tag:blogger.com,1999:blog-87226734510573877062024-03-19T12:00:07.917+05:30अपना पंचूलोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.comBlogger865125tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-34082586190952112522024-03-19T11:59:00.002+05:302024-03-19T11:59:13.626+05:30राम मंदिर और संघ : समाज के लिए दृष्टिबोध है प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjleYkd9QkEbvGfpIG7dSXqs7ysTLt2Zzda3xICU9G7E5LM2ky-sluLmGlO1Kry9r7k3ZVWqywitfgpxo9gOZWLCKRRQNbIj0CDSncRzi9NHUzGEe2F7vO6aIfY6Yccj7Rtfd7ZMLO3uqPRYFPMA8w53vayIj0GtSfCTVOmeg7rpmUwXa9MZt99MyqZ/s1350/Rss%20Akhil%20Bhartiya%20Pratinidhi%20Sabha%20Prastav-2024.jpeg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="1350" data-original-width="1080" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjleYkd9QkEbvGfpIG7dSXqs7ysTLt2Zzda3xICU9G7E5LM2ky-sluLmGlO1Kry9r7k3ZVWqywitfgpxo9gOZWLCKRRQNbIj0CDSncRzi9NHUzGEe2F7vO6aIfY6Yccj7Rtfd7ZMLO3uqPRYFPMA8w53vayIj0GtSfCTVOmeg7rpmUwXa9MZt99MyqZ/w320-h400/Rss%20Akhil%20Bhartiya%20Pratinidhi%20Sabha%20Prastav-2024.jpeg" width="320" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव- ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ </td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;"><b>भगवान श्रीराम </b>की जन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से जब समूचा देश अभिभूत है, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ शीर्षक से प्रस्ताव पारित करके समाज के सामने बड़ा लक्ष्य प्रस्तुत किया है। ‘रामराज्य’ की संकल्पना को साकार करने के लिए नागरिकों के जीवन एवं उनके सामाजिक दायित्व में जिस प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, उसका आग्रह इस प्रस्ताव में है। श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप समरस, सुगठित राष्ट्रजीवन खड़ा करने का जिस प्रकार का सकारात्मक वातावरण बन गया है, उसको पुष्ट करने की प्रेरणा संघ ने नागरिकों को दी है। संघ का मानना है कि श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की घटना भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारंभ होने का संकेत है। नि:संदेह यही सच है। कहना होगा कि भारत की ‘नियति से भेंट’ अब जाकर हुई है। श्रीरामजन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से भारत के स्वदेशी समाज में आत्मगौरव की भावना का संचार हुआ है, वह आत्मविस्मृति की स्थिति से बाहर निकला है। सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने ‘स्व’ को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है। समाज में दिख रहा यह परिवर्तन ‘स्व’ की ओर भारत की यात्रा का द्योतक है। यह यात्रा भगवान श्रीराम के आदर्शों के अनुकूल हो, यह जिम्मेदारी भारतीयों की है। भारतीय समाज मंदिर निर्माण को ही अपने संघर्ष का उद्देश्य मानकर संतोष न कर ले, इसलिए संघ ने स्मरण कराया है कि राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य तभी सार्थक होगा, जब सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले। श्रीराम के जीवन मे परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी।</p><blockquote class="twitter-tweet" data-media-max-width="560"><p dir="ltr" lang="hi">श्रीराम मंदिर इस देश की अस्मिता का प्रतीक है, यह बार-बार सिद्ध हुआ है- मान. दत्तात्रेय होसबाले, सरकार्यवाह, <a href="https://twitter.com/RSSorg?ref_src=twsrc%5Etfw">@RSSorg</a> <a href="https://t.co/zLbUorYgMe">pic.twitter.com/zLbUorYgMe</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1769971555436536300?ref_src=twsrc%5Etfw">March 19, 2024</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;"><span style="white-space: normal;"><span style="white-space: pre;"> </span>प्रतिनिधि सभा ने वैश्विक परिस्थितियों की ओर भी संकेत किया है। आज विश्व में जिस प्रकार जीवन मूल्यों का क्षरण हुआ है, मानवीय संवेदनाओं में कमी आई है, विस्तारवादी मानसिकता बढ़ी है, राजनीतिक वैमनस्यता एवं स्वार्थों के कारण हिंसा और संघर्ष बढ़े हैं, उनसे समूची मानवता कराह रही है। ‘रामराज्य’ की संकल्पना दुनिया को शांति और समृद्धि की ओर लेकर जा सकती है। भारत इसमें अग्रणी भूमिका निभा सकता है। नि:संदेह, भारत को ही पहले ‘रामराज्य’ के शाश्वत मूल्यों की स्थापना करनी होगी। संघ की ओर से प्रस्ताव के आखिर में समस्त भारतीयों से आह्वान किया गया है कि “बंधुत्वभाव से युक्त, कर्तव्यनिष्ठ, मूल्याधारित और सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता करनेवाले समर्थ भारत का निर्माण करें, जिसके आधार पर वह एक सर्वकल्याणकारी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर सकेगा”। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि भारत रामराज्य के आधार पर विश्व को अनेक प्रकार की चुनौतियों का समाधान दे सकता है। </span></p><p style="text-align: justify;">इसके साथ ही संघ ने अपने प्रस्ताव में श्री अयोध्या धाम में राम मंदिर के निर्माण के महत्व, उसके साथ जुड़े श्रद्धाभाव, संघर्ष एवं समर्पण का स्मरण भी कराया है। याद रखें कि जिन लोगों ने वर्षों तक राम मंदिर का विरोध किया और वितंडावाद खड़ा किया, उनके द्वारा अब यह नैरेटिव स्थापित किया जा रहा है कि मंदिर का निर्माण तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के कारण हुआ है। देशवासियों को इस नैरेटिव में नहीं उलझना चाहिए। हमें भली प्रकार यह स्मरण रखना होगा कि राम मंदिर का निर्माण केवल सर्वोच्च न्यायालय के कारण संभव नहीं हुआ है। न्यायालय ने केवल निर्णय दिया है, लेकिन उसकी पृष्ठभूमि बनाने में कितने ही लोगों का योगदान है, यह भूलना नहीं है। देश की दिशा और दशा को रामराज्य की आकांक्षा के अनुरूप रखने के लिए समस्त भारतीयों को अपने जीवन की दिशा भी राष्ट्र जीवन के अनुरूप रखनी होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह प्रस्ताव उसके अब तक के प्रस्तावों से थोड़ा भिन्न है। इस प्रस्ताव में समाज का प्रबोधन है और उससे आवश्यक आग्रह है। यदि हम संघ के आग्रह को स्वीकार करके अपने दायित्वों का निर्वहन करते हैं, तो वह दिन दूर नहीं जब विश्व में भारत की विशिष्ट भूमिका एवं स्थान होगा। </p><br /><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><img border="0" data-original-height="2600" data-original-width="5590" height="186" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_5cGADFc4XSHdmHxNHTWQ90WSZjd-fDM-XhuVl71Cg8iEfJsC1D0fb2WrcDO_UX_QomEXp4zmWugpq9GmJROLwaezMl06900SHGhOMs-I2KmRA_63e_Ho83uem_MjFY7vHS4vaZLKKGt54JZCL0kPcGGj2TkSpeF-0BxULGzBQyK-2OS62IYIX2zp/w400-h186/Pratinidhi%20Sabha-Swadesh%20Gwalior-19%20March%202024.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;" width="400" /></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">स्वदेश, ग्वालियर समूह के सभी संस्करणों में 19 मार्च, 2024 को प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित</td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;"><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEite0jPtPT4jqPH-2dT15sMmiO24EB04LNWLUG9ZVgKkIRBmgH-dEV-M8SweGlxXcher18okZn1GF3imrSTEOlD_oUWrwCNHuQnzBm_FK99NK640nA1VptOsJDirXPId7Bw1Ph4oMtN56h8Cv-e6rAspiMxAbpEvNV6JphXVIDhKg7ofWEx5WpIgzp0/s974/Pratinidhi%20Sabha-Swadesh%20Gwalior-19%20March%202024-Shesh.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="820" data-original-width="974" height="336" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEite0jPtPT4jqPH-2dT15sMmiO24EB04LNWLUG9ZVgKkIRBmgH-dEV-M8SweGlxXcher18okZn1GF3imrSTEOlD_oUWrwCNHuQnzBm_FK99NK640nA1VptOsJDirXPId7Bw1Ph4oMtN56h8Cv-e6rAspiMxAbpEvNV6JphXVIDhKg7ofWEx5WpIgzp0/w400-h336/Pratinidhi%20Sabha-Swadesh%20Gwalior-19%20March%202024-Shesh.jpg" width="400" /></a></div><br />लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-35641076321219131752024-03-14T21:26:00.002+05:302024-03-19T11:59:34.182+05:30सच का सामना करने की है दम तो देखिए- बस्तर : द नक्सल स्टोरी<h3 style="text-align: center;"><span style="color: red;">कम्युनिस्टों की हिंसक एवं क्रूर विचारधारा एवं भारत विरोधी सोच को उजागर करती है सुदीप्तो सेन की फिल्म</span> </h3><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhU9gGcA7aoTXFBA3PQpPkvmyN0SVA05Kx05yGfHY1NDdXO7sog5GwqA9AkC1baS_U59fNjVZ_XtO7wijE8Zyn9OZJ-XIKbRjJexkMWRjj0XbJB55vqAE8KLU18SUe54OdyQLDSGtTrWfr6SE53bHKqT5Hhc1X9vRsV9tYJzC1IG3EVE_LKqWYdUxZH/s1078/GIkFPLEWoAMfjPr.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="468" data-original-width="1078" height="174" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhU9gGcA7aoTXFBA3PQpPkvmyN0SVA05Kx05yGfHY1NDdXO7sog5GwqA9AkC1baS_U59fNjVZ_XtO7wijE8Zyn9OZJ-XIKbRjJexkMWRjj0XbJB55vqAE8KLU18SUe54OdyQLDSGtTrWfr6SE53bHKqT5Hhc1X9vRsV9tYJzC1IG3EVE_LKqWYdUxZH/w400-h174/GIkFPLEWoAMfjPr.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">‘द केरल स्टोरी’ के बाद सुदीप्तो सेन ने फिल्म ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ के माध्यम से एक और आतंकवाद को, उसके वास्तविक रूप में, सबके सामने रखने का साहसिक प्रयास किया है। भारत में कम्युनिस्ट, नक्सल और माओवाद (संपूर्ण कम्युनिस्ट परिवार) के खून से सने हाथों एवं चेहरे को छिपाने का प्रयास किया जाता रहा है। लेफ्ट लिबरल का चोला ओढ़कर अकादमिक, साहित्यक, कला-सिनेमा एवं मीडिया क्षेत्र में बैठे अर्बन नक्सलियों ने कहानियां बनाकर हमेशा लाल आतंक का बचाव किया और उसकी क्रांतिकारी छवि प्रस्तुत की। जबकि सच क्या है, यही दिखाने का काम ‘बस्तर : द नक्सल स्टोरी’ ने किया है। फिल्म संवेदनाओं को जगाने के साथ ही आँखों को भिगो देती हैं। फिल्म जिस दृश्य के साथ शुरू होती है, वह दर्शकों को हिला देता है। जब मैं ‘बस्तर’ की विशेष स्क्रीनिंग देख रहा था, तब मैंने देखा कि अनेक महिलाएं एवं युवक भी पहले ही दृश्य को देखकर रोते हुए सिनेमा हॉल से बाहर निकल गए। जरा सोचिए, हम जिस दृश्य को पर्दे पर देख नहीं पा रहे हैं, उसे एक महिला और उसकी बेटी ने भोगा है। फिल्म में कुछ दृश्य विचलित कर सकते हैं। यदि उन दृश्यों को दिखाया नहीं जाता, तो दर्शक कम्युनिस्टों की हिंसक मानसिकता का अंदाजा नहीं लगा सकते थे। 76 जवानों को जलाकर मारने की घटना का चित्रांकन, कुल्हाड़ी से निर्दोष वनवासियों की हत्या करने के दृश्य, मासूम बच्चों को उठाकर आग में फेंक देने की घटना, यह सब देखने के लिए दम चाहिए। यह फिल्म अधिक से अधिक लोगों को देखनी एवं दिखायी जानी चाहिए। सुदीप्तो सेन को सैल्यूट है कि उन्होंने बेबाकी से लाल आतंक के सच को दिखाया है। हालांकि, कम्युनिस्ट हिंसा की और भी क्रूर कहानियां हैं, जिन्हें दिखाया जाना चाहिए था लेकिन फिल्म में समय की एक मर्यादा है। अपेक्षा है कि सुदीप्तो इस पर एक वेबसीरीज लेकर आएं।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/Z8xRPLDpPjc?si=KaRpCmljciJTAyZz&start=339" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ जिस दृश्य से शुरू होती है, फिल्म वहीं से दर्शकों को बाँध लेती है। भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराने के ‘अपराध’ में नक्सलियों ने एक महिला की आँखों के सामने ही उसके पति के 36 टुकड़े कर दिए और एक पोटली में उसके शव को बाँधकर उसे सौंप दिया। जब वह महिला अपने पति के शव (36 टुकड़े) सिर पर रखकर घने जंगल से अपने घर की ओर जा रही होगी, तब कैसे चल पा रही थी, कल्पना नहीं की जा सकती। उसके सिर पर वह बोझ, दुनिया के किसी भी बोझ से अधिक भारी था। इस केंद्रीय कहानी के इर्द-गिर्द अन्य कहानियां भी साथ-साथ चलती हैं, जो लाल आतंक के सभी शेड्स को दिखाती हैं। फिल्म समाज के सामने उस नेटवर्क को भी उजागर करती है, जो जंगल से लेकर शहरों तक और नक्सली कैम्प से लेकर एजुकेशन कैम्पस तक फैला हुआ है। मीडिया से लेकर कोर्ट रूम तक की बहसों में किस प्रकार नक्सलियों एवं उनके समर्थकों के पक्ष में माहौल बनाया जाता है, यह भी फिल्म में देखने को मिलता है। हम फिल्म को गौर से देखेंगे तो यह भी भली प्रकार समझ पाएंगे कि नक्सल विचारधारा केवल जंगल तक सीमित नहीं है, वह हमारे आस-पास भी पनप रही है। इस संदर्भ में उस घटनाक्रम को भी दिखाया गया है, जिसमें नक्सलियों ने सोते हुए सीआरपीएफ के 76 जवानों की नृशंस हत्या की और उसका जश्न दिल्ली के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू में मनाया गया। भारत विरोधी इस विचारधारा को समझने और उसे फैलने से रोकने में प्रत्येक देशभक्त नागरिक को अपनी भूमिका निभानी होगी। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">भोपाल में स्पेशल स्क्रीनिंग में ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ देखने का अवसर मिला। फिल्म 15 मार्च को सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो रही है। यकीन मानिए, निर्देशक <a href="https://twitter.com/sudiptoSENtlm?ref_src=twsrc%5Etfw">@sudiptoSENtlm</a> ने बेबाकी से नक्सल–माओवाद–कम्युनिज्म आतंक को दिखाकर साहसिक काम किया है। <a href="https://twitter.com/hashtag/BastarTheNaxalStory?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#BastarTheNaxalStory</a> <a href="https://twitter.com/adah_sharma?ref_src=twsrc%5Etfw">@adah_sharma</a> <a href="https://t.co/iwMH7nKmEF">pic.twitter.com/iwMH7nKmEF</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1768280437317922880?ref_src=twsrc%5Etfw">March 14, 2024</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">फिल्म में एक संवाद है- “बस्तर की सड़कें डामर से नहीं, जवानों के खून से बनी हैं”। बस्तर की 55 किलोमीटर लंबी एक सड़क को बनाने के लिए 41 जवानों का बलिदान हुआ है। नक्सली अपने प्रभाव के क्षेत्रों में न तो स्कूल बनने देते हैं और न ही अस्पताल। फिल्म यह भी बताती है कि वनवासी बंधुओं को हिंसा में धकेलकर कम्युनिस्ट धन उगाही का धंधा कर रहे हैं। भारत विरोधी ताकतों से करोड़ों का फंड ले रहे हैं और अपना घर बना रहे हैं। लाल गलियारे के खनिज संपदा की लूट भी कम्युनिस्टों का एजेंडा है। याद रहे कि दुनिया में जहाँ कहीं कम्युनिस्ट सत्ता में रहे वहाँ उन्होंने लाखों निर्दोष लोगों की हत्याएं की हैं। कम्युनिस्ट आतंक ने सोवियत संघ में दो करोड़ लोगों की हत्या की, चीन में साढ़े छह करोड़, वियतनाम में 10 लाख, उत्तर कोरिया में 20 लाख, कंबोडिया में 20 लाख, पूर्वी यूरोप में 10 लाख, लैटिन अमेरिका में डेढ़ लाख, अफ्रीका में 17 लाख, अफगानिस्तान में 15 लाख लोगों की हत्या की गई है। पिछले 70-75 वर्षों में साम्यवादी प्रयोगों से लगभग 10 करोड़ लोग मारे जा चुके हैं। बोको हराम और आईएसआईएस के बाद दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी नक्सली हैं।</p><h3 style="text-align: justify;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=yM4n85J5xAI" target="_blank">साम्यवाद के 100 अपराधों पर डॉ. शंकर शरण की यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए- </a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/yM4n85J5xAI?si=rzCrkdRdpzVRkeS2" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">वर्तमान समय में भारतीय सिनेमा ने एक नयी करवट ली है। सिनेमा अपनी महत्वपूर्ण और आवश्यक भूमिका का निर्वहन कर रहा है। यही कारण है कि ‘द कश्मीर फाइल’ से लेकर ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ जैसी फिल्में बनाने की हिम्मत निर्माता-निर्देशक कर पा रहे हैं। भारतीय सिनेमा अब उस सच को सामने लाने का साहस दिखा रहा है, जिसे वर्षों से छिपाया जाता रहा या फिर उसका महिमामंडन किया गया। ‘बस्तर’ में निर्देशक सुदीप्तो सेन ने बहुत शानदार काम किया है। यह फिल्म दर्शकों को अंत तक बांधे रखने में सफल होती है। फिल्म के माध्यम से जिस सच को निर्देशक समाज तक ले जाना चाहते हैं, उसमें भी वे सफल रहे हैं। अदा शर्मा ने अपनी भूमिका में एक बार फिर प्रभाव छोड़ा है। उन्होंने एक साहसी और जिम्मेदार पुलिस अधिकारी की भूमिका का निर्वहन किया है। अदा शर्मा के साथ ही इंदिरा तिवारी, शिल्पा शुक्ला, यशपाल शर्मा, राइमा सेन और अनंगशा विस्वास जैसे कलाकारों ने भी अपना प्रभाव छोड़ा है। ‘द केरल स्टोरी’ के प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल शाह ‘बस्तर’ के भी प्रोड्यूसर एवं क्रिएटिव डायरेक्टर हैं। भारत जिस अघोषित युद्ध का सामना कर रहा है, उसका संपूर्ण सच बताने के लिए 15 मार्च, 2024 को सिनेमाघरों में ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ आ रही है। सच देखना चाहते हैं तो हिम्मत बटोरकर यह फिल्म अवश्य देखें।</p><h3 style="text-align: justify;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=iNfMMUXQsMA" target="_blank">भारतीय सिनेमा को लेकर फिल्म निर्माता एवं निर्देशक सुदीप्तो सेन से विशेष बातचीत</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/iNfMMUXQsMA?si=zRQ4-qb-T20TheJr" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-18406715817247458182024-03-11T16:35:00.002+05:302024-03-14T21:26:41.070+05:30मूल्यानुगत मीडिया के आग्रही थे प्रो. कमल दीक्षित<h3 style="text-align: center;"><span style="font-weight: normal;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=TO8Au-DRfbs&list=PL1ujttwE8VhQYkEYQ9D2kHVw1TFWGYYOc&index=9" target="_blank">प्रो. कमल दीक्षित की पुस्तक- मूल्यानुगत मीडिया : संभावना एवं चुनौतियां</a></span></h3><div><span style="font-weight: normal;"><br /></span></div><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/TO8Au-DRfbs?si=HkbPqlzmcsSPQ0jZ" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">बाल सुलभ मुस्कान उनके चेहरे पर सदैव खेलती रहती थी। मानो उनका ‘कमल मुख’ निश्छल हँसी का स्थायी घर हो। कई दिनों से माथे पर नाचनेवाला तनाव भी उनसे मिलने भर से न जाने कहाँ छिटक जाता था। उनका सान्निध्य जैसे किसी साधु की संगति। उनके लिए कहा जाता है कि वे पत्रकारिता की चलती-फिरती पाठशाला थे। उनकी पाठशाला में व्यावसायिकता से कहीं बढ़कर मूल्यों की पत्रकारिता के पाठ थे। ‘व्यावहारिकता’ के शोर में जब ‘सिद्धांतों’ को अनसुना करने का सहूलियत भरी राह पकड़ी जा रही हो, तब मूल्यों की बात कोई असाधारण व्यक्ति ही कर सकता है। मूल्य, सिद्धांत एवं व्यवहार के ये पाठ प्रो. दीक्षित के लिए केवल सैद्धांतिक नहीं थे अपितु उन्होंने इन पाठों को स्वयं जीकर सिद्ध किया था। इसलिए जब वे मूल्यानुगत मीडिया के लिए आग्रह करते थे, तो उसे अनसुना नहीं किया जाता था। इसलिए जब वे पत्रकारिता में मूल्यों की पुनर्स्थापना के प्रयासों की नींव रखते हैं, तो उस पर अंधकार में राह दिखानेवाले ‘दीप स्तम्भ’ के निर्माण की संभावना स्पष्ट दिखाई देती थी।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">मूल्यानुगत मीडिया के आग्रही प्रो. कमल दीक्षित की पहचान ऐसे प्राध्यापक की रही है, जो अपने विद्यार्थियों को सैद्धांतिक ज्ञान के साथ व्यवहारिक कौशल भी सिखाते थे। एशिया के पहले पत्रकारिता विश्वविद्यालय- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल- में आने से पहले उन्होंने लंबा समय सक्रिय पत्रकारिता में बिताया था। नवभारत टाइम्स (भोपाल एवं इंदौर) में वे संपादक रहे। जयपुर में राजस्थान पत्रिका में समाचार संपादक की जिम्मेदारी निभाई और बाद में वहाँ स्थानीय संपादक भी हुए। जयपुर और भोपाल में भास्कर एकेडमी के निदेशक के रूप में भी आपने योगदान दिया। आपके विद्यार्थी आज भी उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि सर की कक्षा में पुस्तकीय ज्ञान एक सीमा तक ही रहता था। उनके पास व्यवहारिक पत्रकारिता का इतना गहरा अनुभव था कि एक घंटे की कक्षा तीन-चार घंटे तक खिंच जाती और सब ध्यान मग्न होकर सुनते-समझते, पत्रकारिता की बारीकियां सीखते। समाचार संकलन से लेकर समाचार संपादन एवं डमी-लेआउट तक का व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रो. दीक्षित सर की कक्षा में मिलता था। उनका कक्षाएं केवल विश्वविद्यालय की चारदीवारी तक सीमित नहीं रहती थीं। वे सही मायने में गुरु थे, जो कक्षा के बाहर भी विद्यार्थी के व्यक्तित्व को गढ़ना अपना कर्तव्य मानते थे। माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में उन्होंने शुरुआती समय से लंबे समय तक पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष का दायित्व संभाला। इस विभाग के माध्यम से विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को बढ़ाया। देश को अनेक बड़े पत्रकार तराशकर दिए। उन्होंने अपने विद्यार्थियों में भी उन्हीं मूल्यों को हस्तांतरित किया, जिनके वे हामी थी। यहाँ आने से पहले ही उन्होंने जयपुर विश्वविद्यालय में एक आदर्श अध्यापक के अपने रूप से सबको परिचित करा दिया था। जयपुर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में प्रो. कमल दीक्षित अतिथि व्याख्याता के तौर पर कक्षाएं लेने जाने लगे थे। संभवत: अध्यापन के इस दौर में ही उन्होंने अनुभव किया कि पत्रकारिता का व्यवहारिक ज्ञान देनेवाली पुस्तकें हिन्दी में नगण्य हैं। इस कमी को पूरा करते हुए उन्होंने ‘समाचार संपादन’ पुस्तक की रचना की। उनकी विशेषता थी कि पत्रकारिता के विविध विषयों को वे जितनी सरलता से प्रस्तुत करते थे, आवश्यकता पड़ने पर उन्हीं विषयों को दार्शनिक की भाँति व्याख्यायित करते थे। पत्रकारिता के भाष्यकार के रूप में भी हम उनके देख सकते हैं। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6sYACoIIhmhPJCPvcVQxNqOwkuuEO2H5rVwtHlrI1vIkw8nmLaL_P87sNgD16dz9q-n8tyGqFMMrEfZh4K_l2_o61vhIXZ-u7HZOucfeRvqe_3CWdZ5-PAnmUXOucU6fves6UsdtBHzg_40UtBf4DzXSUQ0OgeDbmuHEsm4ixSZheZr9LdAEY2eNo/s485/95097425_10221604395328873_463530570144546816_n.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="299" data-original-width="485" height="246" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6sYACoIIhmhPJCPvcVQxNqOwkuuEO2H5rVwtHlrI1vIkw8nmLaL_P87sNgD16dz9q-n8tyGqFMMrEfZh4K_l2_o61vhIXZ-u7HZOucfeRvqe_3CWdZ5-PAnmUXOucU6fves6UsdtBHzg_40UtBf4DzXSUQ0OgeDbmuHEsm4ixSZheZr9LdAEY2eNo/w400-h246/95097425_10221604395328873_463530570144546816_n.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">प्रो. कमल दीक्षित जानते थे कि वर्तमान समय में मूल्यानुगत मीडिया की बात करनेवाले को आमतौर पर पागल ही समझा जाएगा। लेकिन उन्होंने तो जीवन में यह व्रत लिया था कि पत्रकारिता को पुन: उजाले की ओर लेकर चलना है। धुन का पक्का आदमी कभी यह विचार नहीं करना कि लोग क्या कहेंगे, उसके मन तो बस एक ही लगन होती है कि हम क्या कर सकते हैं। अपने इस शुभ संकल्प को समाज तक पहुँचाने के लिए वे मासिक पत्र ‘मूल्यानुगत मीडिया’ का संपादन करते थे। देखने में यह पत्र बहुत ही सादा दिखाई देता था, परंतु यह बहुत गंभीर विमर्श को अपने साथ लेकर चलनेवाला पत्र था, बिलकुल प्रो. कमल दीक्षित की तरह। इसी क्रम में उन्होंने ग्रामीण पत्रकारिता को अपनी धुन का हिस्सा बनाया। आंचलिक पत्रकारिता एवं पत्रकारों पर उन्होंने जितनी बात की, शायद ही उनके अलावा किसी और ने की होगी। विकास एवं ग्रामीण पत्रकारिता पर संगोष्ठियों से लेकर ग्रामीण पत्रकारों के प्रशिक्षण कार्यक्रम उन्होंने आयोजित किए। देशभर में जाकर इस विषय पर उन्होंने संवाद किया। उन्होंने जो विषय अपने हाथ में लिए, देखने में दोनों ही रुखे दिखाई पड़ते हैं, लेकिन भारतीय पत्रकारिता को ठीक दिशा में रखने के लिए ये अत्यंत आवश्यक हैं। </p><p style="text-align: justify;">विभिन्न समाचार पत्रों का संपादन करते हुए उन्होंने मूल्यों और सिद्धांतों को कभी नहीं छोड़ा। प्रत्येक स्थिति में मूल्यों की पत्रकारिता को आगे बढ़ाया। यह जानते हुए भी कि पत्रकारिता की वर्तमान दशा और भविष्य की दिशा उत्साहवर्धक नहीं है, तब भी प्रो. कमल दीक्षित न तो स्वयं निराश हुए और न ही किसी और में निराशा का भाव पैदा होने दिया। उन्होंने हमेशा कहा कि अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। मूल्य आधारित पत्रकारिता के लिए अभी भी बहुत संभावनाएं हैं। उनका एक लेख हमें अवश्य पढ़ना चाहिए, जो हमारे मन में विश्वास पैदा करता है- ‘अभी संभावना है।’ अनंत यात्रा पर जाने से पूर्व उनकी पुस्तक आई थी- ‘मूल्यानुगत मीडिया : संभावना और चुनौतियां’। इस पुस्तक में यह लेख पढ़ा जा सकता है। वैसे तो यह पूरी पुस्तक ही भरोसा जगानेवाली है कि मूल्यानुगत मीडिया की ज्योति में प्राण तत्व अब भी है, उस दीपक का तेल चुका नहीं है। यह ज्योति और प्रदीप्त हो, इसके लिए साझे एवं निष्ठापूर्ण प्रयासों की आवश्यकता है। प्रो. दीक्षित के आलेख उन लोगों को झकझोरते हैं, जो यह मान बैठे हैं कि कॉरपोरेट ने समूची पत्रकारिता को चौपट कर दिया और अब मीडिया में मूल्यों के लिए कोई स्थान शेष नहीं। ऐसे वातावरण में प्रो. दीक्षित विश्वास जगाते हैं कि घोर व्यावसायिकता और गलाकाट प्रतिस्पर्धा के दौर में सबकुछ नष्ट नहीं हुआ है, अभी बहुत संभावनाएं शेष हैं। आओ, उन संभावनाओं को मिलकर साकार करें। </p><p style="text-align: justify;">प्रो. कमल दीक्षित मानते थे कि सामाजिक बदलाव के लिए मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। परंतु आज का मीडिया इसमें कहीं चूक रहा है। मीडिया से वह अपेक्षा करते थे कि उसे अपने कर्तव्य पथ पर वापस लौटना चाहिए। वे लिखते हैं कि “मीडिया ने अपने मूल्यों को दरकिनार किया है तथा मानवीय मूल्यों से भी उसके संबंध कमजोर हुए हैं। उसने भारतीय तथा जातीय संस्कृति को प्रभावित करते हुए पाश्चात्य तथा उपभोक्तावादी संस्कृति का विस्तार किया है”। उनकी यह चिंता हम सबकी साझा चिंता बने, इसके लिए उनके छूटे हुए प्रयासों को आगे बढ़ाना आवश्यक है। पत्रकारिता को मूल्यों से, सामाजिक संवेदनाओं से और भारतीय संस्कृति से जोड़ने की छटपटाहट उनमें साफ देखी जा सकती थी। भारतीय मीडिया मूल्यों की ओर लौटे इसके लिए उन्होंने ‘मूल्यानुगत मीडिया अभिक्रम समिति’ की स्थापना की। इसके साथ ही प्रो. कमल दीक्षित आध्यात्मिक संस्था प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से भी जुड़े हुए थे। वे इसके मीडिया विंग के अग्रणी सदस्य थे। दोनों ही संस्थाओं के माध्यम से उन्होंने पत्रकारों में आध्यात्मकि सोच को बढ़ावा देकर, पत्रकारिता को सकारात्मक एवं समाधानमूलक दृष्टि देने का प्रयास किया। ब्रह्माकुमारीज के मुख्यालय माउंटआबू में आयोजित मीडिया कार्यशाला में उनके आग्रह को स्वीकार करके देश के प्रतिष्ठित पत्रकार पहुँचते थे। अध्यात्म की छाया में पत्रकारिता मूल्योन्मुख हो, यही एक साझा प्रयास था। पत्रकारिता के माध्यम से समाज तक अध्यात्म का संस्कार पहुँचे, इसके लिए प्रो. कमल दीक्षित के संपादन में ब्रह्माकुमारी ने ‘राजी खुशी’ नाम से एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी प्रारंभ किया, जो प्रो. दीक्षित के देवलोकगमन के बाद बंद हो गई। लगभग तीन वर्ष तक इस पत्रिका के माध्यम से प्रो. दीक्षित ने अध्यात्म के माध्यम से पत्रकारिता के सकारात्मक स्वरूप को सामने रखा। </p><p style="text-align: justify;">प्रो. दीक्षित मीडिया की भाषा एवं उसकी प्रस्तुतिकरण पर भी नजर रखते थे। दरअसल, वे उस परंपरा के संपादक रहे हैं, जिनके लिए भाषा की शुचिता सर्वोपरि एवं शब्द की सत्ता के बहुत गहरे मायने थे। उनके लिए शब्द केवल शब्द नहीं हैं अपितु वे शब्द को प्रतीक मानते थे। वह मानते थे कि शब्द की अपनी एक संस्कृति होती है। जब हम व्याकरण को गहराई से पढ़ते हैं, तब स्पष्टतौर पर समझ आता है कि शब्द अपनी संस्कृति के संवाहक होते हैं। प्रो. दीक्षित जब हिन्दी के समाचारपत्रों में भाषा के साथ खिलवाड़ को देखते थे, तब उनकी बेचैनी खुलकर सामने आ जाती थी। उनका मानना है कि “हमारे समाचारपत्रों ने भाषा के साथ ही बेसमझ और फूहड़ व्यवहार किया है”। हिन्दी के समाचारपत्रों में जबरन अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग उनको चुभता था। दरअसल, यह पीड़ा हर उस पाठक की है, जो भाषा के प्रति थोड़ा-सा भी संवेदनशील है। विशेषतौर पर हिन्दी के समाचार-पत्रों ने जिस तरह से आम बोल-चाल की भाषा के नाम पर ‘हिन्दी’ का स्वरूप बिगाड़ा है, वह असहनीय है। समाचार-पत्र धड़ल्ले से हिन्दी की अस्मिता पर चोट कर रहे हैं। अच्छी भाषा भी एक मूल्य है। समाचार-पत्रों को भाषा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसके संवर्द्धन की जिम्मेदारी का निर्वहन करना चाहिए। </p><p style="text-align: justify;">पत्रकारिता के लोकहितैषी स्वरूप के पोषक प्रो. कमल दीक्षित को हिन्दी पत्रकारिता में उनके योगदान के लिए सदैव स्मरण किया जाएगा। उनके जैसे विरले ही लोग होते हैं, जो धारा के विपरीत चलते हैं। समाचारपत्र के कार्यालय में संपादक के कक्ष से लेकर विश्वविद्यालय में आचार्य की कक्षा तक उन्होंने पत्रकारिता को दिशा देने का काम किया। उनके प्रयासों से शुरू हुआ मूल्यानुगत मीडिया अभिक्रम रुकना नहीं चाहिए। यह एक ऐसा मंच बने, जो उनके विचारों को बीज रूप में पत्रकारिता में बोये ताकि मूल्यों की फसल आती रहे। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">मीडिया विमर्श का अक्टूबर–दिसंबर, 2022 का अंक मूल्यानुगत मीडिया के आग्रही प्रो. कमल दीक्षित की स्मृति को समर्पित है। <br /><br />इसमें स्व. दीक्षित सर की पुस्तक ‘मूल्यानुगत मीडिया – संभावना और चुनौतियां’ की समीक्षा को भी शामिल किया गया है। <a href="https://twitter.com/hashtag/vlog?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#vlog</a> यहां देखें–<a href="https://t.co/FuZEsnX7gh">https://t.co/FuZEsnX7gh</a> <a href="https://t.co/NHcwOcQWiT">pic.twitter.com/NHcwOcQWiT</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1612455065687822336?ref_src=twsrc%5Etfw">January 9, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-83261709272979416422024-03-08T23:04:00.007+05:302024-03-12T23:00:01.033+05:30धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित होगा उज्जैन-इंदौर संभाग, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का सराहनीय निर्णय<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhG5i26EkaNycWnShwDi-ltnAf8eTmoItfunceCeJnzHNFm-8ETC4zpzLtp6gTWU0IwQEuajVtLxF-AYN_tc0W-aC-7lu9mIb5gD3M8ZWmrDDAsAzuLb1yKi8RqnNXmPofNgy1VRe0Ph3UaQvfImFkr66yGPZCfjrPl3AOCvtcUCyQiExFvbM6nTmIT/s1200/Mohan%20Yadav.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhG5i26EkaNycWnShwDi-ltnAf8eTmoItfunceCeJnzHNFm-8ETC4zpzLtp6gTWU0IwQEuajVtLxF-AYN_tc0W-aC-7lu9mIb5gD3M8ZWmrDDAsAzuLb1yKi8RqnNXmPofNgy1VRe0Ph3UaQvfImFkr66yGPZCfjrPl3AOCvtcUCyQiExFvbM6nTmIT/w400-h225/Mohan%20Yadav.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने का सराहनीय निर्णय लिया है। यह निर्णय मध्यप्रदेश के विकास को नयी ऊंचाईयों पर ले जाने के साथ ही उसे बड़ी पहचान देगा। यह सर्वविदित है कि उज्जैन-इंदौर संभाग सांस्कृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है। इस संभाग में दो ज्योतिर्लिंग प्रकाशमान हैं- महाकाल एवं ओंकारेश्वर। जिनके दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु पहुँचते हैं। महाकाल लोक के निर्माण के बाद से तो उज्जैन आनेवाले श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है। इसी संभाग के मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर, नलखेड़ा में बगुलामुखी माई का मंदिर, खंडवा में दादा धूनीवाले, इंदौर में खजराना गणेश मंदिर सहित अनेक और स्थान ऐसे हैं, जो धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के स्थान है।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">उज्जैन तो वह पवित्र नगरी है, जहाँ सांदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण ने शिक्षा प्राप्त की। वहीं, <a href="https://apnapanchoo.blogspot.com/2015/03/blog-post_17.html" target="_blank">ओंकारेश्वर</a> में आदि शंकराचार्य ने आचार्य गोविंद भगवतपाद् से दीक्षा प्राप्त की। <a href="https://apnapanchoo.blogspot.com/2023/10/Statue-of-Oneness-will-give-the-message-of-Advaita.html" target="_blank">यह भूमि शिक्षा-दीक्षा की भूमि है।</a> यह विज्ञान की भी भूमि है। उज्जैन भारतीय कालगणना का केंद्र है। अभी हाल ही में उज्जैन में वैदिक घड़ी स्थापित की गई है, जिसकी चर्चा देशभर में हो रही है। यह सुशासन के प्रतीक महाराजा विक्रमादित्य की नीति भूमि भी है। कुल मिलाकर कहना चाहिए कि यह भारतीय ज्ञान-परंपरा की भूमि है। <a href="https://apnapanchoo.blogspot.com/2016/04/vaicharik-mahakumbh-simhasth.html" target="_blank">इसलिए पिछले सिंहस्थ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से कुम्भ मेले के प्राचीन स्वरूप को पुनर्जीवित करने के प्रयत्न वैचारिक कुंभ के आयोजन के रूप में किए गए।</a> </p><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/xBLD4lWMa-w?si=pMgFwXd_DiOTG1db" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">स्मरण रहे कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने की रूपरेखा 2028 में आयोजित होनेवाले महाकुम्भ सिंहस्थ की तैयारियों की समीक्षा बैठक में रखी है। चूँकि महाकुम्भ में विशाल जनसमुदाय शामिल होता है, इसलिए उसकी तैयारियां तीन-चार वर्ष पहले ही प्रारंभ करनी होती हैं। विगत सिंहस्थ में सरकार ने उत्तम व्यवस्था की थी। सिंहस्थ के सफल और परिणाममूलक आयोजन के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार की सराहना भी की गई थी। परंतु ध्यान आता है कि सिंहस्थ के लिए की जानेवाली व्यवस्थाएं आयोजन के बाद धीरे-धीरे लुप्त हो जाती हैं। यदि सरकार ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के तौर पर विकसित करने का पक्का मन बना लिया है, तब सिंहस्थ के लिए की जानेवाली व्यवस्थाएं धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट जैसी बड़ी परियोजना को ध्यान में रखकर स्थायी तौर पर की जानी चाहिए। सिंहस्थ के लिए खड़ी की जा रही अधोसंरचना इस प्रकार की हो कि वह मोहन सरकार के धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट की अवधारणा को साकार करने में सहयोगी बने। </p><p style="text-align: justify;">सरकार ने उज्जैन-इंदौर संभाग के लगभग सभी जिलों को सिंहस्थ कार्ययोजना में सम्मिलित किया है। इस कार्ययोजना के अनुसार संभाग में 18 हजार 840 करोड़ रुपये की लागत से 523 विकास कार्य कराए जाएंगे, जिसमें परिवहन की सुगम व्यवस्था, सड़कों का चौड़ीकरण, नवीन सड़कों का निर्माण, शिप्रा के घाटों का विस्तार, शिप्रा का शुद्धिकरण, आवास एवं पर्यटन स्थलों का विकास इत्यादि शामिल है। सरकार को चाहिए कि वह इन कार्यों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र विकसित करे, जो निर्माण एजेंसियों के कार्य की निगरानी करे और उसकी गुणवत्ता को सुनिश्चित करे। यह व्यवस्था अभी भी है लेकिन देखने में आता है कि वह निष्प्रभावी है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक बड़ा निर्णय लिया है, वह अन्य संभागों के लिए उदाहरण बने, यह आवश्यक है। </p>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-37773797331705348972024-02-07T22:01:00.008+05:302024-03-08T23:05:14.008+05:30आत्मविश्वास से भरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोले- अबकी बार 400 पार<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg70ujAZEB5RT63kW3DLxbQWdXCWAJJtA20bPzE-OOFY20PDulN3NbLHaFmVBXsfOXneJydYsCKJQimVSPaYo6qUFaSWeHnhK6CNCQVUs-zAPV4GUlNuXWX1K2WXl1rYeSoW3SVM7oX-yHx2rfZfe5FyTOZTI7FJTef_O8HvsDW3Vrc4Wmcx78kZCio/s773/PM%20Modi%20in%20Lok%20Sabha.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="485" data-original-width="773" height="251" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg70ujAZEB5RT63kW3DLxbQWdXCWAJJtA20bPzE-OOFY20PDulN3NbLHaFmVBXsfOXneJydYsCKJQimVSPaYo6qUFaSWeHnhK6CNCQVUs-zAPV4GUlNuXWX1K2WXl1rYeSoW3SVM7oX-yHx2rfZfe5FyTOZTI7FJTef_O8HvsDW3Vrc4Wmcx78kZCio/w400-h251/PM%20Modi%20in%20Lok%20Sabha.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">अपने तीसरे कार्यकाल को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। प्रधानमंत्री को देश की जनता पर विश्वास है कि इस बार पहले की अपेक्षा जनता की ओर से उन्हें और अधिक बड़ा जनादेश मिलेगा। लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की प्रत्येक पंक्ति इस आत्मविश्वास को व्यक्त करती है। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी के आत्मविश्वास के पीछे वर्तमान समय में बना देश का वातावरण है। अयोध्या में श्रीरामलला का मंदिर निर्माण ने जिस प्रकार की ऊर्जा का संचार समूचे देश में किया है, वह अचंभित करनेवाला है। देश में चल रही रामलहर को देखकर कोई भी बता सकता है कि भारत का समाज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की सरकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए लोकसभा चुनाव का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">देश के आर्थिक विकास की बात हो, गरीबी उन्मूलन की दिशा में बढ़ते कदम हो या फिर आधारभूत संरचनाओं के विकास की झलक हो, सबने मोदी सरकार के प्रति एक विश्वास पैदा किया है। लोगों का यह विश्वास ही प्रधानमंत्री का आत्मविश्वास बनकर उनके भाषण में सुनायी दे रहा है। इतना ही नहीं, विपक्ष की स्थिति भी ठीक नहीं है। कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा जोड़कर विपक्षी गठबंधन के नाम पर जो भानुमति का कुनबा बनाया गया था, वह तो चुनाव आने से पहले ही बिखरता दिख रहा है। इसकी पूरी संभावना है कि लोकसभा चुनाव आते-आते विपक्षी गठबंधन केवल नाममात्र का बचेगा क्योंकि सभी बड़े और प्रभावशाली दल स्वयं को इस गठबंधन से दूर कर लेंगे। अनेक झटके लगने के बाद भी कांग्रेस की जिस प्रकार की नीति है, वह भी भाजपा के अनुकूल परिस्थितियां बनाने में सहायक है। यह सब कारण हैं, इसलिए प्रधानमंत्री मोदी देश की सबसे बड़ी पंचायत ‘संसद’ में खड़े होकर कह पाते हैं कि तीसरे कार्यकाल के लिए जनता भाजपा को 375 और भाजपानीत गठबंधन ‘राजग’ को 400 से अधिक सीटें जिताने जा रही है। </p><p style="text-align: justify;">प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में अपनी सरकार की उपलब्धियां तो गिनायी हीं, साथ ही कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के विचारों की भी व्याख्या की। लोकसभा में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण पर धन्यवाद के लिए आए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने 100 मिनट के भाषण में कांग्रेस, परिवारवाद, भ्रष्टाचार, रोजगार, महंगाई, राम मंदिर, पर्यटन, महिला, किसान, युवा, विपक्षी गठबंधन और 10 साल के कांग्रेसनीत गठबंधन यूपीए के मुकाबले भाजपानीत गठबंधन एनडीए की सरकारों के सरकार के काम-काज को देश की जनता के सामने रखा। उन्होंने जिस कुशलता के साथ कांग्रेस के शासनकाल और भाजपा के शासनकाल का अंतर प्रस्तुत किया है, वह उनके जैसे कुशल वक्ता के लिए इसलिए भी संभव हो सका क्योंकि उनकी सरकार ने अहर्निश काम किया है। </p><p style="text-align: justify;">प्रधानमंत्री मोदी ने एक और बड़ी बात कही है, जिसकी चर्चा आम जनता के बीच भरपूर होगी- “हमारी सरकार का तीसरा कार्यकाल और अधिक बड़े निर्णयों वाला होगा”। अनुच्छेद-370 और राममंदिर के बाद और कौन से बड़े निर्णय मोदी सरकार ले सकती है, यह चर्चा जनता के बीच कौतुहल और अगले कार्यकाल की प्रतीक्षा को बढ़ाएगी। बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में दिए अपने भाषण से भाजपा के कार्यकर्ताओं को एक ऊर्जा एवं लक्ष्य दे दिया है। देखना होगा कि मोदी नाम की इस आँधी का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस क्या तैयारियां करती है?</p>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-75780490249123198372024-01-25T07:30:00.002+05:302024-02-07T21:56:33.527+05:30धार्मिक पर्यटन का केंद्र है भारत<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6opDOFNuIq7Vi_U43k2djiTzrFd-DTkYlraTTkcKa_QkB93paSHMKmWm2FD09kl44S81-UNnEGNR7164r2N_kNnFcTPliZycxtxFz8CY2_cyWjZMuu9PRgR_NAu-2fRezZwkZhzoxzY7FvL-9FGBnfqKZqIGCf8n4xdBf8HZVtO_B1ekl6byJZJL4/s1826/GEb8zV3asAAgbHA.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1826" height="236" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6opDOFNuIq7Vi_U43k2djiTzrFd-DTkYlraTTkcKa_QkB93paSHMKmWm2FD09kl44S81-UNnEGNR7164r2N_kNnFcTPliZycxtxFz8CY2_cyWjZMuu9PRgR_NAu-2fRezZwkZhzoxzY7FvL-9FGBnfqKZqIGCf8n4xdBf8HZVtO_B1ekl6byJZJL4/w400-h236/GEb8zV3asAAgbHA.jpg" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">अयोध्या धाम में श्रीरामलला के दर्शन</td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;">धर्म और अध्यात्म भारत की आत्मा है। यह धर्म ही है, जो भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एकात्मता के सूत्र में बांधता है। भारत की सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करते हैं तो हमें साफ दिखायी देता है कि धार्मिक पर्यटन हमारी परंपरा में रचा-बसा है। तीर्थाटन के लिए हमारे पुरखों ने पैदल-पैदल ही इस देश को नापा है। भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व समुदाय को भी आकर्षित करती है। हम अनेक धार्मिक स्थलों पर भारतीयता के रंग में रंगे विदेशी सैलानियों को देखते ही हैं। दरअसल, भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों का देश कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार, देशभर में पाँच हजार से अधिक सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। हालांकि, हमारे लिए तो प्रत्येक धार्मिक स्थल श्रद्धा का केंद्र है। भारत के शहर-शहर में कई ऐसे स्थान हैं, जहाँ देशभर से लोग पहुँचते हैं। मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, काशी, उज्जैन, द्वारिका, त्रिवेंद्रम, कन्याकुमारी, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, पुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ इत्यादि ऐसे स्थान हैं, जहाँ न केवल भारतीय नागरिक बड़ी संख्या में पहुँचते हैं अपितु विदेशी और भारतीय मूल के नागरिक श्रद्धा के साथ आते हैं। पिछले आठ-दस वर्षों में भारत के धार्मिक पर्यटन में उत्साहजनक वृद्धि हुई है। विश्व के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल धार्मिक स्थलों को पुनर्विकसित कराया है, अपितु आगे बढ़कर धार्मिक पर्यटन का प्रचार-प्रसार भी किया है। जिसके परिणाम हमें धार्मिक पर्यटन में हो रही वृद्धि के रूप में दिखायी देते हैं। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश के कुल पर्यटन में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी धार्मिक पर्यटन की है। आज देश के पर्यटन उद्योग में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की जा रही है जबकि वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर रहा है।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">भारत सरकार की पहल पर पर्यटन मंत्रालय ने कुछ वर्ष पहले धार्मिक पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए चरणबद्ध विकास योजना तैयार की थी। इसमें 53 धार्मिक स्थानों को वरीयता के आधार पर पहले चरण में विकसित जा रहा है। इनमें से कई धार्मिक स्थल पूर्ण रूप से विकसित हो चुके हैं। उल्लेखनीय है कि दूसरे चरण में 89 जगहों पर काम होगा। वर्तमान समय में राष्ट्रीय विचार की सरकार केंद्र में है, उसके अब तक के कार्यकाल के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि हिन्दू संस्कृति के प्रसार हेतु धार्मिक पर्यटल स्थलों को विकसित करने का यह क्रम आगे भी लगातार चलता रहेगा। देश को सात नए टूरिज्म सर्किट में भी बांटा गया है। ये सर्किट सूफी, बौद्ध, जैन, ईसाई, सिख, हिन्दू और सर्वधर्म के तौर पर विकसित किए जा रहे हैं। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता में है। इस बात को यूँ भी समझ सकते हैं कि बड़े तीर्थस्थलों पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं भी बार-बार जा रहे हैं। केदारनाथ और सोमनाथ परिसर का उन्होंने कायाकल्प कर दिया है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर ने तो दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और महाकाल लोक की प्रसिद्धि एवं सफलता के बाद से अनेक स्थानों पर धार्मिक पर्यटन को विकसित किया जा रहा है।</p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://youtu.be/-PY7r1dooF4?si=RE_mLm6c8vuGNYYm" target="_blank">देखें, भोजपुर महादेव मंदिर, रायसेन, भोपाल के समीप -</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/-PY7r1dooF4?si=lRyrB2ZgKgzToiSb" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">भारत सरकार ने ‘तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक वृद्धि अभियान’ (प्रसाद) नाम से एक योजना शुरू की है। प्रसाद योजना का उद्देश्य प्रमुख धार्मिक स्थलों के बुनियादी ढांचे एवं सुविधाओं में सुधार करना है। इसे 2015 में पर्यटन मंत्रालय द्वारा ‘स्वदेश दर्शन योजना’ के हिस्से के रूप में प्रारंभ किया गया था। सरकार ने 1586.10 करोड़ रुपए की 45 विकास योजनाओं को स्वीकृति दी गई है। भारतीय संस्कृति की गूंज दुनिया को सुनायी दे, इस मन्तव्य के साथ ही सरकार इसलिए भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रही है क्योंकि यह लोगों को वृहद स्तर पर रोजगार दे रहा है। धार्मिक पर्यटन का एक पहलू अगर धार्मिक और आध्यात्मिक सरोकार हैं तो दूसरा पहलू धार्मिक स्थलों का आर्थिक और सामाजिक विकास भी है। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पर्यटन उद्योग भारत के कुल कार्यबल का लगभग 6 प्रतिशत रोजगार देता है। धार्मिक पर्यटन स्थलों से सरकार को वर्ष 2022 में 1,34,543 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ। जबकि यही आंकड़ा 2021 में 65,070 करोड़ रुपये का था। पर्यटन मंत्रालय के अनुसार 2022 में पर्यटकों की संख्या 143.3 लाख करोड़ तथा 66.40 करोड़ विदेशी पर्यटक भारत आए।</p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://youtu.be/vdR01hoIkfo?si=KdLQL0xO6p4NaHPi" target="_blank">देखें- बुद्ध के उपदेश की भूमि सारनाथ पर यह वीडियो ब्लॉग</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/vdR01hoIkfo?si=3ZcnYQMweaSx_rCd" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">आर्थिक विषयों के विशेषज्ञ एवं हिन्दू दृष्टि से अर्थव्यवस्था पर लेखन करनेवाले विद्वान प्रह्लाद सबनानी के कहते हैं कि एक अनुमान के अनुसार, भारत में यात्रा एवं पर्यटन उद्योग 8 करोड़ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रहा है। देश के कुल रोजगार में पर्यटन उद्योग की 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। यह भी याद रखें कि देश के पर्यटन में धार्मिक यात्राओं की हिस्सेदारी 60 से 70 प्रतिशत के बीच रहती है। जब धार्मिक पर्यटन से रोजगार के अवसर भी निर्मित हो रहे हों, अर्थव्यवथा मजबूत हो रही हो तब सरकार क्यों पीछे रहना चाहेगी और फिर भारतीय धार्मिक सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने एवं संवारने में मोदी सरकार को किसी प्रकार का संकोच भी नहीं है। आज भारत की बागडोर ऐसे नेता के हाथों में नहीं है, जिन्होंने कभी भारतीय संस्कृति के मानबिन्दु सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण एवं उसके लोकार्पण मं् बाधाएं उत्पन्न की थीं। वर्तमान नेतृत्व एवं सरकार भारतीयता पर गर्व करती और उसके संवर्धन, संरक्षण एवं प्रसार-प्रचार को प्राथमिकता में रखती हैं। नि:संदेह, हमें भविष्य में देश के लगभग सभी धार्मिक महत्व के छोटे-बड़े स्थान पूर्ण रूप से विकसित दिखायी देंगे। अयोध्या धाम में नवनिर्मित भव्य मंदिर में श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के बाद जिस प्रकार से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है, उसे देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि आनेवाले समय में अयोध्या धाम वैश्विक स्तर पर अपना एक स्थान बनाएगा। जब से श्रीराम की जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ, तब से ही अयोध्या की रंगत बदल गई है। अयोध्या धाम, भारत की सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर हमारे सामने विकसित हो रही है।</p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://youtu.be/xCvukrOCucU?si=_BoUBVZTdpQ01984" target="_blank">अयोध्या धाम की एक छोटी-सी यात्रा देखिए-</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/xCvukrOCucU?si=c6w92KtDtpzW9l9F" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">मध्यप्रदेश के उज्जैन में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकालेश्वर मंदिर के भव्य और दिव्य ‘महाकाल लोक’ का उद्घाटन किया था तब उन्होंने विश्वास व्यक्त किया था कि देश की ऐसी धरोहरें निश्चित तौर पर ना केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ाएंगी बल्कि हमारी संस्कृति के जागरण का भी काम करेंगी। उनका यह वक्तव्य धार्मिक पर्यटन के महत्व को भी रेखांकित करता है। स्मरण रखें कि भारत के ‘स्व’ की अनुभूति करने और उसकी स्थापना के लिए गुरु नानकदेव से लेकर स्वामी विवेकानंद तक ने देशाटन किया है। यह बात अनुभव सिद्ध है कि भारत को समझने के लिए भारत का भ्रमण अवश्य किया जाना चाहिए। भारत की सांस्कृतिक गौरव गाथा को जानने के लिए हमें उन स्थानों पर जाना ही होगा, जहाँ से भारत बोलता है। धार्मिक पर्यटन भारत के इतिहास, संस्कृति, समाज जीवन एवं उसकी परंपराओं के प्रति हमारी समझ को गहरा करता है और नयी दृष्टि भी प्रदान करता है। भारत की विविधता को देखना है और उसमें साम्य को समझना है, तब हमें निश्चित ही भारत के सभी हिस्सों में भ्रमण करना चाहिए। विशेषकर धार्मिक स्थलों पर अवश्य जाना चाहिए, तब हम देख पाएंगे कि ये धार्मिक स्थल भारत की विविधता को एक माला में पिरोते हैं। </p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://youtu.be/zDA860X1Gyg?si=y0KOydQENjzTkEKf" target="_blank">बटेश्वर धाम : यमुना के किनारे 101 शिव मंदिर। बड़ी संख्या में उमड़ते हैं श्रद्धालु</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/zDA860X1Gyg?si=xcWJ180FQrYIihQG" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">इसमें कोई दोराय नहीं कि केंद्र सरकार बहुत तेजी से धार्मिक पर्यटन स्थलों को विकसित कर रही है। तब भी कहना होगा कि धार्मिक पर्यटन और इसकी अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए अभी कुछ महत्वपूर्ण पहल करने की आवश्यकता है। बेहतर करने की गुंजाइश हमेशा रह जाती है। पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार, बुनियादी ढांचे और नागरिक सुविधाओं का विस्तार, धार्मिक और तीर्थ स्थलों में पर्यटक सूचना केंद्रों की स्थापना जैसे कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। धार्मिक पर्यटन स्थलों को विकसित करते समय सरकारों को यह भी ध्यान रखना होगा कि उस स्थान का नैसर्गिक सौंदर्य एवं पहचान नष्ट न होने पाए। बाकि यह तो स्पष्ट हो गया है कि भारत में धार्मिक पर्यटन पहले की तुलना में वर्तमान में तेजी से बढ़ रहा है।</p>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-90244719395204342292024-01-24T13:09:00.003+05:302024-02-07T22:02:57.647+05:30श्रीरामलला का चित्र ही बन गया संपादकीय<h3 style="text-align: center;"><span style="color: red;"> “रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां”</span></h3><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnUEWSuiV4cS67Cbk1n3zM5ymQMYIePurm007ZQSwCmE2TV9lTnCfpQ6BE1M9R8w6yh35poRqgg6ulP_FinO5MXw979WWAEP-z2pv_2PFsM7dJrdYGbPnI2lzQvclWSgUoapqS93QeWoJYhqqdTd0bX4DnN3eSBmDaBii_AwyLa4AKXE5w5KfDv6wx/s2026/Swadesh%20ki%20Sampadkiya-Ramlala%20ko%20Samarpit.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="2026" data-original-width="695" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjnUEWSuiV4cS67Cbk1n3zM5ymQMYIePurm007ZQSwCmE2TV9lTnCfpQ6BE1M9R8w6yh35poRqgg6ulP_FinO5MXw979WWAEP-z2pv_2PFsM7dJrdYGbPnI2lzQvclWSgUoapqS93QeWoJYhqqdTd0bX4DnN3eSBmDaBii_AwyLa4AKXE5w5KfDv6wx/w221-h640/Swadesh%20ki%20Sampadkiya-Ramlala%20ko%20Samarpit.jpg" width="221" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">22 जनवरी, 2024 को दैनिक समाचारपत्र स्वदेश, भोपाल समूह ने अपने संपादकीय में शब्दों के स्थान श्रीरामलला का चित्र प्रकाशित किया है</td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;"><b>‘स्वदेश’ </b>ने श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के प्रसंग पर अपनी संपादकीय में प्रयोग करके इतिहास रच दिया। ‘स्वदेश’ ने 23 जनवरी, 2024 के संस्करण में संपादकीय के स्थान पर ‘रामलला’ का चित्र प्रकाशित किया है। यह अनूठा प्रयोग है। भारतीय पत्रकारिता में इससे पहले ऐसा प्रयोग कभी नहीं हुआ। यह पहली बार है, जब संपादकीय में शब्दों का स्थान एक चित्र ने ले लिया। वैसे भी कहा जाता है कि एक चित्र हजार शब्दों के बराबर होता है। परंतु, स्वदेश ने संपादकीय पर जो चित्र प्रकाशित किया, उसकी महिमा हजार शब्दों से कहीं अधिक है। यह कोई साधारण चित्र नहीं है। इस चित्र में तो समूची सृष्टि समाई हुई है। यह तो संसार का सार है।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर में रामलला के आगमन पर समूचा देश जिस प्रकार रामत्व के रंग में रंगा था, उसको शब्दों से अभिव्यक्त करना स्वयं राम के वश की है। राम की उमंग को बस अनुभव ही किया जा सकता है। जिस क्षण के लिए कोई माँ वर्षों से मौन साधकर तपस्या कर रही थी, जिनके दर्शन के लिए भारत के सुदूर छोर से लोग पैदल ही अयोध्या धाम चले आ रहे हों, जिनके प्रथम दर्शन को अपने कैमरे से विश्वभर में फैले रामभक्तों को पहुंचाने के महान कार्य को सम्पादित करनेवाले कैमरामैन की आँखों से भावनाओं की धारा बह निकली हो, जिनके प्राकट्य का अवसर सम्मुख देखकर आंदोलन को ओज देनेवाली साध्वियां बिलख पड़ी हों, उन रघुवर के प्राण-प्रतिष्ठा के प्रसंग का कैसे वर्णन किया जाए? इस दुविधा का उत्तम समाधान स्वयं रघुवर ही हो सकते हैं। अपने रामलला को ‘ठुमक चलत’ देख बाबा तुलसीदास ने बहुत सुंदर भजन लिखा। उसमें जब रामलला के रूप का वर्णन करने का प्रसंग आया तब माँ सरस्वती के वरदपुत्र तुलसीदास की ‘शब्दों की झोली’ खाली हो गई। चंद्रमा, कमल, गुलाब, हिरण इत्यादि रूपकों को सहारा बनाने की बजाय स्वयं रामलला को ही रूपक बना लेना, उन्हें उचित जान पड़ा- </p><p style="text-align: center;"><b>तुलसीदास अति आनंद देख के मुखारविंद ।</b></p><p style="text-align: center;"><b>रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां ॥</b></p><p style="text-align: justify;">प्रतिज्ञा, प्रतीक्षा, प्रतिष्ठा पूर्ण होने के प्रसंग और श्रीराम जन्मभूमि से अखिल ब्रह्माण में रामत्व के उद्घोष को शब्दों से वर्णित करने के स्थान पर रामलला के विग्रह के चित्र से उसका बखान करने का उचित ही निर्णय ‘स्वदेश’ ने लिया। संपादकीय को समाचारपत्र की अभिव्यक्ति कहा जाता है। समाचारपत्र में यह ऐसा स्थान होता है, जहाँ से संपादक समाज का प्रबोधन करने का काम करता है। समाचारपत्र का प्रतिनिधि बनकर संपादक ‘संपादकीय’ में ही घटनाओं, प्रसंगों, मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत करता है। सत्ता को संकेत देने का दायित्व भी संपादक अपनी संपादकीय के माध्यम से निभाता है। पौष, शुक्ल पक्ष, त्रयोदशी (23 जनवरी) के अंक में सभी प्रकार के संपादकीय दायित्वों का निर्वहन रामलला की तस्वीर से हो जाता है। ‘स्वदेश’ का यह संपादकीय जनाकांक्षाओं की अभिव्यक्ति है, राम के आदर्शों का अनुसरण करने का संदेश समाज के लिए है, सत्ता को संकेत है कि वह कर्तव्य पथ पर है। अब रामराज्य को साकार करना है।</p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNjkcALmjpBJz6l9EM8ZpO9XEtpetsF21uPH64z4yLMf_8LZzXitMd6PSIcERd-UxVYFwJdt30HY1wGDKKKjLSpCa75JIbnVLaGt_FSXALagaUxifq7789833bp_didLkVwno4JX_wjS9VWZ-z6homq1NLoRrj9Y8bcFe8aoUx1Tooo3L049zctK1R/s4427/Swadesh%20First%20Page%2022%20January%202024.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="4427" data-original-width="2744" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNjkcALmjpBJz6l9EM8ZpO9XEtpetsF21uPH64z4yLMf_8LZzXitMd6PSIcERd-UxVYFwJdt30HY1wGDKKKjLSpCa75JIbnVLaGt_FSXALagaUxifq7789833bp_didLkVwno4JX_wjS9VWZ-z6homq1NLoRrj9Y8bcFe8aoUx1Tooo3L049zctK1R/w248-h400/Swadesh%20First%20Page%2022%20January%202024.jpg" width="248" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">22 जनवरी, 2024 को स्वदेश का प्रथम पृष्ठ</td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;">‘स्वदेश’ ने 23 जनवरी, 2024 को प्रकाशित अपने संपादकीय ‘भारत और भारतीयता की मूर्तिमंत अभिव्यक्ति’ में अपने इस निर्णय के बारे में लिखा है- “श्रीअयोध्या धाम में भगवान श्रीराम आए, तब समूचा देश भाव-विभोर हो उठा। राम की भक्ति में सराबोर। रामत्व के आलोक से जगमग। जन-जन के चेहरे पर प्रतिज्ञापूर्ति, प्रतिष्ठापूर्ति और प्रतिक्षापूर्ति से उत्पन्न संतुष्टि का भाव। राममय देश को देखकर यही कहना होगा कि श्रीराम, भारत का स्वाभिमान हैं। इस प्रसंग को अभिव्यक्ति देना, शब्दों का सामर्थ्य कहाँ… इसलिए हम श्रीरामलला के नव विग्रह के मोहक दर्शन को ही आज स्वदेश की संपादकीय के रूप में अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। यही आज भारत की अभिव्यक्ति है, भारत का दर्शन है….” सच है, राममय देश को देखकर इससे अधिक और क्या अभिव्यक्ति की जा सकती थी।</p><p style="text-align: justify;">‘स्वदेश’ की प्रसिद्धि राष्ट्रीय विचार की पत्रकारिता के लिए है। स्वदेश ने सदैव ही जनांकाक्षाओं को समझकर राष्ट्रीयता को पुष्ट करने का काम किया है। राम की कृपा से रचा गया यह अनूठा प्रयोग भी राष्ट्रीयता को पुष्ट करने के महायज्ञ में एक आहुति है। स्वदेश को साधुवाद, उसने जनाकांक्षाओं का सम्मान किया और रामत्व को प्रतिष्ठा प्रदान की।</p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://youtube.com/shorts/byI1T-VPuGA?si=K_j2tjkUxvXWttLA" target="_blank">श्रीरामलला के दिव्य दर्शन</a></h3><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><iframe allowfullscreen="" class="BLOG_video_class" height="373" src="https://www.youtube.com/embed/byI1T-VPuGA" width="449" youtube-src-id="byI1T-VPuGA"></iframe></div><div><br /></div>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0Bhopal, Madhya Pradesh, India23.2599333 77.412615-5.0503005361788453 42.256365 51.570167136178846 112.568865tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-31688703311949132142024-01-23T21:31:00.000+05:302024-01-23T21:31:06.768+05:30राम दीपावली<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCCoeeFl7gc8cqKm_0aLlBI5aqXCuhZZNLqTYRFC6Fmo8se3BQlLFlvBMt20EXd_gNXM51FCFJe8Ve2qjLnI-nKsMAvgolodYVU4wZe8lv7Rw15nJQMSvJ2_T8vgNaWjtkCwZmzhuQ7-syvLJre0Wmpqn_TllZ7Dhmrbe_qBzEATXSr01Cc7ucBmh_/s2048/Swadesh%20Calender.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2048" data-original-width="1292" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCCoeeFl7gc8cqKm_0aLlBI5aqXCuhZZNLqTYRFC6Fmo8se3BQlLFlvBMt20EXd_gNXM51FCFJe8Ve2qjLnI-nKsMAvgolodYVU4wZe8lv7Rw15nJQMSvJ2_T8vgNaWjtkCwZmzhuQ7-syvLJre0Wmpqn_TllZ7Dhmrbe_qBzEATXSr01Cc7ucBmh_/w253-h400/Swadesh%20Calender.jpg" width="253" /></a></div><p>कैलेंडर में 22 जनवरी पर अंगुली रखते हुए आज सुबह–सुबह बिटिया ने पूछा– “22 तारीख के नीचे कुछ लिखा क्यों नहीं है?”</p><p>उसके प्रश्न के मूल को समझे बिना मैंने उत्तर दिया– “लिखा तो है– द्वादशी”। चूंकि भारतीय कालगणना को लेकर बात चल रही थी, इसलिए यह उत्तर मैंने दिया।</p><p>अपने प्रश्न का उत्तर न पाकर, उसने फिर से आश्चर्य के भाव के साथ कहा– “हमने कल जो त्योहार मनाया, दीप जलाए, रोशनी की। यहां उसके बारे में कहां लिखा है?”</p><p>मैंने हर्षित मन से उसे बताया– “अब जो कैलेंडर छपकर आयेंगे, उन पर लिखा होगा ‘राम दीपावली’। परंतु उसे भी हमें 22 जनवरी को नहीं, पौष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ही इसी उत्साह से मानना है”।</p><p>“मतलब, अब हम दो बार दीवाली मनाएंगे। फटाखे चलाएंगे और मिठाई भी खायेंगे। जय हो रामलला की”। उसका उत्साह देखते ही बन रहा था। अभी उसे पता नहीं कि अयोध्या धाम में भगवान श्रीराम का मंदिर बनने का क्या महत्व है? कितना बड़ा संघर्ष इस राम दीपावली के लिए रहा है? मैं उसे पूरी राम कहानी बताऊंगा। भारत के प्राण, उत्साह और विश्वास से परिचित कराऊंगा।</p><p>उसे यह जानना ही चाहिए कि ‘राम दीपावली’ मनाने का यह सौभाग्य हमें यूं ही प्राप्त नहीं हो गया है। इसके पीछे 500 वर्ष का संघर्ष, कठिन तपस्या और हजारों रामभक्तों का बलिदान है...</p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://youtube.com/shorts/T4GKXiy2TA8?si=ieAxGbUjFzI6CeqW" target="_blank">श्री अयोध्या धाम में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का आनंद प्रकट करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर राम ज्योति जलाकर मनाई राम दीपावली</a></h3><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><iframe allowfullscreen="" class="BLOG_video_class" height="363" src="https://www.youtube.com/embed/T4GKXiy2TA8" width="437" youtube-src-id="T4GKXiy2TA8"></iframe></div>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-24726258300559643582024-01-13T01:06:00.001+05:302024-01-23T21:31:20.011+05:30शंकराचार्यों का आशीर्वाद<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFIRXvb8yM_1c8GnMLvLbxB6viFvV2vsublPAbdp8wmaPlJ_etyh54K227eRMaTnsFrFhGv5Pv9orwRv2OzOCDc6IWlRd7X9GrHlIInq98HWZCTIh6SZAYZQ4f_HOiXLuGoc3axneWJoxTtxp1807BUHiGIk12vhJB3sioE1hfgBE6yGgq7LTlkEru/s1200/ram_mandir_garbh_grah.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFIRXvb8yM_1c8GnMLvLbxB6viFvV2vsublPAbdp8wmaPlJ_etyh54K227eRMaTnsFrFhGv5Pv9orwRv2OzOCDc6IWlRd7X9GrHlIInq98HWZCTIh6SZAYZQ4f_HOiXLuGoc3axneWJoxTtxp1807BUHiGIk12vhJB3sioE1hfgBE6yGgq7LTlkEru/w400-h225/ram_mandir_garbh_grah.jpg" width="400" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;">यह देखना भी अपने आप में आश्चर्यजनक है कि जिन्हें धर्म में ही विश्वास नहीं, वे रामलला के नये विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा उत्सव में प्रमुख चार पीठों के शंकराचार्यों की उपस्थिति को लेकर चिंतित हो रहे हैं। उन्हें इस बात की चिंता हो रही है कि प्राण प्रतिष्ठा में हिन्दू धर्म शास्त्रों का अनुपालन किया जा रहा है या नहीं? दरअसल, यह उनकी चिंता नहीं अपितु रामकाज में अड़ंगे लगाने की प्रवृत्ति है। किसी को यह बात नहीं भूलना चाहिए कि देश में एक वर्ग ऐसा रहा है, जिसने अपने समूचे राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक सामर्थ्य का उपयोग श्रीराम मंदिर के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करने के लिए किया है। उनकी ओर से यहाँ तक कहा गया कि यह कौन सत्यापित करेगा कि राम इसी भूमि पर पैदा हुए? यहाँ कभी राम मंदिर था ही नहीं, यह कुतर्क भी आया ही। जबकि श्रीराम मंदिर को ध्वस्त करनेवाली नापाक ताकतों ने गर्वोन्मति के साथ यह स्वीकार किया है कि उन्होंने हिन्दुओं की आस्था को ध्वस्त करके उसी के अवशेषों पर मस्जिद तामीर करायी। सर्वोच्च न्यायालय तक में यह हलफनामा दायर किया गया कि राम काल्पनिक हैं। श्रीराम मंदिर का निर्णय समय पर नहीं आए इसके लिए वकीलों ऐसी फौज उतारी गई, जो न्यायालय में मामले को अटकाती-भटकाती रही। अब जरा सोचिए कि श्रीराम मंदिर को लेकर इस प्रकार के विचार रखनेवाली ताकतें भला क्यों मंदिर से जुड़ा महत्वपूर्ण उत्सव निर्विघ्न सम्पन्न होने देंगी।<span><a name='more'></a></span></div><p></p><p style="text-align: justify;">हिन्दू समाज के मध्य भ्रम की स्थिति निर्मित करने के लिए रामद्रोही ताकतों ने एक प्रोपेगेंडा खड़ा किया कि हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्माचार्य अर्थात् चारों शंकराचार्यों ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार कर दिया है। यह आयोजन धर्म सम्मत नहीं है। भाजपा और आरएसएस राजनीतिक सुविधा के हिसाब से इस आयोजन को कर रही है। वर्षों से राम मंदिर का विरोध करनेवाली सभी ताकतें मिलकर इस प्रोपेगेंडा को फैलाने में लग गईं। स्थिति यह बन गई कि शंकराचार्यों को आगे आकर यह स्पष्ट करना पड़ा कि वे अन्यान्य कारणों से प्राण प्रतिष्ठा समारोह में उपस्थिति नहीं हो पाएंगे लेकिन 500 वर्ष की प्रतीक्षा पूरी होने से उन्हें बहुत प्रसन्नता है। एक भी पूज्य शंकराचार्य ने ‘बहिष्कार’ शब्द का उपयोग नहीं किया। अपितु सबने अपने मन की कुछ बातें कहने के बाद यही कहा कि यह अवसर शुभ अवसर है और प्राण प्रतिष्ठा उत्सव को लेकर सब हर्षित हैं। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">दक्षिणाम्नाय श्री श्रृंगेरी शारदा पीठम् के पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य श्री श्री श्री विधुशेखर भारती महास्वामी जी को श्रीरामलला प्राण प्रतिष्ठा उत्सव का मिला निमंत्रण। पूज्य शंकराचार्य जी ने उत्सव की सफलता के लिए अपना कृपापूर्वक आशीर्वाद दिया। <a href="https://twitter.com/hashtag/SabkeRam?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#SabkeRam</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/ayodhyarammandir?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#ayodhyarammandir</a> <a href="https://t.co/FhUIHPm91D">pic.twitter.com/FhUIHPm91D</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1745446188139339881?ref_src=twsrc%5Etfw">January 11, 2024</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">श्रीशारदापीठ, शृंगेरी की ओर से सार्वजनिक पत्र जारी करके कहा गया कि कुछ धर्मद्वेषियों ने यह झूठ फैलाया हुआ है कि शृंगेरी शंकराचार्य भारतीतीर्थ जी महाराज इस पवित्र प्राणप्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर विरोध प्रकट कर रहे हैं। पीठ की ओर से कहा गया है कि सभी आस्तिक इस मिथ्याप्रचार पर ध्यान न दें। लगभग पाँच सौ वर्ष के संघर्ष के बाद वैभव के साथ प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित हो रहा है, इससे सभी आस्तिकों में हर्ष है। इसी तरह द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी की ओर से भी स्पष्ट किया गया है कि उनकी ओर से राम मंदिर के विरोध में कोई संदेश जारी नहीं हुआ है। समाचारों में जो कहा जा रहा है, वह भ्रामक है। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBmlmt5FT3UiYRoLUyoSL9BBXG-lQMBthkB6Kg7QU1Wp_I7-SnK6uhi6hIAU9DiXm8UHJegmI3YJMYTPQ98_LS0meroa0jbTwpFo8UpS58hbeohvA-tmle_tQ_GBQBN26ZRIlI0U6IIvNgJU1FIuNi12Nwaqj79bhWL6aVs6j4RSZ80vqxNnK0q_Sn/s1080/GDjlzGXaQAAOcru.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1080" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjBmlmt5FT3UiYRoLUyoSL9BBXG-lQMBthkB6Kg7QU1Wp_I7-SnK6uhi6hIAU9DiXm8UHJegmI3YJMYTPQ98_LS0meroa0jbTwpFo8UpS58hbeohvA-tmle_tQ_GBQBN26ZRIlI0U6IIvNgJU1FIuNi12Nwaqj79bhWL6aVs6j4RSZ80vqxNnK0q_Sn/w400-h400/GDjlzGXaQAAOcru.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">जिन शंकराचार्य के एक-दो चिंताओं को लेकर अधिक वितंडावाद खड़ा किया जा रहा है, ज्योतिषपीठ के उन्हीं शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज का कहना तो यह है कि जब तक देश में गोहत्या बंदी नहीं हो जाती, तब तक वे रामजी के सामने कैसे जा सकते हैं? उनके नाम का उपयोग करके वितंडावाद खड़ा करनेवाले सब लोगों को सबसे पहले गोहत्या बंदी के लिए केंद्र सरकार से आग्रह करना चाहिए। लेकिन ये लोग शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी इस इच्छा की पूर्ति के लिए आवाज नहीं उठाएंगे। अपितु ये वर्ग तो गोहत्या पर पूर्णत: प्रतिबंध लगाने की माँग का ही विरोध करते हैं। अगर वाकई ये लोग चाहते हैं कि शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी अयोध्या धाम जाएं और रामजी के दर्शन करें, तब इन्हें अविलम्ब गोहत्या प्रतिबंध के लिए आंदोलन प्रारंभ कर देना चाहिए। </p><p style="text-align: justify;">सच तो यह भी है कि शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की खुलकर प्रशंसा की है। प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में अपनी अनुपस्थिति के विवाद पर मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा है कि “हम भाजपा के प्रशंसक हैं क्योंकि उसने देश में हिन्दू वातावरण बनाया है। हिन्दुओं के सोये हुए स्वाभिमान को जगाया है। आज हिन्दू गौरवान्वित महसूस कर रहा है। हम मोदी के विरोधी नहीं। हम एंटी मोदी नहीं, प्रो-मोदी हैं। हम चाहते हैं कि उनका पतन न हो। बड़ी मुश्किल से उदय हुआ है”। उनका यह वक्तव्य बहुत महत्वपूर्ण है। सही अर्थों में उनका यह वक्तव्य वर्तमान समय में समूचे धर्मनिष्ठ हिन्दुओं के हृदय के उद्गार का प्रतिनिधित्व करता है। जो लोग उनका नाम लेकर विवाद उत्पन्न कर रहे हैं, उन्हें ध्यान से सुनना चाहिए कि शंकराचार्य जी क्या चाह रहे हैं? वे तो मोदी के उदय के पक्षधर हैं। </p><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/cT67K20a-HA?si=o_KmbYI_SFjlrajn&start=50" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी तो यहाँ तक कहते हैं कि “प्रधानमंत्री मोदी सेकुलर या डरपोक होते तो राम मंदिर में नहीं जाते। हिन्दुत्व में उनकी निष्ठा है। हिन्दुत्व के प्रति उनकी निष्ठा और समर्पण की मैं प्रशंसा करता हूँ। 500 वर्षों की प्रतीक्षा समाप्त हो रही है। हम बहुत प्रसन्न हैं। सब प्रसन्न है कि भारत के प्रधानमंत्री, जो स्वयं को सनातनी मानते हैं, मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर रहे है। जब सब प्रसन्न हैं, तो मुझे नाराजगी क्यों होगी”। पूज्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी के इस वक्तव्य पर तो उन लोगों को अधिक विचार करना चाहिए, जिन्होंने 22 जनवरी के प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के ‘राम के निमंत्रण’ को ठुकराया है। ऐसे लोगों के लिए शंकराचार्य जी ने डरपोक और सेकुलर विशेषण का उपयोग किया है। </p><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/Z1fp1-o9adw?si=fSx0SxEqZQHbWTv8&start=38" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">चारों मुख्य पीठों के पूज्य शंकराचार्यों के उक्त मनोभाव के आधार पर विवाद का विषय कहाँ रह जाता है। कुछ बातों को लेकर उन्होंने अपना मन्तव्य व्यक्त किया है, वह तो उनका धर्म ही है। हिन्दू धर्म की विशेषता भी यही है। उसमें भी उन्होंने स्पष्ट किया है कि धर्म शास्त्र के अनुपाल के संबंध की गई टीकाओं एवं आग्रह को हमारा विरोध नहीं समझा जाए। प्राण प्रतिष्ठा का यह उत्सव तो प्रत्येक आस्तिक के लिए हर्ष का अवसर है। हिन्दुओं की वर्षों की तपस्या का सुफल प्राप्त हो रहा है। बहरहाल, रामद्रोहियों द्वारा किए जा रहे प्रोपेगेंडा से बचने के साथ ही हिन्दुओं को अवश्य ही ऐसे लोगों/समूहों/संस्थाओं एवं राजनीतिक दलों को चिह्नित करना चाहिए, जो पूज्य शंकराचार्यों की आड़ लेकर एक बार फिर भगवान श्रीराम के मंदिर के संबंध में विवाद उत्पन्न कर रहे हैं। </p><h3 style="text-align: center;"><span style="color: red;">अयोध्या धाम के दर्शन :</span></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/xCvukrOCucU?si=_1eoQ1PQYQ3thqFc" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-7962450238626892352024-01-12T07:00:00.017+05:302024-01-13T01:07:05.892+05:30हिन्दवी स्वराज्य की आधार स्तम्भ - जिजाऊ माँ साहेब<h3 style="text-align: center;"><span style="color: red;">जिजाऊ मां साहेब की जयंती पौष मास की पूर्णिमा को आती है , ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 12 जनवरी को जिजाऊ मां साहेब की जयंती मनायी जाती है</span></h3><div><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioGXrRS7I7tib5xfqoSct6yLBl5FZWrqBcd1dggI4Ua2DR50V6QTWa_0vAof_25SfsuHV0UbRZXOTLd1MbRykeEFi_HfaBtyFktNy8NxCQJE0CrR1I3U44hy80S0kn6NT7hSRyYHN9howoJFB7sgMFSsrVr1tQeBHdy90noIWTcb4Vu5Ng9nkkc8hZ/s6000/IMG_1251.JPG" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="4000" data-original-width="6000" height="266" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEioGXrRS7I7tib5xfqoSct6yLBl5FZWrqBcd1dggI4Ua2DR50V6QTWa_0vAof_25SfsuHV0UbRZXOTLd1MbRykeEFi_HfaBtyFktNy8NxCQJE0CrR1I3U44hy80S0kn6NT7hSRyYHN9howoJFB7sgMFSsrVr1tQeBHdy90noIWTcb4Vu5Ng9nkkc8hZ/w400-h266/IMG_1251.JPG" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">जिजाऊ माँ साहेब समाधि स्थल, पाचाड़ में श्रीशिव छत्रपति दुर्ग दर्शन यात्रा</td></tr></tbody></table></div><p style="text-align: justify;"><b>हिन्दवी स्वराज्य</b> के जो आधार स्तम्भ हैं, उनमें से एक है- राजमाता जिजाऊ माँ साहेब। उनके बिना हिन्दवी स्वराज्य के महान विचार का साकार होना संभव नहीं था। बाल शिवा के मन में स्वराज्य का बीज उन्होंने ही रोपा। उस बीज को उचित खाद-पानी एवं वातावरण मिले, इसकी भी चिंता उन्होंने की। रामायण-महाभारत और भारतीय आख्यानों की कहानियां सुनाकर माँ जिजाऊ ने शिवाजी के व्यक्तित्व को गढ़ा। वे ही शिवाजी महाराज की प्रथम गुरु भी थीं। प्रतिकूल परिस्थितियों में और अनेक प्रकार के झंझावातों का सामना करते हुए तेजस्विनी माता ने शिवाजी महाराज को वीरता, साहस, निर्भय, धर्मनिष्ठा, दयालुता, संवेदनशीलता और स्वतंत्रता के संस्कार दिए। जिजाऊ माँ साहेब के वात्सल की छांव का ही आशीष था कि कंटकाकीर्ण मार्ग पर भी शिवाजी महाराज मुर्झाये नहीं अपितु हीरे की तरह चमक उठे।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;"><span style="white-space: normal;">जीजामाता ने अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया। परंतु उन्हें अपने कष्टों की चिंता नहीं थी, उन्हें पीड़ा थी तो मुगलों के अत्याचार से पीड़ित आम समाज की। ऐसा कहते हैं कि भवानी के सामने आंचल फैलाकर जीजाबाई प्रार्थना करती थीं- “माँ! तुम कैसी माँ हो! माँ! तुम्हारी पुत्रियों के आंचल खींचे जा रहे हैं। उनकी चूड़ियां तोड़ी जा रही हैं। उनकी माँग उजाड़ी जा रही हैं। नाना प्रकार से धर्म पर आघात हो रहा है। फिर भी तुम चुप हो! माँ! तुम्हारा वह पराक्रम कहाँ गया, जिससे तुमने महिषासुर का वध किया था और जिससे तुमने कालिका रूप धारण करके दैत्यों का संहार किया था। माँ! तुम मुझे ऐसा पुत्र दो! जो डूबती हुई धर्म की तरणी का उद्धार कर सके और जो स्त्रियों के आंचल खींचने वालों के हाथ काट सके”। इसी मान्यता के क्रम में आता है कि माँ भवानी ने जीजामाता की प्रार्थना को स्वीकार करके उन्हें शिवा-सा पुत्र दिया। </span></p><p style="text-align: justify;">जिजाऊ माँ साहेब का उल्लेख करते हुए पुस्तक ‘नियति को चुनौती’ में मेधा देशमुख-भास्करन लिखती हैं कि अपने देश के रक्तरंजित इतिहास और दु:खद भविष्य की छाप को मन में लिए शिवाजी की माता जीजाबाई ने अपने नन्हे बेटे के कानों में हौले से क्या कहा होगा, जो विस्मय से पूरे संसार को निहार रहा था और उसकी आंखों में दक्खन पर मंडराने वाले, खूबसूरत पर छलिए आसमान का निष्पाप नीलापन झलक रहा था? यदि कोई और महिला होती तो ऐसी निराशा के बीच सुबकियां भरते हुए, अपने पुत्र के अंधकारमय भविष्य की कल्पना के सिवा कुछ न कर पाती। उन दिनों केवल इसी बात का चलन था, ‘अगर तुम शांति से जीना चाहते हो या केवल जीना भी चाहते हो तो हुक्म बजाओ और वही करो जो बादशाह या राजा का आदेश हो’। जीजाबाई ने अपने पुत्र को यह सब नहीं कहा होगा क्योंकि वे जाननी थी कि किस तरह हिन्दू योद्धाओं ने मुस्लिम राजाओं को अपनी सेवाएं देते हुए असंख्य कष्ट झेले, जिनमें उनके पिता, भाई और पति भी शामिल थे। वे जिन जाने-माने परिवारों को जानती थीं, वे छोटी-छोटी बातों पर आपस में खून के प्यासे होकर, लड़ते हुए खत्म हो गए। उनके जीवन नष्ट हो गए और बस जिंदा रहने की आस के झूठे भ्रम और विनीत रवैए के तले, क्षत्रिय भावना कहीं कुचल गई। उन्होंने अपने पुत्र से कहा होगा कि उसे ही उन पुरानी जंजीरों को तोड़ना होगा, ‘जब निराशा और लज्जा के बदले में शांति मिलने लगे तो ऐसे में जंग ही सबसे इंसानी चुनाव बचता है’। </p><h3 style="text-align: justify;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=E2LyItLwJJ8" target="_blank">देखिए- छत्रपति शिवाजी महाराज रायगढ़ दुर्ग में हिरकणी बुर्ज से करते थे जिजाऊ माँ साहेब के दर्शन</a></h3><div style="text-align: justify;"><br /></div><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/E2LyItLwJJ8?si=iDlJ7egP6Cx6nJwd" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">शिवाजी महाराज भी चाहते तो अपने पिता के प्रभाव एवं प्रताप के कारण आदिल शाह के दरबार में अपने लिए स्थान बना लेते। उस समय अन्य जागीरदारों एवं राजाओं के पुत्र यही कर रहे थे। शिवाजी महाराज भी ऐसा करते तो वे भी मुस्लिम राजाओं के दरबार में काम करते हुए, वैभव और विलासिता के बीच जीवनयापन करेंगे, उनसे पदवियां हासिल करेंगे और अपने राजा के राज्य की रक्षा के लिए कभी–कभार कोई युद्ध भी लड़ लिया करेंगे। किसी साधारण सरदार के साधारण पुत्र के लिए यह स्वभाविक होता परंतु न तो राजा शाहजी सामान्य थे और न ही शिवाजी महाराज की दृष्टि में स्वार्थ था। शिवाजी महाराज एक ऐसे शूरवीर शाहजी भोंसले के पुत्र थे, जिन्होंने ‘स्वराज्य’ का बीज बोया था और ऐसी महान देवी के पुत्र थे, जिसने अत्याचारी शासन का नाश करने के लिए उन्हें माँ भवानी से वरदान में माँगा था। हम यह भी कह सकते हैं कि यदि शिवाजी महाराज की माँ जीजामाता न होतीं, तब संभव है कि वे औरंगजेब के मनसबदार बन जाते। जिजाऊ माँ साहेब ने यथास्थिति के साथ बहने की अपेक्षा अपने पुत्र को आदिलशाही, निजामशाही, कुतुबशाही और मुगलिया सल्तनत के अत्याचारी शासन का नाश करने के लिए तैयार किया।</p><p style="text-align: justify;">बच्चे के पालन-पोषण में माँ की क्या भूमिका होती है, यह माता जीजाबाई का जीवन देखकर समझना चाहिए। उनका जन्म और विवाह अवश्य ही प्रभावशाली राजघराने में हुआ, लेकिन उन्होंने जीवन में पग-पग चुनौतियों और कष्टों का सामना किया। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीजामाता ने कभी धैर्य नहीं खोया। उन्होंने शिवाजी जैसे महान चरित्र को गढ़ने में अपनी सारी शक्ति, योग्यता और बुद्धिमत्ता लगा दी। शिवाजी को बचपन से भारतीय आख्यान की गौरवपूर्ण कहानियां सुनाकर उनके हृदय में स्वराज्य का बीजारोपण कर दिया। वे नि:संदेह दिव्य आत्मा थीं, जिन्होंने अपनी आँखों के स्वप्न को अपने पुत्र के हृदय में उतार दिया। माता के दिखाए मार्ग पर चलकर ही शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य और हिन्दू पदपादशाही की स्थापना की। उनकी प्रेरणा से ही निर्भय होकर शिवाजी ने अधर्म का नाश किया और धर्म की जय की।</p><h3 style="text-align: justify;"><b>जिजाऊ माँ साहेब का समाधी स्थल :</b></h3><p style="text-align: justify;">सह्याद्रि की उत्तुंग शिखरों पर शासन करनेवाले महान हिन्दू राजा छत्रपति शिवाजी महाराज, जिन जीजामाता की गोद में खेलकर बड़े हुए थे, उन्हीं लोकमाता ने अपनी अंतिम सांस सह्याद्रि की गोद में ली। उनका स्मृतिस्थल भी सह्याद्रि की गोद में बसे पाचाड में बनाया गया है। यहाँ खुली जगह में सुव्यवस्थित स्थान पर राजमाता का स्मृतिस्थल है। महान साम्राज्य की राजमाता होकर भी जैसा सादगीपूर्ण जिजाऊ माँ का जीवन था, उसी सादगी के अनुरूप उनके स्मृतिस्थल को भी संभाल कर रखा गया है। यहाँ एक चौकोर चबूतरे पर चार पाषाण स्तम्भों पर आधारित छतरी निर्मित है, जिसमें चारों दिशाओं में मेहराब हैं। छतरी के मध्य में राजमाता जिजाऊ माँ साहेब की प्रतिमा स्थापित की गई है। प्रतिमा के सामने तुलसी का बिरवा है, जो जीजामाता के धार्मिक व्यक्तित्व को अभिव्यक्त करता है। परिसर में छोटे-छोटे बाग-बगीचे हैं, जिनमें खिलते पुष्प स्वराज्य की सुगंध बिखेर रहे हैं। श्रीशिव छत्रपति महाराज का राज्याभिषेक के ठीक बारहवें दिन यानी ज्येष्ठ कृ. नवमी दिनांक 17 जून 1674 को रात्रि लगभग बारह बजे जीजामाता का देहावसान हो गया था। पुत्र के राज्याभिषेक का समारोह देख कृतार्थ मन से लोकमाता जिजाऊसाहेब ने प्राण त्याग दिए। मानो, वे अपने पुत्र शिवा को सिंहासनारूढ़ होते देखने के लिए ही प्रतीक्षारत थीं। मानो, वे भारत में ‘रामराज्य’ की स्थापना के दिन की प्रतीक्षा में ही रुकी हुई थीं। उन्होंने जिस भगवा ध्वज को राम-कृष्ण के हाथों में देखा था, उसे श्रीरायगढ़ पर सिहासनारूढ़ महाराजधिराज श्रीशिव छत्रपति के हाथों में देखकर उनकी अभिलाषा पूर्ण हुई और वे वैकुंठ लोक को चल पड़ीं। </p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitqfDWVFXJU3Iy5HnQKcfjFStwpKwUuOaL2Gy7N6yodL96-8q1eLiZDlYjJml0gJefiIqVtx3Ws8q3oZRRbSMf5EP3RxHLaucVQQWFYimNNAdVgVSJk6vhVJmwFew36BvbLS630Ty8ndVp50dso8k1lEOqK_IJFkwc-AY76D_wq-wpIede0yb2XRxY/s6000/Jijau%20Ma%20Saheb%20Samadhi%20Sthal.JPG" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="6000" data-original-width="4000" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitqfDWVFXJU3Iy5HnQKcfjFStwpKwUuOaL2Gy7N6yodL96-8q1eLiZDlYjJml0gJefiIqVtx3Ws8q3oZRRbSMf5EP3RxHLaucVQQWFYimNNAdVgVSJk6vhVJmwFew36BvbLS630Ty8ndVp50dso8k1lEOqK_IJFkwc-AY76D_wq-wpIede0yb2XRxY/w266-h400/Jijau%20Ma%20Saheb%20Samadhi%20Sthal.JPG" width="266" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">छत्रपति शिवाजी महाराज को हिन्दवी स्वराज्य की प्रेरणा देनेवाली माँ जिजाऊ साहेब का समाधी स्थल, पाचाड़</td></tr></tbody></table><br /><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4qfEFsQiPclsHhvoWiEFY1BEciUtOuGNCNykqsIdN1JNvn3J8SHnsFwlY_koRVryMWj8LTzolx7PR1rj4XK1gktNcC-gHEY7yiPUfsN-9britCBBT7LldSBlJcg2vr4LLRseh2ZWbvs0akc3MSBL-uzyAxTF2YbUyLV3vRETNcgzPnfgG1Q9hvp97/s2180/Jijau%20Ma%20Saheb-Swadesh%20Bhopal-12%20Jan%202024.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="2180" data-original-width="1863" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4qfEFsQiPclsHhvoWiEFY1BEciUtOuGNCNykqsIdN1JNvn3J8SHnsFwlY_koRVryMWj8LTzolx7PR1rj4XK1gktNcC-gHEY7yiPUfsN-9britCBBT7LldSBlJcg2vr4LLRseh2ZWbvs0akc3MSBL-uzyAxTF2YbUyLV3vRETNcgzPnfgG1Q9hvp97/w341-h400/Jijau%20Ma%20Saheb-Swadesh%20Bhopal-12%20Jan%202024.jpg" width="341" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">जिजाऊ जयंती के प्रसंग पर 12 जनवरी, 2024 को भोपाल से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र स्वदेश में प्रकाशित</td></tr></tbody></table>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-82857739158327838582024-01-08T12:41:00.002+05:302024-01-11T23:27:21.231+05:30भारत ने मालदीव को दिखाया आईना<p style="text-align: justify;"></p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOT8nRGyXyWMhdbB3c50ba-FmdJGjOWYJY0JjIKPIjm1SCTArWwYzDQNjmiqsYpPlGV0WaVxnU91O3kaxOZUEAQaaWz_tMNAx0ocY8FMHJF6eCGDbZHkW5FPYygdT3z8X4LlJJPK5aGFbV-8aEluhHf2a_lmTqodOIpNyujznXRpW3P3bPC2vhUaB9/s1600/PM%20Modi%20Lakshdeep%202.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="1002" data-original-width="1600" height="250" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOT8nRGyXyWMhdbB3c50ba-FmdJGjOWYJY0JjIKPIjm1SCTArWwYzDQNjmiqsYpPlGV0WaVxnU91O3kaxOZUEAQaaWz_tMNAx0ocY8FMHJF6eCGDbZHkW5FPYygdT3z8X4LlJJPK5aGFbV-8aEluhHf2a_lmTqodOIpNyujznXRpW3P3bPC2vhUaB9/w400-h250/PM%20Modi%20Lakshdeep%202.jpg" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">भारत के खूबसूरत पर्यटन स्थल लक्षद्वीप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी</td></tr></tbody></table><br /><div style="text-align: justify;">प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोई भी कदम बहुत सोच-विचारकर उठाते हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी लक्षद्वीप में समुद्री किनारों पर यूँ ही टहलने नहीं गए थे। जो लोग उस समय समुद्र किनारे प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों को देखकर हँसी-ठिठोली कर रहे थे, उन्हें अब जाकर यह समझ आया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इन तस्वीरों के माध्यम से मालदीव को आईना दिखाने का काम किया है। लक्षद्वीप के समुद्री तट पर प्रधानमंत्री मोदी का चहलकदमी करना मालदीप के कुछ नेताओं को इतना अधिक चुभ गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और भारत के संदर्भ में अशोभनीय टिप्पणी कर दीं। भारत के नागरिकों ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने देश और प्रधानमंत्री के अपमान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। मालदीव तक उसकी धमक सुनायी पड़ी। परिणामस्वरूप, ओछी टिप्पणी करनेवाली मालदीव की महिला मंत्री मरियम शिउना को कैबिनेट से निलंबित कर दिया गया है। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, शिउना के अलावा दो और मंत्रियों माल्शा शरीफ और अब्दुल्ला महजूम माजिद को भी निलंबित कर दिया गया। वहीं, मालदीव सरकार के प्रवक्ता इब्राहिम खलील को सफाई देनी पड़ गई। उनकी ओर से कहा गया है कि भारत के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट्स के हवाले से जो कुछ चल रहा है, उसके बारे में हमारी सरकार अपना रुख साफ कर चुकी है। विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी किया है। भारत के बारे में टिप्पणी करने वाले सभी सरकारी अधिकारियों को तत्काल निलंबित किया जा रहा है।<span><a name='more'></a></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIw-nvGNkzBbCeA1fj51iKjp2cC69cBfMVGAC03sQ5c_i77KfDhcLH11oEHSRFOjWbyagNam1seRZQdfA0eJpxFUyTSVZnX5Y8-0r2eDMj4X6Bs_nQr3OvKUHlso_ba1-h30O_AjN0KUKQetSZ01jRCdu2H14_ReJgxsgoEohJjxNpo-lNj0U_Ke0T/s512/maldiva.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="384" data-original-width="512" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIw-nvGNkzBbCeA1fj51iKjp2cC69cBfMVGAC03sQ5c_i77KfDhcLH11oEHSRFOjWbyagNam1seRZQdfA0eJpxFUyTSVZnX5Y8-0r2eDMj4X6Bs_nQr3OvKUHlso_ba1-h30O_AjN0KUKQetSZ01jRCdu2H14_ReJgxsgoEohJjxNpo-lNj0U_Ke0T/w400-h300/maldiva.jpg" width="400" /></a></div><div><p></p><p style="text-align: justify;">मालदीप समुद्र में एक छोटे से टापू पर बसा देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार पर्यटन है। मालदीव की पूरी अर्थव्यवस्था मछली पालन और पर्यटन पर निर्भर है। भारत से सबसे ज्यादा पर्यटक मालदीव जाते हैं। ट्रैवेल ट्रेड मालदीव की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में मालदीव पहुँचनेवाले पर्यटकों में भारतीय सबसे अधिक थे। यहां 2 लाख 40 हजार भारतीय पर्यटक पहुंचे, जिनका मार्केट शेयर 14 प्रतिशत रहा। 2023 में भी भारतीय पर्यटक सबसे ज्यादा पहुंचे। कहना होगा कि मालदीव के समुद्री तटों पर समय बिताने एवं प्रकृति को निहारने के लिए भारत से लाखों की संख्या में पर्यटक पहुँचते हैं। भारतीय फिल्मों का फिल्मांकन भी वहाँ बहुत होता है। इसके बावजूद मालदीव का नया निजाम भारत को आँखें दिखाकर चीन की गोदी में बैठना चाह रहा है। यह भारत की कूटनीतिक सफलता है कि उसने मालदीव को सीधे तौर पर कुछ न कहकर भी बहुत बड़ा संदेश दे दिया है। लक्षद्वीप पहुँचकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के पर्यटन को विश्वपटल पर उभारने के साथ ही मालदीव को भी अप्रत्यक्ष रूप से संकेत कर दिया है कि भारत के साथ संबंध बिगाड़ने से उसका ही घाटा है। </p><p style="text-align: justify;">भारतीय सिनेमा जगत के प्रमुख कलाकार भी प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा की सराहना करते हुए मालदीव को आईना दिखा रहे हैं। फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, सलमान खान, जॉन अब्राहिम, रणदीप हुड्डा, आर. माधवन, कार्तिक आर्यन, रणवीर सिंह, वरुण धवन, कैलाश खेर, एकता कपूर, शिल्पा शेट्टी, कंगना रनौत, भूमि पेडनेकर, उर्वशी रौतेला और श्रद्धा कपूर सहित कई कलाकार स्पष्ट रूप से लिख रहे हैं कि मालदीव जाने की अपेक्षा हमें भारतीय समुद्री तटों पर ही जाना चाहिए। भारतीय खिलाड़ियों ने भी प्रधानमंत्री मोदी की भाँति आग्रह किया है कि हमें विदेश में जाने की अपेक्षा भारतीय समुद्री तटों एवं द्वीपों का भ्रमण करना चाहिए। घरेलू पर्यटन को प्राथमकिता देने की प्रधानमंत्री मोदी की इस मुहिम के समर्थन में सचिन तेंदुलकर, वीरेन्द्र सहवाग, सुरेश रैना, वेंकटेश प्रसाद, हार्दिक पंड्या और पीवी सिंधु सहित कई खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया। लक्षद्वीप सहित भारत में ऐसे अनेक स्थान हैं, जहाँ खूबसूरत और साफ-सुथरे समुद्री तट हैं। नि:संदेह, अपने पर्यटन स्थलों को हमें प्राथमिकता देना चाहिए।</p><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/UdooQpX-QHc?si=zkGbEKvTN7geNyLm" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">मालदीव के मंत्रियों की भारत विरोधी टिप्पणियों का उत्तर देते हुए भारत के प्रभावशाली लोगों ने ‘मालदीव के बहिष्कार का अभियान’ ही शुरु कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप हजारों की संख्या में लोगों ने मालदीव की अपनी यात्रा को रद्द कर दिया। भारतीय पर्यटकों की कमी का यह झटका मालदीव को जोर से लगेगा। </p><p style="text-align: justify;">उल्लेखनीय है कि भारत और मालदीव के रिश्ते वर्षों से अच्छे रहे हैं। वैश्विक महामारी कोविड-19 के समय जब दुनिया हाहाकार कर रही थी, तब भी भारत ने मालदीव की आगे बढ़कर सहायता की। मालदीव में अधोसंरचना के विकास में भी भारत की अग्रणी भूमिका रहती है। लेकिन मालदीव की नयी शासन व्यवस्था का झुकाव अचानक से चीन की ओर अधिक हो गया है। चीन को खुश करने के चक्कर में मालदीव ने बहुत हद तक भारत विरोधी रुख भी अपना लिया है। दरअसल, मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू को चीन सरकार का समर्थन प्राप्त है। वह हमेशा से ही चीन के पक्ष में और भारत विरोधी रुख अपनाते रहे हैं। राष्ट्रपति बनते ही चीन के इशारे पर मालदीव में तैनात भारतीय सेना को वापस भारत भेजने की बात पहले ही कह चुके हैं। मालदीव में दशकों से यह परंपरा रही है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति अपने पहले विदेश दौरे में भारत की यात्रा करता है। लेकिन मुइज्जू ने इस परंपरा को तोड़ते हुए चीन जाने का फैसला किया। यह सब घटनाक्रम बताता है कि मालदीव के भारत विरोध रुख के पीछे दरअसल क्या कारण है? </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">ऐसा नहीं है भिया...<br />अपनी भी तस्वीरें हैं समुद्र किनारे की<a href="https://twitter.com/hashtag/PMInLakshadweep?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#PMInLakshadweep</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/PMModiInLakshadweep?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#PMModiInLakshadweep</a><br />____<br />ये गोवा है मेरे दोस्त<a href="https://t.co/MecBGcdlOE">https://t.co/MecBGcdlOE</a><br /><br />अब अगला चक्कर हम भी <a href="https://twitter.com/hashtag/Lakshadweep?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#Lakshadweep</a> का लगाएंगे। बोलो जय श्रीराम <a href="https://t.co/k4moqgJr6p">pic.twitter.com/k4moqgJr6p</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1742890188425339260?ref_src=twsrc%5Etfw">January 4, 2024</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">चीन की गोद में बैठने को आतुर मालदीव को उन सब देशों का हाल भी देख लेना चाहिए, जिन्होंने चीन से नजदीकी बढ़ाई और अब वे पछता रहे हैं। यह बात स्थापित सत्य है कि भारत से अच्छी मित्रता कोई ओर नहीं दे सकता। बहरहाल, यह मालदीव का अंदरुनी मामला है कि वह किसके साथ नजदीकी बढ़ाता है। लेकिन एक बात मालदीव को भली प्रकार समझ लेना चाहिए कि उसे भारत का विरोध का अधिकार नहीं है। यदि भारत की प्रतिष्ठा को चुनौती दी जाएगी तो उसका सब प्रकार से उत्तर देना हमें आता है। भारत तो मित्रता का हामी है।</p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi"><a href="https://twitter.com/hashtag/ExploreIndianIslands?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#ExploreIndianIslands</a><br />कहाँ <a href="https://twitter.com/hashtag/Maldives?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#Maldives</a> जाना दोस्त, पहले जरा घूमो अपना देश.... अब तो अपन भी जाएंगे <a href="https://twitter.com/hashtag/Lakshadweep?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#Lakshadweep</a> <a href="https://t.co/X6RgzamZig">pic.twitter.com/X6RgzamZig</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1744062755668361311?ref_src=twsrc%5Etfw">January 7, 2024</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script></div>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-35794640978618514732023-12-29T07:00:00.017+05:302024-01-08T12:43:23.861+05:30नईदुनिया में प्रकाशित लेखक लोकेन्द्र सिंह से बातचीत<h3 style="text-align: center;"><span style="color: #0b5394;">बातचीत : </span><span style="color: red;">माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक लोकेन्द्र सिंह राजपूत ने साहित्य लेखन से जुड़े कई अनुभव साझा किए</span></h3><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDqX1hPR6TjMxJ-YrTa4a9MvyOkVoCwg2i-u-rOIjPKsw9n637ekFaXWDr4-4O7lQ7jhhcilaK_7Gb9XsZeY-4jIR5iDxoJvnYfjCf9TYhOwyfQZtxKIORtKhFmuAvJJUwdcNg6fBp5ZXRFzK2o3tkokhacYxitwFecgssgSGwlWPlixUtFw7iqY1I/s3246/Shabd%20Sansar-Naidunia-28%20December%202023.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="1284" data-original-width="3246" height="159" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDqX1hPR6TjMxJ-YrTa4a9MvyOkVoCwg2i-u-rOIjPKsw9n637ekFaXWDr4-4O7lQ7jhhcilaK_7Gb9XsZeY-4jIR5iDxoJvnYfjCf9TYhOwyfQZtxKIORtKhFmuAvJJUwdcNg6fBp5ZXRFzK2o3tkokhacYxitwFecgssgSGwlWPlixUtFw7iqY1I/w400-h159/Shabd%20Sansar-Naidunia-28%20December%202023.jpg" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">नईदुनिया (नवदुनिया, भोपाल) के 'शब्द संसार' कॉलम में लेखक लोकेन्द्र सिंह की साहित्यिक यात्रा पर विशेष बातचीत 28 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित हुई</td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;">"मुझे स्कूल के दिनों से ही समाचारपत्रों में प्रकाशित कहानियां, बोधकथा, व्यंग्य, यात्रा वृत्तांत के साथ-साथ साहित्यिक पुस्तकें आकर्षित करती रहीं। गर्मी की छुट्टियों में समाचारपत्रों के रविवारीय एवं बुधवारीय परिशिष्ट निकालकर पढ़ने से अध्ययन की शुरुआत हुई। ऐसे ही एक दिन समाचारपत्र पलटते हुए उन्हें अपनी मौसी सरला यादव की लिखी कहानी दिखी, तब उनके भीतर के साहित्यकार ने उमंग ली। मन बनाया कि मैं भी लिखूंगा। उसके बाद अखिल भारतीय साहित्य परिषद की ओर से आयोजित होनेवाले साहित्यक गोष्ठियों में साहित्यकारों की संगत मिली तो दिशा और स्पष्ट होती गई"। यह कहना है लोकेन्द्र सिंह राजपूत का। उन्होंने साहित्यिक यात्रा का अनुभव नवदुनिया/नईदुनिया से साझा किया।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">जब कॉलेज की स्मारिका में कविता प्रकाशित हुई, तो लेखन की दिशा में उत्साहित हो गए। उसके बाद समाचारपत्रों में भी कहानी और आलेख प्रकाशित हुए। लिखने-पढ़ने का यह शौक पत्रकारिता में खींचकर ले आया। लंबे समय तक पत्रकारिता की, उसके बाद पत्रकारिता के अध्यापन में आ गए। लेकिन इस बीच कभी लेखन से दूरी नहीं हुई। लिखना जैसे आदत हो गया है। प्रारंभ में जब पत्र-पत्रिकाओं में संपर्क नहीं था, तब ब्लॉग पर लिखना शुरू किया। इंटरनेट ने नये अवसरों का सृजन किया। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWYgHTW97vLmkjx0fKJ5XbMXqAgP7qhQX2L8Ly6rqCmWHWObu9Vg8kaT1AxeQZIq8vMWwhSpuNlHudPC34v-NbLWWGODWnsOl6eoss_muYcryQ190_JLBZl-lLcOG-Jlx_mPRWLDTiSfv19KbuBcMMF_e_fGCD33AO8-1oPMEsRCRrg-XVARN_6Avm/s3415/20230320_181918.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2604" data-original-width="3415" height="305" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWYgHTW97vLmkjx0fKJ5XbMXqAgP7qhQX2L8Ly6rqCmWHWObu9Vg8kaT1AxeQZIq8vMWwhSpuNlHudPC34v-NbLWWGODWnsOl6eoss_muYcryQ190_JLBZl-lLcOG-Jlx_mPRWLDTiSfv19KbuBcMMF_e_fGCD33AO8-1oPMEsRCRrg-XVARN_6Avm/w400-h305/20230320_181918.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">लेखक लोकेन्द्र सिंह का मानना है कि छोटे शहरों, कस्बों या गाँवों में रहनेवाले लेखकों को वह पहचान या अवसर नहीं मिल पाते, जो बड़े शहरों में रहते हैं। इसलिए कई अच्छे लेखक गुमनाम रह जाते हैं। परंतु, इंटरनेट क्रांति ने इस दृश्य को बदल दिया है। अब डिजिटल एवं सोशल मीडिया का सही उपयोग करके लोग अपनी पहचान बना सकते हैं। इंटरनेट के कारण उन्हें कई प्रतिष्ठित स्थानों से लेखन के लिए संपर्क किया जाने लगा। वे आज भी ब्लॉग ‘अपनापंचू’ के नाम से ऑनलाइन लेखन में सक्रिय हैं। देश के प्रमुख हिन्दी ब्लॉगर में लोकेन्द्र सिंह शामिल हैं। साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश ने 2021 के लिए ‘फेसबुक/ब्लॉग/नेट’ हेतु आपको ‘अखिल भारतीय नारद मुनि’ पुरस्कार से सादर अलंकृत किया। आपको दिल्ली की संस्था ‘ब्लॉग रत्न’ पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। </p><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/AtloKyjnNJ8?si=ayLBL_adD7piGlaH" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><h3 style="text-align: justify;"><b>घुमक्कड़ी और यात्रा वृत्तांत लेखन में विशेष रुचि :</b></h3><p style="text-align: justify;">हमारे जो अनुभव हैं, हमारे जो विचार हैं, उन्हें औरों तक पहुँचाने के लिए साहित्य से सशक्त माध्यम और कुछ नहीं है। यह कहते हुए लोकेन्द्र सिंह बताते हैं कि यात्रा वृत्तांत लिखना उन्हें खूब भाता है। वे जहाँ भी जाते हैं, उनका प्रयास रहता है कि उस स्थान के बारे में सबको जानकारी दें। कोरोनाकाल के बाद से डाक्युमेंट्री और वीडियो ब्लॉग के क्षेत्र में भी वे सक्रिय हैं। उनके यूट्यूब चैनल ‘अपना वीडियो पार्क’ पर हम कविताएं सुन सकते हैं और कई महत्वपूर्ण स्थानों के ट्रेवलॉग देख सकते हैं। पिछले वर्ष वे छत्रपति शिवाजी महाराज के किलों का भ्रमण करने गए थे, उस पर <a href="https://amzn.eu/d/afqVVFa" target="_blank">उनका यात्रा वृत्तांत ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ पुस्तक के रूप में खूब चर्चित हो रहा है।</a> बहुत ही कम समय में अमेजन पर उनकी यह पुस्तक यात्रा वृत्तांत पर आधारित शीर्ष पुस्तकों में शामिल हो गई है। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">यह दूसरी बार है, जब अपनी पुस्तक 'हिन्दवी स्वराज्य दर्शन' विगत 15 दिन में Out of Stock हुई है। <br /><br />आज तो यह अमेजन पर Bestsellers in Travel Writing श्रेणी में 33वें क्रमांक पर आ गई थी। <br />___<a href="https://twitter.com/hashtag/hindviswarajyadarshan?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#hindviswarajyadarshan</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/swarajya350?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#swarajya350</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/swarajyadarshan?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#swarajyadarshan</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A5%80_%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF_%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B6%E0%A4%A8?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#हिन्दवी_स्वराज्य_दर्शन</a> <a href="https://twitter.com/ManjulPubHouse?ref_src=twsrc%5Etfw">@ManjulPubHouse</a> <a href="https://t.co/M8J9ZdrPJ8">pic.twitter.com/M8J9ZdrPJ8</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1740026435283374156?ref_src=twsrc%5Etfw">December 27, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><h3 style="text-align: justify;"><b>दृश्य-श्रव्य माध्यम से साहित्य रचना :</b></h3><p style="text-align: justify;">उन्होंने बताया कि डाक्युमेंट्री और लघु फिल्में भी एक तरह से साहित्यिक कृतियां ही हैं। चूँकि नयी पीढ़ी वीडियो कंटेंट बहुत देख रही है। इसलिए लेखकों को प्रयास करना चाहिए कि वे अपने लेखन को वीडियो के प्रारूप में भी लोगों के सामने लेकर आएं। लेखक लोकेन्द्र सिंह का कहना है कि जब उन्होंने इस प्रकार के प्रयास किए तो प्रारंभ में ही उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हुए। उनकी डाक्युमेंट्री फिल्म ‘बाचा : द राइजिंग विलेज’ को राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। गाय पर बनायी फिल्म ‘गो-वर’ को खूब सराहा गया। इसी तरह छोटे कद को लेकर बनायी फिल्म ‘कद : हाइट डजन्ट मैटर’ ने भी फिल्म क्रिटिक की सराहना बटोरी है। </p><h3 style="text-align: justify;">अब तक 14 पुस्तकें प्रकाशित :</h3><p style="text-align: justify;">लोकेन्द्र सिंह की अब तक 14 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें हिन्दवी स्वराज्य दर्शन, मैं भारत हूँ, डॉ. भीमराव अम्बेडकर : पत्रकारिता एवं विचार, संघ दर्शन : अपने मन की अनुभूति, राष्ट्रध्वज और आरएसएस और हम असहिष्णु लोग बहुचर्चित हैं। उन्होंने बताया कि वे उस दिन को कभी नहीं भूल सकते, जिस दिन पहली पुस्तक साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश के सहयोग से प्रकाशित हुई। मध्यप्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश तोमर का उन्हें विशेष सान्निध्य प्राप्त हुआ। पहली पुस्तक की रचना में उन्होंने उनका खूब मार्गदर्शन किया। </p><h3 style="text-align: justify;">प्रमुख पुरस्कार : </h3><p style="text-align: justify;">बहुमुखी प्रतिभा के धनी लोकेन्द्र सिंह राजपूत को ‘पत्रकारिता’ में श्रेष्ठ एवं समाज उपयोगी लेखन हेतु ‘पं. प्रताप नारायण मिश्र स्मृति- युवा साहित्यकार सम्मान-2023’ प्रदान किया। आपको ‘अटल पत्रकारिता सम्मान-2018’, ‘हिन्दी सेवा सम्मान-2020’ और ब्लॉगर रत्न जैसे प्रतिष्ठित सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश के पुरस्कार अलंकरण समारोह में साहित्यकार एवं अभिनेता आशुतोष राणा जी <a href="https://twitter.com/ranaashutosh10?ref_src=twsrc%5Etfw">@ranaashutosh10</a> के साथ कुछ विशेष तस्वीरें... और वीडियो<a href="https://t.co/dqEpzDq3IY">https://t.co/dqEpzDq3IY</a><br />___<a href="https://twitter.com/hashtag/ashutoshrana?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#ashutoshrana</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/ushathakur?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#ushathakur</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/vikasdave?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#vikasdave</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/lokendrasingh?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#lokendrasingh</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/award?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#award</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/awardwinning?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#awardwinning</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/awardceremony?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#awardceremony</a> <a href="https://twitter.com/minculturemp?ref_src=twsrc%5Etfw">@minculturemp</a> <a href="https://t.co/8kn2pNPbD9">pic.twitter.com/8kn2pNPbD9</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1685512316631302145?ref_src=twsrc%5Etfw">July 30, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-88646743939199185072023-12-28T08:00:00.011+05:302023-12-28T23:45:09.132+05:30विपक्षी गठबंधन में हिन्दू विरोध की प्रतिस्पर्धा<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgq2ktZo5mwMPFYnaARo81L55Imp0cJAHdbEyzka2z1I5iIz8n4nELmlKtq-IhbpNv3N-sb2lTEMji0TGIbDaP6Vp-DzxM3PQIRO8kPSr4cf0ABnpy-LzMD1InR4qdu_bsvgm3O6tABAsVMnclImDXqS9duU0v3mLXQ9H35Q6PN6kXESwURORv77X-8/s924/Swami%20Prasad%20Maurya%20Vivadit%20Bayan.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="456" data-original-width="924" height="198" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgq2ktZo5mwMPFYnaARo81L55Imp0cJAHdbEyzka2z1I5iIz8n4nELmlKtq-IhbpNv3N-sb2lTEMji0TGIbDaP6Vp-DzxM3PQIRO8kPSr4cf0ABnpy-LzMD1InR4qdu_bsvgm3O6tABAsVMnclImDXqS9duU0v3mLXQ9H35Q6PN6kXESwURORv77X-8/w400-h198/Swami%20Prasad%20Maurya%20Vivadit%20Bayan.jpg" width="400" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;">ऐसा प्रतीत होता है कि विपक्षी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के बीच हिन्दू धर्म और भारतीयता के विचार पर हमला करने की कोई प्रतिस्पर्धा चल रही है। डीएमके के नेताओं के हिन्दू एवं उत्तर भारत विरोधी बयानों के बाद एक बार फिर समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने हिन्दू धर्म को लेकर घोर आपत्तिजनक बयान दिया है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह भी है कि राजनीतिक स्वार्थों के चलते विपक्षी गठबंधन के लगभग सभी राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं की ओर से हिन्दू विरोधी बयानों की निंदा नहीं की जा रही है। सब चुप्पी साधकर बैठे हैं। केवल भारतीय जनता पार्टी के नेता ही आगे आकर हिन्दू और भारत विरोधी बयानों की निंदा कर रहे हैं। ऐसे में जनता यह क्यों नहीं माने कि हिन्दू धर्म का पक्ष लेने की बात हो तब भाजपा ही सबसे आगे दिखायी देती है। अन्य धर्मों का सम्मान रखने के साथ ही भाजपा प्राथमिकता के आधार पर हिन्दू हित की बात करती है।<span><a name='more'></a></span></div><p></p><p style="text-align: justify;">याद रखें कि विपक्षी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल यह कहते नहीं अघाते कि क्या भाजपा हिन्दू धर्म की ठेकेदार है? हिन्दू धर्म पर होनेवाले हमलों के बीच जिस प्रकार भाजपा डटकर खड़ी होती है, उससे तो यही साबित होता है कि हाँ, भाजपा हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी हितैषी है। समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब यह कहा कि <b>“हिन्दू धर्म कोई धर्म नहीं बल्कि सिर्फ एक धोखा है”</b>। तब केवल भाजपा ने ही स्वामी प्रसाद मौर्य को आड़े हाथ लिया। बाकी के राजनीतिक दलों की चुप्पी आखिर क्या कहती है? विशेषकर अपने आप को ‘इंडिया’ गठबंधन कहनेवाले राजनीतिक दल क्यों हिन्दू धर्म पर हो रहे राजनीतिक हमलों पर चुप्पी साध लेते हैं? क्या हिन्दू धर्म पर हमला करनेवाले राजनीतिक दलों एवं नेताओं को क्या खुद को ‘इंडिया’ कहने का जरा भी नैतिक अधिकार है? </p><p style="text-align: justify;">यह सच ही प्रतीत होता है कि इन राजनीतिक दलों का भारत के विचार से कोई लगाव नहीं है। इन्होंने केवल राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने गठबंधन का नामकरण ऐसा किया है ताकि लोगों को छला जा सके। यदि वास्तव में विपक्षी गठबंधन भारत के विचार का प्रतिनिधित्व करता है, तब उसे खुलकर ऐसे दलों एवं नेताओं को विरोध करना चाहिए, जो हिन्दू एवं भारत विरोधी सोच को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे दलों को गठबंधन से बाहर निकालने में जरा भी देर क्यों लगनी चाहिए? यदि विपक्षी गठबंधन ने इसी प्रकार चुप्पी बनाए रखी तो इसकी भारी कीमत उसे लोकसभा चुनावों में चुकानी पड़ सकती है। डीएमके के नेताओं के बयानों के बाद से उत्तर भारत की जनता में गहरा आक्रोश है। लेकिन विपक्षी गठबंधन इससे बेखबर है। बाद में जब जनता का आक्रोश मताधिकार के रूप में प्रकट होगा और भाजपा को प्रचंड जीत मिलेगी, तब आज चुप्पी साधकर बैठे नेता ईवीएम का रोना रोएंगे। </p><p style="text-align: justify;">हिन्दू संगठनों, साधु-संन्यासियों एवं आम लोगों ने स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान पर अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए सार्वजनिक माफी की माँग की है। हालांकि, इसकी संभावना कम ही है कि सपा नेता मौर्य अपने बयान के लिए माफी माँगेंगे क्योंकि इससे पूर्व डीएमके के नेताओं ने भी खेद तक व्यक्त नहीं किया। अपितु वे बड़ी बेशर्मी से अपने बयानों पर अड़े रहे। बहरहाल, देश के आम नागरिकों को भी यह लगने लगा है कि विपक्षी गठबंधन और कुछ नहीं अपितु हिन्दू विरोधी पार्टियों का कुनबा है। बड़ी और अनुभवी पार्टियों की चुप्पी जनता की इस सोच को और पक्का कर रही है।</p>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-84516635155724601782023-12-16T12:31:00.007+05:302023-12-28T00:59:00.434+05:30विवाद समाप्त होने से ही आएगा सांप्रदायिक सौहार्द<p style="text-align: justify;"></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjX4i4qIqZSK3CKcr5Yw9NPJd0k1CBt3UIvrqauvNcX3MMBDUmxxkUzNaRY19Aghae597xqdTeCGOfVPDWKPiRVhalR8qV8xmrwTR99rPQX95iJ-6Ny5FcaB_qQTGc60C8sL2ZW4awNcka4ousDv-wkIiPnK-OvFNGqvP_ntzc-NRmW6lLSu_4fdpzS/s739/Mathura.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="415" data-original-width="739" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjX4i4qIqZSK3CKcr5Yw9NPJd0k1CBt3UIvrqauvNcX3MMBDUmxxkUzNaRY19Aghae597xqdTeCGOfVPDWKPiRVhalR8qV8xmrwTR99rPQX95iJ-6Ny5FcaB_qQTGc60C8sL2ZW4awNcka4ousDv-wkIiPnK-OvFNGqvP_ntzc-NRmW6lLSu_4fdpzS/w400-h225/Mathura.jpg" width="400" /></a></div><br /><div style="text-align: justify;">काशी के बाद अब मथुरा में भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर स्थित शाही ईदगाह का सर्वेक्षण किया जाएगा। इसकी अनुमति इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने की दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी शाही ईदगाह के सर्वे के निर्णय पर अपनी सहमति दी है। उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के रुख से संकेत मिलता है कि भारत की न्यायपालिका अब संवेदनशील मामलों को अटकाने के पक्ष में नहीं है। इतिहास में जो भूल हुई हैं, उन्हें सुधारने के लिए न्यायपालिका भी आज के समय को अनुकूल समझ रही है। नि:संदेह, देश में राष्ट्रीय विचार की सरकार है, जो किसी भी प्रकार के तुष्टीकरण का समर्थन न करके राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर वैज्ञानिक एवं संवैधानिक दृष्टिकोण रखती है। याद रखें कि धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद की यह स्थिति किसी भी प्रकार से देश और समाज के हित में नहीं है। विवाद की स्थिति बनी रहने से हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच आपसी तनाव भी बना रहता है।<span><a name='more'></a></span></div><p></p><p style="text-align: justify;">अच्छा होता कि इस प्रकार के विवादित मामलों का निराकरण देश की स्वतंत्रता के साथ ही कर दिया जाता। परंतु ऐसा लगता है कि राजनीतिक लाभ के लिए कुछ दलों ने जानबूझकर अयोध्या, काशी और मथुरा जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर विवाद की स्थिति बनी रहने दी। ये दल स्वयं को सेकुलर कहते हैं, परंतु वास्तव में इनकी राजनीति घोर सांप्रदायिक है। एक संप्रदाय को भ्रमित रखकर उसको वोटबैंक की तरह इस्तेमाल किया गया। दुर्भाग्य की बात है कि भारत का मुसलमान भी ऐसे दलों एवं नेताओं की कठपुतली बना रहा। ईमानदारी से तो मुस्लिम समुदाय को ही अयोध्या, काशी और मथुरा के ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के स्थानों पर कब्जा छोड़कर धर्मांध आक्रांताओं की गलतियों से अपना पिंड छुड़ा लेना चाहिए। परंतु ऐसा हुआ नहीं अपितु मुस्लिम समुदाय आक्रांताओं के कृत्यों के पक्ष में खड़े हो गए। इस कारण हिन्दू और मुस्लिम तनाव भी बढ़ा। </p><p style="text-align: justify;">एक जरूरी प्रश्न है कि क्या हिन्दू अपने तीन प्रमुख ईश्वरों के जन्मस्थानों को विवाद मुक्त न चाहे? याद रखें कि जब तक विवादित ढांचे हटेंगे नहीं, तब तक इन स्थानों पर आपसी सौहार्द स्थायी रूप से कायम नहीं होगा। समय-समय पर सांप्रदायिक तनाव को उभारा जाता रहेगा। इसलिए उचित ही है कि इन मामलों की सुनवाई करके न्यायालय निर्णय दे दे। संभवत: न्यायालय की दृष्टि भी यही है इसलिए वह ऐसे मामलों पर निर्णय करके हिन्दू और मुसलमानों को आपसी संघर्ष से बाहर निकालना चाहता है। </p><blockquote class="twitter-tweet" data-media-max-width="560"><p dir="ltr" lang="hi">कोर्ट का निर्णय: मथुरा में जन्मस्थान के सर्वे से सत्य सामने आएगा : श्री आलोक कुमार (<a href="https://twitter.com/AlokKumarLIVE?ref_src=twsrc%5Etfw">@AlokKumarLIVE</a>), अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष, विश्व हिन्दू परिषद <a href="https://twitter.com/hashtag/Mathura?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#Mathura</a> <a href="https://t.co/rKiXdeNYHs">pic.twitter.com/rKiXdeNYHs</a></p>— Vishva Hindu Parishad -VHP (@VHPDigital) <a href="https://twitter.com/VHPDigital/status/1735244069788692482?ref_src=twsrc%5Etfw">December 14, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">यह सर्वविदित है कि जिस प्रकार अयोध्या में तथाकथित मस्जिद के कोई प्रमाण नहीं मिले अपितु बाहरी ढांचे से लेकर खुदाई तक में हिन्दू स्थापत्य के ही प्रमाण मिले थे, उसी प्रकार काशी और मथुरा के प्रकरण में भी साफतौर पर दिखायी देता है कि मंदिरों पर अतिक्रमण किया गया है। हिन्दुओं का अपमान करने की दृष्टि से हिन्दुओं के मान बिन्दुओं पर कुछ ढांचे खड़े कर दिए गए हैं। कोई भी व्यक्ति देखकर ही बता सकता है कि मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के बराबर में बनी शाही ईदगाह वाला ढाँचा जबरन वहीं बना दिया गया जहाँ भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। अभी भी कई ऐसे सबूत हैं जो कि यह सिद्ध करते हैं कि यहाँ पहले एक मंदिर हुआ करता था। </p><p style="text-align: justify;">उल्लेखनीय है कि सन् 1670 में मुगल आक्रांता औरंगजेब ने मथुरा पर हमला कर दिया था और केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करके उसके ऊपर शाही ईदगाह ढाँचा बनवा दिया था और इसे मस्जिद कहा जाने लगा। इस्लाम के अनुसार, ऐसा कोई स्थान मस्जिद हो ही नहीं सकता जो किसी और के धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया हो या जिसको लेकर विवाद हो। बहरहाल, न्यायालय ने हिन्दू पक्ष की याचिका को स्वीकार करके बहुत अच्छा निर्णय लिया है। अब वैज्ञानिक सर्वेक्षण के बाद ही बहुत हद तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। सभी वर्गों को न्यायालय की प्रक्रिया एवं निर्णय को धैर्य और संयम के साथ स्वीकार करना चाहिए।</p>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-5557786751458578882023-12-13T09:00:00.007+05:302023-12-16T12:32:11.964+05:30जम्मू-कश्मीर में संविधान की जीत<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWzeZqKxdkfzxAWjCctN-jz6seJi4L1ioKgDAHWiSRkr0zH7oEHZYwvVGNyeLWXNnUaU2CbOeTlohmMLP_UH18L7l6moyb8PLbM_U3qAgXW9Pxvtc6XFU0jmpCdWaL5Gf0VeZiYy15urOhQqdRaeZnzkDU8A91yeIuZEZzten9cFEACnTAtudFlIc8/s800/Article%20370%20p.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="420" data-original-width="800" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWzeZqKxdkfzxAWjCctN-jz6seJi4L1ioKgDAHWiSRkr0zH7oEHZYwvVGNyeLWXNnUaU2CbOeTlohmMLP_UH18L7l6moyb8PLbM_U3qAgXW9Pxvtc6XFU0jmpCdWaL5Gf0VeZiYy15urOhQqdRaeZnzkDU8A91yeIuZEZzten9cFEACnTAtudFlIc8/w400-h210/Article%20370%20p.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">संपूर्ण देश को बेसब्री से प्रतीक्षा थी कि जम्मू-कश्मीर से संबंधित अलगाववादी अनुच्छेद-370 पर सर्वोच्च न्यायालय क्या निर्णय सुनाता है। वैसे तो सब आश्वस्त थे कि न्यायालय में न्याय, सत्य और संविधान की विजय सुनिश्चित है। इसके बावजूद एक आशंका तो थी ही कि कहीं न्यायालय से प्रतिकूल निर्णय न आ जाए। यदि सर्वोच्च न्यायालय यह मान लेता कि अनुच्छेद-370 को हटाया नहीं जा सकता इसलिए उसे बहाल किया जाए, तब केंद्र सरकार के सामने बड़ी दुविधा खड़ी हो जाती। यह तो विश्वास है कि मोदी सरकार कोई न कोई मार्ग निकालती और इस अलगाववादी अनुच्छेद को पुन: स्थायी रूप से हटा देती। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी का अपनी स्थापना के समय से ही यह संकल्प है कि देश की एकता-अखंडता को प्रभावित करनेवाले इस अनुच्छेद को समाप्त करना आवश्यक है। इसके लिए भाजपा के नेताओं ने अपना बलिदान भी दिया है। भाजपा के वैचारिक प्रेरणास्रोत श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान भी जम्मू-कश्मीर में ‘एक निशान, एक विधान और एक प्रधान’ की माँग करते हुआ।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए भी अब अनुच्छेद 370 का मुद्दा अप्रासंगिक हो गया है। 5 अगस्त, 2019 के बाद से प्रदेश में तेजी से बदलाव आया है। वहाँ रोजगार के नये अवसर निर्मित हुए हैं। पर्यटन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। राज्य में रिकॉर्ड 1.88 करोड़ पर्यटक आए। आधारभूत संरचनाएं खड़ी हो रही हैं। पत्थरबाजी और हिंसा जैसी घटनाएं बीते दौर की बातें हो गई हैं। पथराव की घटनाएं, जो 2018 में 1,767 तक पहुंच गईं थीं, अब 2023 में पूरी तरह से बंद हो गई हैं। साफ है कि पत्थरबाजी की घटनाओं में 65 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई है। इसी तरह से 2018 में जम्मू कश्मीर में 199 युवा आतंकवादी बने थे, ये संख्या 2023 में घटकर 12 रह गई है। आतंकवादियों का नेटवर्क तबाह हो गया है।</p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd5VTXH8Qa7nS7EQAtA3psYWBOtbNLl42k_UOQSwVIVEZrUzAFYFQBHU6Ay7KVjLLtFUjUEQFFRwRFx8zblS45J_x-hDPh2ZECGClEaqNVH3iqga4_lMOuOlBFEbEYT8-plt8oYuUxInR2QIp3yMi-Ctiiay6JcNvaYEXu5gKEbifsuPD4h_SgcWHU/s1600/lal%20chouk.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="1064" data-original-width="1600" height="266" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd5VTXH8Qa7nS7EQAtA3psYWBOtbNLl42k_UOQSwVIVEZrUzAFYFQBHU6Ay7KVjLLtFUjUEQFFRwRFx8zblS45J_x-hDPh2ZECGClEaqNVH3iqga4_lMOuOlBFEbEYT8-plt8oYuUxInR2QIp3yMi-Ctiiay6JcNvaYEXu5gKEbifsuPD4h_SgcWHU/w400-h266/lal%20chouk.jpg" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">एक समय था जब श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराना संभव नहीं था, परंतु अब अनुच्छेद-370 हटाने के बाद से यह चौक तिरंगे की रोशनी में ही डूबा रहता है</td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;">जम्मू-कश्मीर में बीते तीन दशकों की उथल-पुथल के बाद आम लोग सामान्य रूप से जीवन जी रहे हैं। अनुच्छेद-370 खत्म होने के बाद राज्य में शांति और विकास को लोग महसूस कर रहे हैं। ऐसे में जम्मू-कश्मीर का बहुसंख्यक नागरिक समुदाय भी अब फिर से अनुच्छेद-370 नहीं चाहता था। याद रहे कि अनुच्छेद-370 एवं 35ए के कारण से जम्मू-कश्मीर में हिन्दू समुदाय के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का शोषण किया जा रहा था। उन्हें बुनियादी एवं संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया जा रहा था। मोदी सरकार ने इन प्रावधानों को निष्प्रभावी करके वंचित वर्ग के संवैधानिक अधिकारों का संरक्षण किया है। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi"><a href="https://twitter.com/hashtag/Article370?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#Article370</a> एक अस्थाई व्यवस्था थी - सर्वोच्च न्यायालय<br /><br />न्याय और संविधान की विजय। <a href="https://t.co/kG8aB8s4zl">pic.twitter.com/kG8aB8s4zl</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1734092291994951783?ref_src=twsrc%5Etfw">December 11, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">बहरहाल, सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने अपने निर्णय में कहा है- “अनुच्छेद-370 एक अस्थायी प्रावधान था। संविधान के अनुच्छेद 1 और 370 से स्पष्ट है कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है”। मुख्य न्यायमूर्ति ने यह स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार के हर निर्णय को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। ऐसा करने से अराजकता फैल जाएगी। अगर केंद्र के फैसले से किसी तरह की मुश्किल खड़ी हो रही हो, तभी इसे चुनौती दी जा सकती है। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5VPGDN06STriDB-kbFrsCJl8YmGyCVD5JLIMkZyb6EE1E7SLkRDZVJ6NDktYExkkn1qhBZ3UnJSRNb1HY7VywXYZVS8Bx3Q4GfHBAMfKnxwM6CB8cuCHX8slNLgvGhYSifJB5OrT09xj84cskhEdkqF2UHPS-k5-TxIpKAU1QhA2r6LViKaCDcU7J/s1200/PM%20Narendra%20Modi.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1200" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj5VPGDN06STriDB-kbFrsCJl8YmGyCVD5JLIMkZyb6EE1E7SLkRDZVJ6NDktYExkkn1qhBZ3UnJSRNb1HY7VywXYZVS8Bx3Q4GfHBAMfKnxwM6CB8cuCHX8slNLgvGhYSifJB5OrT09xj84cskhEdkqF2UHPS-k5-TxIpKAU1QhA2r6LViKaCDcU7J/w400-h400/PM%20Narendra%20Modi.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">सर्वोच्च न्यायालय के इस कथन को उन लोगों को ध्यान से सुनना चाहिए, जो केंद्र सरकार के प्रत्येक निर्णय में मीन-मेख निकालते हैं। जो केंद्र सरकार के राष्ट्रीय महत्व के निर्णयों पर भी अकारण ही हो-हल्ला मचाते हैं। देश में एक समूह ऐसा भी तैयार हो गया है, जो राष्ट्रीय महत्व के निर्णयों में अड़ंगा लगाने के लिए बात-बेबात न्यायालय की ओर दौड़ लगाता है। एक तरह से ये समूह न्यायालय का बहुमूल्य समय भी नष्ट करता है। मान लिया कि विपक्षी दल, सरकार के अच्छे निर्णयों का खुलकर समर्थन नहीं कर सकते, तब उन्हें कम से कम विरोध भी नहीं करना चाहिए। कुछ मामलों में चुप्पी साध लेना ही बेहतर होता है। </p><p style="text-align: justify;">सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से एक और बात स्पष्ट होती है कि मोदी सरकार ने अनुच्छेद-370 एवं 35ए को हटाने के लिए किसी भी प्रकार से संविधान की अनदेखी नहीं की है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्टतौर पर कहा है कि अनुच्छेद-370 को हटाने के पीछे केंद्र सरकार की नीयत भी शुभ थी और उसने सभी प्रकार से संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया है। कुलमिलाकर कहना होगा कि अब विवादित एवं अलगाववादी अनुच्छेद-370 एवं 35ए सदैव के लिए समाप्त हो गया है। मोदी सरकार की यह एक बड़ी उपलब्धि है। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से संपूर्ण देश में हर्ष का वातावरण है।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5__zwiEr8L0trf1wVfWnVFdcRXkcmepoxVZqUUH_wWH9mhIA9Ph-ZHM7rVgizGB53fBbgBF80ey0xGVuhVc09s3shKF8PA_llpL_8VDu34pSnQw8zBliruGdFiT-qRXSoDeiHhyYGY3ktQ8gSnv7p1BmkFTqwGvlcv2AQZmWuuuQx-_pShUz4Wqje/s1200/Article%20370.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1200" data-original-width="1200" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5__zwiEr8L0trf1wVfWnVFdcRXkcmepoxVZqUUH_wWH9mhIA9Ph-ZHM7rVgizGB53fBbgBF80ey0xGVuhVc09s3shKF8PA_llpL_8VDu34pSnQw8zBliruGdFiT-qRXSoDeiHhyYGY3ktQ8gSnv7p1BmkFTqwGvlcv2AQZmWuuuQx-_pShUz4Wqje/w400-h400/Article%20370.jpg" width="400" /></a></div>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-30654132698892886292023-12-12T07:00:00.005+05:302023-12-12T22:23:12.689+05:30मुख्यमंत्रियों के चयन में दिखी भाजपा की विशेषता<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfC9N-j7wywoaO-y28qeVwN7O-Mktj4SvFtX9OX6vNuSK7Yi4eFd5o94JXA-BhTcwuTkP4PA_GG8UAKkHTfbo4FdrKDXrv8pYKzxTidg0oNfVScC-VUSZDtdnFYLfhpe4p7FiY5miwpQAlfcIkp49Tj4m6e0gjfFKp05YZhzuiHWgd-ei7pcS8xlR8/s1280/cm%20of%20bjp.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfC9N-j7wywoaO-y28qeVwN7O-Mktj4SvFtX9OX6vNuSK7Yi4eFd5o94JXA-BhTcwuTkP4PA_GG8UAKkHTfbo4FdrKDXrv8pYKzxTidg0oNfVScC-VUSZDtdnFYLfhpe4p7FiY5miwpQAlfcIkp49Tj4m6e0gjfFKp05YZhzuiHWgd-ei7pcS8xlR8/w400-h225/cm%20of%20bjp.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत के बाद से खूब कयास लगाए जा रहे थे कि इन राज्यों में मुख्यमंत्री कौन बनेंगे? बहुत हद तक सब एक राय थे कि इन राज्यों में भाजपा नये लोगों को अवसर देगी। राज्यों में दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे लाने का अवसर आ गया है। लेकिन, किन नेताओं को कमान मिल सकती है इसका अंदाज बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी नहीं लगा सके। छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय, मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव और राजस्थान में भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने विपक्षी राजनीतिक दलों के सामने एक बड़ी लकीर खींच दी है। भाजपा ने बता दिया है कि वह प्रयोग करने में हिचकती नहीं है। पार्टी के साधारण नेता को सामने लेकर आना और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपना, यह भाजपा ही कर सकती है। इसमें किसी को संदेह नहीं कि विष्णु देव साय, डॉ. मोहन यादव एवं भजनलाल शर्मा ने भी नहीं सोचा होगा कि वे मुख्यमंत्री बन सकते हैं।</p><p style="text-align: justify;">भाजपा ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों को आईना दिखाया है कि ‘परिवारवाद’ से बाहर निकलकर कैसे नये नेतृत्व गढ़े जाते हैं। उल्लेखनीय है कि एक दिन पूर्व ही बहुजन समाजवादी पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने पार्टी का उत्तराधिकार अपने ही भतीजे आकाश आनंद को सौंपा है। अन्य राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की स्थिति भी कमोबेश इसी प्रकार की है।</p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">मध्यप्रदेश के 20वें मुख्यमंत्री के रूप में 13 दिसंबर को शपथ लेनेवाले भाजपा नेता <a href="https://twitter.com/DrMohanYadav51?ref_src=twsrc%5Etfw">@DrMohanYadav51</a> जी, पूर्व मुख्यमंत्री <a href="https://twitter.com/ChouhanShivraj?ref_src=twsrc%5Etfw">@ChouhanShivraj</a> जी और प्रदेश अध्यक्ष <a href="https://twitter.com/vdsharmabjp?ref_src=twsrc%5Etfw">@vdsharmabjp</a> जी ने लाल परेड मैदान पहुंचकर शपथ ग्रहण समारोह की तैयारियों का अवलोकन किया। <a href="https://t.co/f9baRcdLjH">pic.twitter.com/f9baRcdLjH</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1734606563778891805?ref_src=twsrc%5Etfw">December 12, 2023<span><a name='more'></a></span></a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से सीखना चाहिए कि पार्टी के हित के लिए सहर्ष ही कैसे नयी पीढ़ी को उत्तरदायित्व का हस्तांतरण किया जाता है। कहीं कोई नाराजगी नहीं, कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं। तीनों ही राज्यों में सबकुछ सहजता से सम्पन्न हो गया। यह है भाजपा का अनुशासन। इसके कारण ही भाजपा के लिए कहा जाता है कि यह राजनीतिक दल ‘औरों से अलग’ है। </p><p style="text-align: justify;">यह कहने में कोई संकोच नहीं कि तीनों प्रदेशों में मिली अभूतपूर्व विजय में पूर्व मुख्यमंत्रियों का उल्लेखनीय योगदान रहा है। विशेषकर मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने जिस प्रकार का परिश्रम किया, उतनी मेहनत सामान्यत: नेता नहीं करते हैं। उनकी सराहना इसलिए भी करनी चाहिए कि उन्हें भी अंदाजा था कि इस बार भाजपा के जीतने के बाद भी उन्हें मुख्यमंत्री का दायित्व नहीं मिलेगा। केंद्र भविष्य की राजनीति के हिसाब से परिवर्तन का मन बना चुका है। इसके बाद भी शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पार्टी को जीत दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। निश्चित ही भाजपा उनकी प्रतिभा, समर्पण और परिश्रम का उपयोग राष्ट्रीय फलक पर करना चाहेगी। प्रदेश में भी भाजपा के संगठन को और मजबूत बनाने में उनका सहयोग लिया जा सकता है। </p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizHTnhEIIlqn9k_DeC5V73ky_4bmzBb6E8h5s7hHJyM3EORxXR5E8Og0R1oZ1VrC_LKRY736x8Bx20FghHQfUohgw_bnhDq1CLKdTIcPM3RkstmD9BU5lIyyClABSnYaHmZxAVEqjG_bsfhi1hdSLnBV7W1EPHj1hlqAN_yrudNCQzNNeVhLUmUMBW/s2080/mohan%20yadav.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="1712" data-original-width="2080" height="329" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEizHTnhEIIlqn9k_DeC5V73ky_4bmzBb6E8h5s7hHJyM3EORxXR5E8Og0R1oZ1VrC_LKRY736x8Bx20FghHQfUohgw_bnhDq1CLKdTIcPM3RkstmD9BU5lIyyClABSnYaHmZxAVEqjG_bsfhi1hdSLnBV7W1EPHj1hlqAN_yrudNCQzNNeVhLUmUMBW/w400-h329/mohan%20yadav.jpg" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">मध्यप्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सोशल मीडिया अकाउंट से साभार</td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;">नवनिर्वाचित मुख्यमंत्रियों के सामने अनेक प्रकार की चुनौतियां हैं। पहली, चुनाव प्रचार के दौरान जारी घोषणा-पत्रों में किए गए वायदों को पूरा करना। दूसरा, भाजपा के प्रति जनता के विश्वास को बनाए रखना और तीसरा, आगामी लोकसभा की तैयारी करना। यह बात ठीक है कि लोकसभा के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुख्य भूमिका रहती है। यद्धपि भाजपा की प्रदेश ईकाई की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। प्रदेश के नेतृत्व की छवि, संगठन के कामकाज और सांगठनिक जमावट का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। अपने-अपने प्रदेश में प्रशासनिक कार्यों को गति देने के साथ ही लोकसभा चुनाव की तैयारी करने के लिए नवनिर्वाचित मुख्यमंत्रियों को दिन-रात एक करना होगा। बहरहाल, भाजपा ने अपने निर्णय से नये नेतृत्व को सामने लाने के साथ ही सभी जातीय वर्गों को भी साधने का काम किया है। तीनों प्रदेशों के नये चेहरों से राष्ट्रीय राजनीति में भी एक संदेश गया है, जिसका प्रभाव अन्य राज्यों में भाजपा के पक्ष में पड़ने की उम्मीद है। </p>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-55271527515712739732023-11-25T08:00:00.002+05:302023-12-12T21:57:43.336+05:30भारत के संविधान में राम-कृष्ण-बुद्ध और महावीर के चित्र<h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=727XGdC-A7I" target="_blank">इस वीडियो ब्लॉग में आप संविधान पर अंकित राम-कृष्ण, बुद्ध और महावीर सहित भारतीय संस्कृति के विभिन्न चित्रों को देख सकते हैं</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/727XGdC-A7I?si=aOWEbobTOQXX-f29" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;"><b>हमारा संविधान</b> भारतीय मूल्यों की अभिव्यक्ति है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि हमारे संविधान में 'भारत की आत्मा' परिलक्षित होती है। संविधान के प्रावधान एवं तत्व भारतीय संस्कृति से जुड़ते हैं। भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के मूल्य एवं दर्शन हमें अपने संविधान में दिखायी पड़ते हैं। भारत के संविधान की एक खूबसूरती यह भी है कि मूल प्रति पर आपको राम-कृष्ण-बुद्ध आदि से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंगों के सुंदर चित्र देखने को मिलते हैं। यह चित्र संविधान के प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में बनाये गए हैं, जैसे मौलिक अधिकारों के अध्याय से पूर्व भगवान श्रीराम, माता सीता और भाई लक्ष्मण का चित्र है।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">भारतीय सांस्कृतिक आख्यान के यह चित्र प्रख्यात चित्रकार नंदलाल बोस ने बनाये हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनसे भारतीय संविधान को सुसज्जित करने का आग्रह किया था। पंडित जी ने गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के गुरुकुल शांति निकेतन में नंदलाल बोस से मुलाकात की और संविधान की मूल प्रति को अपनी चित्रकारी से सजाने का आग्रह किया।</p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">26 जनवरी, 1950 को देश में संविधान लागू किया गया था। हमारा संविधान, हमारा मार्गदर्शक है। भारत का संविधान, भारत के जीवन मूल्यों को समेटे हुए है। <br /><br />आईए, इस प्रसंग पर संविधान से जुड़ी कुछ रोचक बातें जानते हैं–<a href="https://t.co/di8H2uS6pn">https://t.co/di8H2uS6pn</a><br /><br />___<a href="https://twitter.com/hashtag/%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B8?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#गणतंत्र_दिवस</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/Constitution?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#Constitution</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/RepublicDay?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#RepublicDay</a> <a href="https://t.co/raSattG1CJ">pic.twitter.com/raSattG1CJ</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1618287382213849090?ref_src=twsrc%5Etfw">January 25, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">चित्रकार नंदलाल बोस ने प्रधानमंत्री नेहरू जी के आग्रह को स्वीकार किया। बोस ने अपने विद्यार्थियों के सहयोग से चार वर्ष में 22 चित्र बनाए और इतनी ही किनारियां (पेज के बॉर्डर) बनाईं। संविधान के सभी 22 अध्यायों को इन चित्रों और किनारियों से सजाया गया।</p><p style="text-align: justify;">हिंदू धर्म के प्रतीकों को संविधान निर्माताओं ने न केवल स्वीकारा बल्कि पूरे सम्मान के साथ प्रतिष्ठित किया। भारतीय संविधान की मूल प्रति में लगभग हर अध्याय के आरंभ में कोई न कोई चित्र छापा गया था। पृष्ठ एक पर मोहनजोदड़ों की मोहरों का चित्र है। संविधान के तीसरे पृष्ठ पर वैदिक काल में संचालित गुरुकल का एक प्रतीकात्मक चित्र है।</p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi"><a href="https://twitter.com/hashtag/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#संविधान</a> के पृष्ठ 20 पर भगवान बुद्ध व पृष्ठ 63 पर भगवान महावीर का चित्र है। पृष्ठ 104 पर विक्रमादित्य के दरबार का चित्र है। यह वही विक्रमादित्य हैं जिनके यश के कारण उनके नाम पर भारत में विक्रमी संवत का कैलेंडर चलता है। <a href="https://twitter.com/hashtag/RepublicDayIndia?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#RepublicDayIndia</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/RepublicDay2020?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#RepublicDay2020</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/ProudlyIndian?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#ProudlyIndian</a> <a href="https://t.co/QQjaMb0gHJ">pic.twitter.com/QQjaMb0gHJ</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1221369034010054656?ref_src=twsrc%5Etfw">January 26, 2020</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">भारतीय संविधान के छठवें पृष्ठ पर रामायण से प्रेरणा लेकर एक चित्र छापा गया था, जिसमें भगवान श्रीराम लंका विजय के बाद पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ हैं। संविधान की मूल प्रति में चौथे अध्याय में राज्य के लिए नीति निर्देशों का वर्णन हैं। इस अध्याय के आरंभ में दिए गए चित्र में महाभारत के समय युद्ध क्षेत्र में भगवान श्री कृष्ण सारथी के रूप में अर्जुन को भगवद्गीता का संदेश दे रहे हैं। संविधान के पृष्ठ 20 पर भगवान बुद्ध और पृष्ठ 63 पर भगवान महावीर का चित्र है। पृष्ठ 104 पर विक्रमादित्य के दरबार का चित्र है। यह वही विक्रमादित्य हैं जिनके यश के कारण उनके नाम पर भारत में विक्रमी संवत का कैलेंडर चलता है।</p><p style="text-align: justify;">भारतीय संविधान की मूल प्रति में हमारी ऐतिहासिक ज्ञान परंपरा का स्मरण करवाने वाले और दुनिया के सबसे विख्यात ज्ञान केंद्रों में से एक प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का चित्र अंकित है। इन चित्रों को देखने का अवसर मिले तो अवश्य देखना चाहिए। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi"><a href="https://twitter.com/hashtag/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#संविधान</a> पर क्या हैं <a href="https://twitter.com/RSSorg?ref_src=twsrc%5Etfw">@RSSorg</a> के विचार। यहां देखें पूरा वीडियो <a href="https://t.co/L7p5SRWC15">https://t.co/L7p5SRWC15</a><br />___<a href="https://twitter.com/hashtag/ConstitutionSoulisBharatiya?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#ConstitutionSoulisBharatiya</a><a href="https://twitter.com/hashtag/KnowYourConstitution?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#KnowYourConstitution</a><a href="https://twitter.com/hashtag/ConstitutionDay?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#ConstitutionDay</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/SamvidhanDiwas?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#SamvidhanDiwas</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%B8?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#संविधान_दिवस</a> <a href="https://t.co/8DaakS5YaF">pic.twitter.com/8DaakS5YaF</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1596380404038369281?ref_src=twsrc%5Etfw">November 26, 2022</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-80605929689993798252023-11-23T15:23:00.005+05:302023-11-25T14:12:30.457+05:30अपनी नियति की ओर बढ़ता भारत<h3 style="clear: both; text-align: center;"><span style="color: red;">अर्चना प्रकाशन, भोपाल की स्मारिका-2023 में प्रकाशित संपादकीय</span></h3><div><span style="color: red;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmhEx55rE4XJO1aOGRdRHqi8urnh_IdeNO4405-tyVQT9q1pRwVhPzPy9kmgpU4THp-hXmc75nkGGhdLsIciA_yNZ1mhr5BPvu3xxcxQssuO_-r4xFhPRFX19Xxm0ffzN1DRjJ4v6oLFHBZNtdcfC3E9oOWwPbU8UNOF80qOfr565o8wkawc1sJ4bZ/s6000/Lokendra%20ji%203.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="3147" data-original-width="6000" height="210" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjmhEx55rE4XJO1aOGRdRHqi8urnh_IdeNO4405-tyVQT9q1pRwVhPzPy9kmgpU4THp-hXmc75nkGGhdLsIciA_yNZ1mhr5BPvu3xxcxQssuO_-r4xFhPRFX19Xxm0ffzN1DRjJ4v6oLFHBZNtdcfC3E9oOWwPbU8UNOF80qOfr565o8wkawc1sJ4bZ/w400-h210/Lokendra%20ji%203.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">हम अवश्य ही 1947 में ब्रिटिश उपनिवेश के चंगुल से स्वतंत्र हो गए परंतु औपनिवेशिकता से मुक्ति की ओर हमने अब जाकर अपने कदम बढ़ाए हैं। हम कह सकते हैं कि भारत नये सिरे से अपनी ‘डेस्टिनी’ (नियति) लिख रहा है। यह बात ब्रिटेन के ही सबसे प्रभावशाली समाचार पत्र ‘द गार्जियन’ ने 18 मई, 2014 को अपनी संपादकीय में तब लिखा था, जब राष्ट्रीय विचार को भारत की जनता ने प्रचंड बहुमत के साथ विजयश्री सौंपी थी। गार्जियन ने लिखा था कि अब सही मायने में अंग्रेजों ने भारत छोड़ा है (ब्रिटेन फाइनली लेफ्ट इंडिया)। आम चुनाव के नतीजे आने से पूर्व नरेन्द्र मोदी का विरोध करने वाला ब्रिटिश समाचार पत्र चुनाव परिणाम के बाद लिखता है कि भारत अंग्रेजियत से मुक्त हो गया है। अर्थात् एक युग के बाद भारत में सुराज आया है। भारत अब भारतीय विचार से शासित होगा। गार्जियन का यह आकलन सच साबित हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अब तक के कार्यकाल में हम देखते हैं कि भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की जा रही है। अर्थात् लंबे समय बाद देश में यह अवसर आया है जब सभी क्षेत्रों में भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का अभ्युदय दिख रहा है। प्रत्येक क्षेत्र में सांस्कृतिक पुनर्जागरण दिखायी दे रहा है। वर्तमान में जिस विचार के हाथ में शासन के सूत्र हैं, वह भारतीयता से ओत-प्रोत है। उसके मस्तिष्क में कोई द्वंद्व नहीं, उसे अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है। उसका विश्वास है कि जिस संस्कृति के लोग नित्य प्रार्थना में कहते हों- ‘प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो’, समाज जीवन के विविध क्षेत्र उसी संस्कृति के मूल्यों से समृद्ध होने चाहिए। भारत का स्वदेशी समाज आज धर्म, संस्कृति, सभ्यता, भाषा के विरुद्ध स्थापित पूर्वाग्रह से मुक्त हो रहा है।</p><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/E8DBvclr_0A?si=iu3M9g5yp3jjbFwa" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><span><a name='more'></a></span><p style="text-align: justify;"><span style="white-space: normal;">अमृतकाल में ‘स्व’ से जुड़ने का जब आह्वान हुआ, तो उसका प्रभाव समाज में दिखायी दिया। शासन स्तर पर भी ऐसे निर्णय लिए गए जो ‘स्व’ के अनुकूल थे। यह समझने एवं प्रशंसा की बात है कि वर्तमान शासन व्यवस्था को भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के साथ दिखने में कोई संकोच नहीं अपितु गर्व की अनुभूति ही होती है। एक दौर था जब सत्ताधीश इफ्तार पार्टी में लजीज भोजन का लुत्फ तो उठाते थे लेकिन नवरात्रि के कन्याभोज से परहेज करते थे। अब यह संकोच समाप्त हो गया। अब उपेक्षा किसी की नहीं है, अपितु ‘सबके साथ’ का वातावरण बना है, जो भारतीय मूल्यों के प्रकटीकरण का द्योतक है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर से लेकर भारत के अनेक मान बिन्दु वर्षों से अपने उद्धार के लिए उसी प्रकार प्रतीक्षारत थे, जिस प्रकार शिलाखंड बनी अहिल्या को भगवान श्रीराम की प्रतीक्षा थी। देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही भारत के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश में भी सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना को देखा जा सकता है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में महाकाल लोक में भारतीय संस्कृति के रंगों की छंटा दिखायी देती है। निकट भविष्य में ओरछा में राजाराम कॉरिडोर एवं वनवासी राम लोक, जाम सावली में हनुमान धाम, सलकनपुर में देवी लोक, दतिया में माई पीताबंरा धाम और ओंकारेश्वर में एकात्म धाम सांस्कृतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के केंद्र बनेंगे। मध्यप्रदेश की धरती ने ही अनुसूचित जनजाति समाज के विरुद्ध चलनेवाले षड्यंत्र को विफल करके भारतीय समाज को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ की संकल्पना दी। होशंगाबाद ‘नर्मदापुर’ और इस्लाम नगर ‘जगदीशपुर’ के रूप में अपनी मूल पहचान को प्राप्त हो गया। ऐसे अनेक अभूतपूर्व निर्णय हमें दिखायी देते हैं, जिनकी कल्पना दस वर्ष पूर्व तक नहीं थी। </span></p><p style="text-align: justify;">ऐसा नहीं है कि यह सांस्कृतिक जागरण निर्विरोध हो रहा है। ऋषियों के यज्ञों में जिस प्रकार आसुरी शक्तियां विघ्न पैदा करती थीं, वैसे ही भारत के सांस्कृतिक जागरण में अभारतीय ताकतें, जिन्हें भारत विरोधी ताकतें भी कहा जाता है, यथासंभव विघ्न पैदा करने का प्रयास कर रही हैं। परंतु अच्छी बात यह है कि भारत की सज्जनशक्ति देशहित में अपनी भूमिका को पहचान कर, अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है। यही कारण है कि अभारतीय ताकतें पूरा जोर लगाने के बाद भी उभरती सांस्कृतिक पहचानों को धूमिल नहीं कर पा रही हैं। </p><p style="text-align: justify;">यह जो सांस्कृतिक पुनर्जागरण हो रहा है, यह देश-प्रदेश की सर्वांगीण उन्नति का आधार भी बनेगा। भारत की एकता एवं अखंडता का सूत्र भी हमारी संस्कृति है। प्राचीन इतिहास के पृष्ठ भी जब हम उलटकर देखते हैं, तब हमें ध्यान आता है कि आचार्य चाणक्य से लेकर आचार्य शंकर तक ने भारत को शक्ति सम्पन्न एवं एकजुट करने के लिए संस्कृति का ही आधार लिया। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने भी अपने समय में देश को जोड़ने और एकात्म स्थापित करने के लिए सांस्कृतिक पक्ष पर ही काम किया। ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध देशभर में चल रहे आंदोलनों का प्राण भी संस्कृति थी। भारत भूमि के साथ उत्तर से दक्षिण एवं पूर्व से पश्चिम तक जो हमारा नाता है, उसका भी आधार संस्कृति है। दुनिया में भारत की संस्कृति ने ही सबसे पहले कहा था कि सबके मूल में एक ही तत्व है। जड़-चेतन में एक ही ब्रह्म है। इसलिए ही भारत में बाहरी तौर पर तो विविधता दिखाई देती है, किंतु अंदर से सब एक-दूसरे से जुड़े हैं। क्योंकि, सब मानते हैं कि सबमें एक ही तत्व है।</p><p style="text-align: justify;">हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत ने विश्व में जो सम्मान प्राप्त किया है, वह आर्थिक प्रगति से कहीं अधिक अपनी सांस्कृतिक विरासत एवं सांस्कृतिक जीवनमूल्यों के नाते किया है। यदि भारत अपनी संस्कृति को ही संभालकर नहीं रख सका, तब उसकी पहचान क्या रह जाएगी? विश्व में भारत राष्ट्र की पहचान उसकी संस्कृति से रही है। संस्कृति भारत की आत्मा है। भारत की एकता का मुख्य आधार भी संस्कृति ही है। भारत की जो आत्मा है, जिसे पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने चिति कहा है, वह इस देश की संस्कृति है। गांधीवादी चिंतक धर्मपाल ने भी अपनी पुस्तक ‘भारतीय चित्त, मानस और काल’ में भारत के सांस्कृतिक पक्ष को रेखांकित करते हुए उसके मूल को समझाने का प्रयास किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि जब तक हम भारत के चित्त को नहीं समझेंगे, उसे जानेंगे नहीं और उससे जुड़ेंगे नहीं, तब तक हम भारत को ‘भारत’ नहीं बना सकते। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य कहते हैं कि भारत को समझने के लिए चार बिन्दुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। सबसे पहले भारत को मानो, फिर भारत को जानो, उसके बाद भारत के बनो और सबसे आखिर में भारत को बनाओ। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">अर्चना प्रकाशन, भोपाल की स्मारिका ‘अमृतकाल में सांस्कृतिक पुनर्जागरण’ का विमोचन। स्मारिका के संपादन में मिले सबके सहयोग के लिए हृदय से आभारी हूं। <a href="https://twitter.com/vsk_mp?ref_src=twsrc%5Etfw">@vsk_mp</a> <a href="https://t.co/SA2m7AFR3k">pic.twitter.com/SA2m7AFR3k</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1716147536740880708?ref_src=twsrc%5Etfw">October 22, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">अर्चना प्रकाशन, भोपाल को साधुवाद की उसके संपादकीय मंडल ने अपनी स्मारिका को ‘अमृतकाल में सांस्कृतिक अभ्युदय’ पर केंद्रित किया है और हृदय से धन्यवाद कि इसके संपादन की महती जिम्मेदारी के निर्वहन के लिए मुझ अकिंचन पर विश्वास जताया। यह कार्य पूरा नहीं हो पाता यदि अर्चना प्रकाशन के संपादकीय मंडल एवं देश के प्रतिष्ठित लेखकों का यथोचित सहयोग प्राप्त नहीं हुआ होता। लेखकों के साथ ही इसके आकल्पन में अपना योगदान देनेवाले बंधुओं के प्रति सदैव कृतज्ञ रहूँगा। विश्वास है कि अर्चना प्रकाशन की यह स्मारिका समाज का प्रबोधन करने में सफल होगी। देश की प्रगति की आकांक्षा रखनेवाले प्रबुद्ध वर्ग में चलनेवाले विमर्श को गति देने का काम करेगी। हमने बड़े जतन से यह स्मारिका तैयार की है, अब प्रबुद्ध समाज के सामने मूल्यांकन/समीक्षा एवं सुझाव हेतु प्रस्तुत है…. </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3K-tvr5zkvEdkKEeJI19qxYRaA1O3HDz5DFeFBGJPtgG_WZeaYVXsA73DidECjtizJ8aEHSO-zj-VNnzCRogdKF0ZqXBgbCe27QkCWHka37_F3J-xU9u6JQs-G46ykS0s1leHNnE4IBDB_nVwQWikah8YMzNRJvlZYp8OOUbOx1K4pzDhazbXAzir/s1818/1%20Cover%20Page-Amritkal%20me%20sanskritik%20punarjagran.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1818" data-original-width="1533" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3K-tvr5zkvEdkKEeJI19qxYRaA1O3HDz5DFeFBGJPtgG_WZeaYVXsA73DidECjtizJ8aEHSO-zj-VNnzCRogdKF0ZqXBgbCe27QkCWHka37_F3J-xU9u6JQs-G46ykS0s1leHNnE4IBDB_nVwQWikah8YMzNRJvlZYp8OOUbOx1K4pzDhazbXAzir/w541-h640/1%20Cover%20Page-Amritkal%20me%20sanskritik%20punarjagran.jpg" width="541" /></a></div><div><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a 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href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiylvOawHzKt0qDxYxaRvgTHDicwWv0sfy04Epw5vyUhHABNLwMXFTlCF_ZqHXmYGDYbxJynipcdRuxpGR87fehuQQiUmXMCoIvczRE3VJ57dXdCYNsCs4xxENd37CiUAiVLTEnLY8SM5vK-6jJpkT5CGoeMyx0jDhqbPKjVwPwXbnC1d4IRdP_7Axu/s1928/Apni%20Niyati%20ki%20or%20Badhta%20Bharat-Archna%20Prakashan%20Smarika%202023-Pg%201.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1928" data-original-width="1487" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiylvOawHzKt0qDxYxaRvgTHDicwWv0sfy04Epw5vyUhHABNLwMXFTlCF_ZqHXmYGDYbxJynipcdRuxpGR87fehuQQiUmXMCoIvczRE3VJ57dXdCYNsCs4xxENd37CiUAiVLTEnLY8SM5vK-6jJpkT5CGoeMyx0jDhqbPKjVwPwXbnC1d4IRdP_7Axu/w494-h640/Apni%20Niyati%20ki%20or%20Badhta%20Bharat-Archna%20Prakashan%20Smarika%202023-Pg%201.jpg" width="494" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4Eg0D67JZNXlo9ZnmGbu37PBOBqfU9zJxuvdR6gy4LylCuNkm8HzrXdqqutCdiHG3REUodpu_J_b9nk5FV58ZKrcjuc3lkniiPGMyEKRsj63J3p6_J_DCm5Bmdypem0FHZ4Oopm4O0jrtk1zWT7QjAvQIzNYZwgX7AMLQRoEto6orVcwwNhDVD2Cf/s1917/10-Edit.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1917" data-original-width="1397" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj4Eg0D67JZNXlo9ZnmGbu37PBOBqfU9zJxuvdR6gy4LylCuNkm8HzrXdqqutCdiHG3REUodpu_J_b9nk5FV58ZKrcjuc3lkniiPGMyEKRsj63J3p6_J_DCm5Bmdypem0FHZ4Oopm4O0jrtk1zWT7QjAvQIzNYZwgX7AMLQRoEto6orVcwwNhDVD2Cf/w466-h640/10-Edit.jpg" width="466" /></a></div>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-16648983295838184472023-11-01T07:28:00.010+05:302023-11-23T15:23:35.211+05:30दिल की बात कहने में सफल रही ‘सुन रही हो न तुम…’<p style="text-align: justify;"></p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><img border="0" height="300" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEih9-V9X7T3_HBOa1aoij-4GCys0ptSo81AU9_m9Kgx6Guw9hSLxTXol2WhWtM2C7-Lu-FMS3RRfQnap78C488rUJ-I4wsa9XSk3X1v96ZZnDdduN9HaVh_NVbmmqIYov91wBvWUuguAWs9VRZlsZl-Az5qx459hPMb0-sGqVnkpZH59XuxTsj7zQWl=w400-h300" style="margin-left: auto; margin-right: auto;" width="400" /></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">सुदर्शन व्यास ने लेखक एवं समीक्षक लोकेन्द्र सिंह को भेंट की अपना नया काव्य संग्रह 'सुन रही हो न तुम...'</td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;">कविता के संबंध में कहा जाता है कि यह कवि के हृदय से सहज ही बहकर निकलती है और जहाँ इसे पहुँचना चाहिए, वहाँ का रास्ता भी खुद ही बना लेती है। हृदय से हृदय का संवाद है- कविता। युवा कवि सुदर्शन व्यास के हृदय से भी कुछ कविताएं ऐसे ही अनायास बहकर निकली हैं, जिनका संग्रह ‘सुन रही हो न तुम…’ के रूप में हमारे सम्मुख है। इस संग्रह की किसी भी कविता को आप उठा लीजिए, आपको अनुभूति हो जाएगी कि कवि के शब्दों में जो नमी है, कोमल अहसास है, जो आग्रह है, विश्वास है; वह सब अनायास है। उनकी भावनाओं में कुछ भी बनावटी नहीं है। एक भी पंक्ति प्रयत्नपूर्वक नहीं लिखी है। सभी शब्द, वाक्य, उपमाएं, संज्ञाएं कच्चे-पक्के युवा प्रेम की तरह अल्हड़ और बेफिक्र हैं।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">काव्य संग्रह की प्रतिनिधि कविता ‘सुन रही हो न तुम’ को ही लीजिए, जिसमें प्रेमी बिछोह को एक सुखद अहसास देना चाहता है। वह आग्रहपूर्वक अपनी प्रेमिका से कह रहा है- “सुनो न… जिस हृदय ने तुम्हें प्रेम किया हो न, उसका कभी उपहास मत करना”। इसी कविता में अपने मनोभाव प्रेयसी के समक्ष समर्पित करने के बाद कवि कहता है- “जब कभी भी उससे अलग होना हो, अथाह स्नेह अपने मन में समेटकर होना”। कितना सुंदर भावपूर्ण निवेदन है। आज की पीढ़ी के लिए जरूरी सीख है यह कविता, जिनके लिए प्रेम और बिछोह ‘हँसी का खेल’ हो गया है। इसी प्रकार की सीख उनकी और कविताओं में भी दिखायी पड़ती है। इसी शीर्षक से एक और कविता में सुदर्शन कहते हैं- “सुनो न… मैं प्रेम करता हूँ तुमसे और ऐसा नहीं है कि जो तुम नहीं मिलोगे तो मैं प्रेम करना छोड़ दूंगा”। यही है प्रेम की अभिव्यक्ति, जिसमें पाने की अपेक्षा और खोने का डर नहीं। बस प्रेम में होने का आनंद है। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">हरिभूमि में प्रकाशित युवा कवि एवं मित्र <a href="https://twitter.com/vyas_sudarshan?ref_src=twsrc%5Etfw">@vyas_sudarshan</a> के नये काव्य संग्रह 'सुन रही हो न तुम...' की चर्चा <a href="https://t.co/RDud27qwcD">pic.twitter.com/RDud27qwcD</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1718966842201682219?ref_src=twsrc%5Etfw">October 30, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">कविताएं प्रेम पर केंद्रित हैं, नि:संदेह ‘कहे-अनकहे प्रेम’ को समर्पित भी हैं, लेकिन सामाजिक जीवन की दिशा का बोध भी उनमें दिखायी पड़ता है। उनकी कविताओं का प्रेम फिल्म ‘कबीर सिंह’ के नायक के प्रेम की तरह अमर्यादित नहीं है। उनकी कविता का प्रेम जीवन सिखाता है, ईश्वर की कृपा से प्राप्त जीवन को अंधकार में धकेलने के लिए प्रेरित नहीं करता। सबसे सुंदर बात, जो सुदर्शन की कविताओं में दिखायी पड़ती है, वह है- एक-दूसरे का सम्मान। इससे पहले भी सुदर्शन का एक काव्य संग्रह ‘रिश्तों की बूंदें’ प्रकाशित हो चुका है। उस संग्रह को भी साहित्य जगत से खूब सराहना मिली थी। उनकी कविताओं में आप रिश्तों की गर्माहट को सहज अनुभव कर सकते हो। ‘सुन रही हो न तुम…’ शीर्षक से ऐसा लगता है कि एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को अपने मन की सुनाना चाहता है परंतु सत्य यह है कि कवि ने स्त्री के हृदय की विवशता, अपेक्षा और आग्रह की ओर समाज का ध्यान खींचने का प्रयास किया है। एक कविता के आते आर्तनाद को थोड़ा सुनने की मानसिकता से सुना जाए, तो वह हमारी मानसिकता के कुरूप चेहरे को दिखती है। वह कविता ‘बड़े उम्र की कुंआरी लड़की’ के प्रति हमारे नजरिए को बेपर्दा कर देती है। सुदर्शन की कविताएं हमें विवश करती हैं कि हम स्वयं को स्त्री के स्थान पर रखें और फिर दुनिया को देखें, प्रेम को देखें, खुद को भी देखें।</p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=1r0UFd1km_k" target="_blank">देखें: सुदर्शन व्यास के काव्य संग्रह 'सुन रही हो न तुम...' का वीडियो ब्लॉग</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/1r0UFd1km_k?si=B9u5fZZQkL1SWszw" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">सुदर्शन की कविताओं से होकर जब हम गुजरते हैं तो आहिस्ता-आहिस्ता यह बात ध्यान आती चली जाती है कि उनकी कविताएं पहाड़ से निकली किसी नदी की तरह कुछ दूर तक सरपट भागती दिखती हैं लेकिन आगे उनके प्रवाह में धैर्य है और गंभीरता है। एक दार्शनिक की भाँति वे अपनी एक कविता में ‘प्रेम की उम्र’ बता रहे होते हैं- “प्रेम की उम्र इतनी होनी चाहिए कि जब गीली रेत पर, खींची लकीर की तरह, चेहरे पर झुर्रियां उभर आएं”। मेरे मत से यहाँ उनका यह कहने का अभिप्राय हो सकता है कि प्रेम के लिए परिपक्वता चाहिए। जब आपके पास वरिष्ठों-सा अनुभव हो, तब आप प्रेम कर सकते हैं। सही भी है, हम देखते भी है कि अपरिपक्व युवा जब प्रेम करते हैं, तब कई बार उसके कितने भयावह परिणाम हमारे सामने आते हैं। इसी कविता में एक बार फिर कवि अपनी प्रेयसी को कहता है कि हमारे प्रेम की उम्र आखिरी सफर तक होनी चाहिए। सुदर्शन की प्रेम कविताओं की इस पोटली में ‘इंतजार’ भी है, ‘ख्याल प्रेम का’ और ‘अनकही ख्वाहिश’ भी है। शब्द-शब्द ऐसा प्रतीत होता है कि कवि ने अपने इस संग्रह में खुलकर ‘बात दिल की’ की है। ‘मन की बात’ कही है। अपनी कविताओं से वे बार-बार ‘प्रेम का संदेश’ देने का जतन कर रहे हैं। कह रहे हैं कि ‘जिन्दगी और तुम्हारा प्रेम’ हमारा एक ‘पवित्र रिश्ता’ है। आखिर में कवि सुदर्शन ‘बात उन दिनों की’ कहते हुए हर किसी को उसके जीवन के प्रेम और उसके कोमल अहसास की ‘यादें’ याद दिला ही देते हैं। विश्वास है कि सुदर्शन का यह काव्य संग्रह पाठकों का प्रेम प्राप्त करेगा। </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">काव्य संग्रह : सुन रही हो न तुम…</p><p style="text-align: justify;">कवि : सुदर्शन व्यास</p><p style="text-align: justify;">कविताएं : 54</p><p style="text-align: justify;">पृष्ठ : 96</p><p style="text-align: justify;">मूल्य : ₹ 200/- </p><p style="text-align: justify;">प्रकाशक : लोक प्रकाशन,</p><p style="text-align: justify;">3, जूनियर एमआईजी, अंकुर कॉलोनी,</p><p style="text-align: justify;">शिवाजी नगर, भोपाल, मध्यप्रदेश- 462016</p><p></p>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-63091106728456011422023-10-26T07:30:00.002+05:302023-11-03T11:05:26.639+05:30विघटनकार शक्तियों को विफल करने का मंत्र है- भारत माता की भक्ति<h3 style="text-align: center;"><span style="color: red;"> भारत दे सकता है विश्व को सुख-शांतिमय नवजीवन</span></h3><div><span style="color: red;"><br /></span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMTiobBjVHxVk4mMxJSWjTUKOOfJ0spuDZSYIHaqb8Vl1-dzHMs1XWt_LRF9vC8EEugdBIH5xcmdpRrq4lvmk7w0qjphvD8BX1ynF7hPBXu-IaHFsK2bMmKXuZx1ECYerEEJ40QDmi6AmMltr0XcVHKctXh8TVbIuZ4zzMPkwZdYfWhqvf4ZUlOJ3d/s1280/Sarsanghchalak%20Mohan%20Bhagwat.jfif" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="853" data-original-width="1280" height="266" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMTiobBjVHxVk4mMxJSWjTUKOOfJ0spuDZSYIHaqb8Vl1-dzHMs1XWt_LRF9vC8EEugdBIH5xcmdpRrq4lvmk7w0qjphvD8BX1ynF7hPBXu-IaHFsK2bMmKXuZx1ECYerEEJ40QDmi6AmMltr0XcVHKctXh8TVbIuZ4zzMPkwZdYfWhqvf4ZUlOJ3d/w400-h266/Sarsanghchalak%20Mohan%20Bhagwat.jfif" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;"><b>राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ </b>की परंपरा में विजयादशमी के उत्सव पर सरसंघचालक के उद्बोधन का विशेष महत्व है। विजयादशमी हिन्दुओं का बड़ा सामाजिक उत्सव होने के साथ ही संघ की स्थापना का उत्सव भी है। इस उत्सव में सरसंघचालक जी का जो उद्बोधन होता है, उसमें स्वयंसेवकों के लिए पाथेय रहता है। इसके साथ ही उनके भाषण में समसामयिक मुद्दों को लेकर समाज की सज्जन शक्ति के लिए भी संदेश रहता है। चूँकि आज संघ पर सबकी निगाहें रहती हैं और विभिन्न विषयों को लेकर संघ के दृष्टिकोण को जानने की भी अपेक्षा रहती है, इसलिए भी विजयादशमी पर होनेवाले सरसंघचालक के उद्बोधन को लेकर सबको विशेष उत्सुकता रहती है। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने अपने उद्बोधन में सब प्रकार की बातों को ध्यान रखा। उन सब मुद्दों पर संघ का दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिन पर देशभर में चर्चाएं चल रही हैं। विजय का पर्व है, इसलिए देशवासियों के मन में उत्साह का संचार हो इसलिए उन्होंने अपने उद्बोधन की शुरुआत भारत की उपलब्धियों के साथ ही की। वीरांगना रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती, छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के 350वें वर्ष, छत्रपति शाहू जी महाराज की 150वीं जयंती और संत श्रीमद् रामलिंग वल्ललार की 200वीं जयंती का उल्लेख करके उन्होंने यही संदेश दिया है कि अमृतकाल में जब हम भारत के ‘स्व’ के जागरण का उपक्रम कर रहे हैं, तब हमें ऐसी महान विभूतियों के जीवन से अवश्य ही प्रेरणा लेनी चाहिए। एक सामर्थ्यशाली राष्ट्र के निर्माण के लिए व्यवहार से लेकर व्यवसाय में और व्यक्ति से लेकर राष्ट्र की नीति में, ‘स्व’ दिखना चाहिए।</p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="en">RSS Sarsanghchalak Dr. Bhagwat Said, This was also the 350th year of coronation of Chattrapati Shri Shivaji Maharj, who showed us the path of liberation from 350 years of foreign subjugation, by establishing the Hindavi Swaraj based on justice and public welfare. <a href="https://twitter.com/hashtag/RSSnagpur2023?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#RSSnagpur2023</a> <a href="https://t.co/7xkSuEqskZ">pic.twitter.com/7xkSuEqskZ</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1716666002988282225?ref_src=twsrc%5Etfw">October 24, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;"><span style="white-space: normal;"><span></span></span></p><a name='more'></a><span style="white-space: normal;">देश एक करवट ले रहा है। सांस्कृतिक पुनर्जागरण का एक वातावरण भारत में दिखायी देने लगा है। अमृतकाल को अवसर मानकर एक बार फिर भारत अपने ‘स्व’ की ओर बढ़ रहा है। विश्व पटल पर भी अब भारत अपने ‘स्व’ के साथ अभिव्यक्त हो रहा है। इसके प्रमाण स्वरूप सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने ‘जी-20 समूह’ पर भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की छाप को उल्लेखित किया। यह तो स्पष्ट ही दिखायी देता है कि भारत की अध्यक्षता में विश्व के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों के समूह का दृष्टिकोण ही बदल गया। यह समूह अब तक अर्थ को केंद्र में रखकर दुनिया का विचार करता था, लेकिन अब इसका केंद्र बिन्दु मानव हो गया है। नि:संदेह, सरसंघचालक जी ने ठीक ही कहा कि “भारत के विशिष्ट विचार एवं दृष्टि के कारण संपूर्ण विश्व के चिंतन में वसुधैव कुटुम्बकम् की दिशा जुड़ गई। जी-20 का अर्थकेन्द्रित विचार अब मानव केन्द्रित हो गया”। जी-20 समूह की अध्यक्षता की ऐतिहासिक घटना का उल्लेख उन्होंने संभवत: इसलिए भी किया होगा, ताकि हम भारत के बढ़ते सामर्थ्य एवं गौरव की अनुभूति करानेवाली इस घटना को भूल न जाएं।</span><p></p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">आगामी वर्ष राष्ट्रीय पुरुषार्थ की शाश्वत प्रेरणा बनी विभूतियों का स्मरण वर्ष है। – डॉ. मोहन भागवत, सरसंघचालक, आरएसएस<br /> <a href="https://twitter.com/hashtag/RSSnagpur2023?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#RSSnagpur2023</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/VijayParv2080?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#VijayParv2080</a> <a href="https://t.co/IKPcZsaBPJ">pic.twitter.com/IKPcZsaBPJ</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1716682351802212595?ref_src=twsrc%5Etfw">October 24, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><h3 style="text-align: justify;"><span style="color: red;">सबकुछ स्पष्ट कर देंगे ये प्रश्न : </span></h3><p style="text-align: justify;">देश की प्रगति को बाधित करने के प्रयत्नों में लगी शक्तियों की ओर भी समाज की सज्जनशक्ति का ध्यान आकर्षित कराने का प्रयास सरसंघचालक जी ने किया। उनके द्वारा उठाए गए ये प्रश्न विचारणीय हैं कि लगभग एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक यह आपसी फूट की आग कैसे लग गई? क्या हिंसा करने वाले लोगों में सीमापार के अतिवादी भी थे? अपने अस्तित्व एवं भविष्य के प्रति आशंकित मणिपुरी मैतेयी समाज और कुकी समाज के इस आपसी संघर्ष को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास क्यों और किसके द्वारा हुआ? वर्षों से वहाँ पर सबकी समदृष्टि से सेवा करने में लगे संघ जैसे संगठन को बिना कारण इसमें घसीटने का प्रयास करने में किसका निहित स्वार्थ है? इस सीमा क्षेत्र में नागाभूमि व मिजोरम के बीच स्थित मणिपुर में ऐसी अशांति व अस्थिरता का लाभ प्राप्त करने में किन विदेशी सत्ताओं को रुचि हो सकती है? क्या इन घटनाओं का कारण परंपराओं में दक्षिण पूर्व एशिया की भू- राजनीति की भी कोई भूमिका है? देश में मजबूत सरकार के होते हुए भी यह हिंसा किन के बलबूते इतने दिन बेरोकटोक चलती रही है? गत 9 वर्षों से चल रही शान्ति की स्थिति को बरकरार रखना चाहने वाली राज्य सरकार होकर भी यह हिंसा क्यों भड़की और चलती रही? आज की स्थिति में जब संघर्षरत दोनों पक्षों के लोग शांति चाह रहे हैं, उस दिशा में कोई सकारात्मक कदम उठता हुआ दिखते ही कोई हादसा करवा कर, फिर से विद्वेष एवं हिंसा भड़काने वाली ताकतें कौन सी हैं? </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiJ3SEZFYXe0sxKy-2Gsmszr2mwHrVyHU76p3LEhj23PsGym3NNjsTNJAPW1fjxpHMygVrZMNbCNGmnPhHov7SlGoZrG8Q8rTkQfY9ma8LnuTcnBOBLNqDc53eZw3S7_Eg52vq-B2ELKc6MJ0kjTcZIhg005CopZlfeyrLdjID8nhipyJJvihx5rtDA/s1080/Manipur%20par%20rss%20ka%20vichar.jfif" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1080" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiJ3SEZFYXe0sxKy-2Gsmszr2mwHrVyHU76p3LEhj23PsGym3NNjsTNJAPW1fjxpHMygVrZMNbCNGmnPhHov7SlGoZrG8Q8rTkQfY9ma8LnuTcnBOBLNqDc53eZw3S7_Eg52vq-B2ELKc6MJ0kjTcZIhg005CopZlfeyrLdjID8nhipyJJvihx5rtDA/w400-h400/Manipur%20par%20rss%20ka%20vichar.jfif" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;"><span style="white-space: normal;">ये प्रश्न ऐसे हैं, जो भारत के प्रति भक्ति का भाव रखनेवाले प्रत्येक भारतीय नागरिक के मन में पहले दिन से उठ रहे हैं। वह भी इन प्रश्नों के उत्तर खोज रहा है। वह उत्तर तक पहुँच भी रहा है। उल्लेखनीय है कि मणिपुर में जब हिंसा के कारण सामान्य जन-जीवन अस्त-व्यस्त है, तब वहाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता जमीन पर उतरकर, बिना किसी भेदभाव के, दोनों ही वर्गों के बीच राहतकार्य संचालित कर रहे हैं। इसलिए संघ मणिपुर की हिंसा का सच अधिक नजदीक से देख पा रहा है। स्मरण रखें कि देश में जिस प्रकार का हिन्दुत्व का वातावरण बना है और राष्ट्रीय विचार की सरकार सत्ता के केंद्र में है, ऐसे में समाजकंटक ताकतों के फलने-फूलने के अवसर समाप्त हो गए हैं। यह भी कि पिछले कुछ वर्षों में सभी क्षेत्रों में भारत जिस तरह मजबूती से बढ़ रहा है, वह भी भारत विरोधी ताकतों को पच नहीं रहा है। ये अभारतीय ताकतें किसी भी कीमत पर हिन्दुत्व और राष्ट्रीय विचार को कमजोर करके भारत की प्रगति बाधित करना चाहती हैं। इसलिए पंजाब से लेकर मणिपुर और तमिलनाडु से लेकर जम्मू-कश्मीर तक, ये ताकतें समाज में अराजक वातावरण बनाने की साजिशें रच रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में हुए अराजक आंदोलनों के पीछे भी इन ताकतों की भूमिका रही है। </span></p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">समाज की एकता के लिए हमें राजनीति से अलग होकर समाज का विचार करते हुए चलना पड़ेगा- डॉ. मोहन भागवत, सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ<a href="https://twitter.com/hashtag/RSSnagpur2023?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#RSSnagpur2023</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/VijayParv2080?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#VijayParv2080</a> <a href="https://t.co/EV29eU0FXO">pic.twitter.com/EV29eU0FXO</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1716711876384678376?ref_src=twsrc%5Etfw">October 24, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><h3 style="text-align: justify;"><span style="color: red;">समाज की एकता के लिए हमें राजनीति से अलग होकर समाज का विचार करते हुए चलना पड़ेगा :</span></h3><p style="text-align: justify;">दुर्भाग्य से हमारी राजनीति में भी कुछ दल ऐसे भी हैं, जिनके लिए वोट की राजनीति ही सबकुछ है। चूँकि लोकतंत्र में जनता का समर्थन चाहिए होता है, इसलिए ये राजनीतिक दल समाज को टुकड़ों-टुकड़ों में बाँटकर अपना पक्ष मजबूत करने के प्रयत्न कर रहे हैं। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने इस प्रकार की राजनीति से भी सतर्क रहने के संकेत किए हैं। इन सब प्रयत्नों को विफल करने के लिए उन्होंने एक मंत्र दिया है- “यह भारत माता है, जो हम सबको जोड़ती है”। उन्होंने यह भी कहा कि समाज को एकजुट करने के लिए अनेक स्तरों पर काम करना होगा। समाज की सज्जनशक्ति को अपना बहुत कुछ दांव पर लगाना होगा। दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति के कारण उत्पन्न परस्पर अविश्वास की खाई को पाटने में समाज के प्रबुद्ध नेतृत्व को एक विशेष भूमिका निभानी होगी। हमें सदैव स्मरण करते रहना चाहिए- “हमारे देश में विद्यमान सभी भाषा, प्रान्त, पंथ, संप्रदाय, जाति, उपजाति इत्यादि विविधताओं को एक सूत्र में बाँधकर एक राष्ट्र के रूप में खड़ा करने वाले तीन तत्व (मातृभूमि की भक्ति, पूर्वज गौरव एवं सबकी समान संस्कृति) हमारी एकता का अक्षुण्ण सूत्र हैं”।</p><h3 style="text-align: justify;"><span style="color: red;">समाज को अराजकता में धकेलता है सांस्कृतिक मार्क्सवाद और वोकिज्म :</span></h3><p style="text-align: justify;">सरसंघचालक जी ने ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद और वोकिज्म’ की ओर भी ध्यान आकर्षित किया। दरअसल, अपने हिंसक एवं तानाशाही स्वरूप के कारण दुनिया में असफल और अस्वीकार हो चुका कम्युनिज्म का विचार अब ‘सांस्कृतिक मार्क्सवाद और वोकिज्म’ के रूप में अपने पैर पसारने की कोशिश कर रहा है। ऐसा लगता है कि वोक यानी अव्यवस्थाओं एवं शोषण के प्रति जगे हुए लोग होते हैं। परंतु वास्तविकता यह है कि ये लोग वोकिज्म के नाम पर अराजकता एवं अविश्वास का वातावरण बनाना चाहते हैं। प्रचार माध्यमों एवं अकादमियों में घुसपैठ करके देश की शिक्षा, संस्कार, राजनीति एवं सामाजिक वातावरण में भ्रम पैदा करते हैं। जब समाज में आपसी विवाद बढ़ने लगते हैं और अराजकता बढ़ जाती है, तब ये विध्वंसकारी ताकतें उस समाज को अपना शिकार बना लेती हैं। सरसंघचालक जी ने उचित ही ध्यान आकर्षित किया कि जिन्होंने 1920 में ही मार्क्स को भुला दिया और जिनका संस्कृति और संस्कार से कोई वास्ता ही नहीं, वे सांस्कृतिक मार्क्सवाद के नाम पर क्या ही करेंगे? इन्हें सुव्यवस्था, मांगल्य, संस्कार और संयम से विरोध है। आज समाज को इन ताकतों से भी सावधान रहने की आवश्यकता है। इन सब प्रकार की साजिशों का एक ही उत्तर है- ‘समाज की एकता’। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">भारतमाता की भक्ति हम सबको जोड़ती है- डॉ. मोहन भागवत जी, सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ<a href="https://twitter.com/hashtag/RSSnagpur2023?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#RSSnagpur2023</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/VijayParv2080?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#VijayParv2080</a> <a href="https://t.co/NpryHw4D38">pic.twitter.com/NpryHw4D38</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1716699358291431486?ref_src=twsrc%5Etfw">October 24, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">उनके पाथेय का सार यह है, जिसका सबको अनुसरण करना है- समाज की एकता, सजगता एवं सभी दिशा में निस्वार्थ उद्यम, जनहितकारी शासन एवं जनोन्मुख प्रशासन ‘स्व’ के अधिष्ठान पर खड़े होकर परस्पर सहयोगपूर्वक प्रयासरत रहते हैं, तभी राष्ट्र बल वैभव सम्पन्न बनता है। बल और वैभव से सम्पन्न राष्ट्र के पास जब हमारी सनातन संस्कृति जैसी सबको अपना कुटुंब मानने वाली, तमस से प्रकाश की ओर ले जाने वाली, असत् से सत् की ओर बढ़ाने वाली तथा मर्त्य जीवन से सार्थकता के अमृत जीवन की ओर ले जाने वाली संस्कृति होती है, तब वह राष्ट्र, विश्व का खोया हुआ संतुलन वापस लाते हुए विश्व को सुख-शांतिमय नवजीवन का वरदान प्रदान करता है। वर्तमान समय में हमारे अमर राष्ट्र के नवोत्थान का यही प्रयोजन है।</p><h3 style="text-align: justify;"><span style="color: red;">सुप्रसिद्ध संगीतकार एवं गायक शंकर महादेवन ने आरएसएस की दिल खोलकर प्रशंसा की :</span></h3><p style="text-align: justify;">नागपुर में 24 अक्टूबर, 2023 को आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजयादशमी उत्सव के कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध संगीतकार एवं गायक शंकर महादेवन मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस अवसर पर उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों के संबंध में बहुत महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा- "अगर हम कहेंगे कि हमारा देश एक गीत है तो संघ के स्वयंसेवक उसके पीछे की सरगम हैं, जो गीत को जान देते हैं"। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की संस्कृति और परंपरा को बचाए रखने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बहुत बड़ा योगदान हैं।</p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विजयादशमी के प्रतिष्ठित आयोजन में सुप्रसिद्ध संगीतकार एवं गायक शंकर महादेवन जी ने “मैं रहूं न रहूं, भारत ये रहना चाहिए...” गीत गाकर दिया संदेश। <a href="https://twitter.com/hashtag/VijayParv2080?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#VijayParv2080</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/RSSnagpur2023?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#RSSnagpur2023</a> <a href="https://t.co/DVoLRVibJ8">pic.twitter.com/DVoLRVibJ8</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1716738849882403256?ref_src=twsrc%5Etfw">October 24, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-90513324556028123692023-10-25T22:47:00.003+05:302023-11-03T11:20:10.879+05:30प्रधानमंत्री मोदी ने दिलाए भारत के नवनिर्माण के 10 संकल्प<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTocYIKG_RMh_R3Nst8pIeDvVgyF5rDrgBYNVWzT4FD8hyphenhyphena1iqHVpkVTP6xfUiK3o-I8zXQVYeWKqD6ZoJPqaCH1EskQVlOF5tNdBoJAlHvIENHjN0kf8eX4DXp5K1U6__lNbjNBhT3hbbGut8lJ_W0Sta0yhbj7nRqPEgzOjpN1xwSCWUmYtgQPzJ/s720/F9QVzwEXUAAy0bv.jfif" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="437" data-original-width="720" height="243" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhTocYIKG_RMh_R3Nst8pIeDvVgyF5rDrgBYNVWzT4FD8hyphenhyphena1iqHVpkVTP6xfUiK3o-I8zXQVYeWKqD6ZoJPqaCH1EskQVlOF5tNdBoJAlHvIENHjN0kf8eX4DXp5K1U6__lNbjNBhT3hbbGut8lJ_W0Sta0yhbj7nRqPEgzOjpN1xwSCWUmYtgQPzJ/w400-h243/F9QVzwEXUAAy0bv.jfif" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विजयादशमी के उत्सव को सामाजिक सरोकारों के साथ जोड़ते हुए देशवासियों को 10 संकल्प दिलाए हैं। इन संकल्पों के पालन में व्यक्तिगत लाभ भी हैं और राष्ट्र निर्माण में एक नागरिक के नाते योगदान भी है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि हम सब अपने जीवन में योग, खेल और स्वास्थ्य से जुड़ी गतिविधियों को प्राथमिकता दें, मोटे अनाज को अपनाएं और अपने आसपास स्वच्छता को बढ़ावा दें। ये संकल्प ऐसे हैं, जिसके अनुपालन में नागरिकों को अतिरिक्त प्रयास नहीं करने हैं परंतु यदि इन संकल्पों को जीवन में उतार लिया जाए तो उसके सुखद परिणाम प्राप्त होंगे। एक बात कहनी होगी कि प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीति को सामाजिक सरोकारों की ओर मोड़ दिया है। शुद्ध राजनीतिक चर्चाओं से इतर वे अकसर पर्यावरण, गरीबी कल्याण, जल संरक्षण, भाषा संवर्धन, स्वदेशी, स्वरोजगार और नागरिक स्वास्थ्य जैसे शुद्ध सामाजिक विषयों पर प्रबोधन करते नजर आते हैं।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">विजयादशमी के पावन पर्व पर उन्होंने श्रद्धावान हिन्दू समाज को संकल्प दिलाकर जल, जमीन, जंगल और जन की सुरक्षा से जोड़ दिया। धर्मभूमि पर खड़े होकर किए जानेवाले संकल्पों की हमारी एक समृद्ध परंपरा है। हमारा समाज संकल्प का महत्व भी जानता है। प्रधानमंत्री मोदी ने जल संरक्षण का आह्वान भी किया और गरीबों के प्रति हमारी क्या भूमिका होनी चाहिए, उसकी ओर भी ध्यान दिलाया। यह संकल्प कितना शुभ है कि हम एक गरीब परिवार के सदस्य बनकर उसका सामाजिक दायरा बढ़ाएं। यदि सही अर्थों में यह संकल्प सिद्ध हो गया और नागरिकों ने अपने इस संकल्प के अनुरूप आचरण प्रारंभ कर दिया तो गरीबी को बहुत हद तक हम परास्त कर देंगे। इस विजयादशमी की यह बड़ी जीत होगी।</p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=NAflCBUaDsM" target="_blank">देखें यह वीडियो : स्थानीय उत्पाद को दें प्राथमिकता | स्वदेशी खरीदें-देश को मजबूत करें | Now Time to Vocal for Local</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/NAflCBUaDsM?si=jHhqeDCvbf72AiTU" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए संकल्प दिलाया कि हम ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान से और अधिक लोगों को जोड़ें। इसके साथ ही उन्होंने स्थानीय स्तर पर उत्पादन करनेवालों से भी आग्रह किया कि वे गुणवत्तापूर्ण उत्पादन का संकल्प लें। आज सभी लोग गुणवत्ता को महत्व देते हैं। यदि हमारे उत्पाद गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे तो भारत में भी स्वीकार नहीं होंगे और उनका निर्यात भी नहीं हो सकेगा। भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में गुणवत्तापूर्ण उत्पादन एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। हमारा उत्पादन ऐसा होना चाहिए कि दुनिया में उसकी माँग बढ़े। याद रखें कि एक समय में दुनियाभर से बड़े-बड़े व्यापारी जहाज लेकर भारत के उत्पाद खरीदने के लिए आते थे। </p><p style="text-align: justify;">एक और संकल्प बहुत महत्व का है, जिसमें उन्होंने आग्रह किया है कि हम पहले अपना देश घूम लें, उसके बाद ही विदेश घूमने जाएं। भारत में अर्थव्यवस्था को गति देनेवाला एक महत्वपूर्ण क्षेत्र पर्यटन है। यह स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसरों को भी बढ़ावा देता है। भारत भूमि की एक विशेषता है कि यहाँ सब प्रकार के मौसम, प्रकृति, स्थान और धरोहरें हैं। पर्यटकों के लिए जितनी विविधता भारत में है, वह अन्यत्र कहीं नहीं है। इसलिए विदेश में घूमने की अपेक्षा हम अपने ही देश को क्यों नहीं भली प्रकार से देख लेते। हाँ, जब हम अपने देश को देख लें, तब भले ही विदेश चले जाएं।</p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=zDA860X1Gyg&list=PL1ujttwE8VhQajprOX3kfmryvrsGlsoyC&index=32" target="_blank">यूट्यूब चैनल 'अपना वीडियो पार्क' पर देखें पर्यटन पर केंद्रित वीडियो ब्लॉग</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/zDA860X1Gyg?si=i4QFuMQp9Jtsz4Oe" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">प्रधानमंत्री मोदी ने दस संकल्प दिलाने के साथ ही लोगों के साथ भारत की उपलब्धियों को भी साझा किया। कुलमिलाकर कहना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी की भाँति अन्य नेताओं को भी कभी-कभी राजनीति से इतर सामाजिक सरोकारों की बात करनी चाहिए और नागरिकों को उनके नागरिक कर्तव्यों के साथ जोड़ने का प्रयास करना चाहिए।</p>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-69162893091326200882023-10-21T07:30:00.005+05:302023-10-25T22:47:45.478+05:30अटारी बॉर्डर : झंडा ऊंचा रहे हमारा<h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=grVPcnNFoDE" target="_blank">Bharat's Tallest National Flag Tiranga Unfurled at Attari-Wagah Border</a> </h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/grVPcnNFoDE?si=1RFhTND3SXDFF1Rz" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">भारत-पाकिस्तान सीमा ‘अटारी बॉर्डर’ (पूर्व में वाघा बॉर्डर) पर अब पाकिस्तान के झंडे से भी ऊंचा भारत का तिरंगा लहरा रहा है। विशेष सर्विलांस तकनीक से सुसज्जित यह ध्वज सरहद पर निगरानी में हमारे जवानों की सहायता करेगा। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने 19 अक्टूबर को अटारी बॉर्डर पर ‘स्वर्ण जयंती द्वार’ के सामने देश का सबसे ऊंचा तिरंगा फहराया। पहले भी यहाँ 360 फीट ऊंचे ध्वज स्तम्भ पर विशाल तिरंगा फहराता था, जिसे वर्ष 2017 में स्थापित किया गया था। प्रत्येक युद्ध में पराजय का सामना करनेवाले पाकिस्तान ने भारत को नीचा दिखाने के लिए 400 फीट ऊंचे पोल पर अपना झंडा फहरा दिया। ऐसा करके पाकिस्तान ने सोचा होगा कि अब भारत का झंडा सदैव पाकिस्तान के झंडे से नीचे रहेगा। परंतु पाकिस्तान भूल गया कि यह नया भारत है। पाकिस्तान को इस मनोवैज्ञानिक युद्ध में भी विजय नहीं मिलनी थी। भारत का ध्वज, पाकिस्तान के झंडे से नीचे लहराए, यह किसे बर्दाश्त होता। अंतत: केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की पहल पर भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने 3.5 करोड़ रुपए में अटारी बॉर्डर पर 418 फीट के नये ध्वज स्तंभ को स्थापित किया है। जिस पर फहरा रहा हमारा प्यारा तिरंगा अब बहुत दूर से ही, सबसे ऊपर, नीले गगन में शान से लहराता हुआ दिखायी देता है। उल्लेखनीय है कि अटारी पर फहरा रहा तिरंगा, अब देश में सबसे ऊंचा तिरंगा हो गया है। इससे पहले कर्नाटक के बेलगाम में देश का सबसे ऊंचा झंडा 360.8 फीट पर फहरा रहा था।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_Cm2eug9PjqXlvOuoT1X-n53neqzT1lpxN4JJg0KD0U7wZuIDKGCnzq_vwl5jcD2aJPxlQK2RlQ97BZJpuDXmTKahRQG6GDR-dVnVpFqRrouzcJYtTCfef9eiaFdTRQ1aikA5bwqSXZgq-MVakmF5jxfjDuXVGjo5nPMuodAKIJhEOYWsf1C7ov6G/s853/Atari%20Border-Tiranga.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="853" data-original-width="853" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_Cm2eug9PjqXlvOuoT1X-n53neqzT1lpxN4JJg0KD0U7wZuIDKGCnzq_vwl5jcD2aJPxlQK2RlQ97BZJpuDXmTKahRQG6GDR-dVnVpFqRrouzcJYtTCfef9eiaFdTRQ1aikA5bwqSXZgq-MVakmF5jxfjDuXVGjo5nPMuodAKIJhEOYWsf1C7ov6G/w400-h400/Atari%20Border-Tiranga.jpg" width="400" /></a></div><p></p><p style="text-align: justify;">पिछले दिनों (4 सितंबर, 2023) जब मैं अटारी पर गया तो वहां भारत का ध्वज नहीं पाकर थोड़ा अजीब लगा था। अटारी बॉर्डर की ओर बढ़ रहे थे तो बहुत दूर से पाकिस्तान का विशाल ध्वज तो फहराता हुआ दिख रहा था, लेकिन अपने तिरंगे के बिना आसमान सूना लग रहा था। अटारी पहुँचकर मैंने सबसे पहले सैनिक बंधुओं से पूछा कि यहां पाकिस्तान का इतना बड़ा झंडा फहरा रहा है, जो भारत में भी बहुत दूर तक दिख रहा है। जबकि हमारे ध्वज स्तंभ खाली पड़े हैं। तब उन्होंने पाकिस्तान की चालकी के बारे में बताया और कहा कि हम पाकिस्तान के झंडे से नीचे अपना राष्ट्रीय ध्वज कैसे फहरा सकते हैं। आप जब अगली बार आओगे तो यहां सबसे ऊंचा और बड़ा, भारत का ही झंडा फहरते हुए पाओगे, जो भारत में ही नहीं अपितु पाकिस्तान में भी दूर तक अपनी छाप छोड़ेगा। इस 418 फीट ऊंचे पोल पर जब भारत का झंडा आसमान से बातें करेगा तो आपकी छाती 56 इंच की हो जायेगी। </p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiP8NmcFaPohZaWSH3dJGkca4N0sb_rdLzAiiKHz-u3LHQe3ss3Mc0infH-fU9xy1U1oRGhRHG_PLf8LRpO57COTeiLEXH7rmxfdgrWw2fuW-tfoI0HSm81RUr9sXTUogjYjhopKxHQmyaEb8g5shPav0U_QU_Ew5ojmC-_2PBe7sLTAujIayBUxKaX/s4624/20230904_171426.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="2604" data-original-width="4624" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiP8NmcFaPohZaWSH3dJGkca4N0sb_rdLzAiiKHz-u3LHQe3ss3Mc0infH-fU9xy1U1oRGhRHG_PLf8LRpO57COTeiLEXH7rmxfdgrWw2fuW-tfoI0HSm81RUr9sXTUogjYjhopKxHQmyaEb8g5shPav0U_QU_Ew5ojmC-_2PBe7sLTAujIayBUxKaX/w400-h225/20230904_171426.jpg" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">अटारी बॉर्डर (पूर्व में वाघा बॉर्डर) पर एक दिन Lokendra Singh</td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;">शाम को जब वाघा बॉर्डर पर दोनों देश अपने–अपने राष्ट्रीय ध्वज उतारते हैं, तब यहां का माहौल अलग ही होता है। देशभक्ति का गजब जोश रहता है। बॉर्डर पर बना स्टेडियम भारत माता के जयकारे से गूंजता रहता है। वन्देमातरम और हिंदुस्थान जिंदाबाद के जयघोष में पाकिस्तान की ओर से लगाए जाने वाले नारे कहीं खो जाते हैं। भारत की ओर बड़े स्टेडियम में दर्शकों के बैठने की क्षमता पाकिस्तान की दर्शक दीर्घा से कम से कम 6–7 गुना अधिक है। भारत की दर्शक दीर्घा पूरी तरह भरी रहती है जबकि पाकिस्तान की दर्शक दीर्घा सामान्यतः खाली ही रह जाती है। हां, विशेष अवसरों पर वहां के लोग भी अच्छी संख्या में अपनी सेना का मनोबल बढ़ाने आते हैं। हो सके तो एक बार अवश्य ही अटारी बॉर्डर पर होकर आना चाहिए।</p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXWCyyDsmlFefeigsYCJLzLkL4f44DAQSCa85HS88NXdWL3xFlGb93o-EG5IGWht2nWsVl0UZ4tTWS50ivJDzdDo4zMvQKSkRvXVHhx-O8HvJ8e_fP6Blr3jwy2d8I4OVfsf6LLfYXRWbtDYeMFZihxQKCWAiCCEKiYUM2JwRISVDh45LrFfJg-_jC/s4624/20230904_181352.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="2604" data-original-width="4624" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXWCyyDsmlFefeigsYCJLzLkL4f44DAQSCa85HS88NXdWL3xFlGb93o-EG5IGWht2nWsVl0UZ4tTWS50ivJDzdDo4zMvQKSkRvXVHhx-O8HvJ8e_fP6Blr3jwy2d8I4OVfsf6LLfYXRWbtDYeMFZihxQKCWAiCCEKiYUM2JwRISVDh45LrFfJg-_jC/w400-h225/20230904_181352.jpg" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">अटारी बॉर्डर पर भारतीय हिस्से में जनसमुदाय और पाकिस्तान के हिस्से में सन्नाटा। फोटो : Lokendra Singh</td></tr></tbody></table><p style="text-align: justify;">एक तथ्य और जानना चाहिए कि अटारी बॉर्डर को पहले वाघा बॉर्डर कहा जाता था। इसलिए कई लोग आज भी इसे वाघा बॉर्डर ही कहते हैं। लेकिन बाद में पंजाब सरकार ने इसका नाम बदल दिया गया क्योंकि जिस गाँव वाघा के नाम पर इसे वाघा बॉर्डर कहा जाता था, वह पाकिस्तान की ओर है। भारत की सीमा पर अटारी गाँव है। इसलिए भारत की ओर के बॉर्डर को अब अधिकृत रूप से अटारी बॉर्डर कहा जाता है। इसे ही कई बार अटारी-वाघा बॉर्डर भी कह दिया जाता है। अटारी गाँव के साथ एक और गौरवपूर्ण तथ्य जुड़ा है। महाराजा रणजीत सिंह की सेना के एक सेनापति शाम सिंह अटारीवाला का जन्म स्थान ‘अटारी गाँव’ है। शाम सिंह अटारीवाला ने मुलतान, कशमीर और पेशावर की विजय में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके साहस, पराक्रम और युद्ध कौशल से महाराज रणजीत सिंह भी बहुत प्रभावित रहते थे। शाम सिंह अटारी की बेटी का विवाह महाराजा रणजीत सिंह के पौत्र कंवर नौनिहाल सिंह से हुआ था।</p><h3 style="text-align: justify;"><span style="color: red;">राष्ट्रीय ध्वज पर ये तीन महत्वपूर्ण ब्लॉग अवश्य सुनिए- </span></h3><div><span style="color: red;"><br /></span></div><h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=43VuzmNKBF4" target="_blank">1. भगवा झंडा होता राष्ट्रध्वज | राष्ट्रध्वज तिरंगा एवं आरएसएस : भाग-1 | History of National Flag</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/43VuzmNKBF4?si=WSZAh5cRP57d0On9" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: center;"><br /></p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=bsT6B3o4NAY" target="_blank">2. RSS में तिरंगे के प्रति पूर्ण निष्ठा | राष्ट्रध्वज एवं आरएसएस : भाग-2 | History of National Flag</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/bsT6B3o4NAY?si=buv33MN08-ImF1lK" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: center;"><br /></p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=hWQyUNIkVXA" target="_blank">3. तिरंगे के सम्मान में संघ ने दिया बलिदान | राष्ट्रध्वज एवं आरएसएस : भाग-3 | History of National Flag</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/hWQyUNIkVXA?si=I739VzTKE7CZk4jy" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;"><br /></p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJYlI3nHQ9xcIQs-m7z5HAJ99RK-S045qbk1v48DkH4MY0hF_LPgyiquSbwVHGwIFkL5zhxCGr3JTB6oIWg6REFtMP7_jY4QqZqccy1RziC7BiwZJmp6mcAu5YoDtDyQA2Veq-BF_CA5X9I955tdJD0-gyUv4XQPWYdzMF-vgj2oO8qHD-PVomD3KJ/s1736/Atari%20par%20Tiranga-Swadesh%20Bhopal-23%20October%202023.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="1736" data-original-width="1423" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJYlI3nHQ9xcIQs-m7z5HAJ99RK-S045qbk1v48DkH4MY0hF_LPgyiquSbwVHGwIFkL5zhxCGr3JTB6oIWg6REFtMP7_jY4QqZqccy1RziC7BiwZJmp6mcAu5YoDtDyQA2Veq-BF_CA5X9I955tdJD0-gyUv4XQPWYdzMF-vgj2oO8qHD-PVomD3KJ/w328-h400/Atari%20par%20Tiranga-Swadesh%20Bhopal-23%20October%202023.jpg" width="328" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">समाचार पत्र स्वदेश, भोपाल समूह में 23 अक्टूबर, 2023 को प्रकाशित लोकेन्द्र सिंह का लेख </td></tr></tbody></table>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-10759223288719274652023-10-20T17:00:00.009+05:302023-10-21T10:45:01.598+05:30गो-वर : पर्यावरण एवं मानवता के लिए गाय का वरदान<h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=mU7I1PIlpdQ&list=PL1ujttwE8VhSoe9t-p2khG7ZoQp_YJGGY&index=9" target="_blank">गाय के महत्व को रेखांकित करती फिल्म</a></h3><div><br /></div><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/mU7I1PIlpdQ?si=KHmGYrVPRHir-Q7_" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;"><span style="background-color: #fff2cc; color: red;"><a href="https://apnapanchoo.blogspot.com/2021/02/Bacha-the-rising-village-solar-village.html" target="_blank">‘बाचा: द राइजिंग विलेज’</a> को मिली सराहना के बाद हमारे समूह का उत्साह बढ़ा। अब हम नये वृत्तचित्र के लिए नयी कहानी खोज रहे थे। एक कार्यक्रम के निमित्त भोपाल स्थित शारदा विहार आवासीय विद्यालय जाना हुआ। वहां कई कहानियां थीं, जिन्हें हम सुना सकते थे। भौतिकी की खुली प्रयोगशाला में नवाचार दिखा, ध्यान के लिए बनाया गया एक विशेष मंडप में भारतीय ज्ञान–परंपरा की झलक थी, शिक्षा की भारतीय पद्धति का महत्व भी ध्यान में आ रहा था। परंतु हमने चुनी गोशाला।</span></p><p style="text-align: justify;">तथाकथित प्रगतिशील गाय–गोबर का जितना चाहे उपहास उड़ाएं, लेकिन शारदा विहार, भोपाल स्थित ‘कामधेनु गोशाला एवं गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र’ अपने प्रयोगों से गाय की महत्ता सिद्ध कर रहा है। परंपरागत और आधुनिक विज्ञान के सहयोग से इस प्रकल्प ने सिद्ध किया है कि भारत में गाय न केवल आर्थिक विकास की धुरी है अपितु पर्यावरण को संभालने में भी उपयोगी है। उल्लेखनीय है कि हमारी बदली हुई जीवनशैली के कारण पर्यावरण संरक्षण दुनिया का ज्वलंत मुद्दा बन गया है। तेजी से कटते जंगल, प्रदूषित होती हवा, जल संकट और ऊर्जा-ईंधन चिंता के कारण बन गए हैं। जब हम इन सब समस्याओं का समाधान तलाशते हैं, तो भारतीय जीवन शैली में ही एक उम्मीद की किरण नजर आती है और इस दिशा में हमारा विश्वास पक्का किया है- ‘कामधेनु गोशाला एवं गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र’ ने।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsfxf65aWWqir2SlJWwTsti5WuRCMUiTXiKzqfgC7xt-2yuwXkAms08dapsUnJGS3gjuhd4XQBtQs6VcfIcaNiM5TKBKSF_OT6STXPDciB6jx6DZDfiVM_HwLbsiRWcTcctY7hYWN8hmi1I-b9AQOPFhfuVHYUjGzMSck7guXJC1TjG6sT5gJmt_jT/s5352/Go%20Var.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="3000" data-original-width="5352" height="224" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhsfxf65aWWqir2SlJWwTsti5WuRCMUiTXiKzqfgC7xt-2yuwXkAms08dapsUnJGS3gjuhd4XQBtQs6VcfIcaNiM5TKBKSF_OT6STXPDciB6jx6DZDfiVM_HwLbsiRWcTcctY7hYWN8hmi1I-b9AQOPFhfuVHYUjGzMSck7guXJC1TjG6sT5gJmt_jT/w400-h224/Go%20Var.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">शारदा विहार की गोशाला से निकलने वाले अपशिष्ट को बहु–उपयोगी बनाने की दिशा में ‘कामधेनु गोशाला एवं अनुसंधान केंद्र’ के एक अनुकरणीय मॉडल खड़ा किया है। यहां गाय के गोबर से गोबर गैस बन रही है, जिससे लगभग 800 विद्यार्थियों का भोजन पकाया जाता है। इसके साथ ही यहां गाय के गोबर से बायो–सीएनजी भी बनाई जा रही है, जिससे यहां के वाहन चलाए जाते हैं। इसके बाद जो अपशिष्ट बचाता है, उससे गोबर खाद बनाई जा रही है। परिसर के खेतों में इसी गोबर खाद का उपयोग किया जाता है। और तो और इसके बाद भी कुछ गोबर बचा रह जाता है तो उससे गो–काष्ट का निर्माण किया जा रहा है। यह अनुसंधान केंद्र गाय से प्राप्त पंचगव्य से अन्य उत्पाद भी तैयार करता है। </p> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">इस अनुसंधान केंद्र ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि हम ‘आम के आम, गुठलियों के भी दाम’ की तर्ज पर बायोगैस प्लांट का ‘जीरो वेस्ट मैनेजमेंट’ कर सकते हैं। गोबर गैस प्लांट से निकलने वाले गोबर से गोकाष्ठ बना सकते हैं, जिसको हम लकड़ी की जगह उपयोग कर सकते हैं। इससे हम जैविक खाद बना सकते हैं। यह खाद जमीन को रासायनिक प्रदूषद से मुक्त रखता है। खेत में पैदावार को भी बढ़ाता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बायोगैस, वैकल्पिक ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है। आज की जरूरत है इन प्रयोगों को बढ़ावा और विस्तार देने की।</p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi"><a href="https://twitter.com/hashtag/FilmMakingStory?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#FilmMakingStory</a> <br /><br />अभी आपके साथ फिल्म ‘गो–वर’ के निर्माण की जो कहानी साझा की थी, उसे प्रतिष्ठित समाचार संस्थान ‘हिन्दी विवेक’ ने अपनी वेबसाइट पर स्थान दिया है। <a href="https://twitter.com/hashtag/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80_%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%87%E0%A4%95?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#हिन्दी_विवेक</a> की टीम के प्रति आभार। <a href="https://t.co/5bnsgaHeIl">https://t.co/5bnsgaHeIl</a><br />__<a href="https://twitter.com/manojpatel1982?ref_src=twsrc%5Etfw">@manojpatel1982</a> @hindi_vivek <a href="https://twitter.com/Dept_of_AHD?ref_src=twsrc%5Etfw">@Dept_of_AHD</a> <a href="https://twitter.com/JansamparkMP?ref_src=twsrc%5Etfw">@JansamparkMP</a> <a href="https://t.co/6CN2qWQkVX">pic.twitter.com/6CN2qWQkVX</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1660847448468725760?ref_src=twsrc%5Etfw">May 23, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">ईंधन के लिए बड़ी संख्या में जंगलों को काटा जा रहा है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुतबिक 2015 से 2019 तक देश में लगभग 95 लाख पेड़ काट दिए गए। एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में करीब 30 करोड़ मवेशी हैं। बायो-गैस के उत्पादन में उनके गोबर का प्रयोग कर हम 6 करोड़ टन ईंधन योग्य लकड़ी प्रतिवर्ष बचा सकते हैं।</p><p style="text-align: justify;">‘कामधेनु गोशाला एवं गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र’ पर आधारित हमारी डाक्युमेंट्री फिल्म <a href="https://www.youtube.com/watch?v=mU7I1PIlpdQ&list=PL1ujttwE8VhSoe9t-p2khG7ZoQp_YJGGY&index=9" target="_blank">‘गो-वर : पर्यावरण और मानवता के लिए गाय का वरदान’ (निर्देशक- मनोज पटेल और प्रोड्यूसर- लोकेन्द्र सिंह)</a> को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्म फेस्टीवल में प्रदर्शित किया गया था। फिल्म निर्माताओं ने ‘गो-वर’ की बहुत सराहना की है। इस फिल्म में बताया गया है कि भारत में गाय आधारित जीवन पर्यावरण के अनुकूल है। विज्ञान के सहयोग से हम गाय से प्राप्त प्रत्येक वस्तु का बेहतर उपयोग कर सकते हैं। गाय हमारी वैकल्पिक ऊर्जा और धुंआ रहित ईंधन की पूर्ति भी कर सकती है। परंपरागत विज्ञान का सहारा लेकर हम गाय के गोबर से बायोगैस और गोकाष्ठ का उत्पादन कर सकते हैं। बायोगैस को ‘अक्षय ऊर्जा’ में शामिल किया जाता है। इसका अनेक प्रकार से उपयोग किया जा सकता है। घर की लाइट से लेकर खाना पकाने में बायो-गैस उपयोगी है। अब तो विज्ञान के सहयोग से गोबर गैस को बायो-सीएनजी गैस में भी बदल कर उसका कमर्शियल उपयोग किया जा रहा है।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMbo49IClDTcfEe2HSGCCbiliGy08tplUhh9wGJMMHS5jfFi7yZufJK0Y4V0uRYuh0Y6w1eQHltMHZ7WDTXu_3ouG-oDKydvAG_Z7f9JDNJcrS6oJH49H6CBAnMNoQQvpFH7pn_gIq5yTFf0u7PO8ezxkjtCRpP6bS9S3rVcbVZAd79RtAIVf4lzMR/s1280/Go-var.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="684" data-original-width="1280" height="214" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMbo49IClDTcfEe2HSGCCbiliGy08tplUhh9wGJMMHS5jfFi7yZufJK0Y4V0uRYuh0Y6w1eQHltMHZ7WDTXu_3ouG-oDKydvAG_Z7f9JDNJcrS6oJH49H6CBAnMNoQQvpFH7pn_gIq5yTFf0u7PO8ezxkjtCRpP6bS9S3rVcbVZAd79RtAIVf4lzMR/w400-h214/Go-var.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">कुल मिलाकर इस प्रकल्प के अभिनव प्रयोगों से यह तो ध्यान में आ ही जाता है कि गाय मानवता के लिए वरदान है। हमारी बदली हुई जीवनशैली में पुनः गाय का स्थान कैसे सुनिश्चित किया जाए, इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। </p>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-42107689408030532622023-10-16T16:39:00.002+05:302023-10-20T23:01:19.748+05:30ओलंपिक की मेजबानी करने उत्साहित है भारत<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWTbdgjx_RTla-UADWFCvaVy2Mk6XxkHe_SiRWWOc3Xx6V9zrkQJf7KyCfnpa_xv7XMh25Z0f_r68WT703GaiDlslsRT1ser_lRA1lwbiCxNq61NwO3YZ9R7aA5lXRUe9XzA1r5nH0gDJGLeOoSRQAp27zoLqNKC-YPkQvP9wwMdZBC0SGgcO533Aw/s750/NPIC-2023101421044.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="472" data-original-width="750" height="251" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWTbdgjx_RTla-UADWFCvaVy2Mk6XxkHe_SiRWWOc3Xx6V9zrkQJf7KyCfnpa_xv7XMh25Z0f_r68WT703GaiDlslsRT1ser_lRA1lwbiCxNq61NwO3YZ9R7aA5lXRUe9XzA1r5nH0gDJGLeOoSRQAp27zoLqNKC-YPkQvP9wwMdZBC0SGgcO533Aw/w400-h251/NPIC-2023101421044.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;"><b>मोदी सरकार</b> के कार्यकाल में अन्य क्षेत्रों की भाँति खेल के क्षेत्र में भी भारत ने उत्साहवर्धक प्रगति की है। देश में खेलों को लेकर एक सकारात्मक वातावरण बन गया है। जिसका परिणाम हैं कि भारत के खिलाड़ी राष्ट्रीय एवं अतंरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। खेलों में भारतीय खिलाड़ियों की उपलब्धियों से उत्साहित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते शनिवार को ओलंपिक समिति के एक सत्र को संबोधित करते हुए वह बात कह दी, जिसको सुनने की प्रतीक्षा भारत के नागरिक लंबे समय से कर रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि 2036 में ओलंपिक खेलों की मेजबानी भारत करना चाहेगा। ओलंपिक की मेजबानी प्राप्त करने के लिए भारत कोई कसर नहीं छोड़ेगा। यदि भारत ओलंपिक खेलों की मेजबानी प्राप्त करने में सफल होता है, तब यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><p style="text-align: justify;">ओलंपिक दुनिया का सबसे बड़ा खेल आयोजन है। ओलंपिक खेलों की मेजबानी, मेजबान देश के सामर्थ्य को प्रकट करती है। भारत के खेलप्रेमी नागरिक लंबे समय से प्रतीक्षा कर रहे हैं कि दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित एवं सबसे बड़ा खेल आयोजन भारत में कब होगा? प्रधानमंत्री मोदी ने जिस प्रकार की प्रतिबद्धता दिखायी है, उससे यही समझा जा सकता है कि भारत के खेलप्रेमियों की बहुप्रतीक्षित अभिलाषा निकट भविष्य में पूरी हो सकती है। उल्लेखनीय है कि भारत में खेलों के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण सदैव से रहा है लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने खेल संस्कृति के उत्थान पर बहुत ध्यान नहीं दिया, जिसका परिणाम यह रहा कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हमारा प्रदर्शन लगातार कमजोर होता गया। जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी पहली ही सरकार के समय से खेलों पर विशेष ध्यान दिया। खिलाड़ियों के प्रशिक्षण एवं प्रोत्साहन को ध्यान में रखकर मोदी सरकार ने योजनाएं ही प्रारंभ नहीं की अपितु उनका प्रभावी ढंग से क्रियान्वयन भी कराया। उसका सुफल हमें पिछले ओलंपिक में भी प्राप्त हुआ और हाल ही में सम्पन्न हुए एशियाई खेलों में तो भारत ने अपने पुराने सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर नयी इबारत ही लिख दी। भारतीय दल ने हांगझोऊ में आयोजित एशियाई खेल-2023 की शानदार शुरुआत करते हुए पहला पदक 24 सितंबर को ही जीत लिया। उसके बाद लगातार पदकों की जीत की झड़ी ही लग गई। इस आयोजन में भारत ने 107 पदक के साथ अपना अभियान समाप्त किया। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoO4-igRpsFUY3c4Lu5jyBG49pxOW9dq7Oi20UjLRu4v42Gvj11X32Z4O8LPobYqK5__GPFEwQ4rZMuN6jfG7U6WR_04rbZtc5PXk1xjGTuH3ydZId5Xr9jTLEg_XQmWgLlyf6VVX88ziZCphj0xibjTyRjixP4D-5GcYW9nY_KBqESHjFoaA7F1ot/s1200/is%20baar%20100%20paar.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="1200" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhoO4-igRpsFUY3c4Lu5jyBG49pxOW9dq7Oi20UjLRu4v42Gvj11X32Z4O8LPobYqK5__GPFEwQ4rZMuN6jfG7U6WR_04rbZtc5PXk1xjGTuH3ydZId5Xr9jTLEg_XQmWgLlyf6VVX88ziZCphj0xibjTyRjixP4D-5GcYW9nY_KBqESHjFoaA7F1ot/w400-h225/is%20baar%20100%20paar.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">गौरव की बात है कि पहली बार भारत ने एशियाई खेलों में पदक जीतने का अपना शतक पूरा किया। 2018 के एशियाई खेलों में भारत के 570 सदस्यीय मजबूत दल से 70 पदक अर्जित करके एशियाड में अपना सबसे ज्यादा पदक का रिकॉर्ड बनाया था। जबकि 2023 में भारतीय दल ने अपने पिछले कीर्तिमान को पीछे छोड़कर 107 पदक जीतने का नया कीर्तिमान रच दिया। भारत के हिस्से 28 स्वर्ण, 38 रजत और 41 कांस्य पदक आए हैं। यह भी रेखांकित करने की बात है कि पदक तालिका में भारत चौथे स्थान पर रहा। नि:संदेह, इन सब उपलब्धियों ने ही भारत के प्रधानमंत्री को ओलंपिक खेलों की मेजबानी की आकांक्षा को व्यक्त करने की प्रेरणा दी होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने उचित ही कहा कि भारत में खेलों की एक समृद्ध परंपरा रही है, जो सिंधु घाटी सभ्यता (राखीगढ़ी शिलालेख) के समय से चली आ रही है। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">वाराणसी में बननेवाले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में दिखेगी अद्भुत और दिव्य काशी की झलक। स्टेडियम को भगवान शिव से जुड़ी वस्तुओं की थीम पर बनाया जा रहा है। <a href="https://t.co/i0vPU58KP8">pic.twitter.com/i0vPU58KP8</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1705550534227476589?ref_src=twsrc%5Etfw">September 23, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8722673451057387706.post-44674079270750655612023-10-13T22:22:00.003+05:302023-10-16T16:39:50.109+05:30हमास के आतंकवाद के विरुद्ध इजरायल के साथ खड़ा है भारत<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcMHWWZCwhC09qVXLPkPBrN1hP5cA3nAC0wl9MX7806fdJp5h5lypolgpcW4d2jqs1QFLtyrBZ-3lfwZyzsusDEV1yRIzmE7okZ_Yy-_vAJkVSZQZWj_cCpTieYQ8LwpNE0GnJ1CqvADeay7V-a-841lro0QqZZtLv9uftne5LzeAl762k1uCKeyug/s1280/maxresdefault.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="720" data-original-width="1280" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhcMHWWZCwhC09qVXLPkPBrN1hP5cA3nAC0wl9MX7806fdJp5h5lypolgpcW4d2jqs1QFLtyrBZ-3lfwZyzsusDEV1yRIzmE7okZ_Yy-_vAJkVSZQZWj_cCpTieYQ8LwpNE0GnJ1CqvADeay7V-a-841lro0QqZZtLv9uftne5LzeAl762k1uCKeyug/w400-h225/maxresdefault.jpg" width="400" /></a></div><p style="text-align: justify;">इजरायल पर हुए आतंकी हमले ने सबको दहला कर रख दिया है। जिस तरह की नृशंसता और वहशीपन के वीडियो सामने आए हैं, उनको देखकर कोई भी भला व्यक्ति हमास के साथ खड़ा नहीं हो सकता। परंतु जो लोग इस सबके बाद भी हमास के साथ खड़े हैं, उनकी मानसिकता को समझना कठिन नहीं है। ये लोग मानवता के विरोधी हैं। इनकी संवेदनाएं झूठी और बनावटी हैं। ये संवेदनाओं का उपयोग विरोधी विचार पर हमला करने के लिए करते हैं। एक तरह से इन्हें बौद्धिक आतंकवादी कहा जा सकता है। इससे यह भी ध्यान आता है कि ऐसी ही बर्बरता यहूदियों के साथ इतिहास के उस कालखंड में की गई होगी, जब उन्हें इजरायल से बेदखल किया गया। हमास के आतंकी जिस बर्बरता से इजरायल की महिलाओं एवं महिला सैनिकों के साथ पेश आ रहे हैं, उसकी एक सुर में भर्त्सना ही की जा सकती है।<span></span></p><a name='more'></a><p></p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">आतंकवाद और बर्बरता के विरुद्ध I Stand With ISRAEL <br />___<a href="https://twitter.com/Israel?ref_src=twsrc%5Etfw">@Israel</a> <a href="https://twitter.com/IDF?ref_src=twsrc%5Etfw">@IDF</a> <a href="https://twitter.com/IsraelinIndia?ref_src=twsrc%5Etfw">@IsraelinIndia</a> <a href="https://twitter.com/netanyahu?ref_src=twsrc%5Etfw">@netanyahu</a> <a href="https://twitter.com/narendramodi?ref_src=twsrc%5Etfw">@narendramodi</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/IStandWithIsrael?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#IStandWithIsrael</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/IsraelUnderAttack?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#IsraelUnderAttack</a> <a href="https://t.co/kG2Sd4CEpY">pic.twitter.com/kG2Sd4CEpY</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1710730434357936562?ref_src=twsrc%5Etfw">October 7, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">हमास के आतंकी हमले की निंदा दुनिया भर में हो रही है। भारत भी इस कठिन समय में अपने मित्र इजरायल के साथ खुलकर खड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक्स (ट्विटर) पर इजरायल के नाम संदेश लिखा और कहा कि भारत इस मुश्किल समय में इजरायल के साथ है। इस पर इजरायल के राजनयिक ने भारत के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया है। याद रखें कि कोई और सरकार होती तो मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण इजरायल का समर्थन करने में संकोच करती। उसे हमास के आतंकियों की बर्बरता दिखाई नहीं देती। तब भारत फिलिस्तीन और इजरायल के बीच संतुलन बिठाने के ही प्रयत्न करता। परंतु भारत की वर्तमान सरकार आतंकवाद पर स्पष्ट विचार रखती है। यदि भारत ही आतंकवाद को देखने में भेद करेगा तो आतंकवाद पर दुनिया की एक राय बन ही नहीं पाएगी। </p><p style="text-align: justify;">प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार स्पष्ट किया है कि भारत किसी किस्म का आतंकवाद बर्दाश्त नहीं करेगा। जिस तरह का यह हमला हुआ है, वह चिंताजनक है। हमास एक आतंकवादी समूह है। जमीन से लेकर हवा तक एक आतंकी समूह के पास जिस तरह का सामर्थ्य आ गया है, वह दुनिया के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। इस तरह यदि सभी देश अपने विरोधी देश के खिलाफ आतंकी संगठनों को खड़ा करने लगेंगे तो स्थितियां भयावह हो जाएंगी। भारत इस बात को अच्छी तरह समझता है क्योंकि उसका पड़ोसी देश पाकिस्तान इसी नीति पर चल रहा है। पाकिस्तान ने आतंकी समूहों को मजबूत किया और उनका उपयोग भारत को क्षति पहुंचाने के लिए किया है। जब से देश में दृढ़ इच्छाशक्ति की सरकार बनी है, तब से अवश्य ही पाकिस्तान घुटनों पर आ गया है। राज्य पोषित आतंकवाद के खतरे को भली प्रकार जानने के कारण ही प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि भारत हमास के हमले की निंदा ही नहीं करता है, बल्कि स्पष्ट तरीके से इजरायल के साथ खड़ा है। </p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=EIDUH52u56Y" target="_blank">देखिए- भारतीय योद्धाओं ने जीतकर दी थी इजराइल को उसकी भूमि</a></h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/EIDUH52u56Y?si=nFWElzuyo3L6PgV0" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">बहरहाल, एक बार सोशल मीडिया पर सरसरी नजर डालें तो ही यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में तथाकथित सेकुलर, कम्युनिस्ट और इस्लामिस्ट पूरी निर्लज्जता के साथ हमास के आतंकी हमले को सही सिद्ध करने की धूर्तता कर रहे हैं। इतना भी वैचारिक विरोध नहीं होना चाहिए कि विरोध के लिए मानवता के खिलाफ खड़े हो जाएं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने फिलिस्तीन की आड़ लेकर एक तरह से हमास के समर्थन में रैली निकाली, इजरायल के विरोध में इस्लाम के नारे लगाए। याद रखें कि इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान के निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार करने में भी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की प्रमुख भूमिका रही है। इस विश्वविद्यालय में आज भी जिन्ना को आदर्श माना जाता है। मुस्लिम समुदाय में इस प्रकार के सांप्रदायिक कट्टर लोग बार-बार <a href="https://apnapanchoo.blogspot.com/2022/04/Islam-aur-Ambedkar.html" target="_blank">संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के उस मूल्यांकन को सत्य सिद्ध करते हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि मुसलमान सदैव इस्लामिक देशों की ओर ही झुकाव रखेंगे। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘पाकिस्तान या भारत विभाजन’ में यहाँ तक कहा है कि यदि कभी मुस्लिम देशों ने भारत पर हमला किया तो भारत का मुसलमान हमलावर देश के साथ खड़ा होगा।</a> हमास की नृशंसता एवं बर्बरता के बाद के बाद भी जिस प्रकार हमास के समर्थन में रैलियां निकाली जा रही हैं और इस्लामिक नारे लगाए जा रहे हैं, उन्हें देखकर तो बाबा साहेब की बातें सच ही प्रतीत होती हैं। </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">मासूम बच्चों का गला रेतकर उसे लहरानेवाले और महिलाओं के शरीर को नोंचनेवाले हमास के वहशी आतंकियों के समर्थन में जो लोग हैं, नि:संदेह खतरनाक लोग हैं। बाबा साहब अंबेडकर ने अपनी पुस्तक 'पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन' में ऐसी मानसिकता के बारे में खुलकर लिखा है... हमें सावधान रहना होगा <a href="https://t.co/jmcyE28pRP">https://t.co/jmcyE28pRP</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1711225110118740470?ref_src=twsrc%5Etfw">October 9, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">कम्युनिस्टों की भी कमोबेश यही स्थिति है। कहना होगा कि वे कट्टरपंथी मुस्लिमों से भी अधिक खतरनाक हैं। इजरायल-हमास युद्ध के मामले में भारत का कम्युनिस्ट अपनी पूरी बुद्धि इस बात के लिए खर्च कर रहा है कि इतिहास की चुनिंदा घटनाओं को उल्लेख करके हमास के आतंकी एवं क्रूरता को कमतर साबित करके इजरायल को ‘हिटलर’ साबित कर दिया जाए। इस मामले में कम्युनिस्ट होशियार भी हैं, उन्होंने बौद्धिक हथकंड़े अपनाकर दुनिया में साम्यवाद के नाम पर किए गए अपने अत्याचार छिपा लिए हैं। तानाशाही एवं क्रूरता के लिए आज भी हिटलर और मुसोलिनी को याद किया जाता है, कोई लेनिन और स्टालिन की बात नहीं करता है। जबकि लेनिन और स्टालिन भी हिटलर और मुसोलिनी से किसी भी रूप में कमतर नहीं थे। कम्युनिस्टों ने किस प्रकार रक्तपात किया है, इसको समझने के लिए शंकर शरण की पुस्तक 'साम्यवाद के सौ अपराध' अवश्य ही पढ़नी चाहिए।</p><h3 style="text-align: center;"><a href="https://www.youtube.com/watch?v=yM4n85J5xAI" target="_blank">साम्यवाद के सौ अपराध / Samyavad Ke 100 Apradh by Shankar Sharan</a> </h3><div style="text-align: center;"><iframe allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share" allowfullscreen="" frameborder="0" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/yM4n85J5xAI?si=ddHSAUpnRlz1tbQL" title="YouTube video player" width="560"></iframe></div><p style="text-align: justify;">कम्युनिस्टों की ऐसी क्या मजबूरी है कि उन्हें वे महिलाएं दिखायी नहीं दे रही हैं, जिनके साथ नृशंस अपराध हमास के आतंकियों ने किए हैं? महिलाओं को नग्न करके उनके शरीर को नोंचते हमास के आतंकियों को कैसे कोई भूल सकता है? क्या वे दृश्य कम्युनिस्टों को दिखायी नहीं दिए, जिनमें आतंकी छोटे बच्चों को हलाल करके उनका सिर धड़ से अलग कर रहे हैं और उन्हें विजय पताका के रूप में फहरा रहे हैं? दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई कम्युनिस्ट पत्रकार एवं लेखक मासूम बच्चों के कत्लेआम के समाचारों को फेक न्यूज कहकर समाज को भ्रमित करने के प्रयास कर रहे हैं। केवल इसलिए ताकि हमास के प्रति जनाक्रोश कम हो जाए और इजरायल को खलनायक साबित किया जा सके। आखिर हमास के बंदीगृह में बेचैन और तड़पने विभिन्न देशों के नागरिकों की चीख-पुकार को अनसुना कैसे किया जा सकता है? </p><blockquote class="twitter-tweet"><p dir="ltr" lang="hi">देश में कुछ बुद्धिजीवियों को हमास की हैवानियत दिख नहीं रही है। वे पूरी बेशर्मी से हमास की नृशंसता का बचाव कर रहे हैं। <br />फोटो साभार : <a href="https://twitter.com/DainikBhaskar?ref_src=twsrc%5Etfw">@DainikBhaskar</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/IsraelPalestineWar?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#IsraelPalestineWar</a> <a href="https://twitter.com/hashtag/IsraelUnderAttack?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#IsraelUnderAttack</a> <a href="https://t.co/8EaA8pXKGg">pic.twitter.com/8EaA8pXKGg</a></p>— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) <a href="https://twitter.com/lokendra_777/status/1712343610295988646?ref_src=twsrc%5Etfw">October 12, 2023</a></blockquote> <script async="" charset="utf-8" src="https://platform.twitter.com/widgets.js"></script><p style="text-align: justify;">इस सबसे इतर, जिनका विश्वास भारतीयता में है, जो सही अर्थों में भारतीय हैं, वे आतंकवाद के विरुद्ध खड़े हैं, वे इजरायल के साथ हैं और अपने देश के पक्ष के साथ खड़े हैं। और इस समय भारत पूरी तरह से इजरायल के साथ है।</p>लोकेन्द्र सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08323684688206959895noreply@blogger.com0