाने के लिए देश में लंबे समय से माँग होती रही है। इस संबंध में न्यायालय तक के दरवाजे लोगों ने खटखटाए हैं।
लोकतंत्र में 'वीआईपी कल्चर' को खत्म करने के यह प्रयास यहीं थमने नहीं चाहिए। अभी ऐसी अनेक व्यवस्थाएं हैं, जिनसे भी 'वीआईपी कल्चर' पोषित होता है। उन व्यवस्थाओं पर भी चोट करना जरूरी है। मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल को देखकर इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि राजनीति और समाज में एक सार्थक परिवर्तन आएगा, जो आता हुआ दिखाई भी देने लगा है।
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