शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

'संघ और समाज' के आत्मीय संबंध को समझने में मदद करते हैं मीडिया विमर्श के दो विशेषांक

 लेखक  एवं राजनीतिक विचारक प्रो. संजय द्विवेदी के संपादकत्व में प्रकाशित होने वाली जनसंचार एवं सामाजिक सरोकारों पर केंद्रित पत्रिका 'मीडिया विमर्श' का प्रत्येक अंक किसी एक महत्वपूर्ण विषय पर समग्र सामग्री लेकर आता है। ग्यारह वर्ष की अपनी यात्रा में मीडिया विमर्श के अनेक अंक उल्लेखनीय हैं- हिंदी मीडिया के हीरो, बचपन और मीडिया, उर्दू पत्रकारिता का भविष्य, नये समय का मीडिया, भारतीयता का संचारक : पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति अंक, राष्ट्रवाद और मीडिया इत्यादि। मीडिया विमर्श का पिछला और नया अंक 'संघ और समाज विशेषांक-1 और 2' के शीर्षक से हमारे सामने है। यूँ तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (संघ) सदैव से जनमानस की जिज्ञासा का विषय बना हुआ है। क्योंकि, संघ के संबंध में संघ स्वयं कम बोलता है, उसके विरोधी एवं मित्र अधिक बहस करते हैं। इस कारण संघ के संबंध में अनेक प्रकार के भ्रम समाज में हैं। विरोधियों ने सदैव संघ को किसी 'खलनायक' की तरह प्रस्तुत किया है। जबकि समाज को संघ 'नायक' की तरह ही नजर आया है। यही कारण है कि पिछले 92 वर्ष में संघ 'छोटे से बीज से वटवृक्ष' बन गया। अनेक प्रकार षड्यंत्रों और दुष्प्रचारों की आंधी में भी संघ अपने मजबूत कदमों के साथ आगे बढ़ता रहा। 

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

त्वरित न्याय

 महिला  अपराधों में लगातार हो रही वृद्धि से मध्यप्रदेश की जनता एवं सरकार, सब चिंतित हैं। अक्टूबर के आखिरी दिन 'बेटी बचाओ' का नारा देने वाले प्रदेश में कोचिंग से पढ़ कर घर जा रही किशोरी के साथ मानसिक तौर पर बीमार लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म कर, मध्यप्रदेश की चिंता को भय में बदल दिया था। घटना के बाद पीडि़त किशोरी ने जिस तरह साहस एवं शक्ति दिखाई थी, उसके ठीक उलट व्यवस्था ने कायरता एवं बेशर्मी का प्रदर्शन किया था। समाज को सुरक्षा एवं न्याय का भरोसा देने वाले पुलिस विभाग ने पीडि़त और उसके अभिभावक के साथ जिस तरह का लापरवाही भरा व्यवहार किया था, उससे प्रदेश के सभी अभिभावक भयभीत हो गए थे। सुरक्षा देने में असफल व्यवस्था पीड़िता का दर्द समझने के लिए भी तैयार नहीं दिखा। बल्कि, अपनी खिलखिहट से पीड़िता के जख्मों पर नमक रगड़ने का काम किया गया। किंतु, साहसी लड़की ने बड़ी हिम्मत और धैर्य दिखाया, उसका परिणाम अब अनुकरणीय उदाहरण बन गया है। न्यायालय ने बहुत तेजी से मामले की सुनवाई करते हुए घटना के मात्र 54 दिन बाद ही चारों आरोपियों को दोषी करार देकर मृत्यु तक सलाखों के पीछे रहने का आदेश सुनाया है।

रविवार, 24 दिसंबर 2017

भारत में 2004 से लेकर 2014 तक की राजनीति का हाल-ए-बयां करती पुस्तक

- विनय कुशवाह 

प्राचीन भारत में सारी सत्ता राजा के इर्द-गिर्द घूमती थी। शासन की प्रणाली प्रजातांत्रिक न होकर राजतंत्र वाली होती थी, जिसमें राजा ही सर्वोपरि होता था। राजा का आदेश ही सबकुछ होता था। राज्य की प्रजा राजा के माध्यम से ही देश के लिए कार्य करती थी। प्रजा से कर वसूला जाता था और राज्य के विकास, राजा के महल और सेना पर बड़ी मात्रा में खर्च किया जाता था। कर की राशि कहां और कितनी खर्च की गई, इसका हिसाब-किताब लगभग नगण्य ही होता था। ना तो उस जमाने में लोकपाल था, ना ही कैग, ना ही ईडी था और ना ही सीबीआई। राजा अपने राज्य में स्वयं ही न्यायालय होता था। यदि ऐसा कुछ आज के समय यानी इक्कीसवीं शताब्दी में हो कि प्रजातंत्र से चुनी गई सरकार अपनी मनमानी करें और शासन को बपौती समझ ले। ऐसा ही कुछ भारत में सन् 2004 से लेकर 2014 तक के शासन में हुआ। इसी समय का हाल-ए-बयां करती एक पुस्तक " देश कठपुतलियों के हाथ में "।

शनिवार, 23 दिसंबर 2017

पूर्व प्रधानमंत्री के 'सम्मान' की लड़ाई

 संसद  में कांग्रेस जिस प्रकार का व्यवहार कर रही है, वह बचकाना है। कांग्रेस का व्यवहार बताता है कि उसे जनहित के मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है। एक ऐसी घटना के लिए कांग्रेस ने संसद को बाधित किया हुआ है, जिसका पटाक्षेप गुजरात चुनाव के साथ ही हो जाना चाहिए था। किंतु, ऐसा लगता है कि कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की शालीन छवि को उसी तरह भुनाना चाहती है, जिस प्रकार उनकी 'ईमानदार छवि' को संप्रग सरकार के दौरान भुनाने का प्रयास किया था। परंतु, कांग्रेस को समझना चाहिए कि वह उस समय भी जनता की नजर में पकड़ी गई और आज भी पूरा देश उसके व्यवहार को देख रहा है। कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के कथित अपमान को आधार बना कर संपूर्ण संसद को ठप कर दिया है। कांग्रेस के नेताओं की माँग है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अपमान किया है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को सदन में आकर क्षमा माँगनी चाहिए।

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

सरकार का निर्णय महिलाओं को करेगा सशक्त

 मध्यप्रदेश  के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में बड़ी महत्वपूर्ण घोषणा की है। भोपाल में आयोजित महिला स्व-सहायता समूहों के सम्मेलन में मुख्यमंत्री ने कहा है कि महिला स्व-सहायता समूहों को पाँच करोड़ रुपये तक के ऋण पर गारंटी सरकार देगी और तीन प्रतिशत ब्याज अनुदान भी सरकार ही देगी। इसमें कोई दोराय नहीं कि मध्यप्रदेश सरकार अपनी महिला नीति के अंतर्गत महिलाओं को सशक्त बनाने की दिशा में प्रयासरत है। इसमें महिला स्व-सहायता समूहों को प्रोत्साहित करने की नीति भी शामिल है। प्रदेश के मुखिया की इस घोषणा से न केवल महिला स्व-सहायता समूहों को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि महिलाओं के हाथ भी मजबूत होंगे। मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार महिला स्व-सहायता समूहों को जब 700 करोड़ रुपये के पोषण आहार का कारोबार मिलेगा, तब महिलाओं को आर्थिक ताकत मिलेगी। एक सबल प्रदेश एवं देश के निर्माण में महिलाओं की उपस्थिति आर्थिक क्षेत्र में बढऩी ही चाहिए।

बुधवार, 20 दिसंबर 2017

गुजरात में ईवीएम भी जीती

 गुजरात  चुनाव के परिणाम देश के सामने आ गए हैं। परिणाम में भाजपा-कांग्रेस की जीत-हार के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन एवं चुनाव आयोग को भी विजय प्राप्त हुई है। मतगणना से पूर्व चुनाव परिणाम को लेकर आशंकित कांग्रेस एवं उसके सहयोगी ईवीएम पर अतार्किक एवं बचकाने सवाल खड़े कर रहे थे। एक-दो अब भी अपने कुतर्कों पर अड़े हुए हैं। जबकि गुजरात के प्रदर्शन पर कांग्रेस भी प्रसन्न है। कांग्रेस ने अपने प्रदर्शन में सराहनीय सुधार किया है। गुजरात विधानसभा में अब उसकी सीटें 61 से बढ़ कर 77 हो गई हैं। अर्थात् पिछले जनादेश से 16 सीट अधिक। कुछ सीटों पर हार-जीत का अंतर बहुत कम रहा है। वहीं, जिस भारतीय जनता पार्टी पर ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगता है, उसकी सीटें घट कर 115 से 99 पर आ गई हैं। जबकि भाजपा ने 150 सीट जीतने का लक्ष्य तय किया था। गुजरात विजय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर है, परंतु भाजपा मोदी के गृहनगर में हारी है। यदि ईवीएम में छेड़छाड़ संभव होती, तब क्या मोदी के घर में भाजपा को हारने दिया जाता?

शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

समाज-राष्ट्र को समर्पित पत्रकारों से परिचित कराती है 'अनथक कलमयोद्धा'

चित्र में - गिरीश उपाध्याय (वरिष्ठ पत्रकार), जे. नन्दकुमार (राष्ट्रीय संयोजक, प्रज्ञा प्रवाह), बल्देव भाई शर्मा (अध्यक्ष, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास), राम पाल सिंह (मंत्री, लोक निर्माण विभाग, मध्यप्रदेश शासन), अशोक पाण्डेय (मध्य भारत प्रान्त सह संघचालक, आरएसएस)
 हम  सब जानते हैं कि विश्व संवाद केंद्र, भोपाल पत्रकारिता के क्षेत्र में भारतीय मूल्यों को लेकर सक्रिय है। विश्व संवाद केंद्र का प्रयास है कि पत्रकारिता में मूल्य बचे रहें। प्रबुद्ध वर्ग में चलने वाले विमर्शों को आधार माने तब पत्रकारों के दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता प्रतीत होती है। व्यावसायिक प्रतिस्पद्र्धा ने उनके मन में कुछ बातें बैठा दी हैं। आज विशेष जोर देकर पत्रकारों को यह सिखाया जा रहा है कि 'समाचार सबसे पहले' और 'समाचार किसी भी कीमत पर' ही किसी पत्रकार का धर्म है। परंतु, क्या प्रत्येक परिस्थिति में पत्रकार के लिए इस धर्म का निर्वहन आवश्यक है? एक प्रश्न यह भी कि क्या वास्तव में यही पत्रकार का धर्म है? इन दोनों प्रश्नों का विचार करते समय जरा हमें पत्रकारिता के पुरोधाओं के जीवन को देखना चाहिए। उनकी कलम से बहकर निकलने वाली पत्रकारिता की दिशा को समझना चाहिए।

शनिवार, 9 दिसंबर 2017

रसातल में पहुंची राजनीतिक बयानबाजी

 गुजरात  का चुनावी महासंग्राम विकास पर बहस के साथ प्रारंभ हुआ था। किंतु, जैसे-जैसे यह बहस आगे बढ़ी, विकास के मुद्दे कहीं गायब हो गए। भाषा का स्तर लगातार गिरता गया। कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर का बयान इस बात का प्रमाण है कि राजनीतिक बयानबाजी पूरी तरह से रसातल में पहुंच चुकी है। मणिशंकर अय्यर कोई अनपढ़ नेता नहीं है, बल्कि बेहतरीन संस्थानों में पढ़े-लिखे और कांग्रेस के प्रबुद्ध वर्ग में शुमार हैं। किंतु, नरेन्द्र मोदी के प्रति उनकी नफरत एवं घृणा, उनके भाषाई स्तर को निम्नतम स्तर पर पहुंचा देती है। अय्यर ने देश के प्रधानमंत्री के लिए जिस प्रकार के शब्द का उपयोग किया है, वह न केवल घोर आपत्तिजनक है, बल्कि आपराधिक भी है। 'नीच' शब्द को गाली के रूप में उपयोग किया जाता है। अय्यर ने प्रधानमंत्री को 'नीच' और 'असभ्य' कह कर अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय दिया है। उन्होंने यह भी बताया है कि वह प्रधानमंत्री मोदी से किस हद तक घृणा करते हैं।

शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

चर्च की राजनीति-1 : ध्रुवीकरण का ओछा प्रयास है पादरी की चिट्ठी

 गुजरात  चुनाव में चर्च ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सीधा प्रयास किया है। गांधीनगर के आर्चबिशप (प्रधान पादरी) थॉमस मैकवान ने चिट्ठी लिखकर ईसाई समुदाय के लोगों से अपील की है कि वे गुजरात चुनाव में 'राष्ट्रवादी ताकतों' को हराने के लिए मतदान करें। यह स्पष्टतौर पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय एवं चुनाव आयोग की आचार संहिता का उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसी वर्ष जनवरी में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) की नए सिरे से व्याख्या करते हुए निर्णय दिया था कि कोई भी धर्म, जाति, समुदाय या भाषा इत्यादि के आधार पर वोट नहीं माँग सकता। यहाँ तक कि धार्मिक नेता भी अपने समुदाय को किसी उम्मीदवार या पार्टी के पक्ष में मतदान करने के लिए नहीं कह सकता। किंतु, जिनकी आस्थाएं भारत के संविधान की जगह कहीं और हों, उन्हें संविधान या संवैधानिक संस्थाओं के निर्देशों की चिंता नहीं होती। बल्कि, उन्हें उनकी चिंता अधिक रहती है, जो उनके स्वार्थ एवं धार्मिक एजेंडे को पूरा करने में सहयोगी होते हैं।