राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना में जबरन जोड़े गए ‘समाजवादी’ और ‘सेकुलर’ शब्दों के औचित्य को प्रश्नांकित करके महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। उन्होंने कहा कि "आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए Secularism और Socialism शब्दों की समीक्षा होनी चाहिए। ये मूल प्रस्तावना में नहीं थे। अब इस पर विचार होना चाहिए कि इन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं?" ध्यान दें कि सरकार्यवाह श्री दत्ताजी ने दोनों शब्दों को सीधे हटाने की बात नहीं की है अपितु उन्होंने इस संदर्भ में विचार करने का आग्रह किया है। लेकिन उनके विचार को गलत ढंग से कौन प्रस्तुत कर रहा है, वे लोग जिन्होंने लोकतंत्र का गला घोंटकर, अलोकतांत्रिक ढंग से, बिना किसी चर्चा के, चोरी से संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर और समाजवाद शब्द घुसेड़ दिए। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर और संविधान सभा द्वारा देश को सौंपी गई संविधान की प्रस्तावना को बदलने वाली ताकतों को वितंडावाद खड़ा करने से पहले अपने गिरेबां में झांककर देखना चाहिए। और, स्वयं से प्रश्न पूछना चाहिए कि "इस विषय में कुछ कहने का उन्हें नैतिक अधिकार भी है?" सत्य तो यह है कि संविधान की मूल प्रस्तावना को बदलने का अपराध करने के लिए उन्हें देश की जनता से क्षमा मांगनी चाहिए। बहरहाल, इस बहस के बहाने कम से कम देश की जनता को पुन: याद आएगा कि सही अर्थों में संविधान की हत्या किसने की है? किसने बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर और संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को बदलने का काम किया है। वास्तव में यह महत्वपूर्ण प्रश्न है कि जब देश में आपातकाल लगा था तब संसद में बिना किसी चर्चा के संविधान की प्रस्तावना में जबरन परिवर्तन करते हुए ‘समाजवाद’ और ‘सेकुलर’ शब्द क्यों जोड़े गए? क्या इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए कि संविधान की मूल प्रस्तावना से की गई छेड़छाड़ को ठीक किया जाए? संविधान को वापस वही प्रस्तावना मिले, जिसे बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर, संविधान सभा और देश की जनता ने आत्मार्पित किया था। याद रहे कि प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा जाता है।
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शनिवार, 28 जून 2025
गुरुवार, 26 जून 2025
क्या आरएसएस के सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर आपातकाल का समर्थन किया था?
बौद्धिक जगत में एक वर्ग ऐसा भी है जो आपातकाल की भयावहता को छिपाने और आपातकाल की क्रूरता पर चर्चा की जगह यह साबित करने में आज भी अपनी बुद्धि खपा रहा है कि ‘संघ ने आपातकाल का समर्थन किया था’। कुतर्क की भी हद होती है। ये वही लोग हैं जो पहलगाम में इस तथ्य को झुठलाने की बेशर्म कोशिश कर रहे थे कि आतंकवादियों ने धर्म पूछकर पर्यटकों की हत्या नहीं की। जबकि मृतकों की परिजनों ने बिलखते हुए कहा है कि “उनके सामने ही आतंकवादियों ने धर्म पूछकर हत्याएं की हैं”। बहरहाल, एक बार फिर ‘संविधान हत्या दिवस’ पर कई तथाकथित विद्वान पूर्व सरसंघचालक श्रद्धेय बाला साहब देवरस के एक पत्र को प्रसारित करके दावा कर रहे हैं कि संघ ने आपातकाल का समर्थन किया और श्रीमती इंदिरा गांधी से माफी भी मांगी। मुझे आश्चर्य है कि उन्होंने किस दिव्य दृष्टि से इस पत्र को पढ़ा है। इस पत्र में एक भी स्थान पर, एक भी पंक्ति या शब्द में यह नहीं लिखा है कि संघ देश पर थोपे गए आपातकाल का समर्थन करता है।
रविवार, 15 जून 2025
संघ सृष्टि में रचे-बसे लेखक की अनुभूति 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र'
पुस्तक चर्चा : RSS की कहानी-प्रचारक की जुबानी
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष की ओर कदम बढ़ा रहा है। ऐसे में संघ को लेकर गहरी रुचि और जिज्ञासा सामान्य लोगों से लेकर बौद्धिक जगत में दिखायी दे रही है। संघ के संबंध में अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिन्हें विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से लिखा है। इस शृंखला में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक सुनील आंबेकर की पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र’ अवश्य पढ़ी जानी चाहिए। जब संघ की सृष्टि में रचा-बसा लेखक कुछ लिखता है, तब उसे पढ़कर संघ को ज्यादा बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। यह एक ऐसी पुस्तक है, जो लेखक की प्रत्यक्ष अनुभूति के साथ विकसित हुई है। संघ की यात्रा और विभिन्न मुद्दों पर संघ का दृष्टिकोण बताते हुए सुनील आंबेकर अपनी संघ यात्रा को भी रेखांकित करते हैं। यह प्रयोग संघ को व्यवहारिक ढंग से समझने में हमारी सहायता करता है। मनोगत में स्वयं लेखक सुनील जी लिखते हैं कि यह पुस्तक उनके लिए है जो व्यवहार रूप में संघ को समझना चाहते हैं, उसके माध्यम से जिसने संघ को जिया है। उल्लेखनीय है कि सुनील आंबेकर वर्तमान में संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख हैं। इससे पूर्व उनका लंबा समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को गढ़ने में बीता है। सुनील जी बाल्यकाल से स्वयंसेवक हैं। संघ के साथ उनके संबंध नैसर्गिक रूप से विकसित हुए हैं। नागपुर में उनका घर संघ मुख्यालय के पड़ोस में ही है। उनके घर का द्वार संघ कार्यालय के प्रांगण में ही खुलता था।
सोमवार, 9 जून 2025
भारत के स्वराज्य की हुंकार : हिन्दू साम्राज्य दिवस
वीडियो देखें : हिन्दू साम्राज्य दिवस का महत्व | Hindu Samrajya Divas
छत्रपति शिवाजी महाराज भारत की स्वतंत्रता के महान नायक हैं, जिन्होंने ‘स्वराज्य’ के लिए संगठित होना, लड़ना और जीतना सिखाया। मुगलों के लंबे शासन और अत्याचारों के कारण भारत का मूल समाज आत्मदैन्य की स्थिति में चला गया था। विशाल भारत के किसी न किसी भू-भाग पर मुगलों के शोषणकारी शासन से मुक्ति के लिए संघर्ष तो चल रहा था लेकिन उन संघर्षों से बहुत उम्मीद नहीं थी। भारत के वीर सपूत अपने प्राणों की बाजी तो लगा रहे थे लेकिन समाज को जागृत और संगठित करने का काम नहीं कर पा रहे थे। जबकि छत्रपति शिवाजी महाराज ने समाज के भीतर विश्वास जगाया कि हम मुगलों के शासन को जड़ से उखाड़कर फेंक सकते हैं, यदि सब एकजुट हो जाएं। यही कारण है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के देवलोकगमन के बाद भी ‘हिन्दवी स्वराज्य’ का विचार पल्लवित, पुष्पित और विस्तारित होता रहा। ‘हिन्दू साम्राज्य दिवस’ या ‘श्रीशिव राज्याभिषेक दिवस’ भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। इस घटना ने दुनिया को बताया कि भारत के भाग्य विधाता मुगल नहीं हैं। भारत का हिन्दू समाज ही भारत का भाग्य विधाता है। भारत में हिन्दुओं का राज्य है। उनके शासन का नाम है- ‘हिन्दवी स्वराज्य’।
शुक्रवार, 6 जून 2025
सबका स्वागत करता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
अपने कार्यक्रमों में विभिन्न विचारों के महानुभावों को आमंत्रित करने की संघ की परंपरा, नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग 'कार्यकर्ता विकास वर्ग-2' के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध जनजातीय नेता अरविंद नेताम आमंत्रित
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सबके लिए खुला संगठन है। इसके दरवाजे किसी के लिए बंद नहीं है। कोई भी संघ में आ सकता है। कोई विपरीत विचार का नेता, सामाजिक कार्यकर्ता या विद्वान व्यक्ति जब संघ के कार्यक्रम में शामिल होता है, तब उन लोगों को आश्चर्य होता है, जो संघ को एक ‘क्लोज्ड डोर ऑर्गेनाइजेशन’ समझते हैं। जो संघ को समझते हैं, उन्हें यह सब सहज ही लगता है। इसलिए नागपुर में आयोजित संघ शिक्षावर्ग ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-2’ के समापन समारोह में जब मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के जनजाति वर्ग के कद्दावर नेता अरविंद नेताम को आमंत्रित किया गया, तब संघ को जाननेवालों को यह सहज ही लगा लेकिन संघ के प्रति संकीर्ण सोच रखनेवाले इस पर न केवल हैरानी व्यक्त कर रहे हैं अपितु वितंडावाद भी खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, उनके वितंडावाद की हवा स्वयं जनजातीय नेता अरविंद नेताम ने यह कहकर निकाल दी कि “वनवासी समाज की समस्याेओं और चुनौतियों को संघ कार्यक्रम के माध्याम से रखने का सुअवसर मुझे मिला है”। उन्होंने संघ के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी यह भी की है कि “इस संगठन में चिंतन-मंथन की गहरी परंपरा है। भविष्य में जनजातीय समाज के सामने जो चुनौतियां आनेवाली हैं, उसमें आदिवासी समाज को जो संभालनेवाले और मदद करनेवाले लोग/संगठन हैं, उनमें हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मानते हैं”। सुप्रसिद्ध जनजातीय नेता अरविंद नेताम श्रीमती इंदिरा गांधी और पीवी नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री रहे हैं। उल्लेखनीय है कि संघ के कार्यक्रमों में महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव अंबेडकर और जय प्रकाश नारायण से लेकर श्रीमती इंदिरा गांधी एवं प्रणब मुखर्जी तक शामिल हो चुके हैं। संघ ने कभी किसी से परहेज नहीं किया। संघ अपनी स्थापना के समय से ही सभी प्रकार के मत रखनेवाले विद्वानों से मिलता रहा है और उन्हें अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित करता रहा है।