शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

अपने लोगों को ताकत दें, स्थानीय बाजार से खरीदारी करें


हमारे देश में दीपावली से पहले बड़े स्तर पर खरीदारी शुरू हो जाती है। दरअसल, शारदीय नवरात्र के साथ ही त्योहारों और शुभ अवसरों की एक शृंखला प्रारंभ होती है, जो दीपावली के बाद तक जारी रहती है। इन शुभ प्रसंगों पर हम आवश्यक वस्तुएं, उपहार और चल-अचल संपत्ति क्रय करते हैं। विजय की आकांक्षा जगाने वाला पर्व विजयादशमी पर भी बाज़ारों में रौनक रहती है। सुख-समृद्धि और आरोग्य का प्रतीक पर्व धनतेरस भी दीपावली से ठीक दो दिन पूर्व ही आता है, जब हमारे बाजार विशेष तौर पर सजाए जाते हैं। इस दिन बड़ी संख्या में लोग बर्तन, सोना-चांदी, जेवरात इत्यादि संपत्ति खरीदते हैं। 

कुल मिलाकर यह एक ऐसा अवसर आ रहा है, जब हम सही मायने में ‘वोकल फॉर लोकल’ के अपने शुभ संकल्प को परख सकते हैं। क्या हम यह तय कर सकते हैं कि इस बार हम अपने स्थानीय व्यवसायियों के हाथ मजबूत करेंगे? अपनी आवश्यकता का सामान अपने आसपास के बाजार से खरीदेंगे। 

  • स्थानीय सुनार से आभूषण तैयार कराएंगे। 
  • स्थानीय इलेक्ट्रीशियन को सजावटी लाइट तैयार करने को कहेंगे। 
  • साज-सज्जा की सामग्री किसी मॉल या शो-रूम से नहीं, बल्कि अपने शिल्पियों से खरीदेंगे। 
  • कुम्हार के चाक को गति देंगे और उससे दीये खरीदेंगे। 
  • शहर के मोची से जूते-चप्पल बनवाएंगे। 
  • फर्नीचर अपने बढ़ई से तैयार कराएंगे। 
  • अपने हलवाई से मिठाई बनवाएंगे। 

क्या हम तय कर सकते हैं कि अब हम ब्रांडेड के चक्कर में न पड़ कर स्थानीय उत्पाद को प्रोत्साहित करेंगे। अपने स्थानीय उत्पाद को ब्रांड बनाएंगे। स्थानीय उत्पाद को न केवल खरीदेंगे अपितु उपयोग के बाद संतुष्ट होने पर उसका प्रचार भी करेंगे। अपने परिचितों के साथ और अपने सोशल मीडिया मंचों के माध्यम से उस उत्पाद की खूबियां सबके साथ साझा करेंगे। 

हम ऐसा विज्ञापन करेंगे कि उन देशी-विदेशी बड़े ब्रांडों को शर्म आ जाए, जो प्रचार में भी हिन्दू समाज पर आघात करते हैं। यह लगातार देखने में आ रहा है कि विभिन्न देशी-विदेशी कंपनियां अपने उत्पाद का प्रचार करने के लिए ऐसी झूठी कहानियां प्रस्तुत कर रहीं हैं, जिनसे हिन्दू समाज की छवि यथार्थ के ठीक विपरीत संकीर्ण, कूपमंढूक और असहिष्णु समाज के रूप में बन रही है। 

यह अच्छी बात है कि विज्ञापनों और सिनेमा के माध्यम से समाज पर हो रहे लगातार हमले पर अब हिन्दू समाज ने अपना प्रतिरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया है। निश्चित ही यह जागरूक समाज की जिम्मेदारी है कि वह अपने विरुद्ध हो रहे वैचारिक हमलों को रोके। वास्तविकता से परे, कपोल-कल्पित, झूठे और आपत्तिजनक विज्ञापनों को रोका जाना बहुत आवश्यक है। इसके साथ ही अच्छी और सच्ची बातों का स्वागत भी करना है।

अब हमें बहिष्कार करने की प्रवृत्ति से आगे बढ़ कर अपने स्थानीय उत्पादों को स्थापित करके भी दिखाना चाहिए। उन छोटे दुकानदारों, कारीगरों और कलाकारों का प्रचार करना चाहिए, जो विज्ञापन फिल्में बनाकर अपने गुणवत्तापूर्ण सामग्री को सब तक नहीं पहुँचा पाते हैं। यह इसलिए भी करना आवश्यक है क्योंकि कोरोना संक्रमण का बहुत नकारात्मक प्रभाव हमारे छोटे-मोटे दुकानदार, कारीगर, व्यवसायियों पर पड़ा है। इस दौरान उनके यहाँ काम करने वाले कामगारों को भी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा है। यदि हमें भारत को मजबूत बनाना है तब इन लोकल्स के लिए वोकल होना ही पड़ेगा। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान के बाद हमने जिस आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का संकल्प लिया है, उसमें ‘गिलहरी योगदान’ देने का अवसर आ गया है। यह अवसर स्वदेशी के प्रति आग्रही होने के हमारे अभ्यास को भी पक्का करेगा। 

तो आईये, संकल्प लेते हैं कि इस बार स्वदेशी और स्थानीय उत्पाद ही खरीदेंगे। साथ ही उसका प्रचार भी करेंगे। 

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