बुधवार, 28 दिसंबर 2016

सांप्रदायिक निर्णय के बाद भी कांग्रेस सेक्युलर!

 जुमे  की नमाज के लिए मुस्लिम कर्मचारियों को 90 मिनट का अवकाश देकर उत्तराखंड सरकार ने सिद्ध कर दिया है कि कांग्रेस ने सेक्युलरिज्म का लबादा भर ओढ़ रखा है, असल में उससे बढ़ा सांप्रदायिक दल कोई और नहीं है। कांग्रेस के साथ-साथ उन तमाम बुद्धिजीवियों और सामाजिक संगठनों के सेक्युलरिज्म की पोलपट्टी भी खुल गई है, जो भारतीय जनता पार्टी या किसी हिंदूवादी संगठन के किसी नेता की 'कोरी बयानबाजी' से आहत होकर 'भारत में सेक्युलरिज्म पर खतरे' का ढोल पीटने लगते हैं, लेकिन यहाँ राज्य सरकार के निर्णय पर अजीब खामोशी पसरी हुई है। उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार के घोर सांप्रदायिक निर्णय के खिलाफ तथाकथित प्रगतिशील और बुद्धिजीवी समूहों से कोई आपत्ति नहीं आई है। सोचिए, यदि किसी भाजपा शासित राज्य में निर्णय हुआ होता कि सोमवार को भगवान शिव पर जल चढ़ाने के लिए हिंदू कर्मचारियों-अधिकारियों को 90 मिनट का अवकाश दिया जाएगा, तब देश में किस प्रकार का वातावरण बनाया जाता? सेक्युलरिज्म के नाम पर यह दोगलापन पहली बार उजागर नहीं हुआ है। यह विडम्बना है कि वर्षों से इस देश में वोटबैंक की राजनीति के कारण समाज को बाँटने का काम कांग्रेस और उसके प्रगतिशील साथियों ने किया है, लेकिन सांप्रदायिक दल होने की बदनामी समान नागरिक संहिता की माँग करने वाली भारतीय जनता पार्टी के खाते में जबरन डाल दी गई है।

शनिवार, 17 दिसंबर 2016

जनप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज के 11 वर्ष

 मध्यप्रदेश  के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के यशस्वी कार्यकाल को 29 नवम्बर को 11 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। निश्चित ही उनकी यह यात्रा आगे भी जारी रहेगी। इंदौर में आयोजित 5वीं ग्लोबल इन्वेस्टर समिट-2016 के समापन समारोह में उन्होंने कहा भी है कि अगली इन्वेस्टर समिट 2019 में उनकी ही सरकार कराएगी। मुख्यमंत्री के इस बयान को कुछ लोग उनका आत्मविश्वास कह सकते हैं और कुछ लोग अति विश्वास भी कहने से नहीं चूकेंगे। वास्तव में यह जनता का भरोसा है, जिसके आधार पर शिवराज यह कह गए। अपनी इस यात्रा में शिवराज बड़ों को आदर देकर, छोटों को स्नेह देकर और समकक्षों को साथ लेकर लगातार आगे बढ़ रहे हैं। यह उनके नेतृत्व की कुशलता है। उनका व्यक्तित्व इतना सहज है कि जो भी उनके नजदीक आता है, उनका मुरीद हो जाता है। शिवराज के राजनीतिक विरोधी भी निजी जीवन में उनके व्यवहार के प्रशंसक हैं। सहजता, सरलता, सौम्यता और विनम्रता उनके व्यवहार की खासियत है। उनके यह गुण उन्हें राजनेता होकर भी राजनेता नहीं होने देते हैं। वह मुख्यमंत्री हैं, लेकिन जनता के मुख्यमंत्री हैं। 'जनता का मुख्यमंत्री' होना उनको औरों से अलग करता है। प्रदेश में पहली बार शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री निवास के द्वार समाज के लिए खोले। वह प्रदेश में गाँव-गाँव ही नहीं घूमे, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग को मुख्यमंत्री निवास पर बुलाकर भी उनको सुना और समझा। अपने इस स्वभाव के कारण शिवराज सिंह चौहान 'जनप्रिय' हो गए हैं। मध्यप्रदेश में उनके मुकाबले लोकप्रियता किसी मुख्यमंत्री ने अर्जित नहीं की है।

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

नर्मदा संरक्षण का बड़ा प्रयास

 मध्यप्रदेश  के मुध्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार ने नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने का संकल्प लिया है। यह शुभ संकल्प है। मध्यप्रदेश के प्रत्येक नागरिक को प्रार्थना करनी चाहिए कि मुख्यमंत्री का यह संकल्प पूरा हो, बल्कि उचित होगा कि अधिक से अधिक नागरिक इस संकल्प की पूर्ति में अपना योगदान दें। क्योंकि नर्मदा नदी प्रदेश की जीवनरेखा है। यह प्रदेश को आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बना रही है। यह पेयजल, सिंचाई और बिजली देती है। वृक्षों के कटने और प्रदूषण से नर्मदा के जलप्रवाह पर प्रभाव हुआ है। इसलिए समय की आवश्यकता है कि नर्मदा नदी को प्रदूषण से मुक्त किया जाए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की संवेदनशीलता है कि उन्होंने इस संबंध में 'नमामि देवी नर्मदे' यात्रा जैसा महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। अपने कार्यकाल के 11 साल पूरे होने पर उन्होंने इस यात्रा की घोषणा करते हुए कहा था कि वे नर्मदा की गोदी में पले-बढ़े हैं। यह यात्रा माँ नर्मदा का कर्ज उतारने का प्रयास है। हालाँकि, किसी सरकार और एक मुख्यमंत्री के बूते नर्मदा को प्रदूषण मुक्त बनाना संभव नहीं है। हाँ, यह सुखद और सकारात्मक है कि सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस कार्य के लिए आगे आए हैं। हम सब मध्यप्रदेश के निवासी भी आगे आएं और इस अभियान की सफलता सुनिश्चित करें, क्योंकि नर्मदा का जितना कर्ज मुख्यमंत्री पर है, उतना ही हम सब लोगों पर भी है। इस ऋण से उऋण होना संभव नहीं, लेकिन कुछ लौटाने का प्रयास तो करना ही चाहिए।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

राष्ट्रगान का सम्मान

 देश  के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रगान के सम्मान में सराहनीय निर्णय सुनाया है। कुछ समय पहले जब इस तरह के मामले सामने आए कि सिनेमाघर या अन्य जगह राष्ट्रगान बजाया गया तब कुछेक लोग उसके सम्मान में खड़े नहीं हुए। इस संबंध में उनका कहना था कि संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि जब राष्ट्रगान हो रहा हो, तब खड़े होना अनिवार्य है। इसी बीच सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य करने की माँग ने भी जोर पकड़ा। इस माँग के बाद देशभर में राष्ट्रगान के सम्मान और अपमान की बहस ने जन्म लिया था। इस बहस में आ रहे तर्क-कुतर्कों पर उच्चतम न्यायालय ने विराम लगा दिया है। न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा है कि सिनेमाघरों में फिल्मों का प्रदर्शन शुरू होने से पहले राष्ट्रगान अवश्य बजाया जाना चाहिए। साथ ही परदे पर राष्ट्रध्वज की तस्वीर भी दिखाई जानी चाहिए। जिस वक्त राष्ट्रगीत बज रहा हो, वहां उपस्थित लोगों को उसके सम्मान में खड़े रहना जरूरी है। इसके अलावा राष्ट्रगान का किसी भी रूप में व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इसकी धुन को बदल कर गाने या फिर इसे नाटकीय प्रयोजन के लिए उपयोग नहीं होना चाहिए।