मंगलवार, 1 अगस्त 2017

मॉब लिंचिंग और उसका सच

 मौजूदा  समय में विपक्ष मुद्दा विहीन और भ्रमित दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि बीते सोमवार को संसद में 'मॉब लिंचिंग' जैसे बनावटी मुद्दे पर सरकार को घेरने का असफल प्रयास कांग्रेस ने किया। निश्चित ही भीड द्वारा की जा रही घटनाएं सभ्य समाज के लिए ठीक नहीं हैं। इनकी निंदा की जानी चाहिए और इस प्रवृत्ति पर कठोरता से कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन, यह जिम्मेदारी किसकी है? क्या केंद्र सरकार 'मॉब लिंचिंग' की घटनाओं के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है? क्या यह राज्यों की कानून व्यवस्था से जुड़ा मसला नहीं है? राज्यों के मामले में केंद्र सरकार का दखल देना क्या उचित होगा? यह भी देखना होगा कि 'मॉब लिंचिंग' की घटनाएं अभी अचानक होने लगी हैं या फिर इस प्रकार की घटनाओं का अपना इतिहास है? जब कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने मॉब लिंचिंग के मुद्दे को संसद में उठाया, तब उनसे सत्ता पक्ष ने इसी प्रकार के प्रश्नों के उत्तर चाहे। स्वाभाविक ही कांग्रेस के पास उक्त प्रश्नों के उत्तर नहीं थे।
 
          कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा कि मध्यप्रदेश और झारखंड मॉब लिंचिंग के केंद्र बन गए हैं। उन्होंने सरकार पर यह भी आरोप लगाया कि वह विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों को हिंसा के लिए उकसाती है। गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा से देश चिंतित है। देश में दलित, अल्पसंख्यकों और महिलाओं की हत्या की जा रही हैं। कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े का यह आरोप निराधार ही नहीं, वरन आपत्तिजनक भी है। संसद में किसी संगठन पर आरोप लगाने से पहले कांग्रेस को ठोस सबूत प्रस्तुत करने चाहिए थे। कांग्रेस का यह रुख बताता है कि उसने अभी तक अपनी 'हिंदू विरोधी छवि' में कोई सुधार नहीं किया है। 
          सामान्य व्यक्ति जानता है कि 'मॉब लिंचिंग' शुद्ध तौर पर एक बनावटी मुद्दा है। यह उन्हीं लोगों का नया नाटक है, जिन्होंने कभी 'असहिष्णुता' के नाम पर देश-दुनिया में भारत को बदनाम करने का षड्यंत्र रचा था। उनका वह षड्यंत्र असफल हो गया था, क्योंकि झूठ की बुनियाद पर इमारत खड़ी नहीं हो सकती है। आज पारदर्शिता का जमाना है। आम आदमी भी पूरा सच जानता है। संसद में जिस मुद्दे पर कांग्रेस केन्द्र सरकार पर हमलावर हो रही है, वह भी बनावटी और चयनित है। मॉब लिंचिंग के मुद्दे की नीयत से पर्दा संसद में ही भाजपा के सांसद हुकुम नारायण यादव ने उठा दिया। सांसद ने कांग्रेस से पूछ लिया कि- 'इस मॉब लिंचिंग में जम्मू-कश्मीर में भीड़ के हाथों मारे गए अयूब पंडित का नाम क्यों नहीं है? केरल में भीड़ द्वारा की जा रही हत्याओं पर चिंता क्यों नहीं जताई जा रही है? जुनैद की हत्या ट्रेन में सीट विवाद को लेकर हुई थी, उसे धर्म से क्यों जोड़ा जा रहा है?' 
          मॉब लिंचिंग की आड़ में उठाए जा रहे प्रश्नों की बनावट देंखे तो साफ दिखाई देगा कि इसके पीछे एक चयनित दृष्टिकोण काम कर रहा है। यह विरोध प्रदर्शन मॉब लिंचिंग के खिलाफ नहीं, अपितु भाजपा सरकार और राष्ट्रीय विचार के विरुद्ध है। ऐन-केन-प्रकारेण राष्ट्रवादी ताकतों को लपेट कर उन्हें बदनाम करने की यह नई मुहिम है। इसलिए इसमें अयूब पंडित की मौत और केरल में हो रही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्याओं को शामिल नहीं किया जाता है। किसी अन्य विवाद में मारे गए अल्पसंख्यक की मौत को षड्यंत्रपूर्वक धर्म और गोरक्षा से जोड़ा जाता है। 
          मल्लिकार्जुन खडग़े ने मध्यप्रदेश और झारखंड का नाम भी राजनीतिक दृष्टिकोण से लिया है। चूँकि निकट भविष्य में मध्यप्रदेश और झारखंड में चुनाव हैं, इसलिए कांग्रेस नेता ने भाजपा सरकारों को बदनाम करने के लिए मध्यप्रदेश और झारखंड का नाम लिया। विपक्ष के प्रश्नों (आरोपों) का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने तथ्यों के आधार पर झूठ को नग्न कर दिया। बहरहाल, खडग़े को यह भी मालूम होना चाहिए कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस प्रकार की घटनाओं का विरोध कर चुके हैं। उन्होंने साफतौर पर कहा है कि यह घटनाएं गोरक्षा जैसे पवित्र आंदोलन को बदनाम करती हैं। इसलिए खडग़े का यह आरोप भी निराधार है कि केंद्र सरकार किसी संगठन और उससे जुड़े लोगों को उकसाने का काम कर रही है। बल्कि, कांग्रेस को अपने गिरेबां में झांकना चाहिए कि सार्वजनिक गोहत्या और बीफ पार्टी का आयोजन करके गोरक्षकों को उकसाने का काम कौन कर रहा है? कांग्रेस को चाहिए कि वह एक जिम्मेदार विपक्ष के तौर पर अपनी भूमिका को पहचाने और देशहित के मुद्दों को संसद में उछाले। इन मुद्दों को उठाने से न तो समाज का भला होना है और न ही कांग्रेस को कोई राजनीतिक लाभ मिलने वाला है।

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